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साल 2019 का चुनाव दुनिया के इतिहास का सबसे खर्चीला चुनाव

सेण्टर फॉर मीडिया स्टडीज की रिपोर्ट के तहत साल 2019 के चुनाव में तकरीबन 60 हजार करोड़ रूपये खर्च हुए। यानी हर एक लोकसभा क्षेत्र पर तकरीबन 100 करोड़ और हर एक वोट की कीमत 700 रुपए। यह इतना बड़ा खर्च है कि इसे दुनिया में अभी तक किसी भी जगह, किसी भी तरह के चुनाव पर हुए खर्चें में सबसे अधिक खर्चा माना जा रहा है।
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चुनाव के परिमाण में हार-जीत दिखाई देती है। लेकिन चुनावी खर्चे की तस्वीर पढ़ने पर ऐसा लगता है कि लोकतंत्र में  केवल हार और हार से सामना हो रहा है । सेण्टर फॉर मीडिया स्टडीज की रिपोर्ट के तहत साल 2019 के चुनाव में तकरीबन 60 हजार करोड़ रूपये खर्च हुए। यानी हर एक लोकसभा क्षेत्र पर तकरीबन 100 करोड़  और हर एक वोट की कीमत 700 रुपए। यह इतना बड़ा खर्च है कि  इसे दुनिया में अभी तक किसी भी जगह, किसी भी तरह के चुनाव पर हुए खर्चें में सबसे अधिक खर्चा माना जा रहा है। इस पूरे खर्चें में 15 -20 फीसदी खर्चा कांग्रेस और 45 -55 फीसदी खर्चा भाजपा का है। इस चुनाव में सबसे अधिक कैंपेन और प्रचार में 20 -25 हजार करोड़ रूपये खर्च किया गया। इतने खर्च के बाद चुनाव केवल चुनाव नहीं रह जाता, एक तरह की ऐसी रस्मआदायगी दिखनी लगती है, जिसमे केवल वही जीत सकता है, जिसके पास अकूत पैसा हो ताकि पानी की तरह पैसा बहाया जा सके।

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उम्मीदवार का कुल खर्चा जहाँ पर 24 हजार करोड़ रहा वहीं दलों का कुल खर्चा 20 हजार करोड़ । यानी कुल खर्च का तकरीबन 40 फीसदी खर्चा उम्मीदवारों से जुड़ा है और 35 फीसदी खर्चा राजनीतिक दलों से। यह रिपोर्ट कहती है कि चुनावी खर्चें में अधिक इजाफा का कारण यह भी है कि करोड़पति उम्मीदवारों की संख्या बढ़ रही है। यह लोग अपना खर्चा भी वहन करते हैं, साथ में अपने दल को भी पैसा देते हैं। कुछ लोकसभा उम्मीदवारों का खर्चा राजनीतिक पार्टियां खुद वहन करती हैं लेकिन अब ऐसी उम्मेदवारों की संख्या में कमी आने लगी है। फिर भी यह देखने को मिलता है, जो पार्टी सत्त्ता में मौजूद होती है, उसके द्वारा अपने लोकसभा उम्मीदवारों का ज्यादा खर्चा उठाया जाता है। पूरी चुनावी खर्च का तकरीबन एक तिहाई खर्च के लिए पैसा कहां से आया, इसका कोई हिसाब -किताब नहीं है।  यानी एक तिहाई  चुनावी राशि के सोर्स का कोई अता पता नहीं है।  

साल 1998  के चुनाव में कुल खर्चा 9 हजार करोड़ था।  साल 2014 में बढ़कर 30 हजार करोड़ हो गया।  और अचानक से  साल 2019 में बढ़कर 60 हजार करोड़ हो गया।  यानी केवल एक  चुनाव में  तकरीबन दो गुना की बढ़ोतरी हुई।  इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि आने वाला चुनाव कितना अधिक महंगा होगा।

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इतने अधिक पैसे की भरपाई  के लिए राजनीतिक  दलों का सहारा रियल एस्टेट, खनन, कॉर्पोरेट /इंडस्ट्री / व्यापर, ठेकेदार, चिट फण्ड - वित्तीय सेवाएं, शैक्षिक उद्यम, विदेशी ,नॉन रेजिडेंट इंडियन, फिल्म ,टेलीकॉम आदि से जुड़े संगठन और लोग बनते है।  यानी इन दोनों के बीच अगर जबरदस्त गठजोड़ है तो चुनावी हार जीत के लिए जमकर पैसा बहाया जा सकता  है। 

अचरज वाली बात तो यह है कि चुनावों  में  खर्चा बढ़ता जा रहा है लेकिन वोट देने के लिए निकलने वाले नागरिकों की संख्या में मामूली बढ़ोतरी हो रही है।  यानी चुनावी खर्च का पहाड़ नागरिकों को वोट देने के लिए  आकर्षित नहीं  करता।  रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख है कि  अभी तक के चुनावी इतिहास में यह  पहली बार हो रहा है कि योजनाओं के सहारे मतददातों को लुभाने के लिए बैंको के जरिये पैसा दिया जा रहा है।  इस रिपोर्ट की भूमिका में पूर्व चुनाव आयुक्त एस. कुरैशी ने लिखा है कि इस चुनाव में 3377 करोड़ रूपये के माल और नकद की जब्ती हुई। और यह राशि 2014 के चुनाव में हुई जब्ती से तीन गुने से भी अधिक है। इस रिपोर्ट को जारी करते हुए पूर्व चुनाव आयुक्त एस कुरैशी ने कहा कि चुनावी भ्र्ष्टाचार हर तरह के भ्रष्टाचार की जननी है।  अगर कोई चुनाव में करोड़  रूपये खर्च कर रहा है तो सरकार  पर करोड़ रूपये वसूल भी करेगा।

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