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सार्वजनिक सेवाओं का व्यापार

वैश्विक अभिजात वर्ग के कहने पर जिनेवा में 2012 में एक साजिश रची गई थी कि जिसके तहत दुनिया भर में अरबों लोगों  और उनके कल्याण हितों पर आघात पहुंचा है। इस साजिश में वह गुप्त समझौता शामिल है जिसे व्यापार में 'सेवा समझौता’(TISA)  कहते हैं जोकि दुनिया भर में सेवाओं के सभी रूपों को व्यापार योग्य वस्तुओं में परिवर्तित करना चाहता है। यह प्रक्रिया  हाल ही में जून 2014 में जेनेवा वार्ता में संपन्न हुयी।

जिसे व्यापार में 'सेवा समझौता’ (TISA) को मुख्य रूप से अमेरिका और यूरोपीय संघ द्वारा शुरू किया गया था। उन्होंने देशों के एक समूह को जिन्हें "बहुत अच्छे दोस्त" कहा गया को शामिल कर संबंधित व्यापार नियमों को उदार करने के लिए समझौते पर वार्ता शुरू की। वर्तमान में वार्ता में भाग लेने वालों देशों में निम्न शामिल हैं:

उच्च आय वाले देश: ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, चिली, चीनी ताइपे, यूरोपीय संघ(सभी 28 प्रतिभागी देश), हांगकांग, आइसलैंड, इसराइल, जापान, लिकटेंस्टीन, न्यूजीलैंड, नॉर्वे, कोरिया, स्विट्जरलैंड, संयुक्त राज्य अमेरिका के गणराज्य।

उच्च मध्य आय देश (उच्च एमआईसी): कोलम्बिया, कोस्टा रिका, मेक्सिको, पनामा, पेरू, तुर्की,

निम्न मध्यम आय वाले देशों (निम्न एमआईसी): पाकिस्तान, पराग्वे

जाहिर है, 'क्लब' के नाम के रूप में (वास्तव में अच्छे दोस्त!), से पता चलता है, कि यह कुछ उच्च मध्य आय वाले देश और सिर्फ दो कम मध्य आय वाले देश (पाकिस्तान और पराग्वे) के साथ एक अमीर देशों के क्लब है।

सौजन्य: wikipedia.org

सेवा और वैश्विक व्यापार व्यवस्था

यह तय है कि इसमें भाग लेने वाले देशों का वैश्विक सेवा अर्थव्यवस्था में 70% का कब्ज़ा है। व्यापार में 'सेवा समझौता’ (TISA) वार्ता को कि अमीर देशों की अर्थव्यवस्था गंभीर रूप से सेवा क्षेत्र पर निर्भर हैं के संदर्भ में समझने की जरूरत है -  इन सेवाओं में यूरोपीय संघ और अमेरिका, दोनों में अर्थव्यवस्था का 75% शामिल है। जबकि विनिर्माण का कार्य कुलीन अमीर देशों के अलावा अन्य देशों में स्थानांतरित करना जारी रखा गया है, इसलिए उच्च आय वाले देशों में आर्थिक विकास सेवा क्षेत्र के विकास पर निर्भर है।

गैट्स (सेवाओं में व्यापार पर सामान्य समझौता) (जिस पर कि 1994 में हस्ताक्षर किए गए थे) विश्व व्यापार संगठन के तहत सेवाओं में व्यापार के समझौते को भूमंडलीकरण करने का पहला प्रयास था। यह याद दिलाना जरूरी होगा कि विकासशील देशों ने शुरू में विश्व व्यापार संगठन समझौते में सेवाओं (और बौद्धिक संपदा अधिकार) के शामिल किए जाने का विरोध किया था, लेकिन बाद में विकासशील देशों को इस वायदे के साथ अपने साथ शामिल कर लिया गया कि सेवाओं के लिए बाजार खोलने से जो वृद्धि होगी उससे विनिर्माण और कृषि क्षेत्र में वैश्विक बाजारों में वृद्धि होगी और उसके जरिए उनके नुक्सान की भरपाई कर दी जायेगी। बेशक, ऐसा कुछ नहीं हुआ लेकिन सेवा क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर नियमों को उदार करने के प्रयास जारी रहे।

