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तमिलनाडु जल संकट से हमें क्या सीख लेनी चाहिए

नीति आयोग द्वारा प्रकाशित एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, चेन्नई सहित भारत के 21 शहरों में 2020 तक भूजल ख़त्म हो जाएगा।
तमिलनाडु जल संकट से हमें क्या सीख लेनी चाहिए
तस्वीर केवल प्रतिनिधित्वीय उपयोग के लिए। I सौजन्य: द हिंदू 

बुधवार की रात एजी-डीएमएस मेट्रो स्टेशन के ए 3 गेट के सामने, पिछली रात को पड़ी बारिश के बाद एक पानी तालाब देखा जा सकता है। लगभग 100 मीटर की दूरी पर, एक झुग्गी बस्ती को भी देखा जा सकता है जिसमें छोटे-छोटे कमरों में रहने वाले क़रीब 100 से अधिक परिवार रहते हैं, जो फ़्लेक्स और टूटी हुई टाइलों से बनी हैं। वहाँ, कुछ लोग अपने घरों के बाहर बैठी महिलाओं को देख सकते हैं, जो बड़े ही धैर्य से पानी के टैंकर के आने का इंतज़ार कर रही थी। “हमें हर एक दिन छोड़ के पानी मिलता है। 10 रुपये में एक परिवार के लिए दस बर्तन में पानी मिलता है।न्यूज़क्लिक से बात करते हुए, स्लम की निवासी सलीमा ने कहा।

ये विपरीत दृश्य हमें चेन्नई की गंभीर वास्तविकता को दिखाते हैं।

20 जून को, चेन्नई में लगभग 200 दिनों के लंबे सूखे के बाद बारिश हुई। पूरे हफ़्ते शहर के कुछ हिस्सों में बूंदाबांदी हुई थी। तापमान कुछ नीचे चला गया था और लोगों को झुलसा देने वाली गर्मी से राहत मिली। लेकिन पानी के लिए कतार की लंबाई कम नहीं हुई। ज़ाहिर है, तमिलनाडु में जल संकट की स्थिति ऐसी नहीं है कि कुछ बूंद पानी इसे सुलझा सके।

मौजूदा हालात 

शहर में पेरूर झील, जो चेन्नई के लिए एक प्रमुख जल स्रोत है के सुखने के बाद एक बड़ा संकट पैदा हुआ है। यहां तक कि सभी पिछले जलस्रोतों के सूखने के बाद, राज्य में लोग अभूतपूर्व मुद्दों का सामना कर रहे हैं। राज्य की अर्थव्यवस्था प्रभावित हो रही है, स्कूलों को बंद किया जा रहा है और लोगों को घर में रहकर काम करने के लिए कहा जा रहा है क्योंकि उनकी कंपनियों के पास उन्हें उपलब्ध कराने के लिए पानी नहीं है। झुग्गियों से लेकर गेटेड कॉलोनियों तक, हर वर्ग के लोगों को लंबी और झुलसा देने वाली गर्मी का सामना करना पड़ रहा है। चूंकि चेन्नई मेट्रो भी लोगों की पानी मांग को पूरा नहीं कर सकती है, इसलिए वे भी ज़्यादातर निजी टैंकरों पर भरोसा कर रहे हैं।

साप्ताहिक जलाशय के जल स्तर को लेकर केंद्रीय जल आयोग के बुलेटिन के अनुसार, दक्षिणी क्षेत्र - जिसमें आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल शामिल हैं - कुल भंडारण क्षमता का लगभग 11 प्रतिशत है। रिपोर्ट में कहा गया है: "इन जलाशयों में उपलब्ध कुल लाइव स्टोरेज 5.48 बीसीएम है, जो इन जलाशयों की कुल लाइव स्टोरेज क्षमता का मात्र 11 प्रतिशत है। पिछले वर्ष की इसी अवधि के दौरान भंडारण 15 प्रतिशत था और यह पिछले दस वर्षों का औसत भंडारण रहा है। इसी अवधि के दौरान इन जलाशयों की लाइव स्टोरेज क्षमता 15 प्रतिशत थी। इस प्रकार, चालू वर्ष के दौरान भंडारण पिछले वर्ष की इसी अवधि से कम रहा है और संबंधित अवधि के दौरान पिछले दस वर्षों के औसत भंडारण से भी कम है।"

मुद्दा 

हालांकि शहर लंबे समय से गर्मी और सूखे की स्थिति का सामना कर रहा है, लेकिन लोग कभी भी इतनी बुरी तरह से प्रभावित नहीं हुए थे। स्थानीय मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, पानी की गंभीर कमी के कारण लगभग चार स्कूल बंद हो गए। ओल्ड महाबलिपुरम रोड (ओएमआर) पर स्थित आईटी फ़र्मों ने कथित तौर पर अपने कर्मचारियों को घर से काम करने के लिए कहा है।

