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राजस्थान :क्या 'गौरव यात्रा' में है, कोई 'गौरव' वाली बात ?

4 अगस्त को शुरू हुई वसुंधरा की गौरव यात्रा , लेकिन उदयरपुर संभाग की बात करें तो सच्चाई कुछ और ही नज़र आती है।
gaurav yatra

शनिवार 4 अगस्त को राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने उदयपुर संभाग के राजसमंद ज़िले से अपनी 'गौरव यात्रा 'शुरू की। इस मौके पर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी मौजूद थे। बीजेपी की इस 'गौरव यात्रा ' ने राज्य में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए चुनाव प्रचार का बिगुल बजा दिया है। यात्रा के दौरान मुख्यमंत्री  वसुन्धरा राजे राज्य की 200 चुनाव क्षेत्रों में से 165 क्षेत्रों का दौरा करेंगी और यह पूरी यात्रा 40 दिन की होगी। फिलहाल एक हफ्ते तक उदयपुर संभाग के पाँच ज़िलों में यह यात्रा चलेगी। यात्रा से पहले राजसमंद में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया जहाँ अमित शाह और वसुंधरा राजे ने अपने अपने वक्तव्य दिए। अमित शाह ने कांग्रेस को  कठघरे में खड़ा करते हुए कहा कि उन्होंने पिछली चार पीढ़ियों में क्या किया उसका जवाब देना होगा। साथ ही उनका कहना था कि मोदी ने राजस्थान को 116 स्कीमें दी हैं और वसुंधरा राजे ने इन्हे ज़मीन पर उतारा है। इसके साथ ही वसुंधरा राजे ने भी इन्ही बातों को दोहराते हुए कहा कि उनकी सरकार ने पिछले 4 सालों में महिलाओं , किसानों और युवाओं के लिए बहुत काम किया है। 

लेकिन अगर हम उदयपुर ज़िले और इसके आस पास के इलाके की बात ही करें तो सच्चाई कुछ और ही नज़र आती है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक मुख़्यमंत्री वसुंधरा राजे ने जब 4 अगस्त को राजसमंद के चारभुजा मंदिर से इस यात्रा का आगाज़  किया, तो उससे कुछ समय पहले ही वहाँ सड़क बनाई गयी थी। सूत्र बताते हैं कि ऐसा हर उस जगह किया जा रहा है’, जहाँ से यह यात्रा निकलेगी। यह इलाका आदिवासी बहुल इलाका है और यहाँ 70% आबादी आदिवासियों की है। इस इलाके में 3 संसदीय सीटें हैं और यहाँ से  28 विधायक चुने जाते हैं। पिछले चुनावों में बीजेपी के 27 विधायक इस संभाग से जीते थे। लेकिन इलाके का पिछड़ापन किसी से छुपा हुआ नहीं है। 

यहाँ ज़्यादातर आदिवासियों के पास ज़मीनें हैं , लेकिन उससे ज़्यादा आमदनी न होने की वजह से वे मज़दूरी करने शहरों में चले जाते हैं। जहाँ कुछ महीनों के लिए उन्हें फैक्ट्रियों में या निर्माण मज़दूर के तौर पर काम मिल जाता है। राजस्थान में न्यूनतम वेतन सिर्फ 6 हज़ार रुपये प्रति माह है, यहाँ ज़्यादातर आदिवासी इससे भी कम में गुज़ारा  करते हैं, वह भी तब जब नौकरी मिले। नरेगा स्कीम उनकी आमदनी का एक ज़रिया हुआ करती थी, लेकिन अगर सूत्रों की माने तो पिछले 5 सालों से उसके तहत भी काम नहीं मिल रहा है।

आदिवासियों के साथ लम्बे समय से काम कर रहे सीपीआई माले के शंकर लाल चौधरी ने हमसे इस मुद्दे पर बात की। उन्होंने कहा "गाँवों में जेसीबी मशीने लगा रखी हैं, जिनके ज़रिये काम कराया जा रहा है। गाँव  के सरपंच, प्रधान , कांट्रेक्टर और स्थानीय राजनेता मनरेगा के अंतर्गत मिलने वाले वाले पैसे को इस तरह खर्च कर रहे हैं। जहाँ 100 लोगों को काम मिलना चाहिए वहाँ सिर्फ 6 -7 लोगों को काम मिलता है। बाकि पैसे का हिसाब नहीं है। इसके अलावा आरक्षण के ज़रिये जो लोगों को नौकरियाँ मिलनी चाहिए वहाँ एक भी भरती नहीं हुई। "

