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पत्थलगड़ी इलाकों में विकास : बंदूक की नोक पर...?

झारखण्ड प्रदेश स्थित खूंटी जिले के जिन जंगल इलाकों में कुछ भटके हुए, बेलगाम और गुमराह आदिवासियों द्वारा “संविधान विरोधी पत्थलगड़ी" कर जो देशद्रोह किया जा रहा था, सरकार ने 'शांतिपूर्वक' ( पुलिस बल के जरिये) उस पर काबू पा लिया हैI
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ताज़ा ख़बर है कि झारखण्ड प्रदेश स्थित खूंटी जिले के जिन जंगल इलाकों में कुछ भटके हुए, बेलगाम और गुमराह आदिवासियों द्वारा “संविधान विरोधी पत्थलगड़ी" कर जो देशद्रोह किया जा रहा था, सरकार ने ‘ शांतिपूर्वक ‘( पुलिस बल के जरिये) उस पर काबू पा लिया हैI . मुख्यमंत्री जी को इत्मीनान है कि अब वहाँ कानून का राज कायम हो गया है और ज़ल्द ही इन इलाकों में विकास की गंगा बहने लगेगी . ख़बर यह भी है प्रशासन के समझाने पर आदिवासी समुदाय के लोग ‘ बहकना - गुमराह होना और देशद्रोह ‘ छोड़कर विकास की मुख्यधारा से जुड़ने को तैयार हो गएँ हैं . इसे प्रमाणित करने के लिए चीतरामू गाँव में लोगों ने खुद से वहां की पत्थलगड़ी को उखाड़ दिया और उसके दो दिन बाद ही आनन्-फानन में वहाँ आयोजित सरकार के विकास – मेला में पुरे उत्साह के साथ शामिल हुए . इसे मीडिया के जरिये प्रमुखता के साथ पुरे राज्य के लोगों को दिखा-पढ़ाकर इत्मीनान दिलाया गया कि अब डरने की कोई बात नहीं , स्थिति नियंत्रण में है .....

 लेकिन ज़मीनी हकीक़त शायद हमेशा की तरह वहीँ दबकर रह जायेगी कि किस प्रकार से आज उन इलाकों का आम जन जीवन जो पहले से ही खस्ताहाल है ,हर कोई देशद्रोह जैसे आरोपों से बचने के लिए पुलिस बल की संगीनों के घेरे में जीने और सरकार की हाँ में हाँ मिलाने को विवश है . किसी भी समय होनेवाली अर्ध सैन्यबलों की ‘ शांतिपूर्ण पेट्रोलिंग ‘ इन गांवों में पसरे सन्नाटे को निरंतर भयावह बना देती है . दर्जनों गांवों के जिन सैंकड़ों लोगों पर पत्थलगड़ी में भाग लेने के कारण ‘ देशद्रोह के अज्ञात मुक़दमे ‘ दर्ज हैं , उसके डर से अधिकाँश लोग खेती के इस मौसम में भी अपने खेत और घरों को छोड़े हुए हैं . प्रशासन से माइक द्वारा बार – बार ये प्रचार करवाए जाने कि – लोग डरें नहीं , वापस आ जाएँ और खेती करें ... पर किसी को विश्वास नहीं हो पा रहा है . इलाके के जिन सरकारी स्कूलों को पत्थलगड़ी अभियान वालों द्वारा बंद किये जाने जैसी देशद्रोह की खबरें आयीं थीं , कोचांग और कुरुँगा गावों के उन स्कूलों में अब पुलिस कैम्प बिठा दी गयी है . उधर , चितरामू गाँव के विकास मेले में डीसी साहेब और पुलिस के आला अधिकारियों ने ख़ुशी जाहिर करते हुए कहा कि – संविधान विरोधी पत्थलगड़ी को उखाड़कर अब यह गाँव जिला प्रशासन की विकास योजना से जुड़ गया है . जिसके तहत ‘ ऑन द स्पॉट ‘ ग्रामीणों को सभी सरकारी योजनाओं का लाभ देने के लिए दनादन ‘ विकास – पत्र ‘ बंटवाया जा रहा है . इस अवसर पर गाँव के सरकारी स्कूलों के बच्चों को स्मार्ट बोर्ड से स्मार्ट करने और वर्षों से जर्जर पड़े सरकारी स्कूल के मरम्मत कराने की घोषणा भी की गयी.

