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पाक में धार्मिक विरोध: तालिबानीकरण के संकेत?

पाकिस्तान सरकार ने धार्मिक चरमपंथी और आतंकी संगठनों के सामने बार-बार आत्मसमर्पण किया है। यहां तक कि अपनी विदेश नीति के लक्ष्यों को आगे बढ़ाने में उन्हें प्रॉक्सी के रूप में इस्तेमाल करके उन्हें एक तरह से वैधता भी दी है।
TRT World
चित्र प्रतीकात्मक उपयोग के लिए। सौजन्य: टीआरटी वर्ल्ड 

इमरान खान सरकार द्वारा प्रतिबंधित चरमपंथी इस्लामी संगठन तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टीएलपी) के सामने आत्मसमर्पण करने और उसके प्रदर्शनकारियों की भारी भीड़ के बाद उसकी मांगों को मानने के साथ पाकिस्तान में कट्टरवाद के बढ़ते प्रसार के असर का खुलासा हो गया है। टीएलपी ने इस्लामाबाद पर हमले तक की धमकी दे डाली है। अभी कुछ ही दिन पहले, पुलिस और सुरक्षा बलों और सशस्त्र टीएलपी के बीच हुई हिंसक झड़पों में चार पुलिसकर्मियों सहित कम से कम आठ लोग मारे गए थे। इन सबसे ऐसा प्रतीत होता है कि पाकिस्तानी हुकूमत के पास टीएलपी के 350 कार्यकर्ताओं को रिहा करने, और उनके खिलाफ दर्ज मामलों को वापस लेने की उनकी मांगों को स्वीकार करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था। इसके साथ ही, इमरान सरकार टीएलपी की ही मांग पर फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रोन की कुछ कथित टिप्पणियों और फिर इसके बाद, फ्रांसीसी मीडिया में कुछ व्यंग्यात्मक टिप्पणियों को ईंशनिंदा मानते हुए फ्रांसीसी राजदूत को इस्लामाबाद से हटाने की उनकी मांग पर संसद में 'बहस' कराने पर भी राजी हो गई है। हालांकि टीएलपी की ताकत का यह प्रदर्शन उसके द्वारा किया गया कोई पहला प्रदर्शन नहीं था और न ही पाकिस्तान की कोई सरकार अपने देश के दक्षिणपंथी चरमपंथी दबाव के आगे पहली बार झुकी है। ऐसा हमेशा होता आया है। 

कट्टरपंथी इस्लामी संगठनों के विरोध की श्रृंखला 

इस धुर इस्लामी चरमपंथी संगठन, जिसने बाद में खुद को एक राजनीतिक दल घोषित कर लिया, उसकी स्थापना खादिम हुसैन रिज़वी ने अगस्त 2016 में की थी। यह उस वर्ष मार्च में तहरीक-ए-लब्बैक-या-रसूल-अल्लाह (टीएलवाईआरए) द्वारा आयोजित एक बड़े विरोध के बाद अस्तित्व में आया, जिसने राजनीतिक प्रतिष्ठान, विशेष रूप से स्थापित धार्मिक दलों को हिलाकर रख दिया था। 

टीएलवाईआरए ने पाकिस्तान में शरीयत कानून लागू करने, इस्लाम विरोधी गैर सरकारी संगठनों पर प्रतिबंध लगाने, ईशनिंदा कानून में बदलाव नहीं करने का आश्वासन देने, आतंकवाद और हत्या के आरोप में गिरफ्तार या दोषी ठहराए गए लोगों सहित सभी धार्मिक नेताओं और मौलवियों को बिना शर्त रिहा करने, और सभी सरकारी पदों पर नियुक्त सभी अहमदिया और गैर-मुस्लिमों को हटाने सहित 10 सूत्री मांगें इमरान सरकार के सामने रखी थी। तीन दिनों के हिंसक विरोध के बाद, सरकार और टीएलवाईआरए नेताओं में सात-सूत्रीय सौदे पर सहमति बनी, जिसने टीएलवाईआरए को अपनी वैधता प्रदान की, और उसके दबदबे का प्रदर्शन करने में मदद पहुंचाया। इन दौरों से गुजरते हुए अगस्त 2016 में अंततः टीएलपी की स्थापना की गई। 

