राहुल ने ‘सच’ में दिया इस्तीफा, नया अध्यक्ष चुनने के लिए समूह बनाने को कहा
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने इस्तीफे को लेकर लंबे समय से चल रहे शक-शुबहा को ख़त्म कर दिया है। अब वाकई कांग्रेस को नये अध्यक्ष की तलाश करने पड़ेगी।
लोकसभा चुनाव के बाद से अपने इस्तीफे को लेकर बनी असमंजस की स्थिति पर विराम लगाते हुए राहुल गांधी ने बुधवार को अपने त्यागपत्र की औपचारिक रूप से घोषणा कर दी और कहा कि उन्होंने पार्टी की ‘‘भविष्य की तरक्की’’ के लिए यह कदम उठाया है।
उन्होंने यह भी कहा कि पार्टी नए अध्यक्ष के चयन के लिए समूह गठित करे क्योंकि उनके लिए यह उपयुक्त नहीं है कि इस प्रकिया में शामिल हों।
गांधी ने एक बयान में कहा, ‘‘उस पार्टी का सेवा करना मेरे लिए सम्मान की बात है जिसके मूल्यों और विचारों ने जीवनशक्ति के रूप में हमारे सुन्दर देश की सेवा की है। मुझ पर देश और संगठन का कर्ज है।’’
It is an honour for me to serve the Congress Party, whose values and ideals have served as the lifeblood of our beautiful nation.
I owe the country and my organisation a debt of tremendous gratitude and love.
Jai Hind ?? pic.twitter.com/WWGYt5YG4V
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) July 3, 2019
उन्होंने कहा, ‘‘कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर 2019 के चुनाव की हार की जिम्मेदारी मेरी है। हमारी पार्टी के भविष्य की तरक्की के लिए जवाबदेही होना महत्वपूर्ण है। इसी कारण से मैंने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया है।’’
गांधी ने कहा, ‘‘मेरी लड़ाई सिर्फ राजनीतिक सत्ता के लिए कभी नहीं रही है। भाजपा के प्रति मेरी कोई घृणा या आक्रोश नहीं है,लेकिन मेरी रग-रग में भारत का विचार है।’’
उन्होंने आरएसएस पर निशाना साधते हुए कहा, ‘‘हमारे देश के संस्थागत ढांचे पर कब्जा करने का आरएसएस का घोषित लक्ष्य पूरा हो चुका है। हमारा लोकतंत्र बुनियादी तौर पर कमजोर हो गया है। अब इसका वास्तविक खतरा है कि आगे चुनाव महज रस्म अदायगी भर रह जाए।’’
गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद 25 मई को हुई पार्टी कार्य समिति की बैठक में राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफे की पेशकश की थी। हालांकि कार्य समिति के सदस्यों ने उनकी पेशकश को खारिज करते हुए उन्हें आमूलचूल बदलाव के लिए अधिकृत किया था।
इसके बाद से गांधी लगातार इस्तीफे पर अड़े हुए थे। हालांकि पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने उनसे आग्रह किया था कि वह कांग्रेस का नेतृत्व करते रहें।
आमतौर पर भी यही समझ थी कि उन्हें मना लिया जाएगा या वे मान जाएंगे। हालांकि जानकार कहते हैं कि अब भी उन्हें सुपर अध्यक्ष ही कहा या माना जाएगा। जैसे पूर्व मनमोहन सरकार में सोनिया गांधी को सर्वेसर्वा कहा जाता था। वैसे कुछ का कहना यह भी है कि इस बार वाकई कांग्रेस में काफी कुछ बदल रहा है।
(भाषा के इनपुट के साथ)
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