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राज्यसभा चुनाव: टिकट बंटवारे में दिग्गजों की ‘तपस्या’ ज़ाया, क़रीबियों पर विश्वास

10 जून को देश की 57 राज्यसभा सीटों के लिए चुनाव होने हैं, ऐसे में सभी पार्टियों ने अपने बेस्ट उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं। हालांकि कुछ दिग्गजों को टिकट नहीं मिलने से वे नाराज़ भी हैं।
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राज्यसभा चुनावों की घोषणा के बाद सभी राजनीतिक दल अपना-अपना गणित बिठाने में लगे थे, कोई जातीय समीकरण देख रहा था, तो कोई अपने करीबियों को टिकट देने की सोच रहा था। तो बहुत लिहाज़ से आने वाले साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों को भी ध्यान में रखा गया। फिलहाल अब सभी पार्टियों ने अपने-अपने पत्ते खोल दिए है और 10 जून को होने वाले राज्यसभा चुनाव के लिए उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं। ऐसे में कई नेता ऐसे हैं जो टिकट की उम्मीद बांधे तो बैठे थे लेकिन उनके हाथ कुछ नहीं लगा। इसके बाद कुछ तो मुखर हो गए लेकिन कुछ की चुप्पी अब भी बरकरार है।

पिछले लंबे वक्त से अंतर्कलह को लेकर परेशान कांग्रेस की ओर से राज्यसभा के लिए उम्मीदवारों की घोषणा होते ही टिकट की आस लगाए बैठे नेताओं की आवाज़ें तेज़ हो गईं। पार्टी के बेहतरीन प्रवक्ता और वरिष्ठ नेता पवन खेड़ा ने ट्वीट कर अपनी नाराज़गी ज़ाहिर कर दी। उन्होंने यहां तक कह दिया कि शायद मेरी तपस्या में ही कुछ कमी रह गई थी।

सिर्फ पवन खेड़ा ही नहीं बल्कि एक्ट्रेस और कांग्रेस नेत्री नगमा ने पवन खेड़ा के ट्वीट में रिप्लाई करते हुए अपनी नाराजगी व्यक्त किया और लिखा हमारी भी 18 साल की तपस्या इमरान भाई के आगे कम पड़ गई।

इसके बाद नगमा ने एक और ट्वीट करते हुए लिखा कि सोनिया गांधी ने 2003-2004 में मुझे राज्यसभा में शामिल करने के लिए व्यक्तिगत रूप से वादा किया थाजब मैं उनके कहने पर कांग्रेस पार्टी में शामिल हुई थी। वहीं उन्होंने आगे बताया कि तब हम सत्ता में नहीं थेलेकिन तब से 18 साल हो गए हैंमुझे एक भी अवसर नहीं मिला। इसके साथ ही उन्होंने कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से सवाल किया कि इमरान को राज्यसभा भेजा गया हैमैं पूछती हूं कि क्या मैं कम योग्य हूं।

उधर राजस्थान के सिरोही से विधायक श्याम लोधी ने भी नाराज़गी ज़ाहिर की और कांग्रेस से सवाल किए।

वहीं अगर कांग्रेस की ओर से राज्यसभा भेजे जा रहे 10 उम्मीदवारों की बात करें तो गुलाम नबी आजाद और  आनंद शर्मा जैसे दिग्गज नेताओं को भी जगह नहीं मिल सकी है। हालांकि जी-23 से विवेक तन्खा का नाम ज़रूर शामिल किया गया है। इस तरह कांग्रेस और गांधी फैमली के प्रति सवाल खड़े करने वाले नेताओं को राज्यसभा में जगह नहीं मिली जबकि वफादार नेताओं को इनाम मिला है। कांग्रेस ने राजस्थानमहाराष्ट्रहरियाणा और छत्तीसगढ़ की राज्यसभा सीट के लिए जिन्हें उम्मीदवार बनाया गया हैउनके बाहरी होने का मुद्दा भी उठ रहा है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के महज दो विधायक हैंजिसके चलते सूबे के नेताओं को दूसरे राज्य से राज्यसभा भेजा है। जिसमें प्रमोद तिवारी से लेकर इमरान प्रतापगढ़ी और राजीव शुक्ला शामिल हैं। हरियाणा से अजय माकनराजस्थान से रणदीप सुरजेवालामुकुल वासनिक और छत्तीसगढ़ से रंजीता रंजन को भेजा जा रहा है। ये कहना ग़लत नहीं होगा कि आने वाले समय में आम चुनाव हैजिसके चलते स्थानीय समीकरण को साधने के बजाय अपने राष्ट्रीय नेताओं को सेट किया है।