इस घटनाक्रम के महीनों बाद यानी 2017 में, टीएलपी ने सांसदों द्वारा ली जाने वाली शपथ की भाषा में बदलाव की मांग करते हुए फिर से हिंसक प्रदर्शन किया। पाकिस्तान सरकार ने फिर हार मान ली और संसद में चुनावी सुधार विधेयक पारित करवा दिया, जिससे उस ऐलान के लफ्जों को बदल दिया गया जिसे रिज़वी और उनके टीएलपी समर्थकों ने न कबूलने लायक माना था। इन विरोध प्रदर्शनों में छह लोगों की जानें गई थीं, जबकि 200 से अधिक घायल हो गए थे। इसके बाद पाकिस्तान के कानून और न्याय मंत्री जाहिद हामिद को इस्तीफा देना पड़ा था। मई 2018 में, आंतरिक मंत्री अहसान इकबाल को उनके गृह निर्वाचन क्षेत्र नरोवाल में ही एक राजनीतिक रैली के दौरान गोली मारकर बुरी तरह से जख्मी कर दिया गया था। बाद में यह बताया गया कि हमलावर टीएलपी का था,पर संगठन ने इसका खंडन कर दिया था। जांच से पता चला कि अपराधी टीएलपी के वरिष्ठ सदस्यों के संपर्क में था और उसने इकबाल को निशाना बनाने की बाकायदा मंजूरी मांगी थी। 

सभी निचली अदालतों द्वारा गुनहगार साबित किए जाने और इसके चलते आठ साल तक हिरासत में रहने के बाद अक्टूबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले में ईशनिंदा की आरोपित पाकिस्तानी ईसाई महिला आसिया बीबी को निर्दोष पाया। फैसले में कहा गया था कि गवाहों के "भौतिक विरोधाभास और असंगत बयान" अभियोजन पक्ष के तथ्यों के संस्करण पर संदेह उत्पन्न करते हैं।" इसने टीएलपी को आग बबूला कर दिया। उसने फिर से कराची, लाहौर, पेशावर और मुल्तान में हिंसक विरोध शुरू कर दिया। टीएलपी के एक नेता, मुहम्मद अफजल कादरी ने कथित तौर पर कहा कि सुप्रीम कोर्ट के सभी तीन न्यायाधीश "हत्या के लायक" हैं। इस्लामाबाद में रेड जोन, जहां सुप्रीम कोर्ट स्थित है, उसको पुलिस ने सील कर दिया था। एक अन्य मामले में, मार्च 2019 में एक टीएलपी समर्थक और छात्र ने बहावलपुर के सरकारी सादिक एगर्टन कॉलेज के एसोसिएट प्रोफेसर खालिद हमीद के विरुद्ध ईश निंदा का आरोप लगाते हुए उन्हें चाकू मारकर कर उनकी हत्या कर दी थी। इसके बाद, अप्रैल में फ्रांस विरोधी प्रदर्शन शुरू हो गया। टीएलपी समर्थक पैगंबर मुहम्मद के फ्रांस में कथित कैरिकेचर के विरोध में सड़कों पर उतर आए थे। यह विरोध प्रदर्शन काफी हिंसक हो गया। कई पुलिस वाहनों और इमारतों को आग लगा दी गई। कम से कम छह पुलिसकर्मियों की मौत हो गई और 800 से अधिक पुलिसकर्मी घायल हो गए। सामान्य नागरिक भी बड़ी संख्या जख्मी हुए थे। 

राजनीति में टीएलपी का प्रवेश

इससे पहले 2016-17 में, टीएलपी ने अपने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों के माध्यम से नवाज शरीफ सरकार को काफी कमजोर कर दिया था, जिसने शायद आम चुनाव से पहले अपने प्रतिद्वंद्वी इमरान खान की ख्वाहिश पूरी कर दी। लेकिन खान को शायद यह नहीं पता था कि जिस टीएलपी ने नवाज शरीफ को कमजोर किया था, वह उनके लिए भी एक दिन भस्मासुर बन जाएगा। पाकिस्तान में 2018 के आम चुनावों में, टीएलपी ने कई सीटों पर चुनाव लड़े और राष्ट्रीय स्तर पर 1.8 मिलियन वोट पा कर वह देश की पांचवीं सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर आई। 

वास्तव में आश्चर्य की बात यह थी कि टीएलपी ने पंजाब के सबसे महत्त्वपूर्ण राज्य में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी को भी पीछे छोड़ दिया था और प्रांत में वह देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी। कोई भी धार्मिक दल पंजाब में चुनावों को इस कदर प्रभावित नहीं कर पाया था, जैसा कि टीएलपी ने 2018 में किया था। इस तरह के परिणाम ने टीएलपी को वैधता प्रदान की और यह साबित कर दिया कि धार्मिक उग्रवाद और अनर्गल धार्मिक बयानबाजी ने पाकिस्तान के पड़ोस की तरह ही चुनावी लाभांश का भुगतान किया। हालांकि कुछ विश्लेषकों का मानना था कि नवंबर 2020 में खादिम हुसैन रिज़वी की मृत्यु से आंदोलन की गति कम हो जाएगी लेकिन कुछ दिनों पहले इस्लामाबाद की ओर मार्च करने वाली विशाल भीड़ और सरकार को झुकाने की इसकी क्षमता ने पाकिस्तान के राजनीतिक परिदृश्य में टीएलपी की प्रासंगिकता को फिर से साबित किया। पंजाब प्रांत से राष्ट्रीय संसद में सर्वाधिक सीटों को देखते हुए पंजाब में इसके चुनावी उदय से पाकिस्तान की राजनीतिक गत्यात्मकता पर काफी असर पड़ने की संभावना है। 