यूनियन ऑफ़ आईटी एंड आईटीईएस इम्प्लॉइज़ (UNITE) के महासचिव, अलागुनम्बी वेलकिन कहते हैं, कि "कर्मचारियों को सीधे तौर पर घर से काम करने के लिए कहने के बजाय, कंपनियां ऐसी स्थितियों पैदा कर रही हैं जो उन्हें स्वेच्छा से घर से काम करने के मजबूर कर रही हैं। वे एयर कंडीशनर बंद कर देते हैं, टॉयलेट में पानी की उपलब्धता को सीमित कर देते हैं, पीने के पानी की उपलब्धता को प्रतिबंधित कर देते हैं और कर्मचारी स्वाभाविक रूप से घर से काम करने का विकल्प चुनने लगते हैं।"

कुछ कंपनियां कथित रूप से गैर-पीने योग्य पानी के स्रोतों से एकत्र किए गए दूषित पानी का उपयोग कर रही हैं। कर्मचारियों के लिए घर से काम करना ’महंगा पड़ता है, क्योंकि वे घर पर भी पानी के संकट का सामना कर रहे हैं।

ओएमआर में निवास करने वाले लोग पानी के टैंकरों की आसमान छूती क़ीमतों के बारे में शिकायत कर रहे हैं। इस क्षेत्र के आईटी दिग्गज पानी के टैंकरों पर ऊंची बोली लगा रहे हैं, जिससे क़ीमतें बढ़ रही हैं। जिन टैंकरों की क़ीमत 600 रुपये तक है, वे अब कुछ क्षेत्रों में हज़ारों रूपए में बिक रहे हैं।

छोटे होटल कई जगहों में पानी की कमी से बंद हो रहे हैं।

सरकार क्या कर रही है

द हिंदू को दिए गए एक इंटरव्यू में, नगरपालिका प्रशासन और जल आपूर्ति विभाग के सचिव, हरमंदर सिंह ने खुलासा किया कि सरकार बारिश कराने की तकनीक के इस्तेमाल सहित सभी संभावनाओं की तलाश रही है। उन्होंने यह भी कहा था कि राज्य सरकार नमी से पानी का उत्पादन करने के लिए प्रौद्योगिकी डिज़ाइन करने वाले निर्माताओं के साथ भी बात कर रही हैं।

लेकिन एक अन्य उदाहरण में, नगर पालिका और ग्रामीण प्रशासन मंत्री एस. पी. वेलुमनी ने कहा कि यह संकट मनगढ़ंत है, यह "हेरफेर की रपट" पर आधारित है। उन्होंने कहा कि कुछ लोग ग़लत सूचनाएं फैला रहे हैं जबकि स्थिति उतनी ख़राब नहीं है।

हालांकि, रिपोर्टों के अनुसार, अकेले चेन्नई शहर अकेले को 525 मिलियन लीटर प्रति दिन (एमएलडी) मिल रहा है और ज़रूरत 830 एमएलडी की है। सरकार नए जल संसाधनों की पहचान कर रही है, और इसके लिए एक नए जल विलवणीकरण संयंत्र की शुरुआत कर रही है। वर्तमान में, राज्य में 210 एमएलडी की क्षमता वाला एक अलवणीकरण संयंत्र है। 150 एमएलडी की क्षमता वाला एक अन्य सन्यत्र के जल्द ही काम शुरू करने की उम्मीद है और 400 एमएलडी क्षमता वाला अगले साल के अंत तक काम करना शुरू कर देगा।

राज्य सरकार ने पानी की आपूर्ति से संबंधित मुद्दों संबोधित करने के लिए एक निगरानी समिति भी बनाई है। आईटी कंपनियों की दुर्दशा के बारे में पूछे जाने पर वेलुमणि ने कहा कि सरकार किसी भी तरह से कंपनियों की सहायता करने के लिए तैयार है।

प्राकृतिक आपदा 

पर्यावरण कार्यकर्ता नित्यानंद जयरामन ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए इस संकट को एक प्राकृतिक आपदा करार दिया है।

उन्होंने कहा, “चेन्नई हमेशा एक जल संकट से दूसरे में घिरता रहा है। इसने अपने जल और जल निकायों के साथ बहुत बुरा व्यवहार किया है। यह केवल बदतर होता जा रहा है। सरकार बार-बार वही गलतियां दोहरा रही है। यह सिर्फ पानी का संकट नहीं है। यह एक प्राकृतिक संकट है। यह एक पर्यावरणीय संकट है जहां हमने पर्यावरण को एक ऐसे बिंदु पर पहुंचाया दिया है, जो हमें अब नुकसान पहुंचाने लगा है।"

जयरामन ने कहा कि राज्य सरकार जिन समाधानों का प्रस्ताव कर रही है, वे दीर्घकालिक रूप से प्रकृति पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहे हैं।

