जलवायु बजट में उतार-चढ़ाव बना रहता है, फिर भी हमेशा कम पड़ता है
पर्यावरण बचाव एवं उर्जा नवीनीकरण के उपयोग की कोशिशों के लिए अपर्याप्त आवंटन एक चिरस्थायी मुद्दे बने हुए हैं। हालाँकि इस बात में कोई विवाद नहीं है कि इस मोड़ पर पर्यावरणीय उपायों हेतु महत्वपूर्ण आवंटन की आवश्यकता है। इसके बावजूद, एक बार फिर से 2022-23 के लिए केंद्रीय बजट में पर्यावरण के लिए प्रयास और आवंटन दोनों में ही कमी पड़ गई है, और इसके प्रतिकूल नतीजे देखने को मिल सकते हैं।
सबसे पहले, भारत को पहले से बेहतर स्वस्थ एवं स्वच्छ पर्यावरण के लिए अपनी अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को ध्यान में रखते हुए कई महत्वपूर्ण पहलकदमियों को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। दूसरा, कोविड-19 महामारी के चलते पूर्व के आवंटनों में कुछ मदों में भारी कटौती कर दी गई थी, और उनकी भरपाई की एक अनिवार्य जरूरत आन पड़ी है।
मार्च 2021 में, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की स्थाई संसदीय समिति ने 2020-21 के लिए संशोधित अनुमानों की प्रस्तुती के दौरान आवंटन में 35% की कटौती की सूचना दी थी। सरकार ने योजनाओं की वार्षिक योजना में उल्लिखित सभी प्रस्तावित गतिविधियों में आवंटित धनराशि को घटा दिया था। इसमें कहा गया था कि उस वर्ष के अनुमान पिछले तीन वर्षों में सबसे कम थे। उदहारण के लिए, संरक्षण एवं विकास पर अनुसंधान और विकास के लिए आवंटित फंड पिछले पिछले तीन वर्षों की तुलना में सबसे कम था। उपयोग भी काफी कम था, उन तीन वर्षों में मात्र 16.3%, 35.8% और 23.5% था।
वर्ष 2020-21 में जलवायु परिवर्तन कार्य योजना के लिए 40 करोड़ रूपये का आवंटन किया गया था, जिसे बाद के वर्ष में घटाकर 24 करोड़ रूपये कर दिया गया था। इस बीच, सरकार ने जलवायु परिवर्तन के लिए राष्ट्रीय अनुकूलन फण्ड के आवंटन में भी कटौती कर इसे 80 करोड़ रूपये से घटाकर 44 करोड़ रूपये कर दिया। अगले वर्षों के लिए इस मद में 30 करोड़ और 60 करोड़ रूपये आवंटित किये गए थे।
2021-22 में पर्यावरण मंत्रालय के लिए पिछले वर्ष में की गई कटौती की भरपाई करने का प्रयास किये बिना ही बजट अनुमान को पूर्ववत 2,863 करोड़ रूपये ही रखा गया था। इसी प्रकार एक साल पहले की गई महत्वपूर्ण कटौती के बावजूद 2020-21 में नवीन एवं नवीकरणीय उर्जा मंत्रालय के लिए 5,646 करोड़ रुपये के पूर्ववत आवंटन को बरकरार रखा गया था।
सेंटर फॉर बजट एंड गवर्नेंस एकाउंटेबिलिटी (सीबीजीए) के अनुमान के मुताबिक सरकार ने 2020-21 में अक्षय उर्जा मंत्रालय के लिए केंद्रीय अनुदान में कटौती की है, जिसे संशोधित अनुमान में 5,646 करोड़ रूपये से घटाकर 3,343 करोड़ रूपये कर दिया गया था। वर्ष 2016-17 में इस श्रेणी के तहत होने वाले 7,476 करोड़ रूपये के वास्तविक व्यय पर विचार करते हुए यह कटौती एक निराशाजनक स्थिति का संकेत देती है।
