लखीमपुर खीरी : किसान-आंदोलन की यात्रा का अहम मोड़
संयुक्त किसान मोर्चा ने लखीमपुर हत्याकांड के खिलाफ अपने प्रतिरोध को नई ऊंचाई पर ले जाते हुए, 11 अक्टूबर तक अपनी मांगे पूरी न होने पर 18 अक्टूबर को पूरे देश में "रेल रोको" आंदोलन का ऐलान कर दिया है। सम्भव है, संयुक्त किसान मोर्चा के अल्टीमेटम और सर्वोच्च न्यायालय के सख्त रुख के बाद किसानों की हत्या के मुख्य आरोपी आशीष मिश्र की आज-कल में गिरफ्तारी हो जाय, जैसा उसके मंत्री-पिता ने भी कहा है।
पर लाख टके का सवाल यह है कि पूरे मामले का जो मुख्य सूत्रधार है अजय मिश्र टेनी , जो हत्या के मुख्य नामजद आरोपी का पिता भी है, उसे गृह राज्यमंत्री के पद से कब बर्खास्त किया जायेगा? चाहे वह उत्तर प्रदेश में चल रही जाँच हो, जिस पर मुख्य न्यायाधीश ने असंतोष व्यक्त किया है अथवा कोई अन्य जांच हो, टेनी के केंद्रीय गृह राज्यमंत्री जैसे संवेदनशील पद पर रहते निष्पक्ष जांच असम्भव है। सच तो यह है कि टेनी को न सिर्फ उसके मंत्रिपद से बर्खास्त किया जाना चाहिए बल्कि तत्काल गिरफ्तार किया जाना चाहिए, क्योंकि इस भयानक कांड के लिए वह केंद्रीय तौर पर जिम्मेदार है। संवैधानिक पद पर बैठे इस व्यक्ति ने जनसंहार के महज एक सप्ताह पूर्व जो खुले आम दंगाई बयानबाजी की, साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण और उकसावेबाजी की कोशिश की और किसानों को चिढ़ाते हुए अपने गांव के कार्यक्रम में उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य को बुलाकर शक्ति-प्रदर्शन किया, वह सब किसी बड़े षड्यंत्र की ओर इशारा करता है। अब यह तो किसी निष्पक्ष जांच से ही पता लग सकता है कि गृह राज्यमंत्री के इस खूनी खेल के तार गृह मंत्रालय, सत्ताशीर्ष और संघ-भाजपा के किन उच्चतर स्तरों से जुड़े हुए थे ।
लोग यह देखकर दंग हैं कि जिस मंत्री की किसानों के ऐसे नृशंस जनसंहार में अहम भूमिका है, वह हत्याकांड के तुरंत बाद भारत सरकार के तमाम कार्यक्रमों की शोभा बढ़ा रहा है और जेल सुधार पर भाषण पिला रहा है! ऐसे व्यक्ति को पद पर बाकायदा बनाये रखकर मोदी और शाह देश की न्याय-व्यवस्था और जनभावना को ठेंगा दिखा रहे हैं।
हत्यारों के बचाव ने सरकार को नंगा किया
लखीमपुर जनसंहार पर मोदी-योगी सरकारों के रुख ने इनकी रही सही साख को भी मिट्टी में मिला दिया है। 8 अक्टूबर को जब सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रमन्ना ने सरकार के वकील हरीश साल्वे से पूछा कि 302 के किसी अन्य आरोपी के साथ क्या आप वही बर्ताव करते हैं जो इस मामले में कर रहे हैं, तो उन्होंने पूरे देश की न्यायप्रिय जनता को जो सवाल आज मथ रहा है, उसे ही स्वर दिया। अब तक मुख्य आरोपी को गिरफ्तार न करने पर सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए, उन्होंने अब तक की जांच पर घोर असंतोष व्यक्त किया और CBI से जांच की उपयोगिता को यह कहते हुए खारिज़ कर दिया कि जिस तरह के लोग इसमें involve हैं, CBI जांच का कोई मतलब नहीं है। ( संयुक्त किसान मोर्चा ने भी सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी में जांच की मांग किया है। )
