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सेप्टिक टैंक में 5 मज़दूरों की मौत: शर्मसार और बेदर्द दिल्ली

सरकार ने स्वच्छता अभियान में अधिक से अधिक शौचालयों के निर्माण के लिए दबाव डालने के दौरान अपशिष्ट (मैला) प्रबंधन के लिए कोई प्रावधान नहीं किया है।
Delhi workers' death in septic tank

नई दिल्ली: वे नरेंद्र मोदी सरकार के प्रमुख स्वच्छ भारत मिशन के युवा सैनिक थे, लेकिन हमारे शहरों को स्वच्छ रखने वाले लाखों श्रमिकों की दैनिक जिंदगी उपेक्षा और शोषण की एक दर्द भरी कहानी है।

रविवार को पश्चिम दिल्ली की डीएलएफ कैपिटल ग्रीन्स की आवासीय कॉलोनी में हुई दुर्घटना के बाद दु:ख और गुस्से से भरपूर भीड़ अपने परिवार के सदस्यों की मौत के लिए न्याय मांगने के लिए एकत्र हुई, जो सीवेज ट्रीटमेंट टैंक की सफाई करते समय परिसर के अंदर ही मर गए थे।

पाँच मज़दूर विशाल, उमेश, राजा, पंकज और सरफराज (22-30 साल की उम्र) ने सेप्टिक टैंक को साफ करने के लिए मोती नगर में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) में प्रवेश किया था। रिपोर्ट के अनुसार, उमेश

एसटीपी में प्रवेश करने वाले पहले व्यक्ति थे और जल्द ही बेहोश हो गए, जिसके बाद अन्य चार उन्हें बचाने के लिए टैंक में उतरे और वे भी जहरीली गैस का शिकार हो गए। पीड़ितों को अस्पताल ले जाया गया जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।

जैसे ही मौत की खबर सार्वजनिक हुई आवासीय कॉलोनी के बाहर लगभग 200 लोगों की जमा हो गई। सभी ने पुलिस पर लापरवाही का आरोप लगाया। पुलिस के मुताबिक, टैंक की सफाई के दौरान मजदूरों ने सुरक्षा उपकरण नहीं पहन रखे थे।

इस बीच, दिल्ली सरकार ने जांच का आदेश दिया है और तीन दिनों के भीतर एक रिपोर्ट मांगी है।

टैंक साफ करने के लिए मजबूर किया गया?

रिपोर्टों के मुताबिक, मृतकों के परिवार के सदस्यों और सहयोगियों ने बताया कि सेप्टिक टैंक की सफाई उनके काम का हिस्सा नहीं थी। वे ठेकेदार से जवाब भी चाहते थे कि क्यों उन्हें सीवेज टैंक की सफाई के लिए भेजा गया। परिवारों ने आरोप लगाया है कि सभी मजदूरों को यह धमकी देते हुए टैंक साफ करने के लिए भेजा गया कि वरना उन्हें नौकरी से निकाल दिया जाएगा।

हालांकि, पुलिस ने इस तरह के आरोपों को खारिज कर दिया है। द हिंदू अखबार की रिपोर्ट के अनुसार, पुलिस के मुताबिक मृतकों में से केवल एक ही हाउसकीपिंग स्टाफ का सदस्य था, जबकि अन्य उसे बचाने के लिए आए थे।

इस बीच, आईपीसी धारा 304-ए (लापरवाही के कारण मौत) के तहत एक मामला दर्ज किया गया है। द हिंदू के मुताबिक दिल्ली पश्चिम की डीसीपी मोनिका भारद्वाज ने बताया कि “हमने आईपीसी धारा 304-ए (लापरवाही से मौत के कारण) और अन्य प्रासंगिक धाराओं के तहत मामला दर्ज किया है। यह पाया गया है कि उन्हें टैंक में जाने के दौरान सुरक्षा बेल्ट या मास्क प्रदान नहीं किए गए थे।”

दिल्ली सरकार की विफलता?