सेवा मानव गतिविधि के हर पहलू को अपने दायरे में लेती है; वे जीवन की सभी जरूरतों को पूरा करने के काम आती हैं। हम सरकारों का चुनाव करते हैं ताकि हमारी जरूरतों और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए सेवाओं का उपयोग कर सके – इसमें स्वास्थ्य से लेकर, शिक्षा, पानी, परिवहन, आवास, उर्जा और दूरसंचार से लेकर आर्थिक सेवाएँ जैसे बैंक, बीमा और पेंशन आदि शामिल हैं। हम सरकार से उम्मीद करते हैं कि वह इन सुविधाओं को उपलब्ध कराने के लिए इन्हें ऐसे नियमित करे जिससे कि समाज में समानता को बढ़ावा मिले। इसलिए सरकार का मुख्य काम सार्वजनिक सुविधाओं को उपलब्ध कराना है, ताकि इन सुविधाओं को सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को मुहैया कराने में व्यापारिक हित आड़े न आयें और इस व्यवस्था को तहस-नहस न होने दे।

1994 से, जबसे गैट्स समझौते ने प्रगति की है, यह अमीर अर्थव्यवस्थाओं की अपेक्षा पर खरी नहीं उतरी है। यह इसलिए भी कि विकासशील देशों की ओर से वार्ताकारों(जब विश्व व्यापार संगठन समझौते पर चर्चा चल रही थी) ने सेवा क्षेत्र को दुसरे क्षेत्रों की तरह न चलाने देने के बारे में सफलता हासिल की। गैट्स 'सकारात्मक सूची' के सिद्धांत पर काम करता है, जहाँ यह देशों को केवल उन क्षेत्रों और उप क्षेत्रों का चयन करने की अनुमति देता है जिसके लिए कि वे देश को वैश्विक व्यापार के लिए खोलना चाहता है।

व्यापार में 'सेवा समझौता’ (TISA) सेवाओं की समान पहुँच को बाधित करता है

व्यापार में 'सेवा समझौता’ (TISA) सेवाओं की विभिन्न सुविधाओं को अमीर और शक्तिशाली लोगों द्वारा बर्बाद करने का खतरनाक प्रयास है। यह न केवल गरीब देशों को प्रभावित करता है, यह अमीर देशों में गरीब को भी प्रभावित करता है। व्यापार में 'सेवा समझौता’ का बुनियादी सिद्धांत है कि सरकारों को सेवाओं को न तो नियमित करना चाहिए और न ही उन्हें उपलब्ध करना चाहिए। इसके बजाय, सेवाओं को वैश्विक बाजार में सक्रिय लाभलोलुप निजी उद्यमों द्वारा प्रदान किया जाना चाहिए। अगर सेवाओं के लिए बाजार बनाए जा रहे हैं, तो इसके कारण स्पष्ट  है कि मौजूदा सार्वजनिक सेवाओं का निजीकरण किए जाने की जरूरत है।

लोक सर्विसेज इंटरनेशनल (पीएसआई) व्यापार में 'सेवा समझौता’ का इस रूप में वर्णन करता है कि: "एक ऐसी संधि जो आगे चलकर सेवाओं में व्यापार और निवेश को उदार बनाएगा।। संधि के नियम, 'उनके पक्ष में’  विदेशी प्रदाताओं को घरेलू आपूर्तिकर्ताओं के रूप में घरेलू बाजार  में आने का रास्ता देगा और वह सरकार की नियमित करने, खरीदने और सेवाएं प्रदान करने की क्षमता को सीमित कर देगा। यह अनिवार्य रूप से सार्वजनिक हित में सेवा को सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में व्यावसायिक सेवाओं के विरुद्ध उन्हें "निजी, विदेशी कंपनियों के लाभ और उनके हितों को साधने के लिए नियम को बदल देगा

