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"हसदेव अरण्य स्थानीय मुद्दा नहीं, बल्कि आदिवासियों के अस्तित्व का सवाल"

हसदेव अरण्य के आदिवासी अपने जंगल, जीवन, आजीविका और पहचान को बचाने के लिए एक दशक से कर रहे हैं सघंर्ष, दिल्ली में हुई प्रेस वार्ता।
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फ्रेंड्स ऑफ हसदेव अरण्य द्वारा (बधुवार) 25 मई को दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में प्रेस वार्ता आयोजित की और सरकारों पर हसदेव जंगल और पर्यावरण को नष्ट करने और आदिवासियों के आजीविका छीनने का आरोप लगाया। छत्तीसगढ़ के सरगुजा, सूरजपुर और कोरबा जिलों में विशाल क्षेत्र में फैले हसदेव अरण्य में कोयला खनन का मुद्दा देश ही नहीं अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठ रहा है। हाल ही में, लंदन की कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के छात्रों ने ये मुद्दा कांग्रेस के नेता राहुल गाँधी के सामने उठया और इसके खिलाफ अपना विरोध भी जताया। राहुल गाँधी लंदन के कैंब्रिज विश्विद्द्यालय में इंडिया @75 के अवसर पर कार्यक्रम में हिस्सा ले रहे थे। इसी दौरान एक छात्र ने राहुल से पूछा कि 2015 में आपने हसदेव अरण्य क्षेत्र में आदिवासियों से कहा था कि वे वह उनके अधिकारों की रक्षा के लिए और कोयला खनन के खिलाफ उनके साथ खड़े रहेंगे। अब जब छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है, वनों की कटाई और खदानों के विस्तार की अनुमति कैसे मिल रही है।

इसके जवाब में राहुल गांधी ने कहा कि वे इस मुद्दे पर पार्टी के भीतर ही बात कर रहे हैं। जल्दी ही इसका नतीजा सामने आएगा। हालाँकि उन्हें बताना चाहिए कि अभी तक इसका हल क्यों नहीं निकला? क्या उनका इतनाभर कह देना कि वो इस नीति से सहमत नहीं है, वो काफ़ी है ? ऐसे कई सवाल हैं जो आदिवासी समाज कांग्रेस की राज्य सरकार और बीजेपी की केंद्र सरकार से कर रहा है।

इसी सिलसिले में आज यानी बुधवार की प्रेस वार्ता में वक्ताओं ने पानी बात रखी। इस वार्ता को छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के नेता आलोक शुक्ला, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर अपर्वाूर्वानदं, पर्यावरण शोधकर्ता कांची कोहली, पीयूसीएल की कविता श्रीवास्तव समस्त आदिवासी समूह के डॉ. जितेंद्र मीणा, अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव और संयुक्त किसान मोर्चा के नेता हन्नान मोल्ला और एनएपीएम के नेता राजेंद्र रवि ने संबोधित किया। वार्ता की शुरुआत हसदेव के पर एक छोटी फिल्म से हुई।

प्रेस वार्ता का संचालन कर रही कविता श्रीवास्तव ने वार्ता की शरुुआत करते हुए कहा कि राजस्थान सरकार की तरफ से लगातार राज्य में ब्लकै आउट का खतरा दिखाकर हसदेव में कोयला खनन जल्द से जल्द शरूु करने के लिए दबाव डाला जा रहा है। एक तरफ तो राजस्थान सरकार ने बिजली की कमी को लेकर हल्ला मचा रखा है, वहीं बिजली की उनकी नीति कहती है कि कोयले से बनी बिजली बहुत समय तक नहीं चल सकती इसलिए नए नवीकरणीय (renewable) तरीकों से बिजली उत्पादन किए जाने की ज़रूरत है। इसके बाद भी हसदेव में कोयला खनन कर उससे बिजली बनाने पर अड़ी राजस्थान सरकार का रवैया सरकार की नीतियों पर एक बड़ा सवाल खड़ा कर देता है।