सर्वोच्च न्यायालय के ये observations सत्ता शीर्ष पर बैठे हुए लोगों की न्याय के प्रति निष्ठा और उनके राज में संस्थाओं, एजेंसियों की integrity पर गम्भीर टिप्पणी हैं। इसने मोदी-योगी सरकार को पूरी तरह नंगा कर दिया है।
एक तरफ आम जनता, किसान और माननीय मुख्य न्यायाधीश हत्या के मुख्य आरोपी को 5 दिन बीतने के बाद भी गिरफ्तार न करने पर सवाल उठा रहे हैं, दूसरी ओर योगी जी कानून के राज के प्रति अपना यह न्यूनतम दायित्व पूरा करने की बजाय उसे क्लीन चिट दे रहे हैं कि, " आशीष के वहां होने का कोई वीडियो नहीं है, ......"। ठीक इसी तरह हाथरस कांड के समय इनके पुलिस अधिकारी ने जांच के पहले ही अपराधियों को क्लीनचिट दे दिया था कि कोई बलात्कार हुआ ही नहीं जो बाद में पूरी तरह झूठ साबित हुआ।
सच्चाई यह है कि किसानों की बेरहमी से की गई हत्या से लोग जितना shocked हैं, उतना ही अपराधियों को बचाने की मोदी-शाह-योगी की बेहयाई को देखकर दंग हैं। घटना के एक नहीं अनेक clinching सबूत मिल चुके हैं, जिनमें न सिर्फ प्रत्यक्षदर्शी किसानों के बयान शामिल हैं, वरन वारदात में शामिल भाजपा कार्यकर्ता का पुलिस अधिकारी को बयान देते वीडियो शामिल है, जिसमें वह आशीष मिश्रा के उस हत्यारी गाड़ी में होने की बात साफ तौर पर स्वीकार करता है, चुपचाप लौटते किसानों को पीछे से कुचलती-रौंदती थार गाड़ी का पूरा वीडियो आ चुका है, जिससे उतर कर हत्यारे भागते दिख रहे हैं। थार जीप अपने नाम रजिस्टर्ड होने की बात मंत्री स्वयं स्वीकार कर चुके हैं।
राष्ट्रव्यापी जनाक्रोश और तमाम जनसंगठनों व राजनीतिक दलों के तीखे प्रतिवाद के बावजूद अपराधियों के खिलाफ सरकार ने तब तक दिखावे के लिए भी कार्रवाई शुरू नहीं की, बल्कि उनके बचाव की कोशिशों में लगी रही जब तक कि सर्वोच्च न्यायालय ने हस्तक्षेप नहीं किया। हत्यारोपी खुलेआम बैठकर चैनलों को इंटरव्यू देता रहा और उसका मंत्री पिता किसान आंदोलन के खिलाफ भड़काऊ बयानबाजी करता रहा।
कानून के राज और जनभावना के प्रति सरकार की इस चरम संवेदनहीनता पर लोग हतप्रभ हैं।
कुछ विश्लेषक इस पूरे घटनाक्रम में भाजपा के अंदरूनी शह-मात के खेल की भूमिका की ओर भी इशारा कर रहे हैं। बहरहाल मूल बात तो साफ है कि लखीमपुर जो उत्तर प्रदेश में सिख किसानों की सबसे बड़ी आबादी का इलाका है तथा दिल्ली बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन में बड़ी भूमिका निभा रहा है, वहां के किसानों के खिलाफ साम्प्रदायिक नफरत फैलाकर और उन्हें सबक सिखाकर विधानसभा चुनाव के लिए साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करने की रणनीति पर काम हो रहा था और इस लक्ष्य को लेकर भाजपा नेतृत्व के युद्धरत खेमों में शायद ही कोई मतभेद हो।
