झारखंड : जारी है एचईसी मज़दूरों की हड़ताल, साथ आए सभी विपक्षी दल
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पहली बार ऐसा हुआ जब देश की ‘मदर इंडस्ट्री’ एचईसी और उसमें काम करनेवाले श्रमिकों की कॉलनियों में नए साल के आगमन को लेकर हमेशा की तरह बहुत उत्साह नहीं देखा गया। मजदूरों ने बाताया कि एचईसी के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब यहाँ के मजदूर-कर्मचारियों ने नए वर्ष का स्वागत मज़बूरी में हड़ताल से कर रहें हैं।
नववर्ष के दिन संस्थान के तीनों प्रमुख प्लांट- एचएमबीपी, एचएमटीपीऔर एफ़एचपी के सभी श्रमिक कार्यस्थल पर उपस्थिति दर्ज करने के बाद प्रबंधन के खिलाफ नारेबाजी करते हुए धरने पर बैठ गए। संस्थान के सुरक्षाकर्मी और कई इंजीनियर व छोटे अफसरों में से भी किसी ने कोई रोक-टोक नहीं की और चुपचाप खड़े रहकर मानो एक तरह से मौन समर्थन दिया।
एचइसी के मजदूरों के टूल डाउन और हड़ताल को एक महीना हो गया है और अभी भी वो जारी है, यह भी एचईसी के इतिहास में पहली बार हुआ है।
आंदोलनकारो श्रमिकों का कहना है कि एचईसी सिर्फ इस देश के उद्योगों की ही मदर इंडस्ट्री नहीं है, बल्कि हमारी भी मदर है। यहाँ की खस्ता आर्थिक हालत को हम भी जानते समझते हैं इसीलिए हम एकमुश्त बकाया वेतन नहीं मांग रहें हैं। हमनें पहले ही प्रस्ताव दे रखा है कि प्रबंधन हर महीने दो-दो माह का वेतन देकर बकाया चुका दे। जिसे लेकर हम लोगों ने उनके साथ 3 बार त्रिपक्षीय वार्ता भी की है लेकिन प्रबंधन लागातार अपनी हठधर्मिता पर अड़ा हुआ है। आज हमारे घरों की हालत इस क़दर तबाह हो रही है कि पैसों के अभाव में हम बच्चों की फ़ीस तक नहीं जमा कर पा रहें हैं।
दूसरी ओर, एचईसी प्रबंधन भी लगातार कंपनी के पास पैसे नहीं होने कारण मजदूरों को बकाया वेतन देने में अपनी असमर्थता का रोना रो रहा है। वह भी केंद्र से कई बार आर्थिक मदद की गुहार भी लगा चुका है।
31 दिसंबर को भी प्रबंधन ने केन्द्रीय भारी उद्योग मंत्रालय के संयुक्त सचिव को विशेष पत्र लिखकर कंपनी की जर्जर आर्थिक हालत को ठीक करने हेतु ‘बैंक गारंटी’ बढ़ाने की मांग की है। पत्र में यह भी लिखा गया है कि एचईसी के बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स ने भी इस पर अपनी सहमती दे दी है। इसकी जानकारी भारी उद्योग मंत्रालय को पूर्व में भी दी गयी है।
इस बाबत एचईसी अधिकारियों का कहना है कि- एचईसी के प्रति यदि भारी उद्योग मंत्रालय कोई साकारात्मक सोच रखता है और इसकी बैंक गारंटी बढ़ा देता है (जो 388 करोड़ का है) तो प्रबंधन को कंपनी चलाने में सहूलियत हो जायेगी। जिससे कंपनी को मिले 1200 करोड़ के कार्यादेश को समय पर पूरा हो जाएगा और काफी हद तक आर्थिक हालत को पटरी पर लाने में हम सफल हो जायेंगे। क्योंकि कार्यशील पूंजी के अभाव में ही आगे का उत्पादन कार्य पूरी तरह से ठप्प पड़ा है। आकांक्षा, इसरो, दुर्गपुर स्टील प्लांट एवं माईनिंग क्षेत्र के कई कंपनियों के कार्यादेश की पूर्ति करनी है। समय पर आपूर्ति हो जाएगी तो हमारे पास अच्छा खासा फंड आ जाएगा। खबर है कि मंत्रालय की ओर से अभी तक कोई सकारात्मक उत्तर नहीं आया है।