दिल्ली सरकार के एक सर्वेक्षण के मुताबिक, दिल्ली में 32 मैनुअल स्कैवेंजर्स (हाथ से मैला ढोने वाले) मिले जिनमें से ज्यादातर दिल्ली के दो जिलों- पूर्व और पूर्वोत्तर दिल्ली में पाए गए। सर्वेक्षण ने दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) द्वारा किए गए दावों की पोल खोल दी , जिसने दिल्ली उच्च न्यायालय में एक रिपोर्ट जमा कर दावा किया था कि उनके यहां मैनुअल स्कैवेंजर्स नहीं हैं। सर्वेक्षण के बाद, यह निर्णय लिया गया कि दिल्ली सरकार 32 चिह्नित श्रमिकों को सुरक्षा उपकरण और प्रशिक्षण देगी।

“सरकार 32 पहचाने गए श्रमिकों को सीवरों और टैंकों की यांत्रिक सफाई के लिए मशीनों और उपकरणों को उपलब्ध कराने के साथ-साथ प्रशिक्षण प्रदान करेगी।” यह कहना था दिल्ली सरकार के सामाजिक कल्याण मंत्री राजेंद्र पाल गौतम का। गौतम ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया था कि 200 सफाई कर्मियों को सीवर सफाई मशीन खरीदने में मदद के लिए ऋण प्रदान करने के लिए 2 अक्टूबर से एक योजना भी शुरू की जाएगी। हालांकि, ध्यान दे, कि आंकड़ों में सेप्टिक टैंक क्लीनर शामिल नहीं हैं।

इससे एक महत्वपूर्ण सवाल उठता है कि मशीनों को देने के लिए कहां 32 श्रमिकों की पहचान और प्रशिक्षित किया गया? और देश में यह प्रथा समाप्त होने के बाद भी मैनुअल स्कैवेंजर्स क्यों काम कर रहे थे।

सामाजिक कार्यकर्ता दिनेश अब्रोल ने कहा कि “सरकारें केवल वादा करती रही हैं और बयान देती हैं, यही कहानी मौजूदा सरकार की भी है। कल क्या हुआ स्पष्ट रूप से दिखाता है कि जमीन पर कुछ भी नहीं हो रहा है और वे अछूतों और दलितों की स्थिति में सुधार नहीं करनाचाहते हैं।”

एक अन्य सर्वेक्षण में, केंद्र सरकार की टास्क फोर्स ने हाल ही में भारत में 53,236 मैनुअल स्कैवेंजर्स की गणना की है, जो 2017 में 13,000श्रमिकों की तुलना में चार गुना की वृद्धि है। हालांकि आंकड़े एक अनुमान के रूप में हैं। ये डेटा 600 जिलों के मुकाबले केवल 121 में से एकत्र किया गया है। यह सर्वेक्षण नेशनल सफाई कर्मचारी फाइनेंस एंड डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (एनएसकेएफडीसी) द्वारा किया गया था,जिन्हें

मैनुअल स्कैवेंजर्स की पहचान करने का कार्य दिया गया था क्योंकि सरकार ने रोजगार के निषेध के अनुसार मैनुअल स्कैवेंजर्स और उनके पुनर्वास अधिनियम-2013 के रूप में ऐसे श्रमिकों की क्षतिपूर्ति और पुनर्वास की घोषणा की थी। हालांकि बिहार, जम्मू-कश्मीर, झारखंड,कर्नाटक, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल में सर्वेक्षण अभी तक आयोजित नहीं किया गया है। इसके अलावा विभिन्न राज्यों से सर्वेक्षण करने में गलतियों और अन्य चूक की रिपोर्ट भी मिली हैं। इसके अलावा, सर्वेक्षण में मैनुअल स्कैवेंजर्स के सबसे बड़े नियोक्ता भारतीय रेलवे में

सीवर और सेप्टिक टैंक और सफाई करने वालों की सफाई शामिल नहीं है।

कानून का उल्लंघन

मैनुअल स्कैवेंजिंग (हाथ से मैला ढोना) को 1993 में अवैध कर दिया गया था, सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई को हाल ही में संशोधित अधिनियम 2013 में खतरनाक पाया गया था। मैनुअल स्कैवेंजर्स और उनके पुनर्वास अधिनियम, 2013 के रूप में रोजगार के निषेध के अनुसार, मैनुअल स्कैवेंजर्स के रोजगार, सुरक्षा उपकरणों के बिना सीवरों और सेप्टिक टैंक की हाथ से सफाई प्रतिबंधित है। इस अधिनियम के तहत उन्हें वैकल्पिक रोजगार प्रदान करके मैनुअल स्वेवेंजर्स के पुनर्वास की भी माँग की गई थी।

