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जेएनयू: छात्रों की भूख हड़ताल खत्म लेकिन संघर्ष जारी

"पिछले 5 साल की मोदी सरकार शिक्षा के विरोध में तमाम नीतियाँ जारी कर चुकी है। और ये वक़्त है कि एकजुट होकर शिक्षा को बचाने के लिए संघर्ष किया जाए।"
JNU

जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में 9 दिन तक चली छात्रों की भूख हड़ताल 27 मार्च को ख़त्म हो गई। जेएनयू छात्र संघ ने कहा है कि ,इतने दिन तक वाइस चांसलर ने उनकी मांगों पर , उनकी हड़ताल को अनदेखा किया है इसलिए अब वो विरोध का तरीक़ा बादल रहे हैं। भूख हड़ताल को खत्म कर रहे है लेकिन संघर्ष जारी रहेगा  | इसके साथ ही छात्र संघ ने कहा है कि वो मोदी सरकार की शिक्षा विरोधी नीतियों और पिछले 5 साल में जगह जगह पर शिक्षा पर हुए हमलों के बारे में जनता को बताएँगे। 

भूख हड़ताल ख़त्म होने से पहले 22 मार्च को जेएनयूटीए का कन्वेंशन हुआ था जिसमें देश भर से आए शिक्षक भूख हड़ताल पर बैठे छात्रों के समर्थन में खड़े हुए। शिक्षकों ने मुखरता से कहा कि जेएनयू के वाइस चांसलर ने अपनी नीतियों से शिक्षा पर और छात्रों पर हमला किया है और वो मोदी सरकार कि कठपुतली की तरह से काम कर रहे हैं। कन्वेन्शन की शुरआत में शिक्षकसंघ के अध्यक्ष अतुल सूद ने कहा, 'पिछले 5 साल के मोदी राज में उच्च शिक्षा पर लगातार हमले हुए हैं। जो भी वाइस चांसलर और मोदी सरकार कर रहे हैं शिक्षा-शिक्षक और सीखने-सिखाने के ख़िलाफ़ है। अब जो उच्च शिक्षा के संस्थानों में हो रहा है, वो सिर्फ़ आर्थिक लाभ के लिए किया जा रहा है। इस सरकार की नीतियाँ हमेशा से छात्रों के विरोध में रही हैं। ये कन्वेन्शन उस वक़्त में हो रहा है जब देश में चुनाव होने वाले हैं और हमें इस शिक्षा-विरोधी सरकार से लड़ने की ज़रूरत है।" 

कन्वेन्शन का संदर्भ देते हुए अतुल सूद ने आगे कहा, "ये कन्वेन्शन 2 मुद्दों पर आधारित है। एक- हम उच्च शिक्षा की चुनौतियों पर बात करें जो कि शिक्षक, छात्र और आम जनता के लिए एक अहम मुद्दा है। दूसरा, हम ये देखें कि कैसे पिछले 5 साल में शिक्षकों और छात्रों ने लगातार यूनिवर्सिटी और कोलेजों में उच्च शिक्षा पर हो रहे हमलों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई है।" 

इस कन्वेन्शन में  देश भर से आए कई शिक्षक और शिक्षाविद शामिल हुए,जिन्होंने अपने जीवन में लगातार शिक्षा पर हुए हमलों के विरोध में अपनी आवाज़ बुलंद की है। 

कन्वेन्शन की अध्यक्षता आएशा किदवई  कर रही थीं, जो जेएनयू की संकाय हैं। आएशा किदवई ने कहा, "हमारे आंदोलन 2016 से शुरू हो गए थे जब हैदराबाद यूनिवर्सिटी के छात्र रोहित वेमुला ने आत्महत्या कर ली थी, जो कि सांगठनिक हत्या थी, और उसके बाद जो जेएनयू के छात्रों पर देशद्रोह के आरोप लगे थे। " 

संघर्षों के बारे में बात करते हुए आएशा किदवई ने कहा, "हमारे संघर्ष उन नीतियों के ख़िलाफ़ हैं जो शिक्षा विरोधी हैं। जिनमें से कुछ तो बीजेपी ने लागू की हैं, और कुछ वो हैं जो कि पहले से मौजूद हैं। हमें इस वक़्त ये पूछना है कि चुनावों में हम राजनीतिक पार्टियों से, और मतदाताओं से क्या कहना चाहते हैं।"

इसके अलावा कन्वेन्शन में डूटा(DUTA) के अध्यक्ष  राजीब रे भी मौजूद थे। उन्होंने कहा कि उच्च शिक्षा काफ़ी सालों से संकट में है। "2018 के आंकड़ों के अनुसार सरकार ने छात्रों को सिर्फ़ 316 करोड़ की स्कॉलर्शिप दी थी, जबकि देश भर में शिक्षा की ख़ातिर लिए गए क़र्ज़ की राशि 17,282 करोड़ थी।" 

