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प्रदूषण के लिए सब ज़िम्मेदार, लेकिन मार सिर्फ निर्माण मज़दूरों पर, कामबंदी से रोज़ी-रोटी का संकट

दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण के लिए सरकार के साथ हम सब ज़िम्मेदार हैं लेकिन इसकी सबसे ज़्यादा मार पड़ी है निर्माण क्षेत्र में काम करने वाले दिहाड़ी मज़दूरों पर। प्रदूषण की परवाह किए बिना हम ‘धूमधड़ाम’ से त्योहार मना रहे हैं, लेकिन कामबंदी से मज़दूरों के सामने रोज़ी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है।
WORKERS PROTEST
दिल्ली में गुरुवार को भवन निर्माण मजदूरों ने प्रदर्शन किया।

देश के हर इलाके में आपको एक लेबर चौक जरूर मिलेगा जहाँ आपको सुबह 8 से 10 के बीच भरी चहल पहल दिखती है। मुख्यत: यह ऐसी जगह होती है जहाँ भवन निर्माण का कार्य करने वाले दिहाड़ी मजदूर रोज काम की तलाश में आते हैं, लेकिन दिल्ली में पिछले कुछ दिनों से इन चौकों की रौनक गायब है। यहाँ आपको कोई भी मजदूर नहीं मिलेगा, आप सोचोगे कि मज़दूर आजकल त्योहार में व्यस्त होंगे या अपने गांव-घर गए होंगे, इसलिए कोई काम करने नहीं आ रहा होगा पर ऐसा नहीं है। मज़दूर अभी कोई त्योहार नहीं मना रहे बल्कि इन मजदूरों के सामने तो दो वक्त की रोटी का भी संकट हो गया है।

जी हां, जब त्योहारों पर आप पकवान खा रहे हैं, इन मज़दूरों को दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं हो रही। अब आप कहंगे कि फिर ये काम करने क्यों नहीं आ रहे हैं?    

भवन निर्माण के मजदूर एक तरह से रोज कुआं खोदकर पानी पीते हैं, लेकिन उन्हें पिछले कई दिनों से कोई काम नहीं मिल रहा है। वजह? वजह है हमारा प्रदूषण और प्रदूषण से निपटने की हमारी आधी-अधूरी नीतियां। दरअसल दिल्ली सरकार ने बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए दिल्ली में सभी तरह के निर्माण कार्य पर प्रतिबन्ध कर दिया है, बिना इसका कोई इंतज़ाम किए कि दिहाड़ी मज़दूर क्या करेगा, क्या खाएगा।

जब पूरा शहर रौशनी में नहाकर उत्सव में व्यस्त था, पूरा शहर खुशियों से झूम रहा था, दिवाली मना रहा था तब दिल्ली के कई ऐसे घर थे जहाँ अंधेरा पसरा था और वहां रहने वाले मजदूर रोटी दाल का इंतजाम करने की कोशिश कर रहे थे।

ऐसा ही एक परिवार दिल्ली के उत्तर–पूर्व संसदीय क्षेत्र के सोनिया विहार इलाके में था। इसके मुखिया राजेन्द्र यादव हैं जो भवन निर्माण में बेलदारी का काम करते हैं। इनके तीन बच्चे हैं। राजेन्द्र किसी ठेकेदार के माध्यम से काम करते हैं, उन्हें वो ठेकेदार 175 रुपये देता था, जबकि वो मालिक से 250 तक लेता है। उन्होंने बताया जितना वो रोज कमाते हैं उतने में बड़ी मुशिकिल से एक दिन का गुजारा होता है। ऐसे में तकरीबन एक सप्ताह से अधिक से कोई काम नहीं मिलने से उनके और उनके परिवार के लिए रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है। वे कहते हैं कि अब तो दुकानदार ने भी राशन देने से मना कर दिया है। वो कहता है पिछला बकाया दो, तब अगला राशन मिलेगा।

आपको यहाँ बता दें कि अधिकतर दिहाड़ी मजदूर प्रवासी हैं। इनके पास दिल्ली का राशन कार्ड भी नहीं है। इस कारण ये सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लाभ से भी बाहर हैं।

दिल्ली सरकार ने दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए दिल्ली में सभी तरह के निर्माण कार्य पर प्रतिबन्ध लगा दिया, परन्तु यह सब करते हुए उन्होंने दिल्ली के इन भवन निर्माण मजदूरों के बारे में तनिक भी नहीं सोचा और सीधा एक झटके में इन मजदूरों की रोजी-रोटी छीन ली। दिल्ली में प्रदूषण के कई और गंभीर कारण हैं जो सरकार के नीतिगत विफलता को दर्शाते हैं। वो चाहे उद्योगों से होने वाला प्रदूषण हो या वाहनों से होने वाला प्रदूषण। हमारे एयरकंडीशनर से होने वाला प्रदूषण हो, पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने की घटनाएं या अब पटाखों से हुआ भयंकर प्रदूषण। लेकिन दिल्ली की केजरीवाल सरकार, पड़ोसी राज्यों की सरकारें या केंद्र सरकार। ये सब मिलकर भी इनपर अंकुश लगाने में विफल रही हैं। लेकिन दिल्ली के लगभग 12 लाख निर्माण मजदूरों को बिना कोई वैकल्पिक आय का स्रोत दिए ही उनकी रोजी-रोटी छीन ली गई। और ये केवल इस बार ही नहीं है, हमेशा ही सरकारों द्वारा प्रदूषण रोकने के नाम पर मजदूरों को ही निशाना बनाया जाता है। एकबार फिर दिल्ली में यही हुआ है।

