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'पूर्व मुख्यमंत्री सुविधा अध्यादेश 2019’ : जनता के पैसे से अपने आराम का इंतज़ाम! 

जिस राज्य की बेरोज़गारी दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है, वहां हर बात में भ्रष्टाचार पर ज़ीरो टॉलरेंस का मुहावरा कहने वाले मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में बेहद गुपचुप तरीके से पूर्व मुख्यमंत्री सुविधा अध्यादेश 2019 पास कर दिया जाता है।
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देहरादून स्थित पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी का बंगला। फोटो साभार : बीबीसी

उत्तराखंड : जिस समय 108 एंबुलेंस सेवा के 800 कर्मचारी अपनी बेहद छोटी तनख्वाहों के साथ नौकरी पर वापस रखे जाने को लेकर आंदोलन कर रहे हैं, जिस समय शिक्षक-कर्मचारी-आशा-आंगनबाड़ी कार्यकर्ताएं सब अपने वेतन को लेकर नारे लगा रहे हैं, जहां सीमांत जिले पिथौरागढ़ के बच्चे किताबों के लिए आंदोलन कर रहे हैं, जिस राज्य की बेरोज़गारी दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है, वहां हर बात में भ्रष्टाचार पर ज़ीरो टॉलरेंस का मुहावरा कहने वाले मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में बेहद गुपचुप तरीके से पूर्व मुख्यमंत्री सुविधा अध्यादेश 2019 पास कर दिया जाता है। प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सरकार के फ़ैसलों की जानकारी देने वाले शासकीय प्रवक्ता और कैबिनेट मंत्री सरकार के इस फ़ैसले की जानकारी उस समय मीडिया को नहीं देते।

नैनीताल हाईकोर्ट में याचिका ख़ारिज

13 अगस्त को ये कैबिनेट बैठक हुई थी। इससे ठीक एक हफ्ता पहले नैनीताल हाईकोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी और विजय बहुगुणा की पुनर्विचार याचिका खारिज की थी। नैनीताल हाईकोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्रियों से बाज़ार भाव से बंगलों और अन्य सुविधाओं का किराया वसूलने के आदेश दिए थे। दोनों पूर्व मुख्यमंत्रियों ने इस बकाया राशि पर राहत की मांग करते हुए अदालत में पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी। 

नैनीताल हाईकोर्ट ने इसी वर्ष एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सरकार से सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों से उनके कार्यकाल के बाद बंगले का किराया बाज़ार दर पर वसूलने के आदेश दिये थे। जिस पर सरकार ने पूर्व मुख्यमंत्रियों को किराया वसूली का नोटिस जारी किया था। इसके साथ ही अन्य सरकारी सुविधाओं का भी बाजार दर से भुगतान करने का निर्देश दिया था। देहरादून की रूलेक संस्था के अवधेश कौशल ने ये याचिका दाखिल की थी। निशंक और बहुगुणा की ओर से अदालत को बताया गया कि उन्होंने सरकार की ओर से निर्धारित धनराशि जमा कर दी है।

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देहरादून स्थित पूर्व मुख्यमंत्री बीसी खण्डूड़ी का बंगला। फोटो साभार : अमर उजाला

किस पर कितना बकाया

पूर्व मुख्यमंत्रियों पर आवास के किराये के रूप में राज्य संपत्ति विभाग के करोड़ों रुपये बकाया हैं। सबसे ज़्यादा देनदारी 1 करोड़ 13 लाख रुपये दिवंगत एनडी तिवारी पर थी। पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी पर47.57 लाख रुपये, बीसी खण्डूड़ी पर46.59 लाख रुपये, डॉक्टर रमेश पोखरियाल निशंक पर 40.95लाख रुपये, विजय बहुगुणा पर 37.50 लाख रुपये बकाया था।

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मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत

पूर्व मुख्यमंत्री सुविधा अध्यादेश 2019

'पूर्व मुख्यमंत्री सुविधा अध्यादेश 2019’ कैबिनेट से पास हो चुका है। विधायी विभाग इसे राजभवन ले जाएगा। राज्यपाल की मंजूरी के बाद अधिसूचना जारी होगी। अगले विधानसभा सत्र में सरकार इस पर विधेयक लाएगी। विधानसभा से पास होने पर ये कानून बन जाएगा और पूर्व मुख्यमंत्रियों को जनता के पैसों पर ताउम्र सरकारी बंगला मिलेगा। इसके साथ ही नि:शुल्क चालक सहित वाहन, ओएसडी, टेलीफोन सहित अन्य सुविधाएं जनता के पैसों से दी जाएंगी।

उत्तर प्रदेश और बिहार में पूर्व मुख्यमंत्रियों ने खाली किए बंगले

जबकि इससे ठीक पहले उत्तर प्रदेश और बिहार में पूर्व मुख्यमंत्रियों से सरकारी बंगले खाली कराये गये हैं। 1 अगस्त 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्रियों से दो महीने के भीतर सरकारी बंगले खाली कराने के आदेश दिये थे। इसमें देरी करने पर बाज़ार भाव से किराया वसूल करने के आदेश भी दिए गए थे। हालांकि किसी भी पूर्व मुख्यमंत्री ने तय समय सीमा में बंगले खाली नहीं किए। चार जनवरी 2017 को उत्तर प्रदेश सरकार ने भी कानून बनाकर पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी बंगले आवंटित कराने का नियम बना दिया। मामला दोबारा सुप्रीम कोर्ट में गया। इसके बाद पांच पूर्व मुख्यमंत्रियों ने पिछले वर्ष सरकारी बंगले खाली किए। अखिलेश यादव सरकारी बंगले में तोड़फोड़ को लेकर विवादों में भी आए। मुलायम सिंह यादव, राजनाथ सिंह, कल्याण सिंह, एनडी तिवारी और मायावती को भी सरकारी बंगला छोड़ना पड़ा।

