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दिल्ली : पत्रकारों की गिरफ़्तारी और पत्रकारिता पर हमले के ख़िलाफ़ वाम दलों का प्रदर्शन

3 अक्टूबर के बाद से देश के साथ साथ विदेश में भी भारत में प्रत्रकारिता की स्थिति पर लोग सवाल उठा रहे हैं। दिल्ली युनियन ऑफ़ जर्नलिस्ट्स के एसके पांडे ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा, "हम सबने आपातकाल देखा है, लेकिन यह अघोषित आपातकाल है।
left parties protest

पिछले 1 हफ़्ते से देश की पत्रकारिता और पत्रकारों की आज़ादी सवालों के घेरे में है। मोदी सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि विभिन्न एजेंसियों का सहारा लेकर पत्रकारों पर हमले किये जा रहे हैं। इस सिलसिले में 10 अक्टूबर को दिल्ली के जंतर मंतर पर वामपंथी पार्टियों ने एक विरोध प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन में मोदी सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों पर हमले बंद करने की मांग की गई। साथ ही न्यूज़क्लिक के एडिटर इन चीफ़ प्रबीर पुरकायस्थ और एचआर हेड अमित चक्रवर्ती को रिहा करने, उनपर लगे यूएपीए को रद्द करने की मांग भी की गई।

इस प्रदर्शन में सीपीआई-एम, सीपीआई, सीपीआई-एमएल, आरएसपी, एआईएफबी और सीजीपीआई जैसे संगठन शामिल रहे। सीपीआई-एम की पोलित ब्यूरो सदस्य वृंदा करात ने मंच पर बोलते हुए कहा, "पत्रकारों की गिरफ़्तारी केंद्र में आरएसएस-भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार के निर्देश पर एक साजिश है। इन पत्रकारों के खिलाफ ईडी-सीबीआई-आईबी पिछले तीन साल से जाँच कर रही थी और उन्हें कोई सबूत भी नहीं मिला। ईडी के केस में दिल्ली उच्च न्यायालय ने इन पत्रकारों की गिरफ़्तारी पर रोक लगाई हुई थी जिसपर अंतिम सुनवाई 9 से 11 अक्टूबर को होनी थी। ऐसे में केन्द्रीय गृह मंत्रालय के नेतृत्व वाली दिल्ली पुलिस के द्वारा यूएपीए जैसी गंभीर धाराओं में नए झूठे केस बनाकर इन पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया। उन्होंने कहा कि पत्रकारों की गिरफ़्तारियों के ख़िलाफ़ देशव्यापी विरोध प्रदर्शन ने न्यूज़क्लिक के ख़िलाफ़ झूठे सरकारी प्रचार को नकारने का काम किया है।"

इस प्रदर्शन में कई पत्रकार भी शामिल हुए। आपको बता दें कि 3 अक्टूबर के बाद से देश के साथ साथ विदेश में भी भारत में प्रत्रकारिता की स्थिति पर लोग सवाल उठा रहे हैं। दिल्ली युनियन ऑफ़ जर्नलिस्ट्स के एसके पांडे ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा, "हम सबने आपातकाल देखा है, लेकिन यह अघोषित आपातकाल है। जिसमें एक एक करके पूरी स्वतंत्र पत्रकारिता को ख़त्म करके सिर्फ़ एक पत्रकारिता ज़िंदा रखनी है वो है गोदी मीडिया।"

यह भी देखें : Ground Report: Independent Journalism पर हमले के ख़िलाफ़ वामपंथी दलों का प्रदर्शन |


सीपीआई(एम) की सहबा फ़ारूक़ी ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा, "यह कोई नै बात नहीं, ऐसा था कि जैसे इंतज़ार था कि यह हमले कब होंगे, क्यूंकि इस सरकार का यही तरीक़ा रहा है। हमने देखा है कि जो भी लोग सवाल उठाते हैं, चाहे वो कप्पन हों जिन्होंने सवाल उठाया चाहे वो मनदीप पुनिया हों जो भी सवाल उठता है इनके लिए सबसे आसान होता है कि उन्हें डरा कर ख़ामोश कर दो।"

वृंदा करात ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि अगर 120बी कहीं लगना है तो वह सरकार पर ही लगना चाहिए।

दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ की पूर्व अध्यक्ष नंदिता नारायण ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा, "जिन कंपनियों का नाम ये लोग ले रहे हैं कि चाइना से पैसा आया है, हमें देखना चाहिए कि उन कंपनियों से पीएम केयर्स फ़ंड में कितना पैसा आया है।"

सीपीआई की अमरजीत कौर ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा, "किसान आंदोलन के समय जब मेनस्ट्रीम मीडिया ने आंदोलन को कवर करना बंद कर दिया था तब छोटे छोटे पोर्टल ने उसकी ख़बर दिखाई और तब इन्हें (सरकार) पता चला कि सोशल मीडिया के ज़रिये भी सरकार की हक़ीक़त बताई जा रही है तब इन्होंने सोशल मीडिया से लोगों को छांटना शुरू किया कि किसको पकड़ा जाये।"

आपको जानकारी है कि न्यूज़क्लिक लगभग 15 साल से काम कर रहा है। न्यूज़क्लिक के शुरूआती दिनों के बारे में सीपीआईएम के सदस्य और डीयू के शिक्षक राजीव कुंवर ने कहा, "2011 -12 में जब FYUP का प्रदर्शन चल रहा था तब कोई मीडिया इसे दिखाने को तैयार नहीं था, उस वक़्त न्यूज़क्लिक ने पहली बार छात्रों -शिक्षकों ने प्रदर्शन को दिखने का काम किया था।"

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