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“हम भारत के मूल निवासी आदिवासी ,जंगल ख़ाली नहीं करेंगे”

सुप्रीम कोर्ट ने लाखों आदिवासियों को जंगल से बाहर निकलने का आदेश दिया था | इस पर अभी कोर्ट ने स्टे कर दिया है लेकिन लाखों आदिवासी इस पुरे मसले पर केंद्र सरकार के रुख को लेकर नाराज़ हैं |
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हम भारत के मूल निवासी आदिवासी
जय जोहर का नारा भारत देश हमारा

आदिवासी पर अत्याचार किया तो ख़ून बहेगा सड़कों पे

संघर्षो की जली मशाल भागे दुश्मन और दलाल

जंगल ख़ाली नहीं करेंगे 

आदिवासी की ज़मीन लूटना बंद करो

एक तीर और एक कमान दलित आदिवासी एक समान

बिरसा तेरा सपनों को मंज़िल तक पहुँचायेंगे

 

इन नारों के साथ आज  यानी मार्च  को सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश जिसमें उसने लाखों आदिवासियों को जंगल से बाहर निकलने का आदेश दिया था | इस  पर अभी कोर्ट ने स्टे कर दिया है लेकिन लाखों  आदिवासी  इस पुरे मसले पर केंद्र सरकार के रुख को लेकर नाराज़ हैं | उन्होंने सरकार को इस पूरे मामले को लेकर अध्यादेश लाने और आदिवासियों को उनकी ज़मीन का हक़ देने की मांग को लेकर मंडी हाउस से पार्लियामेंट स्ट्रीट तक  हज़ारो की संख्या में आदिवासीयों  ने "आदिवासी बचाओ मार्च" किया |

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आज के इस मार्च में कई आदिवासी पूरे परिवार के साथ आए थे, कई  प्रदर्षनकारी   अपने  साथ आदिवासियों के पारंपरिक  हथियार जैसे तीर कमान और अपने पारंपरिक वेश भूषा में आये थे | उन लोगों का कहना था कि उन्होंने जंगल में अपना जीवन बिता दिया है और वो किसी भी क़ीमत पर जंगल नहीं छोड़ेंगे | वो अपनी जान दे देंगे लेकिन जंगल से बाहर नहीं आएँगे जैसे मछली बिना पानी के नहीं रह सकती है ऐसे ही हम भी बिना जंगल के नहीं रह सकते हैं  |

वन अधिकार कानून और शीर्ष न्यायालय के फ़ैसले के बाद आदिवासी युवाओं में सरकार के प्रति काफ़ी नाराज़गी है, जो इस  मार्च में भी दिखा. आदिवासी युवाओं ने कहा कि एक तो सरकार न्यायालय में आदिवासियों का पक्ष नहीं रखती है और जब न्यायालाय फ़ैसला सुनाता है, तो उसके बाद उस पर स्टे का प्रयास करती है. यह खेल आदिवासियों को ख़त्म करने के समान है|

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इस मार्च का आह्वानकरने वाली जॉइंट आदिवासी युवा फ़ोरम एवं भारतीय आदिवासी मंच का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का वन एवं वनभूमि से बेदख़लीकरण का आदेश वन अधिकार क़ानून 2006 की मूल भावना के ख़िलाफ़ है, क्योंकि यह कानून 13 दिसंबर 2005 से पहले वनभूमि पर खेती करने एवं वनों में निवास करनेवाले आदिवासी एवं अन्य पारंपरिक वन निवासियों के अधिकार को मान्यता प्रदान करता है. क्या 11 लाख लोग 13 दिसंबर 2005 के बाद जंगलों के अंदर घुसे हैं?

असल में केंद्र और राज्य सरकारों ने जानबूझकर वन अधिकार कानून को लागू नहीं किया है, ताकि जंगलों के अंदर पड़ी अकूत खनिज संपदा का दोहन करने के लिए इसे पूंजीपतियों को दिया जा सके. इसके अलावा आदिवासियों को जंगलों से बाहर निकालने के बाद वनों के विकास के नाम पर भारत सरकार के खाते में कम्पा फंड के तहत रखे गये 55 हजार करोड़ रुपये से वन विभाग के बाबू और पूंजीपति मौज कर सकें. इस आदेश ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कथनी और करनी के बीच के अंतर को भी खोलकर सामने रख दिया है|

एक प्रदर्षनकारी जो झारखंड से आये थे उन्होंने कहा आदिवासी समुदाय किसी भी परिस्थिति में अपना घर मीन और जंगल नहीं छोड़ने वाला है और हम सरकार के द्वारा रिव्यू पिटिशन के बाद आए सुप्रीम कोर्ट के स्टे ऑर्डर से भी संतुष्ट नहीं ! हम चाहते हैं कि इस मुद्दे पर सरकार एक अध्यादेश लाए और तुरंत आदिवासियों के हित में कार्यवाही की जाए जिससे अगली बार जब सुनवाई हो तो सरकार आदिवासियों को उनके जल जंगल और ज़मीन से बेदख़ल ना कर पाए| इससे भारत के विभाजन के पश्चात होने वाले सबसे बड़े आदिवासी विस्थापन और उनके जीवन पर गहरा रहे संकट को दूर करने में उनकी मदद करें|

जंगल से बेदख़ली आदिवासी का अंत होगा और आदिवासी किस आधार पर अपना दावा कर रहे हैं |

जंगल से बेदख़ली आदिवासियों को उनके पैतृक ज़मीन, जीवन शैली, परंपरा और उनके पुरखों से दूर करने की साज़िश है| सामान्य शब्दों में कहा जाए तो यह बेदख़ली आदिवासियों के सम्मान पूर्वक जीवन जीने के अधिकार का हनन है| यह बेदख़ली वन अधिकार अधिनियम 2006 और पेशा कानून 1996 का उल्लंघन है| पेसा( पंचायत एक्सटेंशन टू सेडुल एरिया)   एक्ट 1996, ग्राम सभा को सर्वोच्च मानता है, न कि ग्राम पंचायत को| लेकिन इस जजमेंट में पारम्परिक ग्राम सभाओं की अनदेखी की गयी है|

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इसलिए आदिवासी समाज भारत सरकार से मांग करता है:

1. अनुसूचित जनजाति एवं परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006, को सख़्ती से लागू किया जाए|

2. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के पश्चात जिन परिवारों पर विस्थापन का संकट मंडरा रहा है, केंद्र सरकार उनकी ज़मीन पर मालिकाना हक़/पट्टा दिलाने के लिए अध्यादेश लाए|

3. आदिम समुदायों और जिन परिवारों ने अभी तक ज़मीन पर मालिकाना हक़ का दावा नहीं किया है सरकार उन्हें भी अनुसूचित जनजाति एवं परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 , के तहत मालिकाना हक़ और वन अधिकार प्रदान करें|

4. संविधान की पांचवी और छठी अनुसूची को सख़्ती से लागू किया जाए|

5. पारम्परिक ग्रामसभा के अनुसूची 5 के 13 (3) (क), 244 (1), 19, (5 & 6) के तहत आदिवासियों एवं वन निवासियों को दिए गए अधिकारों को सुनिश्चित किया जाये

 

 

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