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राजस्थान ने किया शहरी रोज़गार गारंटी योजना का ऐलान- क्या केंद्र सुन रहा है?

कोविड-19 के तकलीफ़ भरे वक़्त में राजस्थान सरकार ने 2022-23 के बजट में शहरी इलाकों में परिवारों को 100 दिन के रोज़गार की गारंटी दी है। लेकिन केंद्र सरकार ने इस तरह की योजना की मांग पर कोई ध्यान नहीं दिया है, बल्कि ग्रामीण इलाकों में रोज़गार की गारंटी देने वाली मनरेगा का बजट भी कम कर दिया है।
Rajasthan Budget 2022-23
Image Courtesy: Free Press Journal

2022-23 के लिेए राज्य के बजट का ऐलान करते हुए 23 फरवरी को राजस्थान सरकार ने इंदिरा गांदी शहरी रोज़गार गारंटी योजना का ऐलान किया। इस योजना में शहरी क्षेत्र में रहने वाले इच्छुक परिवारों को 100 दिन के रोज़गार की गारंटी दी जाएगी। 

हिमाचल प्रदेश, झारखंड, ओडिशा और हाल में तमिलनाडु के बाद अब राजस्थान ऐसा पांचवा राज्य बन गया है, जिसने कोविड महामारी के दौरान शहरी रोज़गार योजना को लागू किया है। इस तरह की योजना को सबसे पहले केरल में लागू किया गया था, जहां अय्यनकली शहरी रोज़गार गारंटी योजना 2011 से चालू है। 

एक और स्वागत योग्य कदम उठाते हुए राज्य सरकार ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) में रोज़गार के दिनों की संख्या बढ़ाते हुए 125 कर दी है। 

राजस्थान राज्य ने 2022-23 के बजट में इंदिरा गांधी शहरी रोजगार गारंटी अधिनियम के लिए 800 करोड़ रुपये का आवंटन किया है। संयोग है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत उन लोगों में शामिल थे, जिन्होंने 2020 में केंद्रीय शहरी विकास मंत्री हरदीप सिंह पुरी को ख़त लिखकर एक राष्ट्रीय शहरी रोज़गार योजना लाने को कहा था। 

शहरी भारत के लिए नौकरी गारंटी कार्यक्रम पर विस्तृत रिपोर्ट के मुख्य लेखक और अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के शिक्षक अमित बसोले कहते हैं, "यह अच्छा कदम है। केरल, ओडिशा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड और हाल में तमिलनाडु जैसे राज्यों में इस तरह की योजना चलाई जा रही थी। इनमें से ज़्यादातर का बजट 100 करोड़ रुपये के आसपास है। जबकि राजस्थान सरकार का बजट इनसे कहीं ज़्यादा 800 करोड़ रुपये है। ऊपर से इसे गारंटी योजना का नाम दिया गया है, ऐसा ज़्यादातर राज्यों में नहीं किया गया है। यह देखा जाना बाकी है कि क्या ज़मीन पर इसकी गारंटी मिलती है या नहीं। लेकिन कोविड महामारी के जारी रहने के चलते लोगों के सामने आ रही कठिनाईयों के चलते एक राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रम की जरूरत पर जोर देना चाहिए।"

कोविड महामारी ने रोज़गार की स्थिति पर अतिरिक्त तनाव डाल दिया है। हमने गांव और शहरी इलाकों में लोगों को बहुत ज़्यादा तनाव में देखा। अचानक लगाए गए लॉकडाउन के चलते बड़ी संख्या में कामग़ारों को वापस आना पड़ा। सामाजिक कार्यकर्ता, अकादमिक जगत के लोग, विशेषज्ञ और अन्य लोग भी ग्रामीण इलाकों में मनरेगा की तर्ज़ पर एक शहरी रोज़गार गारंटी योजना को लाने की वकालत कर रहे हैं।

लेकिन यह बीजेपी के चलन से बिल्कुल उलट है, जिसने 2022-23 के बजट में शहरी बेरोज़गारी की समस्या को हल करने का कोई प्रयास नहीं किया, बल्कि मनरेगा के लिए आवंटित होने वाले पैसे को भी कम कर दिया। 2021-22 में मनरेगा के लिए 98,000 करोड़ रुपये आवंटित हुए, जिसे अब 73,000 करोड़ रुपये कर दिया गया है। मतलब 34 फ़ीसदी की बड़ी कटौती। 

महामारी के पहले से जारी है उच्च स्तर पर बेरोज़गारी दर

पीएलएफएस (पीरियाडिक लेबर फोर्स सर्वे) के मुताबिक़, पिछले कुछ सालों में बेरोज़गारी की स्थिति बेहद खराब है। 2017-18 में 9.6 फ़ीसदी के स्तर से बढ़कर बेरोज़गारी दर 2019-20 में 11 फ़ीसदी पहुंच गई। 

यह स्थिति तब थी, जब देश में कोरोना ने दस्तक नहीं दी थी। उसके बाद से बेरोज़गारी दर बेहद तेजी से बढ़ी है। खासकर शहरी बेरोज़गारी में बहुत उछाल आया है।

जैसा त्रैमासिक पीएलएफएस रिपोर्ट बताती है 2020 कामग़ार वर्ग के लिए सबसे बुरा साल था। अब तक देश उस झटके से नहीं उबर पाया है। अप्रैल-जून 2020 के दौरान शहरी बेरोज़गारी दर 21 फ़ीसदी के पार चली गई थी। इसकी वज़ह अलग-अलग वक़्त पर केंद्र सरकार द्वारा थोपे गए लॉकडाउन थे, जिन्हें लगाने के दौरान आजीविका पर पड़ने वाले बुरे असर की परवाह नहीं की गई थी। 

