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सोशल मीडिया की अफवाह से बढ़ती सांप्रदायिक हिंसा

क्या रवीश कुमार के कार्यक्रम ‘प्राइम टाइम’ के सोशल मीडिया पर प्रचार-प्रसार को फेसबुक जानबूझ कर रोकता है?
सांकेतिक तस्वीर
Image Courtesy: google

एनडीटीवी इंडिया भारत का एक प्रमुख हिंदी समाचार चैनल है। इस चैनल पर जाने-माने पत्रकार रवीश कुमार का कार्यक्रमप्राइम टाइमकाफी लोकप्रिय है। इस चैनल के एक सूत्र में अपनी पहचान नहीं जाहिर करने की शर्त पर एक बड़ी अजीब सी बात बताई। 

इन्होंने बताया कि हम लोगों को एक बात बड़ी अजीब सी लगने लगी कि हमारे बेहद लोकप्रिय कार्यक्रमप्राइम टाइमको लेकर फेसबुक पर होने वाली हलचल तब बहुत धीमी हो जाती थी जब कार्यक्रम के किसी संस्करण में सरकार की आलोचना करने वाली खबरें चलाई जाती थीं। कार्यक्रम में एक दिन पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों को लेकर केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया को नरेंद्र मोदी की उन प्रतिक्रियाओं के मुकाबले दिखाया गया जो वे गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए दिया करते थे।

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ये सूत्र कहते हैं, ‘हम इस बात से हैरान हो गए कि हमारे फेसबुक पेज के लाइक और शेयर अपेक्षित ढंग से एक स्तर तक बढ़ने के बाद स्थिर हो गए। हम यह पक्के तौर पर नहीं कह सकते कि ऐसा जानबूझकर किया गया लेकिन इतना पक्का है कि यह सामान्य नहीं था। हमने इस बात को लेकर आंतरिक स्तर पर चर्चा की कि क्या हमें इस बारे में फेसबुक को औपचारिक शिकायत भेजनी चाहिए। हमने फिर यह तय किया कि शिकायत नहीं करनी चाहिए क्योंकि हमें यह नहीं लग रहा था कि हम इस बात को साबित कर पाएंगे।

फेसबुक की ओर से यह दावा अक्सर किया जाता है कि यह राजनीतिक तौर पर निरपेक्ष वेबसाइट है। लेकिन फेसबुक की ओर से यह नहीं बताया जाता कि उसका संबंध किन राजनीतिक पार्टियों से है। 

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इस बारे में जब हमने फेसबुक से जानना चाहा तो इसके प्रवक्ता ने ईमेल से भेजे जवाब में बताया, ‘फेसबुक की नीतिगत मामलों की टीम बहुत तरह के लोगों को हमारी नीतियों, कार्यक्रमों और उत्पादों को समझाने में मदद करती है। इनमें शिक्षाविद, हमारे समाज के लोग, गैर सरकारी संगठन और सरकारें शामिल हैं। हमारी कोशिश यह होती है कि हमारे उत्पादों से फेसबुक इस्तेमाल करने वालों को सकारात्मक अनुभव मिले। वैश्विक स्तर पर हम इंटरनेट गवर्नेंस और नीतिगत विकास में शामिल हैं। सुरक्षा, छोटे कारोबारियों के विकास, इंटरनेट तक पहुंच बढ़ाने और लोगों को आवाज देने की कोशिश करते हैं। हम उन सभी लोगों के साथ काम करते हैं जो प्रशिक्षण के लिए हमसे संपर्क करते हैं।

2012 से 2018 के बीच भाजपा के समर्थकों ने फेसबुक और इसके अन्य प्लेटफॉर्म के जरिये ऐसी आपत्तिजनक सामग्रियों का प्रसार किया जिनके जरिये मोदी को हिंदुओं केमसीहाके तौर पर पेश किया जाता है। इससे हिंदू और मुस्लिम समाज के बीच सांप्रदायिक तनाव पैदा हुआ और कई जगह भीड़ वाली हिंसा देखी गई। देश के अलग-अलग हिस्सों में ऐसी घटनाओं में अक्टूबर, 2018 तक 30 लोगों की जान गई।

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इनमें से कई हत्याएं व्हाट् पर फैला अफवाह के आधार पर हुईं। इनमें गौ हत्या, पशुओं की चोरी, बच्चों के अपहरण और दूसरे धर्म के व्यक्ति के साथ संबंध रखने संबंधित अफवाहें फैलाई गईं। इंडिया स्पेंड ने सरकारी आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर यह बताया है कि 2014 से 2017 के बीच सांप्रदायिक हिंसा में 28 फीसदी बढ़ोतरी हुई। इनमें से आधी घटनाएं भाजपा शासित प्रदेशों जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में हुईं।

इनमें से अधिकांश घटनाएं कानून-व्यवस्था की खराब स्थिति से जुड़ी रहीं। लेकिन क्या इन घटनाओं को फेसबुक और व्हाट् के जरिए सूचनाओं और फर्जी खबरों के दुष्प्रचार से बिल्कुल अलग करके देखा जा सकता है?

 

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