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ग्रामीण भारत में "राइट टू लव" कैंपेन अंतर्जातीय-अंतर्धार्मिक जोड़ों को प्रदान कर रहा है सुरक्षा

राइट टू लव कैंपेन सुशांत आशा और अभिजीत के द्वारा चलाया जा रहा है, दोनों पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। वे विरोध का सामना कर रहे जोड़ों को पुलिस सुरक्षा, शादी पंजीकृत कराने में कानूनी मदद, तनाव से निपटने के लिए काउंसलिंग की व्यवस्था करवाते हैं। सुशांत और अभिजीत ऐसे जोड़ों को नौकरियों के मौके भी उपलब्ध करवाने की कोशिश करते हैं।
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35 साल के हुसैन की पत्नी श्रद्धा (33) उच्च जाति की हिंदू महिला हैं। दोनों का विश्वास है कि अंतर्जातीय और अंतर्धार्मिक जोड़ों को धमकियों या ब्लैकमेलिंग की परवाह नहीं करनी चाहिए। उन्हें मनमर्जी से साथ में वक़्त बिताना चाहिए और शादी करनी चाहिए। हुसैन और श्रद्धा ने अपने परिवारों वालों की मर्जी के खिलाफ़ 2015 मे शादी की थी। दोनों बाद में अपने माता-पिता की नफ़रत को कम करने में कामयाब रहे। हालांकि इसमें उनकी शादी के बाद कुछ सालों का वक़्त लग गया। 

हुसैन (बदला हुआ नाम) आगरा के रहने वाले हैं और श्रद्धा (बदला हुआ नाम) झांसी की रहने वाली हैं। दोनों पुणे में काम करते हैं और उन्होंने 2012 से डेटिंग शुरू की थी। श्रद्धा कहती हैं, "जब मेरे माता-पिता को शक हुआ कि मैं किसी और को डेट कर रही हूं, तब उन्होंने मुझ पर शादी का दबाव बनाना शुरू कर दिया। उन्हें बिलकुल नहीं पता था कि मैं एक मुस्लिम लड़के के साथ डेटिंग कर रही हूं। हमने अपनी सुरक्षा के लिए शादी कर ली, क्योंकि अगर मैं कानूनी तौर पर शादीशुदा हूं, तो वे चाहकर भी कुछ नहीं करेंगे। हमें राइट टू लव कैंपेन के बारे में भी पता चला।"

राइट टू लव कैंपेन

राइट टू लव कैंपेन सुशांत आशा और अभिजीत के चलाते हैं। दोनों पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। वे लोग विरोध का सामना कर रहे जोड़ों को पुलिस द्वारा सुरक्षा उपलब्ध करवाने में मदद करते हैं, शादी के पंजीकरण में उनकी कानूनी सहायता करते हैं, अगर ऐसे लड़के-लड़कियों को तनाव का सामना कना पड़ रहा है, तो उन्हें चिकित्सकीय सहायता उपलब्ध कराते हैं। यह लोग नौकरियां हासिल करने में भी उनकी मदद करते हैं। 

हरियाणा, उत्तरप्रदेश और कर्नाटक में अंतर्धार्मिक विवाह पर प्रतिबंध लगाने की बातों का बाज़ार गर्म है, ऐसे वक़्त में RTL ने जो काम किया है, वह फीका पड़ जाता है। महाराष्ट्र में राइट टू लव ने अब तक 50 से ज़्यादा शादियों में मदद की है, इनमें तीन अंतर्धार्मिक हैं, जबकि बाकी अंतर्जातीय हैं।

RTL से मिली मदद के बारे में बताते हुए हुसैन ने न्यूज़क्लिक से कहा, "हमें इस बात का पता ही नहीं था कि अंतर्धार्मिक जोड़ों को अपनी शादी को स्पेशल मैरिज एक्ट, 1954 के तहत दर्ज कराना होता है। हमने अप्रैल, 2015 में सुशांत और अभिजीत की मदद से शादी की थी। हम डर के मारे दुबई भाग गए और एक साल बाद पुणे वापस लौटे। हमें ज़्यादा डर श्रद्धा के परिवार से था। सौभाग्य से अब उसके और मेरे परिवार ने हमें अपना लिया है।"

सुशांत कहते हैं, "अपने माता-पिता के खिलाफ़ जाने से उनके मानसिक स्वास्थ्य पर तनाव पड़ता है। हमें जोड़ों को काउंसलिंग और मदद देनी होती है। ग्रामीण इलाकों में माता-पिता हिंसात्मक तौर पर भी प्रतिक्रिया दे सकते हैं, यहां तक कि वे हत्या तक भी कर सकते हैं। इतने गंभीर मामलों में हम पुलिस को शिकायत देते हैं और सुरक्षा की मांग करते हैं। पुलिस इस प्रक्रिया में मददगार रही है।"

वह आगे कहते हैं, "हमें शादी करने वालों के सामने कानूनी प्रक्रिया की व्याख्या भी करनी होती है।  उदाहरण के लिए, अगर शादी करने वाले जोड़ा हिंदू है, तो वे हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 के हिसाब से काम कर सकते हैं। हम उनके लिए नौकरी खोजने की भी कोशिश करते हैं, हालांकि हर बार हम इसमें सफल नहीं हो पाते। हमारे पास किसी तरह का निवेश नहीं है। हमारे काउंसलर, वकील और दोस्त हमारी मदद करते हैं।"