उनका कहना था कि Rajasthan Eligibility Exam for Teachers एक परीक्षा हुआ करती थी, जिसमें योग्यता साबित करने के बाद छात्रों को नौकरियाँ मिल जाती थी। लेकिन पिछले 4 सालों से REET के तहत भर्तियां नहीं की जा रही हैं, क्योंकि परिणामों में गफलत के चलते मामला हाई कोर्ट में चला गया। लेकिन चुनाव पास आने की वजह अब सरकार ने इस परीक्षा के तहत 35,000 वेकेंसियां निकाली हैं। राजस्थान पब्लिक सर्विस कमीशन में भी बहुत खामियां होने की वजह से वहाँ भी भर्तियाँ नहीं हुई। 

इस इलाके में ज़्यादातर लोग गरीब हैं और उनके पास BPL कार्ड हुआ करते थे। लेकिन सूत्रों की मानें तो इलाके के ज़्यादातर गाँवों में आय न बढ़ने के बावजूद लोगों को बीपील क्षेणी से निकाल दिया गया। इस वजह से जहाँ उन्हें पहले 2 रुपए किलो गेहूँ मिला करता था अब 12 रुपये किलो मिलता है। जैसा कि एक पिछली रिपोर्ट में बताया गया था, कि राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में प्रधानमंत्री उज्वला योजना असफल रही है। देखा यह गया है कि इस योजना के तहत गरीब परिवारों को पहली बार तो गैस सिलेंडर किश्तों में मिल जाता है लेकिन दूसरी बार इसकी कीमत 1,000 रुपये पड़ जाती है। इस वजह से गरीब परिवार इसे ले नहीं पाते। इसके अलावा पहले चूल्हे के लिए सरकार सटी दर पर केरोसीन उपलब्ध कराया  करती थी, लेकिन गैस कनेक्शन मिलने के बाद वह भी बंद कर दिया गया है। इन मुद्दों की वजह से स्थानीय लोग बीजेपी सरकार से खासे नाराज़ हैं। 

इस सब के चलते मई  2018 को 1500 आदिवासियों ने उदयपुर में ड्रिस्टिक्ट कलेक्टर के ऑफिस के सामने विरोध प्रदर्शन किया था। मुद्दा यह था कि उन्हें दिहाड़ी का पैसा समय पर नहीं मिल रहा था और उन्हें Building and Other Construction Workers Welfare Board (BOCWWB) के अंतर्गत कोई सुविधाएं भी नहीं मिल रही थी। 

हम याद करें तो उदयपुर संभाग का राजसमंद वही इलाका है जहाँ पिछले साल शम्भुलाल नामक एक शख्स ने एक मुस्लिम मज़दूर का क़त्ल कर दिया था। घटना  के बाद बनाये गए वीडियो में शम्भुलाल ने अपनी हिंदुत्ववादी चरमपंथी विचारधारा का प्रदर्शन किया। उसका कहना था कि उसकी  यह कार्यवाही  "लव जिहाद " के खिलाफ थी , साथ ही उनसे 'बाबरी मस्जिद ' और जिहाद से लड़ने की भी बात की। इस घटना के एक मुस्लिम संगठनो की रैली के विरोध में उदयपुर में हिन्दूवादी संगठनों ने एक रैली निकाली थी। दिसंबर 2017 में हुई इस रैली के दौरान कुछ लोगों ने उदयपुर कोर्ट पर चढ़कर वहाँ भगवा झंडा  लगा दिया। इससे भी शर्मनाक बात यह है कि यह मामला रफादफा कर दिया गया है। 

इन हालातों को देखते हुए सवाल उठता है कि क्या राजस्थान की बीजेपी सरकार को इस सब पर 'गौरव" है ? अगर नहीं तो 'गौरव यात्रा' कौनसी उपलब्धियां गिनाने के लिए है ?

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