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पिंजरा तोड़ आंदोलन जारी : डीयू हॉस्टल में लड़कियों ने ‘कर्फ्यू’ तोड़ा

छात्राओं का कहना है कि वह बुधवार, 10 अक्टूबर को प्रॉक्टर से मिलने जाएँगी। इसके बाद फिर से प्रदर्शन किया जायेगा और अगर माँगे नहीं माँगी गयी तो फिर से रात भर प्रदर्शन किया जायेगा।
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सोमवार, 8 अक्टूबर को दिल्ली विश्विद्यालय की आर्ट्स फैकल्टी में पिंजरा तोड़ आंदोलन से जुड़ी महिलाओं ने रात भर विरोध प्रदर्शन किया। यह विरोध प्रदर्शन हॉस्टल कर्फ्यू टाइमिंग (यानी हॉस्टल में आने जाने के समय पर रोक) के खिलाफ था। छात्राओं ने पहले आर्ट्स फैकल्टी में विरोध प्रदर्शन किया फिर मॉल रोड को करीब 2 घंटों तक जाम किया और फिर वापस आर्ट्स फैकल्टी तक का मार्च निकाला, जिसके बाद वह सुबह 6 बजे तक वहीं रहीं। बताया जा रहा है इस पूरे प्रदर्शन में करीब 150 छात्राएं शामिल थीं। 

दरअसल दिल्ली विश्वविद्यालय के ज़्यादातर कॉलेजों में महिला हॉस्टलों में 7 से 8 बजे के बाद प्रवेश बंद हो जाता है। कॉलेज प्रशासन इसे महिला सुरक्षा के लिए अनिवार्य बताता है। लेकिन महिला छात्रों का कहना है कि यह उनके घूमने की आज़ादी के अधिकारों का हनन है। उनका कहना है कि यह महिलाओं को अपने नियंत्रण में रखने की पुरुष प्रधान मानसिकता से प्रेरित नियम है। 

हॉस्टल में कर्फ्यू टाइमिंग के आलावा महिलाएं कई और माँगे भी कर रहीं हैं। उनकी माँग है कि पिछड़ी जातियों से आने वाली महिलाओं के लिए हॉस्टल में आरक्षण नियम ढंग से लागू किया जाए। महिलाएं यह भी माँग कर रही हैं कि हॉस्टल को पूरी तरह भरा जाए जो कि नहीं किया जा रहा और हॉस्टल की फीस कम की जाए। साथ ही उनकी माँग है कि विकलांग महिलाओं के लिए अलग से हॉस्टल हो और लोकल गॉर्डियन होने के नियम को समाप्त  किया जाए। पिंजरा तोड़ से जुड़ी एक छात्रा विभूति ने कहा "18 वर्ष से ऊपर की महिलाओं के लिए लोकल गार्डियन होने का नियम कितना सही है? जब आप बच्ची से महिला बन गए हैं तो हमें इस तरह नियंत्रण में रखने का नियम कितना जायज़ है?" 

सूत्र बताते हैं कि कई हॉस्टलों में तो यह नियम भी होता है कि लोकल गार्डियन की उम्र 40 साल से ज़्यादा हो और वह शादीशुदा भी हो। सवाल है कि क्या यह नियम पुरुषप्रधान मानसिकता का प्रमाण नहीं?

कल शाम करीब साढ़े चार बजे महिलाओं ने यह प्रदर्शन शुरू किया। उस समय वहाँ करीब 90 महिलायें मौजूद थी और उन्होंने माँग की थी कि प्रॉक्टर उनसे मिलें। कई महिलायें  गेट पर चढ़ गयीं थीं और वहाँ खूब नारे लगाए गए। इसके बाद प्रॉक्टर उनसे मिलने आये लेकिन उन्होंने महिलाओं की माँगों को सुनने से मना कर दिया। इसके बाद महिलायें मॉल रोड पर चलीं गयीं और वहाँ चक्का जाम कर दिया। पुलिस ने उन्हें हटाने के लिए ज़ोर-ज़बरदस्ती की और इस दौरान कई महिलाओं को चोट भी आयीं। पुलिस पर यह भी आरोप है कि महिला कॉन्स्टेबल ज़्यादा नहीं थीं और पुरुष कॉन्स्टेबलों ने छात्राओं के साथ बदसलूकी की। 

मॉल रोड पर करीब 2 घंटे तक ट्रैफिक रुका रहा। पुलिस ने ट्रैफिक को दूसरी तरफ से निकलने का इंतज़ाम किया। विभूति का कहना है कि चक्का जाम करने का मकसद यह था कि महिलाओं को बंदी रखे जाने का मुद्दा बाकी जनता तक पहुँचे और कुलपति उनसे मिलने आये। इसके बाद करीब 11. 30 बजे रात को महिलाएं फिर से आर्ट फैकल्टी तक मार्च करके गयीं। वहाँ रात भर प्रदर्शन चला। रात भर गाने गए गए, नारी मुक्ति के नारे लगे और कई छात्राओं ने खूबसूरत चित्र भी बनाये। लेकिन फिर भी प्रशासन के कान पर से जूं नहीं रेंगी। 

छात्राओं का कहना है कि वह बुधवार, 10 अक्टूबर को प्रॉक्टर से मिलने जाएँगी। इसके बाद फिर से प्रदर्शन किया जायेगा और अगर माँगे नहीं माँगी गयी तो फिर से रात भर प्रदर्शन किया जायेगा। 

गौरतलब है कि हॉस्टल में कर्फ्यू टाइमिंग के खिलाफ लेकर यह आंदोलन  2015 से चल रहा है। सबसे पहले यह दिल्ली विश्विद्यालय में शुरू हुआ और इसे पिंजरा तोड़ का नाम दिया गया। इसके बाद  बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय,पंजाबी यूनिवर्सिटी और अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय और दूसरी जगहों पर भी महिलायें हॉस्टल कर्फ्यू टाइमिंग के खिलाफ आंदोलन कर रही हैं। यह पितृसत्ता के खिलाफ एक आवाज़ है जो देश भर में सुनाई देने लगी है। 

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