अपनी स्थापना के बाद से इस पूरी प्रक्रिया के दौरान, टीएलपी ने सभी विपक्षी दलों को इस्लाम के दुश्मन के रूप में चित्रित करके खुद को इस्लाम के एक रक्षक के रूप में स्थापित किया है। वह सुन्नी चरमपंथी तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) और शिया दक्षिणपंथी मजलिस वहदत-ए-मुस्लिमीन पाकिस्तान जैसे अन्य संगठनों का समर्थन हासिल करने में भी कामयाब रहा। हालांकि, टीएलपी, जो बरेलवी संप्रदाय से संबंधित है, पाकिस्तान में जिहादी संगठनों का हिस्सा नहीं है। वह मुख्य रूप से देवबंदी संप्रदाय के प्रति निष्ठा रखता है। मुख्यतः दो संप्रदायों के बीच धार्मिक मतभेदों के कारण तालिबान (इसके पाकिस्तानी संस्करण सहित) के साथ इसके संबंध अच्छे नहीं रहे हैं। 

तालिबानीकरण का खतरा

लेकिन तालिबान शासन के तहत अफगानिस्तान में एक नए इस्लामिक अमीरात के उभरने के साथ, यह भारत के लिए गंभीर चिंता का विषय होगा अगरचे पाकिस्तान में भी एक और अमीरात उभरता है, जैसा कि यह पाकिस्तानी लोगों के बीच टीएलपी जैसे समूहों के बढ़ते प्रभाव से परिलक्षित होता है। पिछले पांच वर्षों में टीएलपी द्वारा किए गए विशाल विरोधों और इसके जरिए हासिल चुनावी लाभ से ऐसी संभावना बन सकती है क्योंकि ये लोगों के बीच संगठन के प्रभाव को दर्शाते हैं। पाकिस्तान सरकार ने धार्मिक चरमपंथी और आतंकी संगठनों के सामने बार-बार आत्मसमर्पण किया है और यहां तक कि अपनी विदेश नीति के लक्ष्यों को आगे बढ़ाने में उन्हें प्रॉक्सी के रूप में इस्तेमाल करके उन्हें वैधता भी दी है। लेकिन इसने धर्मनिरपेक्ष ताकतों के खिलाफ बेरहम काम किया है और उन्हें मुख्यधारा में आने से रोका है। तालिबान-नियंत्रित अफगानिस्तान का सामाजिक-सांस्कृतिक प्रभाव लंबे समय में पाकिस्तान के लिए दूरगामी होगा। पाकिस्तान में टीएलपी और अन्य चरमपंथी समूह पहले से ही अफगानिस्तान पर कब्जा करने में अमेरिकियों पर तालिबान की कथित जीत से उत्साहित महसूस कर रहे हैं। इन सबसे यह स्पष्ट हो गया है कि पाकिस्तान एक ऐसे बिंदु के करीब जा रहा है, जहां धार्मिक चरमपंथी संगठन और दल राष्ट्रीय एजेंडे पर हावी होंगे। 

यह भारत और पूरी दुनिया के लिए गंभीर चिंता का विषय होना चाहिए, अगर पाकिस्तानी राजनीतिक ढांचा अफगानिस्तान के नक्शेकदम पर चलते हुए एक और इस्लामी अमीरात की ओर बढ़ता है। पाकिस्तान और उसके आसपास के धार्मिक कट्टरवाद ने भी उस देश के आंतरिक विकास को काफी  बाधित किया है। आखिर सांप्रदायिकता और कट्टरवाद एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। 

(अमिताभ रॉयचौधरी ने प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया के लिए तीन दशकों तक आंतरिक सुरक्षा, रक्षा और नागरिक उड्डयन को व्यापक रूप से कवर किया है। आलेख में व्यक्त विचार उनके निजी हैं) 

अंग्रेजी में मूल रूप से प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें। 

Pak Religious Protests: Signs of Talibanisation?

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