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काम के बाद अब ‘कोरोनिल’ के नाम पर भी विवाद, मद्रास हाईकोर्ट ने लगाया 10 लाख का जुर्माना

रामदेव की विवादित दवा ‘कोरोनिल’ से फिलहाल कोविड-19 संक्रमितों का इलाज तो नहीं किया जा रहा लेकिन इस दवा को इम्यूनिटी बूस्टर के रूप में जरूर बेचा जा रहा है। अब मद्रास हाईकोर्ट ने एक याचिका पर संज्ञान लेते हुए पतंजलि को 'कोरोनिल' शब्द का इस्तेमाल बंद करने का आदेश दिया है।
पतंजलि
image courtesy : Sakal Times

"आम लोगों में डर और दहशत का फायदा उठाते हुए पतंजलि कोरोना वायरस की दवा की बात कर रही है।"

ये टिप्पणी मद्रास हाई कोर्ट ने रामदेव की विवादित दवा ‘कोरोनिल’ के संबंध में की है। हाईकोर्ट ने पतंजलि आयुर्वेद और दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट के खिलाफ 10 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है। जुर्माना लगाने के साथ ही कोर्ट ने कहा कि वे (पतंजलि) महामारी से डरे हुए लोगों का फायदा उठाते हुए कोरोना के इलाज के नाम पर सर्दी, खांसी और बुखार के लिए इम्यूनिटी बूस्टर बेच कर पैसा कमाने की फिराक में लगे हुए थे।

बता दें कि मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस सीवी कार्तिकेयन ने गुरुवार, 6 अगस्त को एक आदेश जारी करते हुए कंपनी के 'कोरोनिल' ट्रेडमार्क इस्तेमाल करने पर पूर्ण रूप से रोक लगा दी है।

क्या है पूरा मामला?

चेन्नई की कंपनी अरुद्रा इंजीनियरिंग लिमिटेड, जो भारी मशीनों और निरूद्ध इकाइयों को साफ करने के लिए रसायन एवं सैनिटाइजर बनाती है। उसने रामदेव की ‘कोरोनिल’ के खिलाफ मद्रास हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की। इस याचिका में कहा गया कि औद्योगिक उपयोग के लिए ट्रेडमार्क नियमों के अनुसार 'कोरोनिल' 1993 से उसका ट्रेडमार्क है। यानि अरुद्रा इंजीनियरिंग लिमिटेड इस नाम का पहले से ही प्रयोग करती है।

कंपनी के अनुसार उसने 1993 में 'कोरोनिल-213 एसपीएल' और 'कोरोनिल-92बी' का पंजीकरण कराया था और वह तब से उसका नवीकरण करा रही है। कंपनी के मुताबिक, कोरोनिल ट्रेडमार्क पर 2027 तक उसका अधिकार वैध है।

कोर्ट में कंपनी ने इस ट्रेडमार्क को वैश्विक स्तर का बताया है। कंपनी ने यह भी कहा है कि उसके क्लाइंट भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (BHEL) और इंडियन ऑयल जैसी कंपनिया हैं। अपने दावे को सिद्ध करने के लिए कंपनी ने कोर्ट में 5 साल का बिल भी पेश किया।

कंपनी ने कोर्ट में कहा कि पतंजलि की ओर से बेची जाने वाली दवा का मार्क ठीक उसकी कंपनी की तरह है। बेचे जाने वाले प्रोडक्ट भले ही अलग हों, लेकिन ट्रेडमार्क एक जैसा ही है।

हाई कोर्ट ने क्या कहा?

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, न्यायमूर्ति सी वी कार्तिकेयन ने अरुद्रा इंजीनियरिंग लिमिटेड की अर्जी पर 30 जुलाई तक के लिए एक अंतरिम आदेश जारी किया था। इसके बाद 6 अगस्त को कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि पतंजलि को अपने उत्पाद बेचने से पहले ट्रेडमार्क रजिस्ट्री में जाकर देखना चाहिए कि ये ट्रेडमार्क रजिस्टर्ड है या नहीं।

कोर्ट ने कहा कि पतंजलि की ओर से कोर्ट में जानकारी न होने का तर्क नहीं दिया जा सकता। वह चाहती तो आसानी से चेक कर सकती थी कि कोरोनिल एक रजिस्टर्ड ट्रेडमार्क है। जस्टिस कार्तिकेयन ने कहा कि पतंजलि को समझना चाहिए कि व्यापार में समानता जैसी कोई चीज़ नहीं होती।

कोर्ट के अनुसार, इस आपदा की घड़ी में कई ऐसी संस्था हैं जो लोगों की नि:स्वार्थ भाव से मदद कर रही हैं। ऐसे में प्रतिवादी (पतंजलि) उन संस्थाओं को यह जुर्माने की राशि दें। आधार कैंसर इंस्टीट्यूट और गवर्नमेंट योग एंड नेचुरोपैथी मेडिकल कॉलेज ऐसी ही दो संस्था हैं जो लोगों का फ्री में इलाज कर रही हैं। इसलिए इन दोनों संस्थानों को पांच-पांच लाख रुपये दिए जाएं।

कोर्ट ने 21 अगस्त तक दोनों संस्थाओं को पैसों का भुगतान करने का निर्देश दिया है। साथ ही 25 अगस्त तक हाई कोर्ट के समक्ष इससे संबंधित रजिस्ट्री फाइल करने की बात भी कही है।

