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पर्यावरण को बचाना है तो तेंदुओं को भी बचाना होगा

2016 में की गई तेंदुओं की गणना के तहत पूरे भारत में 12,000 से 14,000 तेंदुए थे। 2017 में कम से कम 431, 2016 में 440, 2015 में 399 और 2014 में 331 तेंदुए मारे गए।
सांकेतिक तस्वीर
Image Courtesy: BoomLive

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा संसद में दी गई जानकारी के तहत 2015 से 2018 के बीच देश में कम से कम 260 तेंदुओं का शिकार हो चुका है। मंत्रालय के अनुसार भारत में उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में  तेंदुओं के अवैध शिकार के सबसे ज्यादा मामले दर्ज हुए हैं। उत्तराखंड में तेंदुओं के अवैध शिकार को लेकर 60 और हिमाचल प्रदेश में 49 मामले दर्ज हो चुके हैं।

2016 में की गई तेंदुओं की गणना के तहत पूरे भारत में 12,000 से 14,000 तेंदुए थे। 2017 में कम से कम 431, 2016 में 440, 2015 में 399 और 2014 में 331 तेंदुए मारे गए।

दिल्ली में मौजूद वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन सोसाइटी ऑफ इंडिया (डब्ल्यूपीएसआई) के तहत  भारत में पिछले चार वर्षों में सबसे अधिक तेंदुए की मौत के मामलें 2018 में दर्ज किये गये। इस साल देश भर में 460 तेंदुए की मौत दर्ज की गई। उनमें से 155 (34%) का शिकार हो गया जबकि 74 (16%) की ट्रेन या सड़क दुर्घटना में मौत हो गयी थी।

2018 में सबसे अधिक 93 तेंदुओं की मौत उत्तराखंड में दर्ज की गई, इसके बाद महाराष्ट्र (90), राजस्थान (46), मध्य प्रदेश (37), उत्तर प्रदेश (27), कर्नाटक (24) और हिमाचल प्रदेश (23) का स्थान है।

2015 में तेंदुए के अवैध शिकार के 64 मामले, 2016 में 83, 2017 में 47 और अक्टूबर 2018 तक 66 मामले दर्ज किए गए, जो इस महीने के शुरू में लोकसभा में पेश किए गए।

दिल्ली स्थित वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन सोसाइटी ऑफ इंडिया के तहत  2018 में तेंदुए के शरीर के अंगों के अवैध शिकार और बरामदगी के 163 मामले दर्ज किए गए, वही 2017 में यह मामले 159 के करीब थे। इस साल अवैध शिकार और तेंदुए के अंगो की बरामदगी से जुड़े मामले ज्यादा सामने आये है।

इस साल अकेले उत्तराखंड में ही अवैध शिकार से जुड़े 15 मामले सामने आ चुके है। 2018 में उत्तराखंड में सबसे ज्यादा अवैध तेंदुए के शिकार के मामले दर्ज हुए।

उत्तराखंड वन्यजीव और हरे भरे जंगलों के लिए काफी समृद्ध माना जाता है। उत्तराखंड  पहाड़ी बकरी, भेड़, बैलों, विभिन्न तितलियों, मृगों, कस्तूरी मृग, घोरालों, हिम तेंदुआ, और मोनाल जैसे जीव जन्तुओ का घर है। उत्तराखंड का वतावरण तेंदुओं के रहने का अच्छा वतावरण प्रदान करता है। राज्य निश्चित रूप से भारत में वन्यजीव पर्यटन के लिए सबसे अच्छी जगहों में से एक है, लेकिन हाल के कुछ वर्षों से यहाँ तेंदुओं के अवैध शिकार के मामले बढ़ गए है। उत्तराखंड में अवैध शिकार के बढ़े हुए मामले होने का एक कारण यह भी है कि उत्तराखंड वन क्षेत्र  वन्यजीव को लेकर काफी धनी माना जाता है और नेपाल के साथ काफी लम्बी सीमा साझा करता है। इसी कारण शिकारी इस प्रदेश में काफी सक्रिय रहते हैं। तेंदुए की खाल, हड्डियों और अन्य भाग की चीन और एशिया के बाकी में  देशो में भरपूर रूप से मांग है। इन्हे नेपाल के रस्ते इन देशो में तस्करी कर दिया जाता है। एक युवा तेंदुए की खाल की कीमत अंतर्राष्ट्रीय बाजार में 7 लाख रुपये तक है, इसीलिए तेंदुए के अवैध शिकार के घटनाएं बढ़ती जा रही हैं।

विशेषज्ञ बताते हैं कि चूंकि तेंदुए मानव बस्ती के करीब रहते हैं और पूरे देश में पाए जाते हैं, इसलिए तेंदुए के अवैध शिकार के मामले भी देश भर में फैले हुए हैं, जिनमें से कई ऐसी घटनाएं सरकारी रिकॉर्ड में दिखाई नहीं दे रही हैं। विशेषकर महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों में सड़क के किनारों पर तेंदुए की मौत की कई घटनाएं होती हैं। अन्य कारणों में शहरीकरण का बढ़ना और जंगलों के क्षेत्र में कमी आना जिसकी वजह से इंसानो और तेंदुओं में टकराव बढ़ना जैसे कारण शामिल हैं।