बार-बार प्रयासों के बाद, दिल्ली सामाजिक कल्याण मंत्री गौतम टिप्पणी के लिए उपलब्ध नहीं थे। इस मुद्दे पर सफाई कर्मचारी आंदोलन के संयोजक, बेजवाड़ा विल्सन से भी बात करने की कोशिश की गई लेकिन पीड़ित परिवार के सदस्यों के साथ होने की वजह से वे बात करने के लिए उपलब्ध नहीं हो पाए।

मैन्युअल स्कैवेंजिग को प्रतिबंधित करने वाले कानून के बाद भी, पूरे देश से 2017 में इस वजह से मौत के 300 से अधिक मामलों की सूचना मिली। इसका मतलब है कि हर एक दिन लगभग एक सफाई कर्मी की मौत होती है।

सफाई कर्मचारी आंदोलन द्वारा बताए गए आंकड़ों के मुताबिक, भारत में 26,00,000 शुष्क शौचालय क्लीनर, 7,70,000 सीवर क्लीनर, 36,176 रेलवे क्लीनर हैं। एसकेए के मुताबिक, पिछले कुछ सालों में जहरीले गैसों की वजह से 1,760 लोगों की मौत हो गई है क्योंकि वे नालियों और बंद मेनहोल में प्रवेश कर उनकी सफाई करते हैं।

स्वच्छ भारत अभियान का क्या मतलब?

वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह जो एसकेए से भी जुड़ी हैं, मानती हैं कि नरेंद्र मोदी सरकार के स्वच्छ भारत अभियान का मैनुअल स्कैवेंजिंग को खत्म करने पर ध्यान केंद्रित नहीं रहा है बल्कि वे केवल अधिक शौचालयों के निर्माण पर जोर देते रहे हैं। न्यूज़क्लिक से बातचीत में उन्होंने कहा कि पिछले चार वर्षों में, दिल्ली और देश भर में ऐसी घटनाएँ इस तथ्य को साबित करती हैं कि स्वच्छ भारत अभियान मूल रूप से अधिक शौचालय बनाने के बारे में है। शौचालयों के साथ मल या मैले को संभालने के लिए कोई प्रावधान किए बिना अधिक सेप्टिक टैंक और अधिक सीवर लाइनें बनायी जाती हैं। जब स्वच्छ भारत की घोषणा की गई, तो लोगों ने सोचा कि यह मैनुअल स्कैवेंजिंग को खत्म करदेगा लेकिन हुआ इसके उलटा। अब तो मैनुअल स्कैवेंजिंग की घटनाएँ और मौतें बढ़ गई हैं।

उन्होंने कहा कि “सर्वोच्च न्यायालय के फैसले और नए अधिनियम को लागू करने की कोई राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं है।इसके अलावा,अगर शौचालय बनाया गया है तो, मैं ताज विवांता और डीएलएफ जैसे पॉश क्षेत्रों में बने शौचालय के बारे में बात कर रही हूं, यह कैसे संभव है कि अपशिष्ट (मैला) को संभालने की कोई सुविधा न हो?”

चूंकि स्वच्छ भारत अभियान की चौथी सालगिरह 2 अक्टूबर को आ रही है, यह विचार उलटा पड़ गया है। द वायर के एक लेख के अनुसार ये पाया गया कि सामाजिक न्याय मंत्रालय और सशक्तिकरण मंत्रालय के मैनुअल स्कैवेंजर्स (एसआरएमएस) के पुनर्वास के लिए स्व:रोजगार योजना के तहत पुनर्वास के लिए मौजूदा सरकार से कोई धन नहीं मिला है। हाल ही में, द वायर द्वारा दायर आरटीआई के जवाब में, यह खुलासा हुआ था कि वर्तमान सरकार द्वारा 2 सितंबर, 2017 तक मैनुअल स्कैंवेजर्स के पुनर्वास के लिए एक पैसा नहीं दिया था।

रिपोर्ट के अनुसार, 2006-07 के वित्तीय वर्ष से 2013-14 तक पहले इस योजना के तहत कुल 226 करोड़ रुपये जारी किए गए थे। मोदी सरकार ने कोई और नया धन जारी नहीं किया है, जबकि एसबीए यानी स्वच्छ भारत अभियान को अपनी प्रमुख उपलब्धियों में से एक के रूप में प्रचारित करने के लिए करोड़ों खर्च किए गए हैं।

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