तबसे बेरोज़गारी दर नीचे आई है, लेकिन यह अब भी महामारी के पहले वाले स्तर से ज़्यादा बनी हुई है। जनवरी-मार्च 2021 के लिए हाल में जारी हुई पीएलएफएस रिपोर्ट बेरोज़गारी दर 9.4 फ़ीसदी के स्तर पर बताती है। 

यह ध्यान रखने की जरूरत है कि बेरोज़गारी के यह आंकड़े तात्कालिक "मौजूदा साप्ताहिक स्थिति" को बताते हैं, जो सर्वे करने के दौरान 7 दिन की छोटी अवधि में औसत बेरोज़गारी को प्रदर्शित करते हैं। मौजूदा साप्ताहिक स्थिति निकालने के क्रम में उन लोगों को बेरोज़गार समझा जाता है, जिन्होंने इच्छुक होने के बावजूद हफ़्ते में एक घंटे भी काम नहीं किया या उन्हें काम नहीं मिला। यह बेहद संकीर्ण परिभाषा है और इसमें व्यापक स्तर की समस्याएं नहीं झलकतीं।

शहरी रोज़गार योजना के लिए अलग-अलग सुझाव

विशेषज्ञों का कहना है कि गरीब़ी और आर्थिक तंगी की समस्या से निजात दिलाने के लिए रोज़गार की गारंटी और प्रत्यक्ष नगद हस्तांतरण की जरूरत है। मनरेगा के अनुभव प्रोत्साहित करने वाले हैं। अब ग्रामीण आबादी को सुरक्षा की कुछ तो गारंटी है, लेकिन शहरी कामग़ार वर्ग के पास यह सुविधा नहीं है।

श्रम पर 25वीं संसदीय स्थायी समिति ने अगस्त 2021 में अपनी रिपोर्ट में कहा था, "ग्रामीण इलाकों में रोज़गार उत्पादन कार्यक्रमों के उलट, शहरी गरीब़ों की तकलीफ़ों पर सरकार का ज़्यादा ध्यान नहीं रहा है।" रिपोर्ट में आगे कहा गया, "मनरेगा की तरह शहरी श्रमशक्ति के लिए भी रोज़गार गारंटी योजना चलाने पर जोर देने की जरूरत है।"

मनरेगा के मसौदे को तैयार करने में शामिल रहे और रांची विश्वविद्यालय के अतिथि शिक्षक ज्यां द्रे ने विकेंद्रीकृत शहरी रोज़गार और प्रशिक्षण योजना (डीयूईटी) का प्रस्ताव दिया है।

इस योजना का बुनियादी विचार यह है कि सरकार "जॉब स्टाम्प" जारी करेगी और उन्हें शैक्षणिक संस्थानों, आवासों, जेलों, म्यूज़ियम, नगरपालिकाओं और अन्य सरकारी विभागों को दे देगी। फिर यह संस्थान इन स्टाम्प को किसी निश्चित समय के लिए कामग़ारों से काम लेने में इस्तेमाल कर सकेंगे। सरकार बदले में कामग़ारों द्वारा इन स्टाम्प को पेश करने पर उनके खाते में सीधे राशि पहुंचा देगी। यह स्टाम्प नियोक्ता द्वारा दो बार प्रमाणित रहेंगे। यह योजना कुछ यूरोपीय देशों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली "सर्विस वाउचर स्कीम" की तरह है।

अमित बसोले और अजीम प्रेमीज यूनिवर्सिटी की टीम द्वारा किया गया एक और अध्ययन ऐसी शहरी रोज़गार गारंटी की जरूरत बताता है, जो मनरेगा से अलग तरह से सोची गई हो, क्योंकि शहरी और ग्रामीण श्रम बाज़ारों की जरूरतों में काफ़ी अंतर है।

वे एक राष्ट्रीय स्तर की मांग आधारित सार्वजनिक कार्य योजना का सुझाव देते हैं, जो छोटे और मध्यम आकार के शहरों पर लक्षित होगी। जिसके ज़रिेए काम का वैधानिक अधिकार उपलब्ध कराया जाएगा, साथ ही शहरी अवसंचरना और सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार किया जाएगा, सार्वजनिक इमारतों को ठीक किया जाएगा, युवाओं का कौशल विकास किया जाएगा और शहरी स्थानीय निकायों की वित्तीय और इंसानी क्षमता बढ़ाई जाएगी। 

इस योजना के तहत कुछ इस तरह के काम को भी शामिल करने का सुझाव दिया गया है, जिनमें कुछ शिक्षा और कौशल की जरूरत पड़ेगी। इस तरह के काम में सड़क, पुल का निर्माण व मरम्मत, शहर की सार्वजनिक जगहों जैसे- जल स्त्रोतों का निर्माण, उनकी देखभाल व पुनर्नवीकरण, बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल के लिए प्रावधान और पर्यावरण की गुणवत्ता का सर्वे व अन्य कार्य शामिल हैं।

इन कुछ राज्य सरकारों द्वारा शहरी आबादी को रोज़गार की गारंटी देकर एक सुरक्षा जाल बनाया जाना बेहद अहम है। हालांकि बजट में किया गया आवंटन काफ़ी कम है, लेकिन फिर भी इन राज्यों की अच्छी मंशा तो प्रदर्शित हो ही जाती है। इन कदमों से संसद द्वारा इस तरह की गारंटी के लिए रास्ता भी बन रहा है। क्या केंद्र सरकार इससे सीख लेगी और शहरी आबादी के लिए राष्ट्रीय रोज़गार गारंटी योजना लाएगी व मनरेगा को मजबूत करेगी?

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

Rajasthan Announces Urban Employment Guarantee 2022-23 - Is Centre Listening?

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