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ओ.एन.जी.सी., भारत का सबसे लाभप्रद सार्वजनिक क्षेत्र का उधयोग है और मोदी सरकार इसका निजीकरण करना चाहती है

निजी तेल और गैस कम्पनियाँ काफी हड़बड़ी में हैं, कि सरकार कब निजी कंपनियों को ओ.एन.जी.सी. जैसे अनमोल राष्ट्रीय संसाधन को बेच देगी
ONGC

तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) जोकि सबसे ज्यादा लाभ कमाने वाला सार्वजनिक उधयोग है उसके निजीकरण की सिफारिशों के बारे में काम कर रही दो लॉबी के बीच चल रहे विचित्र संवाद में टूटन आ गयी है. एक लॉबी ने सिफारिश की है कि सरकार को ओएनजीसी के 11 प्राइम तेल क्षेत्रों के 60 प्रतिशत हिस्से को निजी कंपनियों को बेच देना चाहिए. इससे तो यही लगता है कि सरकार की अपनी भी यही सोच है क्योंकि यह प्रस्ताव पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के तहत काम कर रहे तेल एवं प्राकृतिक गैस के लिए नियामक निकाय, हाइड्रोकार्बन के महानिदेशालय की तरफ से आया है.

दूसरी लॉबी, इसके जवाब में कहती हैं, इन प्राइम फील्ड्स को क्यों बेच दे?  वे कहते हैं कि इसके बजाए ओएनजीसी में सरकारी हिस्सेदारी का 18 प्रतिशत मौजूदा बाजार मूल्यों पर बेचकर 42,000 करोड़ रुपये जुटाने चाहिए.

इस तरह बहस से, वास्तविक सवाल यह उठता है कि क्या ओएनजीसी के निजीकरण की जरूरत है या नहीं. याद रहे: ओएनजीसी भारत के कच्चे तेल का तीन चौथाई और प्राकृतिक गैस का दो तिहाई उत्पादन करती है. और यह 20,000 करोड़ रुपये से अधिक का लाभ कमाती है. 2016-17 में इसकी संपत्ति 4.22 लाख करोड़ रुपये की है. यह उद्यम 33,000 से अधिक लोगों को रोजगार देता है.

लेकिन मोदी सरकार,  जो संसाधनों को तबाह करने पर तुली है और भारत की सबसे मूल्यवान सार्वजनिक रूप से स्वामित्व वाली संपत्ति को बेचकर निजी पूंजी को खुश करने के लिए प्रतिबद्ध नज़र आती है, इसके लिए वह देश की सबसे मूल्यवान संपत्ति को बेचने का लक्ष्य बना रही है. सरकार अपने साढ़े तीन साल के कार्यकाल के दौरान पहले ही सार्वजनिक क्षेत्र की संपत्ति 1.24 लाख करोड़ रुपए की संपत्ति का निजीकरण कर चुकी है, जिससे नौकरियों में कमी तो आई है साथ ही लोगों में असंतोष बढा है.

11 आयल क्षेत्रों को बेचने के पीछे दिए गए तर्क की कहानी यह है कि ऐसा करने से यह निजी कम्पनियाँ "विश्व स्तरीय प्रौद्योगिकी" अपने साथ लायेंगे जो उत्पादन को बढ़ाने के लिए आवश्यक है. हालांकि तजुर्बे कुछ और कहना बयाँ करते हैं, क्योंकि वे इस बात को आसानी से अनदेखा कर रहे है कि दुनिया की सबसे बड़ी तेल एवं गैस निकालने वाली कंपनियों के साथ साझेदारी होने के बावजूद मौजूदा निजी स्वामित्व वाली कम्पनियाँ अपने आप में स्थिर नहीं हैं. मिसाल के तौर पर, रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) के केजी-डी 6 फील्ड एक दशक पहले के मुकाबले अब केवल उसका दसवां हिस्सा ही निकाल पा रही है, हालांकि यहाँ इसकी साझेदारी तेल कंपनी भारत पेट्रोलियम के साथ हैं और बाड़मेर ब्लॉक में केयर्न इंडिया के साथ हैं, यहाँ भी उत्पादन 2015-16 में घटकर 4% रह गया है, टाइम्स ऑफ़ इंडिया के मुताबिक़ ये बातें एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताई. जबकि ये फील्ड सिर्फ 8 से 10 साल पुराना हैं.