हसदेव में खनन के खिलाफ चल रहे सघंर्ष के साथ शुरुआत से ही जड़ुे आलोक शुक्ला ने बताया कि हसदेव के पर्यावरण को बचाने के लिए राज्य सरकार ने भी माना था कि यहाँ खनन नहीं होना चाहिए। साथ में 5वीं अनुसूची के तहत हसदेव के जंगलों पर संवैधानिक हक़ आदिवासियों का है। इन दोनों महत्वपूर्ण विषयों को दरकिनार करते हुये पूंजीपतियों के मुनाफ़े के लिए खनन की स्वीकृति दी जा रही है। हसदेव में कोयला खनन के मुद्दे पर विस्तार से अपनी बात रखते हुए आलोक ने बताया कि एक दशक के लंबे विरोध के बावजूद , छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा दो खनन परियोजनाओं को जिस प्रक्रिया का उपयोग करके मंजूरी दी गई है, स्थानीय ग्रामीणों का आरोप है कि वह प्रक्रिया फ़र्ज़ी /जाली ग्राम सभा प्रस्ताव, और उनके वन अधिकार पट्टों के रद्दीकरण, अवैध भूमि अधिग्रहण और राज्य प्रशासन के दबाव जैसे गंभीर अनियमितताओं से ग्रस्त हैं। ये ग्रामीण पिछले तीन सालों से इस फ़र्ज़ी ग्राम सभा मामले की जांच की मांग कर रहे थे, और यहाँ तक कि 300 किलोमीटर की पदयात्रा (पैदल यात्रा) करके मुख्यमंत्री और राज्यपाल से भी मुलाकात कर जांच की मांग की गई थी। हालांकि, इस लंबित जाँच के बावजूद भी ताज़ा मंजूरी दे दी गई है।

आलोक शुक्ला ने आगे बताया कि इन दो मंजूरियों के कारण, 6,500 एकड़ से अधिक सुंदर प्राचीन जंगलों में 4.5 लाख से अधिक पेड़ कटने की संभावना है। खबर यह भी है कि पर्यावरणविदों, युवाओं और नागर क समाज द्वारा व्यापक विरोध के बावजूद एक तीसरी खनन परियोजना - के एक्सटेंशन - को मंजूरी दी जा रही है, जिससे कई लाख और पेड़ों को काटा जाएगा। कुल मिलाकर, ये परियोजनाएँ इस समृद्ध , प्राचीन पारिस्थितिक तंत्र पर कहर ढाएँगी। 'छत्तीसगढ़ के फेफड़े के रूप में जाने जाते हसदेव अरण्य के जंगल मध्य भारत में सबसे बड़े अक्षुण्ण घने वन क्षेत्रों में से एक हैं, जिसमें पूरे वर्ष में एक महत्वपूर्ण संख्या में हाथी की उपस्थिति रहती है। वन्यजीवों की आठ अन्य गंभीर रूप से लुप्त प्रजातियां, जसै बाघ, स्लौथ भालू , तेंदुआ, आदि और 450 से अधिक दर्लुभ प्रजाति की वनस्पति और जीव इन जंगलों में पाए जाते हैं। हसदेव अरण्य के जंगल हसदेव नदी (महानदी की सबसे बड़ी सहायक नदी) और बांगो बांध का जलग्रहण क्षेत्र हैं, जो बारहमासी नदी के प्रवाह के लिए महत्वपूर्ण हैं, और छत्तीसगढ़ के "चावल-कटोरा" राज्य में - 3 लाख हेक्टेयर डबल - फसल भमिू की सिंचाई में महत्त्वपर्णू भमिूका निभाते हैं।

आलोक शुक्ला की बात में आगे जोड़ते हुए कांची कोहली ने कहा कि यह मुद्दा सिर्फ हसदेव का नहीं है। पर्यावरण के नज़रिये से ये स्थानीय और देश स्तरीय मुद्दा है। साथ में यह एक राजनतिैक मुद्दा भी है। एक जगह सरकार ने माना कि यह हाथी के लिए इलाका है, स्वीकृति के समय बोला गया कि हाथी कभी-कभी आता है। खनन के लिए स्वीकृति दिए जाने से पहले सरकार की तरफ से यहाँ के पानी, जंगल, स्थानीय आदि वासी जनता, उनके व्यवसाय, इन सब के ऊपर अभी तक कोई शोध नहीं किया गया है। भले ही हसदेव में खनन को क़ानूनी रूप से स्वीकृति दे दी जाए लेकिन यहाँ के लोगों, समाज और पर्यावरण के नज़रिये से इसे कभी भी जायज़ नहीं ठहराया जा सकता।