उन्होंने कहा, “वे नेवेली में बोरवेल की ड्रिलिंग करने और उस पानी को चूसने की बात कर रहे हैं जिससे भूजल सूख जाएगा। फिर, वे विलवणीकरण सन्यत्र की योजना बना रहे हैं, जो समुद्र तटों और अंतर्देशीय जल निकायों के लिए बेहद खराब बात हैं। क्योंकि जब आप रेतीले समुद्र तटों को अलवणीकरण सन्यत्र के निर्माण के लिए उसे समतल करते हैं, तो आप वास्तव में भूजल में समुद्र के पानी के घुसपैठ की सुविधा प्रदान करते हैं। समाधान के नाम पर, हम अपने लिए चीजों को बदतर बना रहे हैं और आखिरकार इससे शहर मर जाएगा।"

पूवुलागिन नानबर्गल (फ़्रेंड्स ऑफ़ नेचर) ने कहा, "यह सरकार द्वारा बनाया एक संकट है। चेन्नई में पिछले साल 1200 मिमी औसत के मुकाबले लगभग 800 मिमी बारिश हुई थी। यह शहर के लिए काफी कम है। जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश के दिनों की संख्या में कमी आई है और मैं इससे इनकार नहीं कर रहा हूं। समस्या प्रबंधन में भी है। अकेले चेन्नई को 12 टीएमसी पानी की जरूरत है। यदि हम अपनी चार झीलों का रखरखाव ठीक तरह से और पूरी क्षमता से कर रहे होते, तो हमें लगभग 11 टीएमसी पानी मिल सकता है। यहाँ अन्य छोटी झीलें भी हैं।"

सुंदरराजन ने इस तथ्य पर भी जोर दिया कि विलवणीकरण संयंत्र कोई समाधान नहीं हैं। उन्होंने कहा, “अपशिष्ट जल रीसाइक्लिंग इसका समाधान है। यह बहुत प्रभावी है और किसी भी बड़े पर्यावरणीय खतरे का भी कोई कारण नहीं है। विलवणीकरण पूरी तरह से समुद्री जीवन को नष्ट कर देता है।

जयरामन ने कहा, "हमें यह सीखने की ज़रूरत है कि पानी का सम्मान कैसे किया जाए और वर्षा जल का कैसे रखरखाव किया जाए सुनिश्चित करें कि जहाँ पानी को अवशोषित किया जा सकता है वहाँ बहुत सारी जगह बची रहे। साथ ही, इसे साफ और वनस्पति युक्त रखना चाहिए। हमें शहरों और उसके सभी खुले स्थानों को पानी के लिए बुनियादी ढांचे के रूप में देखना चाहिए। सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए लोगों के साथ काम करना चाहिए कि उनके जल क्षेत्र में जल संरचनाओं का रखरखाव करना है, ”उन्होंने कहा।

अपूरणीय वस्तु 

डब्लूडब्लूएफ़ (वर्ल्ड वाइड फ़ंड फॉर नेचर) पानी को एक अपूरणीय वस्तु के रूप में वर्गीकृत करता है। जनवरी 2019 में प्रकाशित एक रिपोर्ट में, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ़ इंडियन चैप्टर ने पाया कि भारतीय बैंकों के सकल ऋण जोखिम का लगभग 40 प्रतिशत उन क्षेत्रों में है जहां पानी के जोखिम महत्वपूर्ण हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है: “भारत में कृषि क्षेत्र से आने वाले पानी की कुल खपत का 90 प्रतिशत से अधिक, पानी की कमी और सूखा इस क्षेत्र के लिए प्रमुख मुद्दे हैं। इसके अलावा, पानी से संबंधित अन्य मुद्दे जैसे जलवायु परिवर्तनशीलता, तटीय क्षेत्रों में खारे पानी की घुसपैठ, बाढ़, जल निकासी के आसपास के नियमों में बदलाव कृषि और संबद्ध गतिविधियों को प्रभावित कर सकते हैं।”

नीति आयोग द्वारा प्रकाशित एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, चेन्नई सहित भारत के 21 शहरों में 2020 तक भूजल ख़त्म हो जाएगा। 600 मिलियन से अधिक लोग तीव्र पानी की कमी का सामना कर रहे हैं। महत्वपूर्ण भूजल संसाधन - जो देश की जल आपूर्ति का 40 प्रतिशत हिस्सा हैं – जिसकी दर लगातार कम हो रही है। अस्सी प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के पास पाइप लाइन नहीं है। सत्तर प्रतिशत पानी दूषित होता है जिसके परिणामस्वरूप हर साल लगभग 2,00,000 मौतें होती हैं। वर्तमान में जल गुणवत्ता सूचकांक में भारत 122 देशों में 120 वें स्थान पर है।

जब तक सरकारें स्थिति को नियंत्रित करने के लिए कुछ सक्रिय क़दम नहीं उठाती हैं, तब तक महानगर के लोगों के लिए भविष्य बहुत ही अंधकारमय नज़र आ रहा है।

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