"डीजीएच ने खुद स्वीकार किया है कि बिना निजीकरण किये प्रौद्योगिकी आदि को  शामिल किया जा सकता है और उत्पादन बढ़ाने के सरकार के उद्देश्य को भी पूरा किया जा सकता है. फिर निजीकरण पर यह तनाव क्यों है?" एक अन्य कार्यकारी ने पूछा.

एक अन्य आधिकारिक ने पन्ना/मुक्ता और तापती तेल के पश्चिमी क्षेत्र में गैस के क्षेत्र का उदाहरण दिया और बताया  इसे 1990 में ओएनजीसी से लिया गया था और एनरॉन कॉर्प और रिलायंस इंडस्ट्रीज को दिया गया था.

उन्होंने बताया कि एनरॉन के दिवालिएपन के बाद,  सबसे पहले इंग्लैंड के बीजी ग्रुप ऑफ ने इसे चलाया और अब रॉयल डच शेल के तहत इसे चलाया जा रहा है लेकिन निजी हाथों में जाने के बावजूद उत्पादन में काफी गिरावट आई है, और इसी वजह से निजी खिलाड़ियों ने आयल फील्ड छोड़ने का ही फैंसला कर लिया.

ओएनजीसी के जिन 11 क्षेत्रों के निजीकारण का सुझाव है उनमें ओएनजीसी की चार सबसे बड़ी परिसंपत्तियां गुजरात में है- वे हैं कलोल, अंकलेश्वर, गंधार और संथाल. टाइम्स ऑफ़ इंडिया की एक रपट के मुताबिक़ ओल्डफील्ड सेवा कंपनियां को स्वामित्व के बिना निजी कंपनियों की तकनीकी साझेदारी के लिए उन्नीस अन्य क्षेत्रों की पहचान की गई है.

याद रहे कि 1992-93 में, ओएनजीसी से जुड़े 28 क्षेत्रों के निजीकरण करने के लिए इसी तरह के तर्क दिया गए जो तर्क आज दिए जा रहे हैं कि निजीकरण करने से उत्पादन में बढ़ोतरी आएगी.

आश्चर्य की बात है कि विरोध कर रही लॉबी ने हालांकि रविवार की पीटीआई की रिपोर्ट में उसका नाम लिए बिना कहा, कि ओएनजीसी की बिक्री ओएनजीसी को बड़ा नुक्सान होगा उसकेलिए अफसोस जताया हालांकि वे खुद उसके निजीकरण के पक्ष में. हैं. लेकिन वे बजाय इसे  तेलक्षेत्रों को लक्षित कर बेचने के ओएनजीसी को एक ही बार में बेचना चाहते हैं.

एक विशेषज्ञ ने नाम न छापने की शर्त पर पीटीआई को बताया कि "अगर उन्हें लगता है कि ओएनजीसी नुक्सान का सौदा है, तो कंपनी का निजीकरण होना चाहिए. प्रस्तावित दृष्टिकोण के तहत निजी कम्पनी केवल कंपनी का संचालन ही करेगा, जो कि भारत का सबसे लाभदायक पीएसयू है वैसे ही जैसे एयर इंडिया के लिए रास्ता बनाया गया है.

इस तरह से बहस का एजेंडा तय करने से या तो बड़ा नुकशान होगा या फिर अनमोल राष्ट्रीय संपत्तियों का पर्याप्त नुकसान - लेकिन मोदी सरकार, बावजूद राष्ट्रवादी मंत्र का बार-बार जाप करने के और देश की संपत्ति को बेचकर हर तरह से खुश है.

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