बिहार में भी पूर्व मुख्यमंत्रियों को सुविधाएं देने और जनता के पैसे लुटाने के इरादे से एक्ट लाया गया। जिसे इस वर्ष फरवरी महीने में पटना हाईकोर्ट ने गैर संवैधानिक और सरकारी पैसे का दुरुपयोग बताया। जिसके तहत पूर्व मुख्यमंत्रियों को आजीवन सरकारी बंगला, गाड़ी और कई कर्मचारियों की सुविधा मिली हुई थी। इनमें सतीश प्रसाद सिंह, डॉ. जगन्नाथ मिश्र, लालू प्रसाद, राबड़ी देवी और जीतन राम मांझी के साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी पूर्व मुख्यमंत्री की हैसियत से शामिल किया गया था। सतीश मिश्रा 1968 में मात्र पांच दिनों के लिए मुख्यमंत्री बने हुए थे और अब तक सरकारी बंगले और सुविधाओं के साथ रह रहे थे। ऐसा ही किस्सा मध्यप्रदेश का भी है। 

त्रिवेंद्र सरकार के फ़ैसले की सोशल मीडिया में आलोचना

उत्तराखंड कैबिनेट के इस फ़ैसले पर सोशल मीडिया में भी तीखी प्रतिक्रिया हो रही है। पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी सुविधाएं दिए जाने के प्रस्ताव के पास होने पर उत्तराखंड महिला मंच की अध्यक्ष कमला पंत अपने फेसबुक पोस्ट में लिखती हैं “...हद होती है। चोरी करो, लूटो और अगर न्यायालय माल लौटाने को कहे तो कानून बना दो। इनकी चोरी इनकी लूट जायज हो गई। जब चाहो जितना वेतन भत्ता बढ़ा लो। सुविधाएं बढ़ा लो। ये मंत्री लोग और अपने को जन प्रतिनिधि कहने वाले, अपने फायदे के लिए कुछ भी कर लें। क्या संविधान इन्हें, इसकी इजाज़त देता है या फिर यह संविधान से ऊपर हैं? इसे कौन बताएगा? इनकी लूट और मनमानी को नियंत्रित करने का क्या कोई उपाय नहीं? ”

वरिष्ठ पत्रकार राजीव नयन बहुगुणा लिखते हैं कि “घोर आपत्तिजनक है कि सरकार ने राज्य के पूर्व मुख्यमंत्रियों की अय्याशी के लिए चोर दरवाज़े से रास्ता निकाला है। अदालत ने इनकी सुविधाओं को फिजूल खर्ची मानते हुए रोक लगा दी थी। अब अध्यादेश लाकर इनका गाड़ी, घोड़ा, कोठी बंगला, नौकर-चाकर की सुविधा बहाल की जा रही। एक नए, छोटे और साधन विहीन राज्य में ये कवायद आपत्तिजनक और अश्लील है। राज्य की छाती पर अभी छह पूर्व मुख्यमंत्री दनदना रहे हैं। अपवाद को छोड़ कोई मुख्यमंत्री ऐसा नहीं हुआ, जिसने राज्य को लूट कर अरबों रूपये न बनाये हों। इनके पास साधन संपन्नता की कोई कमी नहीं। फिर भी लूटपाट से मन नहीं भरता। आने वाले समय में इस राज्य में दर्जनों पूर्व मुख्यमंत्री होंगे, जो बेरोज़गार युवकों का हक़ छीन कर ऐश कर रहे होंगे। समाज प्रतिरोध करे।”

राज्य के नौजवान भी इस फ़ैसले से क्षुब्ध हैं। प्रदीप रवांल्टा गुस्से और व्यंग्य में कहते हैं “बेचारे पूर्व सीएम बेहद गरीबी में जिये। उनके पास अन्न का एक दाना नहीं। दाने-दाने को मोहताज हैं...। जब से नेता बने। चटाई पर सो रहे हैं। लोगों से मांग-मांग कर खा रहे हैं। किसी-किसी के पास तो दिल्ली, देहरादून, गोवा, मुंबई, नैनीताल, अल्मोड़ा...कहीं भी सिर छुपाने तक की जगह तक नहीं है। कार तो उनमें से किसी ने देखी ही नहीं। बस सरकारी कार का ही आनंद लिया है, जीवनभर। उनकी अपने खाने की तो आदत ही नहीं। सरकार का खाया है और सरकार का ही खाते रहेंगे। गाड़ी-घोड़ा भी सरकार का ही चलाते रहेंगे।"

जो राज्य आपदाओं से निपटना नहीं सीख सका है, अलग राज्य बनाने के लिए लंबी लड़ाई लड़ने वाले आंदोलनकारी जहां और अधिक नाराज़ हो गए हैं, शिक्षा-स्वास्थ्य सेवाएं जहां चौपट हैं, नौकरियां नहीं हैं, खेती चौपट है, जहां नेता पहाड़ नहीं चढ़ते, वे मुख्यमंत्री बनने के बाद पूरी ज़िंदगी सरकारी आवास और सुविधाएं चाहते हैं।

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