दरअसल, लखीमपुर किसान-आंदोलन के लिए कई कोणों से एक strategic point है। क्षेत्रफल की दृष्टि से यह प्रदेश का सबसे बड़ा जिला है और राज्य की कुल कृषि जीडीपी में सबसे अधिक योगदान करता है ( 2019-20 के आंकड़ों के अनुसार 3.38%)। जाहिर है यह खेती-किसानी का बड़ा केंद्र है। प्रदेश की सर्वाधिक सिख आबादी इसी जिले में है-प्रदेश के कुल साढ़े 6 लाख में लगभग 1 लाख । इस जिले में सिखों का concentration, कुल आबादी में उनका अनुपात भी सर्वाधिक है। जहां प्रदेश में यह मात्र ( 0.3% ) है, वहीं लखीमपुर में यह 10 गुना अर्थात 3% के आसपास है।
भौगोलिक दृष्टि से यह एक ओर पश्चिम और तराई से जुड़ा हुआ है, दूसरी ओर मध्य और पूर्वी उत्तर प्रदेश के लिए gate-way है। दिल्ली बॉर्डर पर पिछले 10 महीने से जारी किसान-आंदोलन के लिए यह शुरू से ही मजबूत support base की भूमिका निभा रहा है। इसीलिए यह अनायास नहीं है कि सत्ता द्वारा इसे बर्बर दमन का शिकार बनाया गया और उस दमन के खिलाफ अब यह प्रतिरोध का सबसे बड़ा केंद्र बन कर उभर रहा है। लखीमपुर पूरे प्रदेश में आंदोलन के विस्तार का launching पैड बन गया है।
अब यह आंदोलन दिल्ली बॉर्डर की बाहरी परिघटना न रहकर उत्तर प्रदेश में internalise हो गया है। 2 अक्टूबर को चंपारण से चली किसान पदयात्रा भी पूरे पूर्वांचल को जगाती 20 अक्टूबर को बनारस पहुंचने वाली है।
26-28 जनवरी के घटनाक्रम की तरह ही लखीमपुर हत्याकांड किसान-आंदोलन की यात्रा का एक major turning point है, जिसकी चुनौती का सफलतापूर्वक मुकाबला आंदोलन को प्रतिरोध और राजनीतिक प्रभाव के उच्चतर चरण में स्थापित करेगा।
किसान-आंदोलन के नेतृत्व के लिए निश्चय ही यह परीक्षा की घड़ी है। उन्हें इस संवेदनशील क्षेत्र में एक ओर विभाजन और ध्रुवीकरण की साजिश को चकनाचूर करना है, हर हाल में किसानों की एकता और सामाजिक सद्भाव की रक्षा करना है, दूसरी ओर आंदोलन की धार को कुंद करने, नेतृत्व को विभाजित और बदनाम करने की सत्ता की हर शातिर चाल के प्रति सतर्क रहते हुए आंदोलन को पूरे प्रदेश मे फैला देने और नई ऊंचाई पर ले जाने की चुनौती कबूल करना है।
UP समेत 4 अन्य राज्यों के चुनाव के ठीक पहले इस विकासमान आन्दोलन का चुनावों पर जबरदस्त असर पड़ना तय है। लखीमपुर जनसंहार न सिर्फ उत्तरप्रदेश बल्कि उत्तराखंड और पंजाब चुनाव का मुख्य मुद्दा (defining agenda) बनने जा रहा है। इसने विपक्ष की राजनीति को पूरी तरह galvanize कर दिया है।
लखीमपुर में किसानों की दर्दनाक हत्या से मोदी-योगी सरकार, संघ-भाजपा का जो क्रूर, संवेदनहीन, खौफनाक चेहरा सामने आया है, उससे पूरा देश स्तब्ध है। इसने
किसानों के न्यायपूर्ण संघर्ष और बलिदान के प्रति पूरे देश में गहरी सहानुभूति और समर्थन को जन्म दिया है, तथा हत्यारों को बचाने की मोदी-योगी सरकार की बेहयाई के खिलाफ पूरे समाज को गुस्से से भर दिया है। इस गुस्से की लहर वोटों में तब्दील हुई तो विधानसभा चुनावों में भाजपा का सूपड़ा साफ होना तय है।
(लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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