सरकार से मिलने वाले अनुदान के अलावा, नवीन एवं अक्षय उर्जा मंत्रालय आंतरिक एवं अतिरिक्त-बजटीय संसाधनों पर निर्भर करता है। इनमें मुख्यतया सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों द्वारा जुटाए गए लाभ, ऋण और इक्विटी शामिल होते हैं, जो हाल के दिनों में बढे हैं। हालाँकि, हम केंद्रीय योजनाओं में बजटीय संसाधनों को लेकर कहीं अधिक चिंतित हैं- जो कि बेहद मामूली गति से बढ़कर 6,788 करोड़ रूपये हो पाए हैं, और पिछली कटौतियों के चलते परियोजनाओं के पूरा होने में बाधा बनी हुई है।
ग्रिड-इंटरैक्टिव अक्षय उर्जा के लिए 2020-21 के बजट अनुमान जो कि 4,350 करोड़ रूपये थे उसे घटाकर 2,689 करोड़ रूपये कर दिया गया था, जबकि ऑफ-ग्रिड अक्षय उर्जा के लिए यह कटौती 1,184 करोड़ रूपये से 558 करोड़ रूपये कर दी गई थी। इसके अलावा, सौर ग्रिड से कनेक्टेड उर्जा के लिए 2020-21 के लिए 2,150 करोड़ रूपये का मूल आवंटन किया गया था। संशोधित अनुमान में, केंद्र ने इसे घटाकर 1,254 करोड़ रूपये कर दिया, फिर 2021-22 के बजट अनुमान में बढ़ाकर 2,689 करोड़ रूपये कर दिया।
हाल के वर्षों में, इस बात की उम्मीद की जा रही थी कि नवीन एवं अक्षय उर्जा मंत्रालय की ओर से मंगल टरबाइन को बढ़ावा देने के लिए एक योजना शुरू की जायेगी। किसान-विज्ञानी मंगल सिंह के द्वारा ईजाद किये गए इस उपकरण के जरिये, जल धाराओं और नहरों से बहने वाली जल उर्जा का इस्तेमाल पानी को उपर उठाकर सिंचाई और पीने के पानी में उपयोग किया जा सकता है। अफ़सोस की बात है कि यद्यपि ग्रामीण विकास मंत्रालय के द्वारा नियुक्त मैथानी कमेटी ने टरबाइन को बढ़ावा देने के लिए एक योजना तो प्रदान की थी, लेकिन इसके लिए कोई आवंटन नहीं मिला। कुछ संसोधनों के साथ, इसके जरिये फसल प्रसंस्करण एवं कुटीर उद्योगों में मदद की जा सकती है और इससे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन एवं उर्जा लागतों में कमी लाने की भी प्रचुर संभावना है।
इसी प्रकार, सरकार ने हरित उर्जा कॉरिडोर परियोजना को लेकर बड़ी-बड़ी बातें की थीं, लेकिन 2020-21 में इसके लिए किये गए 300 करोड़ रूपये के आवंटन को घटाकर 160 करोड़ रूपये, या कहें तो करीब-करीब आधा कर दिया गया। वहीँ यदि 2018-19 के वास्तविक व्यय को देखें तो यह 500 करोड़ रूपये था, जो इस विचार के वित्तपोषण में लगातार गिरावट की प्रवृति को प्रदर्शित करता है। उर्जा दक्षता ब्यूरो के उर्जा संरक्षण एवं उर्जा दक्षता कार्यक्रमों के संबंध में 2020-21 के लिए 213 करोड़ रूपये आवंटित किये गये थे, जिसे बाद में घटाकर 93 करोड़ रूपये कर दिया गया।
इसलिए, हम 2020-21 के दौरान सभी महत्वपूर्ण योजनाओं, कार्यक्रमों और पहलकदमियों में भारी गिरावट की प्रवृत्ति को देखते हैं, जिसके बाद इनके लिए आवंटनों को बढ़ाने के प्रयास किये जाते हैं, जिसके चलते वित्त वर्ष 2021-22 में भी धनराशि को कमोबेश पिछले स्तरों पर लाया जा सका। अनुदानों में इस प्रकार के उतार-चढ़ाव हमें यह जानने में मदद नहीं करते हैं कि 2020-21 के लिए की गई कटौती को बाद में कितना समेटा जा सका था। ऐसा प्रतीत होता है कि उर्जा संरक्षण एवं प्रबंधन के मामले में भारत लगातार पिछड़ता जा रहा है।
