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महाराष्ट्र: औरंगाबाद और उस्मानाबाद के नाम बदलने के पीछे की राजनीति क्या है?

जाते-जाते उद्धव ठाकरे ने अपना पुराना स्टैंड कायम रखते हुए औरंगाबाद और उस्मानाबाद के नाम बदल दिए, शायद वो अपने बागियों और राज्य की जनता को संदेश देना चाह रहे थे कि वो अब भी हिंदुत्व के साथ हैं।
 उद्धव ठाकरे

महाराष्ट्र के सियासी उथल-पुथल के बीच महाराष्ट्र की महाविकास अघाड़ी सरकार ने जाते-जाते राज्य के दो शहरों और एक एयरपोर्ट का नाम बदल दिया है। औरंगाबाद अब संभाजी नगर और उस्मानाबाद धाराशिव के नाम से जाने जाएंगे। इसके अलावा नवी मुंबई एयरपोर्ट का नाम बदल कर अब डीबी पाटिल एयरपोर्ट कर दिया गया है। हालांकि नाम बदले जाने को लेकर जहां कल तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे उद्धव ठाकरे हमेशा मुखर रहे, वहीं गठबंधन सरकार का हिस्सा रही कांग्रेस लगातार इसका विरोध करती रही है।

बता दें कि अरसे से महाराष्ट्र के कुछ राजनीतिक दल इन शहरों के नाम बदलने की मांग करते रहे हैं। इन दलों में उद्धव ठाकरे की पार्टी शिवसेना सबसे प्रमुख रही है। शिवसेना संस्थापक बाला साहेब ठाकरे ने सबसे पहले 1988 में औरंगाबाद का नाम संभाजी नगर रखने का प्रस्ताव रखा था। और शायद यही कारण है कि उद्धव ठाकरे अपने बयानों में लगातार औरंगाबाद को 'संभाजीनगर' कहते रहे हैं। उस्मानाबाद का नाम भी धाराशिव की मांग शिवसेना ने ही की थी। ऐसे में 30 जून, बुधवार शाम जैसे ही सुप्रीम कोर्ट ने ये फ़ैसला दिया कि महाराष्ट्र विधानसभा में गवर्नर के आदेश के अनुसार गुरुवार 1 जुलाई को फ़्लोर टेस्ट करवाया जाए, वैसे ही राज्य की कैबिनेट ने इन शहरों के नाम बदलने पर मुहर लगा दी।

क्या है पूरा मामला?

औरंगाबाद बीते लंबे समय से नाम बदलने को लेकर सुर्खियों में था। हाल ही में औरंगाबाद शहर में 'लव औरंगाबाद' और 'सुपर संभाजीनगर' लिखे साइन-बोर्ड जगह-जगह देखने को मिले थे। मालूम हो कि छत्रपति संभाजी महाराज एक मराठा योद्धा थे जबकि औरंगाबाद का नाम मुगल बादशाह औरंगज़ेब के नाम पर रखा गया था। औरंगाबाद में सबसे ज़्यादा हिन्दुओं की आबादी है, लेकिन मुस्लिम आबादी भी यहां कम नहीं है। शायद यही वजह है कि राजनीतिक मक़सद से इसका नाम बदलने का मुद्दा ज़ोर-शोर से उछाला जाता रहा है।

इस मामले पर अब तक गठबंधन सरकार चला रहीं कांग्रेस और शिवसेना में मतभेद थे। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे जहां औरंगाबाद के नाम बदलने को लेकर मुखर रहे वहीं कांग्रेस ऐसे किसी भी क़दम का पुरज़ोर विरोध करने की बात करती रही। शिवसेना का इस मामले में स्टैंड साफ था कि गठबंधन सरकार धर्मनिरपेक्षता के एजेंडे पर काम कर रही है और मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब इस खांचे में फिट नहीं बैठते। वे धर्मनिरपेक्ष नहीं थे। हालांकि कांग्रेस पार्टी औरंगाबाद के नाम बदलने पर कहना था कि ये मुद्दा गठबंधन सरकार के लिए प्राथमिकता का नहीं है। लेकिन कांग्रेस पार्टी नाम बदलने की राजनीति के ख़िलाफ़ है जिससे समाज में दरार पैदा होने की संभावना है।

इतिहास के जानकारों की मानें तो एक वक़्त में औरंगाबाद दक्कन में सत्ता का केंद्र हुआ करता था। यह कई साम्राज्यों की राजधानी भी रह चुका है और यह शहर अपने बहुरंगी सांस्कृतिक लोकाचार के लिए जाना जाता हैं। ये एक व्यापार मार्ग पर बसा अहम क्षेत्र था, जो व्यापारिक रूट उज्जैन-महिष्मति-बुरहानपुर-अजंता-भोकारदन-राजतदाग-प्रतिष्ठान-टेर से होकर गुजरता था। दरअसल औरंगाबाद का इतिहास यादव वंश से जब मुगलों के हाथ में गया तो ये शहर भी लाहौर, दिल्ली और बुरहानपुर जितना ही महत्वपूर्ण हो गया। चूंकी मोहम्मद बिन तुगलक जब अपनी राजधानी को दिल्ली से दौलताबाद ले जाना चाहता था इसलिए उन्होंने रास्ते में कई जगहों पर सराय, कुएं और मस्जिदें बनवाईं। इसी में से एक जगह औरंगाबाद भी बनी।