राजीब रे ने कहा, "सरकार द्वारा उच्च शिक्षा पर होने वाले नियंत्रण की कहानी नई नहीं है। दिल्ली यूनिवर्सिटी में ये बहुत पहले से हो रहा है। सरकार हमें सीबीसीएस लागू कर के ये बता रही है कि हमें क्या पढ़ाना चाहिए क्या नहीं। उच्च शिक्षा के लिए किसी सरकार ने उचित   नीतियाँ नहीं अपनाई हैं। आंकड़े बताते हैं कि उच्च शिक्षा लेने वाले 60 प्रतिशत छात्र प्राइवेट यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे हैं। हमें इन नीतियों के खिलाफ लड़ने की  ज़रूरत है ।"

राजीब रे के बाद और कई शिक्षकों ने कन्वेन्शन में वक्ता के रूप में हिस्सा लिया और सभी ने एक प्रमुख बात कही कि पिछले 5 साल की मोदी सरकार शिक्षा के विरोध में तमाम नीतियाँ जारी कर चुकी है। और ये वक़्त है कि एकजुट होकर शिक्षा को बचाने के लिए संघर्ष किया जाए। 

बंगलुरु से आए प्रोफ़ेसर हरगोपाल ने कहा, "वो(मोदी सरकार) खुलेआम शैक्षणिक संस्थानों को नष्ट कर रहे हैं। वो अशिष्ट हैं, और वो हमें ये बताना चाहते हैं कि वो अशिष्ट हैं। शिक्षा समाज का विवेक है। शिक्षा का काम समाज की ज़रूरतों को पूरा करना है, किसी के लालच को नहीं। शिक्षा पर लगातार हमले हो रहे हैं, यूनिवर्सिटी, जिसका काम समाज को बेहतर बनाने का है, उन तमाम यूनिवर्सिटी पर लगातार हमले हुए हैं और हो रहे हैं। "

रोहित वेमुला की आत्महत्या के बारे में हरगोपाल ने कहा, "रोहित की आत्महत्या के बाद मैंने हैदराबाद यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर से पूछा कि एक दलित लड़का जिसे 7 महीने से स्कॉलर्शिप नहीं मिली थी, और जो दलित होने की वजह से प्रताड़ित हो रहा था उसने आपको एक ऐसा ख़त लिखा जिसमें उसने ज़हर और रस्सी की मांग की, आपको लगा नहीं कि उससे बात करनी चाहिए थी? वाइस चांसलर ने कहा, कि मुझे लगा वो एक आम ख़त है जैसा बाक़ी छात्र लिखते  रहते हैं।" 

"ये(प्रशासन) लोग छात्रों को प्रताड़ित करने का काम करते हैं, और उन्हें आत्महत्या करने पे मजबूर करते हैं" हरगोपाल ने आगे कहा। 

इस कन्वेन्शन क ख़त्म होने के बाद तमाम शिक्षकों और छात्रों ने एक घोषणा की जिसे "साबरमती डिक्लेरेशन" का नाम दिया गया। इस घोषणा के तहत छात्रों ने अपनी भूख हड़ताल ख़त्म की और छात्रों शिक्षकों ने मिल कर कहा कि वाइस चांसलर और मोदी सरकार की इन नीतियों के विरोध में हम अपना तरीक़ा बादल रहे हैं, आर अब आगामी चुनाव में हम मोदी सरकार की शिक्षा विरोधी नीतियों का खुलासा जनता के सामने करेंगे। 

जेएनयूएसयू के अध्यक्ष एन साई बालाजी ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा, कि वाइस चांसलर ने हमारी मांगों को नहीं सुना, और वो मोदी सरकार के रोबोट की तरह से काम कर रहे हैं, और मोदी सरकार अंबानी-अदानी के रोबोट की तरह काम कर रही है। वाइस चांसलर और मोदी सरकार की इन छात्र विरोधी  और शिक्षा विरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ हमने, और देश भर के शिक्षकों ने ये निर्णय लिया है कि जनता को इस सरकार का सच बताएँगे। ये सिर्फ़ जेएनयू की लड़ाई नहीं है, बल्कि सारे देश के हर यूनिवर्सिटी की लड़ाई है। इनकी साज़िश है कि दलित, आदिवासी यूनिवर्सिटी से बाहर चला जाए।" 

बालाजी ने आगे कहा कि  सरकार की शिक्षा विरोधी नीतियों की सच्चाई और जेएनयू में जो हो रहा है उसकी सच्चाई हम गली-गली में जा कर बताएँगे। भूख हड़ताल के दौरान बीमार हुए छात्रों के बारे में बालाजी ने कहा कि उनकी हालत अभी ठीक होने में कुछ समय लगेगा।  

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