स्वास्थ्य क्षेत्र पर इसका असर

इस प्रकार, उदाहरण के लिए, स्वास्थ्य के क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवा में जनता के लाभ के प्रावधान को 'स्वास्थ्य' बाजार को बनाने के लिए बंद करना होगा। सेवाओं पर वैश्विक समझौता (अन्य क्षेत्रों के बीच) सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए सरकारों को कानून और नियम बनाने से रोकेगा, और सरकारें, बहुराष्ट्रीय निगमों को आज़ादी से अपने आपको संचालित करने के लिए अनुमति देने के लिए मजबूर हो जायेंगीं, यहां तक ​​कि उन स्थितियों में भी जहाँ स्पष्ट रूप से सार्वजनिक स्वास्थ्य को ख़तरा होगा। हम पहले से ही जानते हैं कि तम्बाकू कंपनियों द्वारा तंबाकू उत्पादों के निर्माण, बिक्री और विज्ञापन को प्रतिबंधित करने के सरकारों फैसलों के खिलाफ सरकारों पर मुकदमा चल रहा हैं। दवाओं पर मूल्य नियंत्रण के मामलें में भी दवा की बहुराष्ट्रीय कंपनियों इस आधार पर सरकारों को चुनौती दे सकती हैं। TISA भी, वैश्विक स्वास्थ्य प्रबंधन कंपनियों के लिए स्वास्थ्य देखभाल की लागत निर्धारित करने के लिए अनुमति दे सकता है, और अरबों लोगों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं की सुलभता के बारे में निर्णय ले सकता है। एक तरफ सरकारें स्वास्थ्य सेवाओं को नियमित करने की शक्ति को खो देंगीं और वित्तीय बाजारों को नियमित करने में भी अड़चन आएगी: वॉल स्ट्रीट के पौबारे हो जायेंगें!

नृशंसतापूर्वक, व्यापार में सेवा समझौते को वैश्विक आर्थिक मंदी के बाद इस तरह से बनाया गया है कि वह वित्तीय क्षेत्र (बड़े पूंजीवादी बैंकों और अन्य वित्तीय साधनों सहित) में  सुधार और नियमन के प्रयास को रोक दे। अप्रैल 2014 के एक विकिलीक्स विश्लेषण में ऑकलैंड विश्वविद्यालय के कानून के प्रोफेसर जेन केल्सी  द्वारा वार्ता पाठ यह ने खुलासा किया है कि अमेरिका और यूरोपीय संघ के वार्ताकारों ने सुझाव दिया कि TISA पर हस्ताक्षर करने वाली  सरकारों को वित्तीय क्षेत्र सहित नए नियमों पर रोक लगानी होगी।

व्यापार में सेवा समझौते के  तहत वार्ता को अत्यंत गोपनीयता के साथ चलाया जा रहा है। हाल ही में एक विकिलीक्स रिपोर्ट ने खुलासा किया कि समझौते के दस्तावेज़ का आवरण पृष्ठ कहता है कि: ”गुप्त सूचि के तहत: प्रवेश के पांच साल के भीतर व्यापार में सेवा समझौते के समझौते को लागू करना या, वार्ता के ख़त्म होने के पांच साल तक अगर कोई समझौता नहीं लागू होता।”