हसदेव के मुद्दे पर अपनी बात रखते हुए हन्नान मौल्ला ने कहा कि हसदेव में खनन के खिलाफ लड़ाई पिछले एक दशक से चल रही है, और संभव है कि यह आने वाले दशकों में भी चलती रहे। लेकिन हम हार नहीं मान सकते क्योंकि हम हारे तो हमारे साथ हक, संविधान और इंसानियत, यह तीनों भी साथ में हारेंगी। जल, जंगल, ज़मीन, सीमित हैं, यह दोबारा पैदा नहीं होंगे। भमिू अधिकार आंदोलन ने तय किया है कि पहले रायपुर और फिर राष्ट्रीय स्तर पर दिल्ली में एक सम्मेलन किया जाएगा।

राजेंद्र रवि ने अपनी बात रखते हुए कहा कि हसदेव में खनन के लिए जिम्मेदार दोनों ही राज्यों में कांग्रेस की सरकार है। वह पार्टी भाजपा पर पूंजीपतियों को मदद करने का आरोप लगाती है; यहाँ कांग्रेस का दोगलापन दिखता है। दिल्ली और देश के चार कोनों में विरोध प्रदर्शन करने से भूअधिग्रहण अध्यादेश के मुद्दे पर जो एक सरकार को हराया गया, वह बस शुरुआत थी, अब उस काम को आगे बढ़ाने की ज़रूरत है।

प्रो. अपूर्वानंद ने कहा कि पहली बात तो यह कि हसदेव का मुद्दा कोई स्थानीय मुद्दा नहीं है। दूसरा, अगर यह स्थानीय मुद्दा भी है तो भी हमें उसके साथ जुड़ने की ज़रूरत है। अगर राहुल गाँधी कहते हैं कि वह इस नीति से सहमत नहीं हैं, तो उन्हें इस पर कोई कदम उठाना होगा। अगर ऑस्ट्रेलिया के लोग आज तक हमारे देश के एक पूंजीपति का विरोध कर सकते हैं, तो हमें भी करना होगा। हमारा कर्तव्य अब यह है कि ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को इस मुद्दे पर जागरूक करें।

डॉ. जीतेंद्र मीणा ने आदिवासी समुदाय और जंगल के संबंध को समझाते हुए कहा कि जंगल और आदिवासी की बसाहट एक दसूरे के बिना नहीं है। सरकारें दुनियाभर में डेवेलपमेंट के नाम पर आदिवासियों की धरती पर कब्जा कर लेती है। वह कहते हैं कि आदिवासी पढ़े-लिखे नहीं हैं, उन्हें आधुनिक बनाने के नाम पर उनसे उनके जंगल, उनकी ज़मीन को छीन लिया गया है। छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य सहित देश के विभिन्न इलाकों में विकास के नाम पर संसाधनों की लूट के खिलाफ  संघर्षरत सभी आदिवासी समुदायों के साथ हम हर वक्त खड़े हैं।

हसदेव अरण्य के संघर्ष में स्थानीय समदुायों की मुख्य मांगें ये हैं:

● हसदेव अरण्य क्षेत्र में सभी कोयला खनन परियोजनाओं को तत्काल प्रभाव से रद्द करना

● कोल बियरिगं एरिया एक्ट 1957 के तहत ग्राम सभाओं से पूर्व सहमति लिए बिना की गई सभी भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही को तुरंत वापस ले लिया जाए

● परसा कोयला ब्लॉक के पर्यावरण और वन स्वीकृति (ईसी/एफसी) को रद्द करना; "फर्जी ग्राम सभा सहमति " के लिए सम्बधिंत कंपनी और अधिकारियों के खिलाफ तत्काल प्राथमिकी कार्रवाई

● भूमि अधिग्रहण और पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में किसी भी खनन या अन्य परियोजनाओं के आवंटन से पहले ग्राम सभाओं से "पूर्व सहमति " का कार्यान्वयन

● घाटबर्रा गांव के सामुदायिक क वन अधिकार की बहाली, जिसे अवैध रूप से रद्द कर दिया गया है; हसदेव अरण्य में सभी सामुदायिक वन संसाधन अधिकारों और व्यक्तिगत वन अधिकार पट्टों को मान्यता

● पेसा अधिनियम 1996 के सभी प्रावधानों का कार्यान्वयन।

पूरी प्रेस वार्ता यहाँ देखिए

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