भारत में  जंगलों का कुल फैलाव तकरीबन 802,088 वर्ग किमी में है, जो देश के भौगोलिक क्षेत्र का 24.39 प्रतिशत है। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत प्रति वर्ष 1.5 मिलियन हेक्टयर भूमि शहरीकरण की वजह से खोता जा रहा है। इससे ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि शहरीकरण  अगर  इसी  रफ़्तार से बढ़ती रहा तो भारत में कुछ समय बाद जंगल  नहीं रह जायेंगे।

तेंदुओं को जीवित रहने के लिए एक बहुत बड़े क्षेत्र की आवश्यकता होती है। जहां पर उनके निवास के लिए अनुकूलित वातावरण हो। दुनिया के अधिकांश देशों में इंसानी जनसंख्या बढ़ती ही जा रही है जिसकी वजह से वन क्षेत्र में गिरावट होती जा रहा है।

जंगली जानवरों का इंसानी बस्तियों में प्रवेश, इंसानों के लिए बहुत तरह की मुश्किलें लेकर आता है, जैसे फसलों का नष्ट होना जो किसान अपनी फसल को लगाने में इतनी मेहनत लगता है, वह एक ही बार में नष्ट हो जाती है। इंसानो के घरों का टूट जाना। इसके जवाब में इंसानों द्वारा जानवरों पर हमला होता है। केंद्र सरकार के आकड़ों के मुताबिक  इंसानों और जानवरों में टकराव की वजह से 2013 से 2017 तक 1608 जानवरों और इंसानों की जान जा चुकी है।

इंसानों की बस्तिया जहाँ पर होंगी वहां से जंगलों का हटना तय है। या इसे यूं कहा जाए कि जंगलों में आदमी ने घुसपैठ कर ली है। जंगलों के बीच में से रेलवे ट्रैक का होकर जाना जानवरों की मौत का एक बहुत बड़ा कारण है। रेलवे ट्रैक पार करते समय महाराष्ट्र में 2013 से 2017 के बीच 71 जानवरो की मौत हो गयी थी। रेलवे ट्रैक सिर्फ एक ही जानवर के लिए खतरनाक नहीं है, बल्कि जंगल में रहने वाले हर जानवर के लिए खतरनाक हैं, इसलिए जंगलों के बीच में से रेलवे ट्रैक का गुजरना ठीक नहीं है।  

तेंदुए का पर्यावरण में महत्व

जैसे पर्यावरण में हर जानवर का महत्व होता है उसी तरह बड़ी बिल्लियों का पर्यावरण में एक महत्व है। तेंदुए, बाघ, शेर, चीता ये सभी बिल्ली प्रजाति में ही आते हैं। जो पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य और विविधता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह ऐसा जानवर है जो फ़ूड चेन (भोजन श्रृंखला) में शीर्ष पर रहता है, वे शाकाहारी जीव जंतुओं की संख्याओं को सीमित करके अति-चराई को रोकते हैं और पारिस्थितिक अखंडता को बनाए रखते हैं। अगर फ़ूड चैन में अहम भूमिका निभाने वाले वाले जानवर के अस्तित्व पर ही खतरा मंडराने लग गया तो पूरा फ़ूड चैन गड़बड़ा जायेगा। भारत में 350 से अधिक छोटी-बड़ी नदियाँ बाघ अभयारण्य से गुजरती हैं। ये अभयारण्य कार्बन का भी संचय करते हैं और ऑक्सीजन प्रदान करते हैं। ऐसे समय में जब जलवायु परिवर्तन की घटनाओं ने पर्यावरण के खतरों के बारे में चिंताएं बढ़ा दी हैं। तेंदुओं, बाघों का संरक्षण कार्बन भंडारण मूल्य के संदर्भ में अत्यधिक पारिस्थितिक सेवाएं प्रदान करता है। कार्बन संग्रहण प्राप्त करने के लिए वनों को बचाना होगा। तेंदुएं, बाघों जैसे बड़े शरीर वाले मांसाहारी जानवरों के अवैध शिकार या हत्या से शाकाहारी जानवरों की आबादी बढ़ जाएगी जिससे शाकाहारी जानवर जंगलो को ज्यादा चरेंगे, जिसके परिणामस्वरूप जंगलों का क्षय हो जायेगा। भारत वैश्विक बाघों की आबादी का 70 प्रतिशत हिस्सा है। इसलिए, बाघ संरक्षण में भारत  की महत्वपूर्ण भूमिका है। इसी तरह तेंदुए, शेर सबको बचाना होगा।

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