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भले ही कांग्रेस ने राष्ट्रीय नेताओं को सेट करने की कोशिश की हो, लेकिन नेताओं की नाराज़गी वाली सिरदर्दी कांग्रेस के पाले से खत्म नहीं हो रही है। सिर्फ पवन खेड़ा और नगमा ही नहीं, प्रियंका गांधी के करीबी माने जाने वाले कांग्रेस नेता आचार्य प्रमोद कृष्णम ने भी टिकट बंटवारे पर सवाल खड़े किए हैं।

अब देखने दिलचस्प ये होगा कि इन नेताओं की नाराज़गी क्या रंग लाती है। क्योंकि हाल ही में हुए चिंतन शिविर का फिलहाल नेताओं की एकजुटता को पर कोई असर छोड़ता नहीं दिखा है।

अब बात करते हैं भारतीय जनता पार्टी की

भाजपा ने राज्यसभा चुनाव में पुराने और वफादार नेताओं को जगह दी है। भाजपा ने उत्तर प्रदेश कोटे से आठ प्रत्याशी घोषित किए हैंजिनमें लक्ष्मीकांत बाजपेयी और राधामोहन दास अग्रवाल जैसे पुराने नेताओं को जगह दी गई है। तो पूर्व मंत्री शिव प्रताप शुक्ला का नाम शामिल नहीं किया गया है। लक्ष्मीकांत बाजपेयी काफी समय से साइड लाइन थे जबकि राधामोहन दास अग्रवाल की सीट गोरखपुर से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ चुनाव लड़े थे और उनका टिकट काट दिया गया था। शायद यही वजह है कि उन्हें योगी को जगह देने का इनाम मिला है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश से ही दो और नाम निकल कर सामने आए हैं जिनमें ओबीसी मोर्चा के चीफ और तेलंगाना से आने वाले डॉ. के लक्ष्मण और मध्यप्रदेश से पूर्व सांसद मिथिलेश कुमार का नाम शामिल है। वहीं दूसरी ओर राजस्थान से घनश्याम तिवारी को जगह दी गई,  जिन्होंने हाल ही में दोबारा से भाजपा में वापसी की है।

लोकसभा हो, विधानसभा हो या राज्यसभा... मुसलमानों के साथ भाजपा के संबंध सिर्फ भाषणों तक ही होते हैं। पार्टी का और देश, प्रदेश का प्रतिनिधित्व करवाने के मामले में उन्हें एक हिंदू नेता ही चाहिए। शायद यही कारण है कि भाजपा की लिस्ट में राज्यसभा जाने वाला एक भी मुसलमान चेहरा नहीं है। आपको बता दें कि भाजपा के पास तीन बड़े मुस्लिम नेता हैं, जो राज्यसभा में हैं, केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवीएमजे अकबर और सय्यद जफर इस्लाम... लेकिन इनका कार्यकाल अब ख़त्म हो रहा है। अब इन्हें वापस राज्यसभा भेजना भाजपा की मौजूद राजनीतिक के मुफीद नहीं नज़र आता। यही कारण है कि इनमें से किसी नेता को उम्मीदवारी नहीं मिली। ऐसे में सबसे बड़ी दिक्कत मोदी सरकार की कैबिनेट में शामिल मुख्तार अब्बास नकवी को लेकर हैंजिनको संसद में जगह नहीं मिलने के कारण अब मंत्री पद गंवाना लगभग तय माना जा रहा है। हालांकि चर्चा है कि इन्हें उपचुनावों के दौरान रामपुर सीट से भाजपा अपना प्रत्याशी बना सकती है।

उम्मीदवारों के नाम देखकर ये कहना ग़लत नहीं होगा कि राज्यसभा चुनाव के जरिए भाजपा ने 2024 का सियासी समीकरण साधने का दांव चला है। यूपी में जिन नेताओं को जगह दी गई हैउनमें सवर्ण और ओबीसी को बराबर की हिस्सेदारी दी गई। पिछड़ा वर्ग से सुरेंद्र सिंह नागरबाबूराम निषाद और संगीता यादव हैं तो सवर्ण वर्ग से डा. लक्ष्मीकांत वाजपेयी ब्राह्मणडा. राधामोहन दास अग्रवाल वैश्य और डा. दर्शना सिंह क्षत्रिय हैं। बिहार से बीजेपी ने ब्राह्मण समुदाय के सतीश चंद्र दुबे को रिपीट किया है तो ओबीसी के कुर्मी समाज से आने वाले शंभू शरण पटेल को दूसरा उम्मीदवार बनाया है। इस तरह ब्राह्मण-कुर्मी समीकरण का दांव चलाजिसके जरिए जेडीयू के कोर वोटबैंक को संदेश दिया गया है।