सरकार और प्रशासन कि इतनी संवेदनशीलता और जवाबदेह सक्रियता शायद पहले हुई रहती तो खुद सरकार के शब्दों में , न तो यहाँ उग्रवाद फैलता और न ही आज यहाँ पत्थलगड़ी का बवेला मचता . गौर तलब है कि इस क्षेत्र के वर्तमान सांसद कड़ीया मुंडा और स्थानीय विधायक व मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा दोनों भाजपा के हैं . इन दोनों माननीय जन प्रतिनिधियों से इतना सवाल तो बनता ही है कि आखिर ऐसी स्थिति क्यों बनी कि हर चुनाव में उन्हें वोट देने वाले हाथ , आज बगावत पर आमादा हो गए ? संविधान के जिन विशेष प्रावधानों के तहत यहाँ के सभी विधायी सीट आरक्षित हैं और जिसके तहत ये दोनों माननीय संसद व विधान सभा में पंहुचे , क्या संविधान के उन्हीं विशेष प्रावधानों को लेने का अधिकार इन इलाकों के आम आदिवासियों व उनकी ग्राम सभा को है या नहीं ? जिस पत्थलगड़ी को देशद्रोह करार दिया जा रहा है , वह इन इलाकों के आदिवासियों की वर्षों से चली आ रही परम्परा है और देश के संविधान ने पांचवी अनुसूची के प्रावधानों के तहत इसे मान्यता दी है . जिसके तहत आदिवासी गांवों की ग्राम सभा को भी पारंपरिक रूप से ये मान्यता मिली हुई है कि गाँव – समाज के हितों से जुड़े विशेष निर्णयों को पत्थरों पर लिख करके गाड़ दिया जाए ताकि सभी लोग ( अंदर और बाहर के ) उसे ध्यान में रखें . ऐसा क्या हुआ कि यही विशेषाधिकार आज देशद्रोह कहा जा रहा है और बाकी समाज के लोग भी इसे मान ले रहें हैं !  

 निस्संदेह राष्ट्र के विकास में सभी समाजों व समुदायों के लोगों की भागीदारी और जवाबदेही बनती है , लेकिन क्या यह न्यायोचित है कि विकास कि वेदी पर हमेशा आदिवासी समुदाय ही चढ़ाया जाता रहे ! भले ही अबतक हुए विकास की कोई रौशानी वहाँ पंहुची ही न हो और वर्तमान के तेज रफ़्तार अत्याधुनिक विकास में इनके लिए कोई जगह न हो . पत्थलगड़ी में लिखी बातों से असहमति हो ही सकती है और यह भी संभव हो कि वे किसी को असंवैधानिक भी प्रतीत हों , किसी भी लिहाज से यह अलोकतांत्रिक नहीं कहा जा सकता . एक लोकतान्त्रिक राज – समाज और व्यवस्था में जनता अथवा समुदाय विशेष द्वारा अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठाना , उसका लोकतान्त्रिक अधिकार है . यह तो सरकारका दायित्व है कि वह अपने लोगों के सवालों को पूरी संजीदगी के साथ ले और समुचित समाधान करे . पत्थलगड़ी प्रकरण को लेकर सरकार व प्रशासन की भूमिका यही देखने में आई कि इस मुद्दे पर कोई गंभीरता दीखाने तथा किसी प्रकार का संवाद करने की बजाय हमलावर होने का रुख ही दीखा . पत्थलगड़ी से उठे सवालों का जो जवाब राज्य द्वारा बहुत पहले ही सकारात्मक ढंग से दिया जाना था , आज फिर उसी की ज़रूरत है . इस सन्दर्भ में यह सदैव सनद रखना होगा कि कोई भी विकास जनता को साथ लेकर ही सफल हो सका है न की बंदूक के बल पर ! झारखण्ड के पत्थलगड़ी प्रकरण ने हमारी शासन - व्यवस्था की उन्हीं विसंगतियों और सवालों को सामने ला खड़ा किया है , जिन्हें अबतक हमेशा हाशिये पर रखा गया था . 
 

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