महत्त्वपूर्ण रूप से, वित्तीय क्षेत्र जोकि प्रमुख क्षेत्र है इसके विचारधीन है। सेवा में व्यापार समझौते को वे देश चला रहें जो 2008 में वित्तीय क्षेत्र में नियमन की असफ़लता के चलते वैश्विक वित्तीय संकट के लिए जिम्मेदार हैं। यद्दपि अमरीका और यूरोपियन युनियन के वार्ताकार वित्तीय क्षेत्र (बैंक और बीमा क्षेत्र में) में नियम बनाने के रास्ते खोजने के रास्ते को और मुश्किल बना रहे हें। स्टीव सुप्पन  www.globalpolicyjournal.com में अपने ब्लॉग में लिखते हैं कि अमरीका और यूरोपियन युनियन के वार्ताकार बड़े बैंकों और अन्य वित्तीय कमपनियों के लिए बाज़ार को खोलने की कोशिश कर रहे हैं। “निश्चित तौर पर लीक दस्तावेज़ में ऐसा कोई भी इशारा नहीं है जिसमें अमरीका और युरोपे जिन उद्योगों के लिए जिस जलन से उनकी पैरवी कर रहा है 2007 से लेकर 2010 तक 29 अरब डॉलर का बेल आउट पैकेज चाहिए ताकि उन्हें उनके दिवालियेपन से बचाया जा सके। इससे तो ऐसा लगता है जैसे वार्ताकार वित्तीय संकट के समय सो रहे थे।” व्यापार में समझौता भारत को कैसे प्रभावित करता है? और यह भी सवाल उठता है यह वार्ता उन देशों को कैसे प्रभावित करेगी जो इसका हिस्सा नहीं है। सेवा में व्यापार समझौता की रणनीति सेना के अपने अधिपत्य को स्थापित करने जैसी है। वह रणनीति है कि सभी अमीर देश एक सामान स्थिति में आ जाए (जिसे कि माध्यम आय वाले देशों के आने से जायज़ ठहराया जा रहा है) और इस तरह वो पूरी दुनिया पर सर्वसम्मति थोपना चाहते हैं। सेवा में व्यापार समझौते की वार्ता अभी गैट्स और विश्व व्यापार संगठन के दायरे के बाहर हो रहीं हैं। हालांकि समझौते को गैट्स की तर्ज के आधार पर बनाया जा रहा है ताकि बाद में इसमें शामिल सदस्य बाद में विश्व व्यापार संगठन में शामिल सदस्यों को भविष्य में इस पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर कर सकें। वैश्विक ताकतों के संबंधों और तथ्यों को देखते हुए कि वार्ताकार देशों का सेवा क्षेत्र के 70% ‘बाज़ार’ पर कब्ज़ा है उनके लिए इसे हासिल करना मुश्किल नहीं होगा। जोसफ स्तिग्लित्ज़ अपने हाल ही के कॉलम में बताते हैं कि: “ आज, व्यापार समझौते का मकसद भिन्न है। पूरी दुनिया में दरें काफी कम है। अब पूरा ध्यान “बिना दर की सीमाओं” पर लगा है,” और इसमें सबसे महत्तवपूर्ण है कि - इन नियमों का मुख्य मकसद – कॉर्पोरेट के हितों के लिए समझौते को आगे बढ़ाना है। बड़ी बहुराष्ट्रीय निगम शिकायत करती हैं कि अनियमित नियमन व्यापार को और महंगा बना देता है। लेकिन ज्यादातर नियमन, मान ले की वे सही नहीं हैं, उसके भी कारण मौजूद हैं: वे मजदूरों, उपभोक्ता और पर्यावरण की अर्थव्यवस्था की रक्षा के लिए हैं।” “ इससे भी जयादा जब सरकारें इस तरह के नियम बनाती हैं तो वे अपने नागरिकों की जनवादी मांगों के आधार पर बनाती है। व्यापार समझौते को नया प्रवाह देने वाले दावा करते हैं कि वे नियमों के सदभाव के लिए हैं, एक साफ़ सुथरी कहावत जो कुशलता को बढ़ावा देने के लिए इमानदार योजना लगती है। कोई भी नियमों के सदभाव को हासिल कर सकता है बशर्ते वह हर जगह नियमों की साख को ऊपर के दर्जे पर रखे। लेकिन जब बहुराष्ट्री निगम सादभाव की बात करती हैं तो उनका असल मकसद होता है नीचे की तरफ दौड़ या नीचे धकेलना।”

भारत में नव-उदारवादी अर्थशास्त्री, आर्थिक प्रेस और उनके राजनितिक मास्टर अगली पड़ाव के आर्थिक सुधार के काफी पक्षधर रहें हैं।” यह एक बचे-खुचे नियमों को ध्वस्त करने का प्रयास है, जो देश के विभिन्न क्षेत्रों की अनदेखी को ही बढ़ावा देता है। इसलिए ऐसा लगता है कि भारत बड़ी इच्छा से उस वैश्विक ढांचे को मान लेगा जिसकी वकालत सेवा में व्यापार समझौता करता है।” स्टीव सुप्पन  www.globalpolicyjournal.com में लिखते है कि अमरीका और युरोपियन संघ के व्यापार वार्ताकार बड़े बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों के लिए बाज़ार खोलने की कोशिश में व्यस्त हैं। “इससे तो ऐसा लगता है जैसे वार्ताकार वित्तीय संकट के समय सो रहे थे।”  

 

डिस्क्लेमर:- उपर्युक्त लेख मे व्यक्त किए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं, और आवश्यक तौर पर न्यूज़क्लिक के विचारो को नहीं दर्शाते ।

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