औरंगाबाद के कई नाम

पंजाब विश्वविद्यालय में इतिहास की प्रफोसर रहीं अनिता कौशल न्यूज़क्लिक को बताती हैं कि इतिहास की किताबों के मुताबिक औरंगाबाद का नाम सबसे पहले फ़तेहनगर रखा गया था। यह नाम मलिक अंबर ने इस शहर को दिया था। लेकिन मुग़ल बादशाह शाहजहाँ ने 163 6 में औरंगजे़ब को दक्कन का सूबेदार बना दिया, जिसके बाद उस समय इस शहर को दोबारा नाम 'खुजिस्ता बुनियाद' दिया गया। 1657 के बाद खुजिस्ता बुनियाद का नाम औरंगाबाद पड़ गया।

कई खबरों के मुताबिक जब हैदराबाद के निज़ाम ने अपने शासन की नींव रखी, तो औरंगाबाद को काफ़ी अहमियत मिली। हालांकि निज़ाम की राजधानी तो हैदराबाद ही थी, लेकिन औरंगाबाद का सम्मान उप-राजधानी के तौर पर बरक़रार रहा। चूंकि निज़ाम के शासन में यह उनके राज्य की सरहद पर मौजूद सबसे बड़ा और अहम शहर था, इसलिए इसका दर्जा भी ख़ास था। जिसे लेकर कई बार पार्टियां आमने-सामने रही हैं।

उस्मानाबाद का नाम क्यों बदला?

महाराष्ट्र का दूसरा जिला जिसका नाम बदला गया है, वो उस्मानाबाद है। कहा जाता है कि जब महाराष्ट्र का मराठवाड़ा क्षेत्र, हैदराबाद के निज़ाम के कब्ज़े में था तो कई प्राचीन शहरों के नाम बदल दिए गए, धाराशिव भी उन्हीं में शामिल था। ऐसे में दशकों से उस्मानाबाद का नाम बदलने को लेकर शिवसेना पैरवी करती रही है। नब्बे के दशक में पार्टी के मुख्यमंत्री मनोहर जोशी भी इसका नाम धाराशिव करने के पक्ष में थे। खबरों की मानें तो धाराशिव ही उस्मानाबाद का पुराना नाम है और केवल प्रशासनिक कार्यों में ही इसे उस्मानाबाद कहा जाता है। यहां पुराने गांव-देहात में अब भी लोग इसे धाराशिव ही कहते हैं।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक धाराशिव के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं। स्कंद पुराण के अनुसार इस गांव में धरासुर नाम का एक असुर रहता था। उसके नाम पर, इस स्थान को धरासुर के नाम से जाना जाता था। धरासुर ने भगवान शिव की पूजा की और उन्हें भगवान से अपार शक्ति का उपहार मिला। कहानी है कि वरदान मिलने के बाद धरासुर लोगों को प्रताड़ित करने लगा। इसके बाद देवी सरस्वती ने धरासुर का वध किया। इसी वजह से सरस्वती को 'धरासुरमर्दिनी' भी कहा जाता है।

'धाराशिव से उस्मानाबाद' पुस्तक में वरिष्ठ पत्रकार और लेखक भरत गजेंद्रगडकर ने उल्लेख किया है कि उस समय के ताम्रपत्रों में धाराशिव नाम मिला है। धाराशिव नाम का उल्लेख सरकार द्वारा 1972 में प्रकाशित उस्मानाबाद जिले के पहले गैज़ेटियर में भी है। भरत गजेंद्रगडकर किताब में लिखते हैं कि हैदराबाद के निज़ाम, मीर उस्मान अली खान के नाम से शहर का नाम उस्मानाबाद कैसे पड़ा, इस बारे में बहुत मतभेद है। शहर की नगर परिषद की संशोधित शहरी विकास योजना के अध्याय एक में, यह उल्लेख किया गया है कि उस्मान अली ख़ान ने 1900 में धाराशिव का नाम बदलकर उस्मानाबाद कर दिया था।

दोनों शहरों की कई कहानियां और किस्से

हालांकि इन दोनों शहरों की कई कहानियां और किस्से हैं, जो कभी एक-दूसरे से मेल खाते हैं, तो कभी बिल्कुल जुदा दिखते हैं। लेकिन हाल की घटनाओं को देखें तो फिलहाल नाम बदलने के पीछे इतिहास से ज्यादा वर्तमान हावी था। एक ओर उद्धव सरकार की कुर्सी जा रही थी, तो वहीं दूसरी ओर उन पर हिंदुत्व की विचारधारा से भटकने के आरोप भी लग रहे थे। ऐसे में माना जा रहा है कि वो इन जगहों का नाम बदलकर अपने बागियों और राज्य की जनता को संदेश देना चाह रहे थे कि वो अब भी हिंदुत्व के साथ हैं। बहरहाल, सरकार के आखिरी दिन उद्धव ठाकरे ने अपना पुराना स्टैंड कायम रखते हुए औरंगाबाद और उस्मानाबाद के नाम बदल दिए, जाहिर है महाराष्ट्र को लेकर आने वाले दिनों में और भी महानाटक देखने को मिल सकते हैं।

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