इन कार्यक्रमों में उल्लेखनीय वृद्धि की स्पष्ट जरूरत बनी हुई है। हालाँकि, पर्यवरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने अपने वित्त पोषण में मात्र 3,030 करोड़ रूपये की मामूली बढोत्तरी देखी है। विशेषकर, जलवायु परिवर्तन में अनुकूलन के लिए किया गया नगण्य आवंटन, जो कि जलवायु परिवर्तन कार्यों के लिए एक अनिवार्य पहलू है, बेहद निराशाजनक रहा। पिछले वर्ष में, राष्ट्रीय अनुकूलन कोष के लिए बजट अनुमान 60 करोड़ रूपये का किया गया था, हालाँकि वास्तविक खर्च सिर्फ 44 करोड़ रूपये ही किया गया। 2022-23 के लिए फिर से 60 करोड़ रूपये ही आवंटन किये गए हैं, जो इसके बजट के निचले स्तर पर ठहराव का संकेत देते हैं। जलवायु परिवर्तन कार्य योजना के मामले में, पिछले साल आवंटन 30 करोड़ रूपये का किया गया था, जबकि खर्च मात्र 20 करोड़ रूपये हुए। 2022-23 के बजट में भी इसके लिए 30 करोड़ रूपये ही निर्धारित किये गए हैं।
नवीन एवं अक्षय उर्जा मंत्रालय की बात करें तो, ऑन-ग्रिड सौर उर्जा के लिए आवंटन को पहले से बढ़ा दिया गया है, लेकिन ऑफ-ग्रिड सौर उर्जा के लिए पिछले वर्ष के 237 करोड़ रूपये के आवंटन को घटा दिया गया है। अब 2022-23 में यह मात्र 62 करोड़ रूपये रह गया है। ध्यान रहे कि यह भारी कटौती पिछले वर्ष के संशोधित अनुमान में की गई कटौती के बाद की गई है। संशोधित अनुमान में, हरित उर्जा कॉरिडोर को 2021-22 में उनका आवंटन 150 करोड़ रूपये पर आधा ही मिला।
जहाँ तक ग्रिड से जुड़े जैव-उर्जा का प्रश्न है, तो 2021-22 में इसके लिए 120 करोड़ रूपये आवंटित किये गये थे, जिसे संशोधित अनुमान में घटाकर 57 करोड़ रूपये कर दिया गया। और 2022-23 में इसके लिए मात्र 50 करोड़ रूपये ही आवंटित किये गए हैं। ऑफ-ग्रिड जैव-उर्जा को पिछले वर्ष 70 करोड़ रूपये मिले थे, और वर्ष में बाद में इसे घटाकर 36 करोड़ रूपये कर दिया गया। इस वर्ष, इसे सिर्फ 20 करोड़ रूपये ही दिए गए हैं। अक्षय ऊर्जा पर अनुसंधान, विकास और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग पर पिछले वर्ष 75 करोड़ रूपये मिले थे, जिसे घटाकर 28 करोड़ रूपये कर दिया गया था। और 2022-23 में इसे 35 करोड़ रूपये ही आवंटित किये गए हैं।
इसी प्रकार 2020-21 में उर्जा संरक्षण एवं दक्षता (ब्यूरो ऑफ़ एनर्जी एफिशिएंसी के तहत) 80 करोड़ रूपये आवंटित किये गये थे, जिसे 2021-22 में घटाकर 40 करोड़ रूपये कर दिया गया था। अब, 2022-23 के बजट में इसके लिए 60 करोड़ रूपये का आवंटन किया गया है। आवास एवं शहरी विकास मंत्रालय के तहत सतत शहरी विकास कार्यक्रम जिसे सिटी इन्वेस्टमेंट टू इनोवेट, इंटीग्रेट एंड सस्टेन कहा जाता है, के बजट में 2021-22 में कटौती कर इसे 332 करोड़ रूपये से घटाकर 141 करोड़ रूपये कर दिया गया था।
विभिन्न जरूरतों को ध्यान में रखते हुए ये आवंटन निहायत अपर्याप्त हैं, और विभिन्न मदों के व्यय में यदि कोई कटौती नहीं भी की गई है तो ठहराव के लक्षण नजर आते हैं। जैसा कि सारी दुनिया इस समय पारिस्थितिकी संकट से जूझ रही है, ऐसे में निश्चित रूप से पर्यावरणीय चिंताओं पर पहले से कहीं अधिक ध्यान देने की जरूरत है।
लेखक सेव अर्थ नाउ अभियान के मानद संयोजक हैं। उनकी हालिया पुस्तकों में प्रोटेक्टिंग अर्थ फॉर चिल्ड्रेन और प्लेनेट इन पेरिल शामिल हैं। व्यक्त विचार निजी हैं।
अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें
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