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स्मृति शेष: नाइंसाफ़ी से लड़ते-लड़ते चला गया एक योद्धा

मानवाधिकार कार्यकर्ता, लेखक और डीयू के पूर्व प्रोफ़ेसर जीएन साईबाबा का शनिवार, 12 अक्टूबर को हैदराबाद में निधन हो गया। एक बड़ा वर्ग उनकी मौत को सांस्थानिक हत्या मानता है।  
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अपनी जीवनसाथी वसंता के साथ प्रोफ़ेसर जीएन साईबाबा (फ़ाइल फ़ोटो)

डॉ. जीएन साईबाबा...क्या मतलब है इस नाम का...एक आला दिमाग़, आदिवासियों के हक़ के लिए लड़ने वाला एक योद्धा, एक प्रोफ़ेसर… ऐसा प्रोफ़ेसर जिसे अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए 10 साल लग गए और जब वह जेल से बाहर आया तो इस दुनिया से ही चला गया। 

मानवाधिकार कार्यकर्ता, लेखक और  डीयू के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा का शनिवार, 12 अक्टूबर को हैदराबाद में निधन हो गया। वे 57 वर्ष के थे और शरीर से क़रीब 90 फ़ीसदी  विकलांग थे। जीएन साईबाबा माओवादियों से कथित संबंधों के मामले में 10 साल जेल में रहने के बाद, महज सात महीने पहले मार्च 2024 में ही बरी किए गए थे।  

अब तबीयत बिगड़ने के कारण उन्हें हैदराबाद के  सरकारी निम से हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था जहां शनिवार रात करीब नौ बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। साईबाबा पित्ताशय में संक्रमण और स्वास्थ्य संबंधी अन्य समस्याओं से जूझ रहे थे। कहा जाता है कि जेल में रहते समय उनके साथ जिस तरह का सुलूक किया गया, उसके चलते ही उन्हें तमाम तरह की दिक्कतें हो गईं थी जिसके चलते जेल से बाहर आने के बाद भी उनका स्वास्थ्य लगातार गिरता चला गया। यही वजह है कि एक बड़ा वर्ग उनकी मौत को सांस्थानिक हत्या भी कह रहा है।  

जीएन साईबाबा को वर्ष 2014 में यूएपीए के तहत गिरफ़्तार किया गया था। उन पर माओवादी संगठनों के साथ सम्बन्ध रखने का आरोप लगाया गया था।

साल 2017 में उन्हें निचली अदालत ने उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई लेकिन 14 अक्टूबर 2022 को बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने उन्हें रिहा करने का आदेश दिया। मगर अफ़सोस 24 घंटे के अंदर ही 15 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट की विशेष बेंच ने हाईकोर्ट के फ़ैसले को पलट दिया।

फिर 2024 में पांच मार्च को बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने उन्हें एक बार फिर बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष उनके खिलाफ आरोपों को साबित करने में विफल रहा।

कोर्ट ने साफ कहा कि इंटरनेट से कम्युनिस्ट या नक्सल साहित्य डाउनलोड करना या किसी विचारधारा का समर्थक होना यूएपीए अपराध के तहत नहीं आता है।

इसके बाद भी सरकार ने फिर कोशिश की कि साईबाबा को वापस जेल में डाल दिया जाए। महाराष्ट्र सरकार ने उनकी रिहाई को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी लेकिन 11 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार की याचिका को ख़ारिज कर दिया।

साईबाबा के अलावा इसी मामले में आरोपी बनाए गए हेम मिश्रा, महेश तिर्की, विजय तिर्की, नारायण सांगलिकर, प्रशांत राही और पांडु नरोटे को भी हाईकोर्ट ने बरी किया। हालांकि रिहाई से पहले ही इनमें से पांडु नरोटे की जेल में ही मौत हो चुकी थी। 

जेल से आने के बाद 8 मार्च 2024 को साईबाबा मीडिया से मुख़ातिब हुए थे और उन्होंने दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर जेल में बिताए 10 सालों के अपने कष्टदायक अनुभवों और संघर्षों को साझा किया था। आप भी सुनिए और महसूस कीजिए।  

REPLUG: State’s Job is to Serve People, Not Punish Them: G N Saibaba

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साईबाबा के जेल में सज़ा काटने के दौरान बाहर उनकी जीवनसाथी वंसता ने किस तरह से संघर्ष चलाया। क्या कुछ झेला। इस बारे में भी न्यूज़क्लिक ने उनसे बातचीत की थी। इसे भी सुना जाना चाहिए–

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