एचईसी को आर्थिक जर्जरता से उबारने में मोदी सरकार और भरी उद्योग मंत्रालय की उदासीनता और खामोशी के खिलाफ सभी वामपंथी दल वगैर भाजपा दलों समेत कई सामाजिक संगठनों द्वारा लागातार विरोध जारी है। इसी क्रम में 30 दिसम्बर को एचईसी स्थापना दिवस पर संस्थान के ही मुख्य द्वार हड़ताली मजदूरों के साथ एक बड़ी संयुक्त प्रतिवाद सभा भी की गयी। जिसे झारखण्ड कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय, एक्टू के शुभेंदु सेन,सीपीएम के प्रकाश विप्लव,सीपीआइ के महेंद्र पाठक, मासस के सुशांतो मुखर्जी तथा आंदोलनकारी दयामनी बारला व आदिवासी जनपरिषद नेता प्रेमशाही मुंडा के अलावा झामुमो व राजद के प्रतिनिधियों ने भी संबोधित किया।
सभी वक्ताओं ने एक बार फिर से केंद्र की सरकार को चेताया कि वो झारखंड व देश की औद्योगिक पहचान औद्योगिक संस्थान को देचने की साजिश से बाज़ आये। समय रहते यदि वह इसकी हालत ठीक नहीं करती है तो फिर वे हेमंत सोरेन सरकार से इसे टेक ओवर करने की मांग करेंगे।
30 दिसंबर को ही ‘एचईसी बचाओ’ अभियान के तहत सीपीएम की झारखंड ईकाई ने राज्यव्यापी प्रतिवाद अभियान चलाकर प्रदेश के कई मजदूर क्षेत्रों में धरना कार्यक्रम किया। जिसके माध्यम से मोदी सरकार पर इस ‘मदर इंडस्ट्री’ को बंद कर बेचने की साज़िश का आरोप लगाते हुए हेमंत सोरेन सरकार से इसे टेक ओवर करने की मांग की गयी। हटिया के धुर्वा स्थित एचईसी परिसर में ही संस्थान के सभी अफसर व कर्मचारियों के क्वार्टर हैं। जिनमें रहने वालों की दो से तीन पीढ़ियों का निवास रहा है। जाने की प्रबल इच्छा हुई कि इन समय यहाँ के लोगों की क्या प्रतिक्रियाएं हैं। उसी कॉलोनी में संस्थान के कर्मी रहे मजदूर के बेटे तथा एक्टिविस्ट पत्रकार व सामाजिक कर्मी वीरेन्द्र जी से पूछने पर उन्होंने एक और पहलू को उजागर किया। उन्होंने बताया कि यहाँ रहने वाली अधिकांश आबादी बिहार वालों की है। जिनमें सवर्ण जातियों की बहुलता और यहाँ दबंगता है। लम्बे समय तक यहाँ के जो वोट एकमुश्त कांग्रेस को मिलते थे, अब वह सब भाजपा को मिलता है और यह पूरा इलाका भाजपा का अत्यंत मजबूत आधार कहा जाता है। पिछले कोरोना काल में मोदी जी के कहने पर पूरी कॉलोनी में हर अफसर-मजदूर घरों के लोगों ने जोशो खरोश के साथ ताली-थाली बजाई थी। लेकिन आजएचईसी की दुर्दशा और केंद्र की उपेक्षा से सबों की थाली पर ही लाले पड़े हुए हैं तब भी कोई खुलकर मोदी सरकार के खिलाफ कुछ बोलने को तैयार नहीं है। कॉलोनी के चौक चौराहों और चाय दुकानों की चर्चाओं में कुछ लोग अकेले में मिलने पर दबी जुबान में विरोध तो करते हैं लेकिन सबके सामने चुप ही रहते हैं। कईयों ने तो यह भी कहा कि वे इसलिए नहीं विरोध कर रहें हैं कि अभी मोदी का कोई विकल्प नहीं है और दूसरी व सबसे अहम बात वो यह कि अभी मोदी विरोध का मतलब ‘हिन्दू राष्ट्र निर्माण’ के अभियान पर ही आघात हो जाएगा। देखने वाली बात होगी कि ‘गमे रोटी रोज़गार और मसला हिदू राष्ट्र निर्माण’ का कैसा फलाफल सामने आता है?
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