लगभग सभी मजदूर यूनियनों ने सरकार की इस कार्रवाई की निंदा की है। गुरुवार को जब शहर दीवाली के जश्न के बाद गोवर्धन पूजा, भइया दूज और छठ पूजा की तैयारी में जुटा था तब सैकड़ों की संख्या में भवन निर्माण मजदूर अपनी दो वक्त की रोटी के इन्तजाम के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री के आवास पर विरोध प्रदर्शन कर रहे थे।

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गुरुवार बिल्डिंग वर्कर्स यूनियन ने दिल्ली के निर्माण मज़दूरों के लिए बेरोज़गारी भत्ते की मांग को लेकर मुख्यमंत्री आवास के समक्ष प्रदर्शन किया और ज्ञापन सौंपा। प्रदर्शन में दिल्ली के विभिन्न इलाकों से आनेवाले निर्माण मज़दूरों ने हिस्सा लिया।

बिल्डिंग वर्कर्स यूनियन ने कहा कि दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण को रोकने के नाम पर सारे निर्माण कार्यों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, जिससे मज़दूरों की रोज़ी-रोटी पर गहरा संकट आ गया है। सरकार की गलत नीतियों और पूंजीपतियों के लोभ के चलते होने वाले भयानक प्रदूषण का खामियाजा भी समाज के गरीब-मेहनतकश को ही भुगतना पड़ रहा है।

ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियन (ऐक्टू) दिल्ली के उपाध्यक्ष राजीव ने कहा कि बिना सोचे-समझे कभी कारखानों की तालाबंदी और कभी निर्माण कार्य पर रोक लगाने से प्रदूषण से राहत नहीं मिल सकती। जब तक नीतिगत मामलों में सरकार अमीरों के हित साधने से बाज़ नहीं आती और जल-जंगल-ज़मीन की लूट नहीं रोकती तब तक पर्यावरण को नुकसान से बचाना संभव नही है। 

बिल्डिंग वर्कर्स यूनियन की मुख्य मांगें

पहली मांग सरकार से ये है कि सरकार ने कामबंदी की है तो इसके बदले वो निर्माण भवन के ठेकेदारों को यह आदेश दे कि जब तक काम बंद है तब तक वो अपने मजदूरों को मजदूरी का भुगतान करे। बिल्कुल उसी तरह जैसे अन्य कर्मचारियों को कामबंदी या छुट्टी के दौरान का भी वेतन दिया जाता है।

अगर ये संभव नहीं है तो दिल्ली में निर्माण मजदूर कल्याण वेलफेयर बोर्ड है जिसके पास मजदूर के कल्याण के लिए एक मोटा बजट है। सरकार इस बोर्ड को निर्देशित करे कि वो मजदूरों को जब तक दिल्ली में निर्माण कार्य बंद है तब तक न्यूनतम मजदूरी के हिसाब से उन्हें बेरोजगारी भत्ता दे।

निर्माण मज़दूर चिंता देवी ने कहा कि "काम रुकने के चलते हमें बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। दिहाड़ी नही मिलने के चलते हमारी रोज़ी-रोटी तक के लाले पड़ गए हैं। हमारी सरकार से ये मांग है कि कामबंदी के दिनों में सभी निर्माण मज़दूरों को न्यूनतम वेतन के बराबर बेरोज़गारी भत्ता दिया जाए।"

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ऐक्टू के दिल्ली राज्य सचिव अभिषेक ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए सरकार पर गंभीर सवाल उठाए और कहा कि सरकार कह रही है कि प्रदूषण बढ़ रहा है। सरकार हर बार मजदूरों पर ही हमला करती है जबकि दिल्ली में प्रदूषण का मुख्य कारण नीतिगत विफलता है। बिना योजना के कार्य हो रहा है। उद्योगों से जो कूड़ा निकल रहा है उसका निपटारा कैसे होगा। यही नहीं दिल्ली में सबसे बड़ा प्रदूषण का कारण वाहन हैं, सरकार उस पर तो कोई रोक नहीं लगा रही है। हम सरकार के निर्माण कार्य के बंद करने के खिलाफ नहीं हैं, बस हमारी मांग है कि सरकार को इन दिहाड़ी मजदूरों के बारे में भी सोचना चाहिए।

राजधानी भवन निर्माण कामगार यूनियन के अध्यक्ष व सीटू के राज्य सचिव सिद्धेश्वर शुक्ला ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए सरकार के इस फैसले को एकतरफा करार दिया। उनके मुताबिक सरकार ने यह निर्णय करते हुए न तो मजदूर यूनियनों से बात की और न विशेषज्ञों से। दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण पर अपनी विफलता को छिपाने के लिए निर्माण कार्यो पर पूर्णत प्रतिबन्ध लगा दिया बिना किसी अध्ययन के, जबकि निर्माण कार्य में कई ऐसे काम भी होते हैं जिसमें कोई भी प्रदूषण नहीं होता है। सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए थे और अगर वो ये नहीं कर सकी तो अब उसे मजदूरों के लिए कोई वैकल्पिक व्यस्था करनी चाहिए।

गुरुवार को हुए प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते हुए बिल्डिंग वर्कर्स यूनियन के महासचिव वीकेएस गौतम ने कहा कि निर्माण मज़दूरों की अनदेखी करके सरकार आराम से नहीं बैठ सकती। अगर जल्द ही हमारी माँगों पर कोई पहलकदमी नहीं हुई तो आंदोलन को और तेज़ किया जाएगा।

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