भाजपा ने  22  उम्मीदवारों के नामों का ऐलान किया हैजिनमें महिलाएं भी शामिल हैं। इस तरह बीजेपी ने 30 फीसदी महिलाओं को प्रत्याशी बनाया है। निर्मला सीतारमणकवित पाटीदारदर्शना सिंहसंगीता यादव और कल्पना सैनी का नाम शामिल हैं।

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महिलाओं को उम्मीदवार बनाने के मामले में भाजपा ही आगे हैं। कांग्रेस और आरजेडी ने एक-एक महिला को प्रत्याशी बनाया है। कांग्रेस ने रंजीता रंजन को टिकट दिया है तो आरजेडी ने मीसा भारती को दोबारा से प्रत्याशी बनाया है। इसके अलावा सपाजेडीयूशिवसेना ने किसी महिला को प्रत्याशी को मौका नहीं दिया है।

नीतीश के करीबी आरसीपी सिंह का टिकट कटा

जेडीयू ने राज्यसभा की अपनी इकलौती सीट पर केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह के बजाय खीरू महतो को उम्मीदवार बनाया है। आरसीपी को प्रत्याशी नहीं बनाने का फैसला काफी चौंकाने वाला माना जा रहा हैक्योंकि आरसीपी सिंह की अब मंत्री पद की कुर्सी खतरे में पड़ गई है।

शिवाजी के वंशज रह गए खाली हाथ

उधर शिवसेना ने राज्यसभा चुनाव में दो सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैंजिनमें एक नाम संजय राउत है और दूसरा संजय पवार को प्रत्याशी बनाया गया है। इससे शिवाजी के वंशज सभाजी राजे के निर्दलीय राज्यसभा पहुंचने की उम्मीदों पर ग्रहण लग गया हैक्योंकि महाविकास अघाड़ी में शामिल दल अब शिवसेना के प्रत्याशी को समर्थन करेंगे।

समाजवादी पार्टी और आरजेडी ने अपने-अपने जातीय और सियासी समीकरण को तवज्जो दी है। आरजेडी ने दो राज्यसभा सीट के लिए एक पर मीसा भारती तो दूसरे पर फैयाज अहमद को प्रत्याशी बनाकर यादव-मुस्लिम समीकरण साधने की कवायद की है।

इस तरह से सपा ने भी यूपी में अपने कोटे की तीन राज्यसभा सीटों के लिए कपिल सिब्बलजावेद अली खान और जयंत चौधरी को प्रत्याशी बनाया है। सपा ने सिब्बल के जरिए आजम खान की नाराजगी को दूर करने का दांव चला तो जयंत और जावेद अली के बहाने जाट-मुस्लिम समीकरण को साधे रखने की कवायद की है।

इन राजनीतिक दलों के अलावा बीजू जनता दल ने भी ओडिशा से चार उम्मीदवारों की घोषणा की है। पार्टी ने सस्मीत पात्रा को पार्टी ने दूसरी बार राज्यसभा भेजने का फैसला किया है। पार्टी ने सुलता देवमानस रंजन मंगराजडॉ सस्मीत पात्रा और निरंजन बिसी को संसद का उच्च सदन भेजने का फैसला किया है।

बता दें कि बीजेडी के तीन राज्यसभा सांसदों की सदस्यता जुलाई को समाप्त हो रही है। ये सांसद हैं एन भास्कर रावप्रसन्ना आचार्य और सस्मित पात्रा. जबकि एक सांसद सुभाष चंद्र सिंह ने मार्च 2022 में राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था और वे कटक नगर निगम के मेयर बन गए थे।

कुल मिलाकर अगर पार्टियों द्वारा टिकटों पर नज़र दौड़ाएं तो भाजपा और कांग्रेस के कई दिग्गजों के अरमानों पर पानी फिरा है। भाजपा ने अपने तीनों मुस्लिम नेताओं में से किसी को जगह नहीं दी हैतो पंकजा मुंडे और विनय सहस्रबुद्धे के राज्यसभा पहुंचने के अरमानों को भी झटका लगा है। आरजेडी से पूर्व सांसद शहाबुद्दीन की पत्नी हिना को राज्यसभा नहीं भेजा गया तो उत्तर प्रदेश में सपा प्रमुख अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव का नाम भी आखिरी वक्त में काट दिया गया। हालांकि इसे अखिलेश यादव का आज़मगढ़ जीतने और जयंत को भटकने से रोकने के लिए मास्टर स्ट्रोक भी बताया जा रहा है। कांग्रेस से राज्यसभा जाने वाले नेताओं की लंबी फेहरिस्त थीजिनमें से तमाम नेताओं के उम्मीदों को झटका लगा है।

बहरहाल, 10 जून को 15 राज्यों की 57 राज्यसभा सीटों के लिए चुनाव होंगा और इसी दिन शाम को मतो की गणना के बाद नतीजे घोषित कर दिए जाएंगे।

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