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राजस्थान : क्या है जयपुर में हुई नरेंद्र मोदी की रैली की सच्चाई ?

एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक जिन लोगों को रैली में लाया गया था उनमें से बहुतों को लाभ  नहीं मिला था , कई लोगों को जबरन लाया गया और कुछ अपनी शिकायतें लेकर आये थे।
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image courtesy: Hindustan Times

7 जुलाई को प्रधानमंत्री मोदी की जयपुर में हुई जिस रैली जिसे बढ़ा चढ़ा के दिखाया गया था ,उसकी असलियत अब धीरे धीरे सामने आ रही । मीडिया रिपोर्टों ने इस रैली पर कई सवाल उठाये हैं। 

सबसे पहला मुद्दा जो सामने आया वह था कि राजस्थान सरकार ने इस रैली में लोगों को लाने के लिए पूरा सरकारी तंत्र लगा दिया। राजस्थान भर में सभी कलेक्टरों को अपने ज़िले से औसतन  9,300 लोग लाने को कहा गया था।  इस रैली में प्रदेश भर से केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही 12 स्कीमों के लाभार्थियों को लाया जाना था। विभिन्न जगहों से लाये गए 2. 5 लाख लाभार्थियों को लाने ले जाने में ही 7. 2 करोड़ रुपये का सरकारी खर्च लगा और 5 हज़ार से ज़्यादा बसों को इस काम में लगाया गया। प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक ये 7. 2 करोड़ रुपये इन स्कीमों के फण्ड से ही लिए गए थे। सरकार की तरफ से ये कहा गया कि ये आयोजन सरकारी आयोजन था। लेकिन ये सब जानते हैं कि राज्य में चुनाव होने वाले हैं और  इसीलिए ये कहा जा सकता है कि बीजेपी ने इसे अपने चुनावी प्रचार की तरह इस्तेमाल किया है । यहॉं सवाल ये है कि क्या पार्टी के प्रचार के लिए राज्य के तंत्र को और आम जनता के पैसे को इस तरह इस्तेमाल करना सही है  ? 

रिपोर्टों के मुताबिक 2 जुलाई को इस रैली के स्थल अमरूदों के बाग़ में बीजेपी के राज्य अध्यक्ष मदन लाल सैनी , पंचायती राज्य मंत्री राजेंद्र राठौर और बाकी बड़े नेताओं ने भूमि पूजन और वैदिक रिवाज़ो से पूजा की। सवाल ये खड़ा होता है कि क्या जिस रैली को सरकारी बताया जा रहा है वहाँ हिन्दू रीति  रिवाज़ों से पूजा करना , राज्य का एक धर्म के प्रति पक्षपात नहीं ? और क्या ये अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं ? 

इन मुद्दों के आलावा एक और गंभीर मुद्दा सामने आया है। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक जिन लोगों को रैली में लाया गया था उनमें से बहुतों को लाभ  नहीं मिला था , कई लोगों को जबरन लाया गया और कुछ अपनी शिकायतें लेकर आये थे। रिपोर्ट के मुताबिक एक महिला को ये कहकर लाया गया था कि अगर वह रैली में नहीं आती तो उन्हें मनरेगा स्कीम के तहत मिलने वाली दिहाड़ी नहीं दी जाएगी।कई लोगों ने ये कहा कि उन्हें स्कीमों का लाभ नहीं मिल रहा इसीलिए वह इसकी शिकायत प्रधानमंत्री से करने आये हैं। लेकिन इसके बजाये इस कार्यक्रम में 12 स्कीमों के 12 लाभार्थियों की रिकॉर्ड की गयी आवाज़ों को सुनाया गया ।  इसके बाद उन्ही 12 लोगों ने प्रधानमंत्री को फूल दिए।  इसके आलावा  इस 'तथाकथित' जन सुनवाई में जनता को सवाल पूछने या शिकायत करने का कोई अवसर नहीं दिया गया। 

कार्यक्रम में आये एक शख्स ने बताया कि उन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना में सिर्फ 30000 की एक किस्त मिली जिससे वह ट्रैकर तक नहीं ख़रीद पा रहे हैं। इसी तरह दो लोगों ने बताया कि वह कौशल विकास योजना से जुड़े रहे हैं, लेकिन अब तक रोज़गार नहीं मिला। इस सब के बीच सबसे महत्वपूर्ण सवाल ये था कि ज़्यादातार लोग जो यहाँ जमा थे वह सच में लभारती थे या नहीं ? रिपोर्ट के मुताबिक वहाँ मौजूद लोगों के पास इस बात का कोई सबूत नहीं था कि उन्हें किस योजना से कैसे लाभ हुआ। ज़्यादातार लोग ज़िला प्रशासन के द्वारा या ग्राम सभाओं के द्वारा लाये गए थे। आंगनवाड़ी सेंटरों के पास भी इस बात का कोई रिकॉर्ड नहीं था कि उनके इलाकों से इस सभा में कितने लोग गए थे।  

इसके आलावा रैली में काले कपड़े पहन के आये लोगों को रैली में घुसने नहीं दिया गया। बताया जा रहा है ऐसा इसीलिए किया गया क्योंकि आयोजकों को डर था कि कहीं कोई मोदी को काले झंडे न दिखा दे। इस पर सवाल ये है कि अगर मोदी सरकार और राज्य की राजे सरकार को अपने काम पर इतना ही भरोसा है तो इतना डर क्यों ?

इस मुद्दे PUCl की महासचिव  और राजस्थान की सामाजिक कार्यकर्त्ता कविता श्रीवास्तव ने कहा "जिन योजनाओं के लाभार्थियों को लाया गया उनमें से कई असफल रही हैं। जैसे उज्वला योजना तो पूरी तरह असल रही है, उसमें महिलाओं को एक बार तो गैस सिलेंडर सस्ते में मिल जाता है लेकिन दूसरी सिलेंडर महंगा मिलता है और इसी वजह से वह फिर से चूल्हे पर काम करने लगतीं हैं। इसी तरह जन आवास योजना के तहत घर बहुत ही कम लोगों को मिला है। इसी तरह भामा शाह योजना  जिसके तहत सरकार स्वस्थ्य सेवाओं का खर्चा उठती है , में आम जन  से ज़्यादा अस्पतालों को लाभ मिला है। ये भी सच है कि इन स्कीमों का लाभ बहुत ही कम लोगों को मिल रहा है। " 

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