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"फ़र्गुसन में हम आकाश तक हिला देंगे"

“जब तक न्याय टलता रहेगा, हम इस सामाजिक आक्रोश की गहरी रात के दरवाज़े पे खड़े मिलेंगे”, यह बात मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने 14 मार्च 1968 को दिए एक भाषण में कही थी’। उसके तीन हफ्ते बाद ही उनकी हत्या कर दी गई। अगस्त महीने में की गई माइकल ब्राउन की हत्या के बाद फ़र्गुसन, मिसौरी और उसके आस पास के इलाकों में अभी तक आक्रोश फैला हुआ है। पिछले सोमवार की रात को सेंट लुइस के अटॉर्नी रोबर्ट मक्कुल्लोच की इस घोषणा, कि ब्राउन की हत्या के आरोपी अधिकारी डैरेन विल्सन पर कोई मुक़दमा नहीं चलेगा,ने इस क्षेत्र में और सामाजिक उन्माद पैदा करने का काम किया है। अभियोग पक्ष के वकील द्वारा की गई प्रेस कांफ्रेंस में डैरेन विल्सन के चरित्र निर्माण और माइकल ब्राउन को दोषी ठहराने के लिए काफी मेहनत की गई।

“सामाजिक आक्रोश उन पीड़ितों की आवाज़ है जिन्हें कभी सुना नहीं गया”। डॉ किंग ने अपने एक भाषण में कहा था।

                                                                                                                     

सौजन्य:Rbrammer/flickr/cc

मक्कुल्लोच की घोषणा के बाद ही, फ़र्गुसन में तनाव भड़क गया। इमारतों को आग लगाकर ख़ाक में मिला दिया गया। अनेक कारें राख में बदल गईं। दंगा निरोधक दस्ते ने “ प्रदर्शनकारियों से निपटने” के कानूनों को ताक पर रखते हुए उनपर आसूं गैस के गोले बरसाए। पूरी रात कई बार गोली चलने की आवाज़ आती रही।

फ़र्गुसन में उस रात प्रदर्शन करते हुए एक युवक ने कहा कि, “अश्वेतों की ज़िन्दगी यहाँ कोई अहमियत नहीं रखती”। आसूं गैस पास लगी आग के कारण उठ रहे धुंए में मिल गई थी।  कटरीना रेडमोन नामक एक प्रदर्शनकारी ने अपने गुस्से को जाहिर करते हुए कहा कि, “डैरेन विल्सन ने एक निहत्थे अश्वेत युवक की हत्या की है। इस हत्या के पीछे कोई वजह नहीं है। एक इंसान की हत्या कर दी गई और आरोपी खुले में घूम रहा है। हमें जवाब चाहिए। ऐसा लगता है कि अगर आपके पास पुलिस का बिल्ला है तो आप किसी की भी हत्या करके बच सकते हैं।

मै फ़र्गुसन पुलिस स्टेशन के बाहर प्रदर्शनकारियों से बात कर रहा था। उसके चारो तरफ दंगा निरोधी दस्ता तैनात था। हम उस जगह से ज्यादा दूर नहीं था जहाँ माइकल ब्राउन को डैरेन विल्सन ने 6 बार गोली मारी थी। उसकी लाश अगस्त के उस गरम दिन में  चार घंटे तक सड़क पर पड़ी थी और खून लगातार बह रहा था। डरे सहमे दोस्त और पड़ोसी उसे देख रहे थे। ब्राउन की हत्या के बाद जब विरोध प्रदर्शन तेज़ हो गए तो पुलिस ने यहाँ शसक्त हथियारों  के ज़रिये आतंक का एक माहौल पैदा कर दिया। इन हथियारों को देख कर पेंटागन की वह नीति साफ़ हो जाती है जिसके तहत वह इराक और अफगानिस्तान में बचे हुए हथियारों को अपने और विश्व के अनेक शहरों में पहुंचा रहा है। 9/11 के बाद से 5 बिलियन डॉलर से अधिक मूल्य के हथियार अनेक स्थानों पर पहुंचाए गए हैं। अमरीका के पास अब एक और सेना है और वह है उनकी स्थानीय पुलिस।  

फ़र्गुसन के उस इलाके में जहाँ श्वेत रहते थे, दंगा निरोधी पुलिस और नेशनल गार्ड के सिपाही पहरेदारी कर रहे थे और दूसरी तरफ अश्वेतों के कॉलोनी में आग की ऊँची लपटें उठ रही थी। वहां एक भी पुलिस वाला नहीं था। मिसौरी के गवर्नर जे निक्सन ने इस फैसले के आने से एक हफ्ते पहले ही आपातकाल की घोषणा कर दी थी पर उसके बावजूद नेशनल गार्ड का एक भी सिपाही उस इलाके में नहीं दिखा। दर्ज़नो दुकाने आगे के हवाले कर दी गई। पश्चिम फ्लोरिसेंट एवेनु को बिना सुरक्षा के क्यों छोड़ा गया? क्या राज्य चाहता था की फ़र्गुसन जले?

1968 में “द अदर अमेरिका”नामक भाषण में डॉ. किंग ने उस आक्रोश संबोधित किया था जो 1967 में भड़की उस हिंसा का परिणाम था जिसके शिकार न्यूआर्क, न्यू जर्सी, और अन्य शहर हुए थे । इन शहरों  में मुख्यतः अश्वेत रहते थे। किंग ने कहा था कि, “ मेरे लिए यह पर्याप्त नहीं की मै आपके सामने खड़ा होकर भाषण दूँ और दंगों की निंदा करूँ। मेरे लिए यह तब तक गलत होगा जब तक मै हमारे समाज की असहनीय और अनिश्चित परिस्थितियों की निंदा न करूँ। यही परिस्थितियां इंसान को मजबूर करती हैं कि वह अपनी बात शासन तक पहुचाने के लिए हिंसा का प्रयोग करे। आज मुझे कहना पड़ेगा कि सामाजिक आक्रोश उन पीड़ितों की आवाज़ है जिन्हें कभी सुना नहीं गया। “

यह आग उन अक्षुत पीड़ित व्यक्तियों ने नहीं लगाई है जो पिछले 100 सालों से फ़र्गुसन की सड़कों पर लड़ रहे हैं। वे न्याय की मांग कर रहे हैं। उनके आवाज़ को और बुलंद करते हुए विश्व के अनेक हिस्सों में लोग एकत्रित होकर इस रंगभेद के खिलाफ एक बड़ा जन आन्दोलन खड़ा कर रहे हैं।

दंगा पुलिस का सामना करते हुए एक युवक ने कहा कि हम आकाश तक हिला देंगे”। उसकी सांस रात की ठंडी हवा में देखी जा सकती थी। वह ठण्ड में ठिठुर रहा था पर उसका वहां से जाने का कोई इरादा नहीं था। अन्याय से फायदा उठाने वाले लोगो को इस आग से डरना चाहिए , जली हुई इमारतों से नहीं।

इस कॉलम के लिए डेनिस मोय्निहन ने शोध किया है।

सौजन्य:commondreams.org

(अनुवाद- प्रांजल)

डिस्क्लेमर:- उपर्युक्त लेख मे व्यक्त किए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं, और आवश्यक तौर पर न्यूज़क्लिक के विचारो को नहीं दर्शाते ।

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