बता दें कि दिव्य मंदिर योग ने कोरोनिल का निर्माण किया था और पतंजलि ने इसकी मार्केटिंग की थी। ये दोनों ही संस्थान योग गुरू बाबा रामदेव से जुड़े हुए हैं।

मालूम हो कि कोरोनिल को कोरोना की दवा के रूप में लॉन्च किया गया था। लेकिन बाद में विवाद बढ़ने और केंद्रीय आयुष मंत्रालय के निर्देश के बाद इसे इम्यूनिटी बूस्टर के रूप में बेचा जा रहा है।

कोरोनिल का विवाद

23 जून, 2020 को योग गुरु रामदेव की कंपनी पतंजलि रिसर्च इंस्टीच्यूट ने एक प्रेस कॉन्फ़्रेन्स में 'कोरोनिल टैबलेट' और 'श्वासारि वटी' नाम की दो दवाएं दुनिया के सामने पेश कीं। इस पूरे पैकेजिंग को ‘कोरोनिल’ किट का नाम दिया गया। इस कार्यक्रम में पतंजलि का दावा था कि "इन दवाओं से कोविड-19 का इलाज किया जा सकेगा।"

पतंजलि ने यह भी दावा किया कि उन्होंने इसका क्लीनिकल ट्रायल किया है और कोरोना संक्रमित लोगों पर इसका सौ फ़ीसद सकारात्मक असर भी हुआ है।

अपने ही दावों से पलटा पतंजलि

कोरोनिल लॉन्च के कुछ घंटे बाद ही भारत सरकार के आयुष मंत्रालय ने इस पर संज्ञान लिया और कहा कि मंत्रालय को इस संबंध में कोई जानकारी ही नहीं है। हालांकि ये भी अपने आप में विवादास्पद है कि कोई इतनी महत्वपूर्ण दवाई लॉन्च हो गई, उसका प्रचार-प्रसार भी हो गया लेकिन आयुष मंत्रालय को इसकी खबर तक न लगी।

खैर, इसके बाद आयुष मंत्रालय ने पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड को दवा का नाम और उसके घटक, सैंपल साइज़, टेस्टिंग लैब या अस्पताल जहां टेस्ट किया गया और आचार समिति की मंज़ूरी समेत दूसरी महत्वपूर्ण जानकारियां भी देने को कहा। तब तक मंत्रालय ने पतंजलि की कोरोनिल के प्रचार-प्रसार पर रोक लगा दी।

हालांकि बढ़ते विवादों के चलते 30 जून को पतंजलि अपने ही दावे से पलट गया। और कोरोना ठीक करने की बात पर यू-टर्न लेते हुए कहा कि, "हमने कोरोना किट बनाने जैसा कोई दावा कभी नहीं किया।"

इम्यूनिटी बुस्टर को तौर पर हो रही है बिक्री

एक जुलाई को पतंजलि ने एक प्रेस विज्ञप्ति में एक नया दावा किया। इसके मुताबिक़, "आयुष मंत्रालय के निर्देशानुसार दिव्य कोरोनिल टैबलेट, दिव्य श्वासरि वटी और दिव्य अणु तेल, जिसे कि स्टेट लाइसेंस अथॉरिटी, आयुर्वेद-यूनानी सर्विसेस, उत्तराखंड सरकार से निर्माण एवं वितरण करने की जो पतंजलि को अनुमति मिली हुई है, उसके अनुरूप अब हम इसे सुचारू रूप से सम्पूर्ण भारत में निष्पादित कर सकते हैं।"

बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक कोविड-19 संक्रमण से 'रोगियों को मुक्त करा देने' वाले अपने पुराने दावे को न दोहराते हुए पतंजलि ने अब ये भी बताया कि कैसे कुल 95 कोरोना मरीज़ों पर उनकी स्वेच्छा से ट्रायल किया गया, जिनमें 45 को पतंजलि की औषधि दी गई जबकि 50 को प्लेसेबो दिया गया।

विज्ञप्ति के अनुसार - "ये आयुर्वेदिक औषधियों का कोविड-19 पॉज़िटिव रोगियों पर किया गया पहला क्लीनिकल कंट्रोल ट्रायल था और अब हम इन औषधियों के मल्टीसेंट्रिक क्लीनिकल ट्रायल की दिशा में अग्रसर हैं।"

'दवा के नाम पर फ़्रॉड'

गौरतलब है कि हाल ही में बाबा रामदेव ने उद्योग संस्था एसोचैम द्वारा आयोजित कार्यक्रम ‘आत्म निर्भर भारत- वोकल फॉर लोकल’ को वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए संबोधित करते हुए दावा किया था कि कोरोनिल दवा की रोज 10 लाख पैकेट की मांग है और संस्थान केवल एक लाख की आपूर्ति कर पा रहा है। हांलाकि कोरोनिल से कोरोना ठीक करने के दावे को तो भारत सरकार ने फ़िलहाल 'ठंडे बस्ते' में डाल दिया है, साथ ही 'गहन जाँच' की बात चल रही है। लेकिन  पतंजलि ग्रुप पर इस 'दवा के नाम पर फ़्रॉड' करने के आरोप में कई एफ़आईआर भी दर्ज हो चुकी हैं।

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