भारत में अंतर्जातीय और अंतर्धार्मिक शादियां

एक सर्वे के मुताबिक़, 2019 में दिल्ली में दर्ज हुई कुल शादियों में से सिर्फ़ दो फ़ीसदी ही स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत दर्ज हुई हैं। वहीं 2011 की जनगणना के मुताबिक़, सिर्फ़ 5.8 फ़ीसदी शादियां ही अंतर्जातीय रहीं। जबकि इन्हें प्रोत्साहन देने के लिए कई तरह की योजनाएं चलाई जा रही थीं।

रविंद्र साठे (नाम बदला गया) एक स्थानीय निजी कार्यालय में ड्राइवर हैं। वे आज भी पांच पहले की स्थितियों को यादकर सहम जाते हैं। रविंद्र और उनकी गर्लफ्रेंड को उसके परिवार से जान बचाने के लिए शहरों-शहर भागना पड़ा था। रविंद्र अनुसूचित जनजाति से आते हैं, वे महाराष्ट्र में सांगली के रहने वाले हैं। उन्होंने 8 साल पहले श्रुति के साथ डेटिंग शुरू की, जो उच्च जाति से आती हैं।

रविंद्र कहते हैं, "जब उसके परिवार को पता चला कि हम डेटिंग कर रहे हैं, तो उन्होंने श्रुति की जबरदस्ती 2015 में शादी करने की कोशिश की। श्रुति का परिवार अमीर था और उसके अंकल विधायक थे। इसलिए उन्होंने अपने परिवार की प्रतिष्ठा बचाने के लिए उसकी शादी तय करने का फ़ैसला किया। इसके बाद हम वहां से भाग गए।"

वह कहते हैं, "उसका परिवार हमें मार सकता था, इसलिए हम त्रयंबकेश्वर चले गए, उसके बाद हैदराबाद, फिर वाराणसी पहुंचे। लोग समझ जाते थे कि हम स्थानीय नहीं हैं और घर से भागकर आए हैं। हम परेशान हो चुके थे, हमें लगा कि महाराष्ट्र ही हमारे रहने के लिए सबसे सुरक्षित जगह है। सौभाग्य से रेलवे में एक टिकट चेकर, जो महाराष्ट्रियन था, उसने हमारी स्थिति भांप ली और उसने हमें एक हजार रुपये दिए और हमसे घर वापस लौटने के लिए कहा। मैं भी लगातार चार महीनों तक भाग-भागकर परेशान हो चुका था।"

वह आगे कहते हैं, "इस बीच एक दोस्त ने राइट टू लव का फोन नंबर दिया। सुशांत और उनकी टीम ने हमें भरोसा दिलाया कि उनके पास वकीलों, डॉक्टरों की एक टीम है और मुझे चिंता करने की जरूरत नहीं है। उनके काउंसलर ने हमें बताया कि क्यों हमें अपनी जान की चिंता करने की जरूरत नहीं है। उन्होंने मुझे एक स्कूल बस में ड्राइवर की नौकरी दिलवाने में मदद की। अब मैं बेहतर कर रहा हूं। श्रुति की मां और भाई हमसे बात करते हैं, लेकिन उसके पिताजी अब भी नाराज हैं।"

हिंदुत्व समूहों द्वारा मांग की जा रही है कि शादी के बाद धर्म बदलने पर प्रतिबंध लगाया जाए। इस तरह के कदम की निरर्थकता बता हुए मुस्लिम सत्यशोधक मंडल के शंसुद्दीन तमबोली ने न्यूज़क्लिक से कहा, "गोहत्या रोकथाम कानून की तरह लह जिहाद भी तथ्यों को तोड़-मरोड़कर बनाई गई धारणा है। हिंदुत्ववादी संगठन इनका उपयोग समाज को ध्रुवीकृत करने के लिए करते हैं, जो संविधान के खिलाफ है। गोहत्या रोकथाम कानून के बाद से ही मॉब लिंचिंग की घटनाओं में बढ़ोत्तरी हुई है। हमारे पास पहले से ही धर्म परिवर्तन विरोधी कानून हैं, फिर एक नए कानून की क्या जरूरत है?  इस कानून के आने के बाद, मुस्लिमों पर हमले या उनकी लिंचिंग में इज़ाफा होगा।" MSM ने भी कई अंतर्धार्मिक जोड़ों की शादियां करने में मदद की है।

वह कहते हैं, "इसके बजाए समाज को जोड़ने के लिए अंतर्धार्मिक शादियों को प्रोत्साहन देने के लिए योजनाएं होनी चाहिए। राइट टू लव एक ऐसा संगठन है, जो ऐसा समाज बनाने में योगदान दे रहा है, जिसकी कल्पना महात्मा ज्योतिबा फुले, डॉ बाबासाहेब आम्बेडकर ने की थी। इसी तरह के कई संगठनों को अंतर्धार्मिक और अंतर्जातीय जोड़ों की मदद के लिए आगे आना चाहिए।"

इस लेख को मूल अंग्रेजी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

 

Right to Love Campaign Protecting Interfaith and Intercaste Couples in Rural Maharashtra

 

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