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बच्चों के सलीम अली

बच्चों के लिए सलीम अली: ज़ै व्हाइटेकर द्वारा लिखित 'द बर्ड मैन ऑफ इंडिया' इस प्रतिभाशाली व्यक्ति की कहानी को जीवंत करती है जिसने अपने पीछे एक स्थाई विरासत छोड़ी है।
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सलीम अली या सलीम भाई, जैसा कि उन्हें बुलाया जाता था, दुनिया के अग्रणी पक्षी विज्ञानियों में से एक थे। भारत के बर्डमैन कहे जाने वाले सलीम अली का जीवन उनके काम की तरह ही असाधारण था।

बच्चों के लिए सलीम अली: ज़ै व्हिटेकर द्वारा लिखित द बर्ड मैन ऑफ इंडिया (हैशेट इंडिया, 2023) इस प्रतिभाशाली व्यक्ति की कहानी को जीवंत करती है जिसने अपने पीछे एक स्थायी विरासत छोड़ी है। यह पुस्तक भारत, बर्मा और यूरोप में पक्षी वैज्ञानिकों के जीवन और कार्य का वर्णन करती है।

निम्नलिखित अंश इसी पुस्तक से है:

अब हम उन्हें सलीम भाई कहना शुरु कर सकते हैं, क्योंकि वह इसी संबोधन से व्यापक रूप से जाने जाते थे। वह इतने विद्वान और इतने महत्वपूर्ण होते जा रहे हैं कि उन्‍हें केवल 'सलीम' कहना ही नहीं चाहिए। कुछ ही समय में, वह 'मिस्टर' कहलाना बंद कर देंगे और डॉ. सलीम अली बन जायेंगे क्योंकि बॉम्बे यूनिवर्सिटी ने उन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया था। यह एक दुर्लभ सम्मान था, जो सीखने के एक विशेष क्षेत्र में बहुत असाधारण छात्रों को बहुत विचार-विमर्श और कई बैठकों के बाद दिया जाता है।

अपनी मृत्यु के समय तक, डॉ. सलीम अली महान भारतीयों में से एक, राष्ट्रीय नायक थे। कई मायनों में वह हमारी महान प्रेरणा में से एक, महात्मा गांधी की तरह थे। गांधी जी और सलीम अली दोनों एक महत्वपूर्ण उद्देश्य के प्रति समर्पित थे और उसके लिए जिए थे। गांधी जी भारत के लिए आज़ादी के प्रतीक थे और सलीम भाई पक्षियों केे लिए। दोनों ने इन उद्देश्यों के लिए बहुत मेहनत की। दोनों व्यक्ति अपने देश से प्यार करते थे और उन्हें भारतीय होने पर गर्व था। दोनों महान पाठक और लेखक थे। दोनों को पैदल चलना पसंद था और उन्होंने सैकड़ों मील की दूरी पैदल तय की थी - गांधीजी ने नंगे पैर और सलीम भाई ने मोटे, भारी जूतों में। उन्‍होंने न धन-संपत्ति, न अच्छे कपड़े और न ही महंगी वस्तुओं की कभी परवाह की।

दोनों के बाल बहुत कम थे। दोनों भारत में ब्रिटिश राज के बड़े विरोधी थे। उन्हें युवाओं का साथ पसंद था और वे साहसी थे। दोनों में हास्य की बहुत अच्छी समझ थी और वे खुल कर हंसते थे।

जर्मनी से सलीम भाई की वापसी पर, भविष्य के इस सारे गौरव ने बहुत ज़्यादा मदद नहीं की। वहां एक सरप्राइज़ उनका इंतज़ार कर रहा था हालांकि वह सुखद नहीं था।

प्रिंस ऑफ वेल्स संग्रहालय में उनकी पोज़ीशन रद्द कर दी गई। सरकार ने गाइड लेक्चरर के पद को खत्म करने का फैसला किया था और सलीम भाई एक बार फिर बेरोज़गार हो गए थे। अच्छी बात यह थी कि बर्लिन और ब्रिटिश संग्रहालय के अनुभवों ने उनमें एक नया आत्मविश्वास और शक्ति भर दी थी। वह और तहमीना कुछ समय के लिए बंबई के दक्षिण में एक तटीय गांव किहिम गए, जहां उनके परिवार की एक छोटी-सी झोपड़ी थी। एक दिन, निचली पहाड़ियों से घिरे सुंदर लेकिन खरोंचदार झाड़ियों वाले जंगल में घूमते हुए, सलीम भाई को एक वीवर पक्षी, या 'बया' दिखाई दिया। फिर उन्‍होंने कुछ और देखा। उन्‍हें एहसास हुआ कि यह बयाओं की एक बस्ती थी और वे घोंसला बना रहे थे। अगले 3 या 4 महीनों तक, दिन में कई घंटों तक, सलीम भाई इन आकर्षक पक्षियों को देखते रहे। उनके नोट्स और अवलोकन प्रसिद्ध होने वाले थे।

सलीम भाई को पता चला कि नर बया एक अद्भुत बिल्डर (निर्माता) है और मादा बया उसे उसके रूप या रंग के कारण नहीं बल्कि उसके निर्माण कौशल के लिए हमसफ़र के रूप में चुनती है।

कई नर पक्षी इकठ्ठा होते हैं और एक आवासीय कॉलोनी शुरू करते हैं, हर एक नर पक्षी बड़ी सावधानी से बोतल के आकार का घोंसला बनाता है। जब घोंसले आधे-अधूरे बन जाते हैं, तो बया महिलाओं का एक शोर मचाता दल उनका निरीक्षण करने पहुंचता है। बाज़ार में सब्ज़ियां खरीदने या अस्वीकार करने वाली महिलाओं की तरह, वे एक घोंसले से दूसरे घोंसले तक जाती रहती हैं, जब तक कि उन्हें अपनी पसंद की कोई चीज़ न मिल जाए। नर इधर-उधर फड़फड़ाता है, उत्सुकता से उसके फैसले का इंतज़ार करता है। यदि वह 'हां' कहती है, तो वह अंदर चला जाता है और वह निर्माण कार्य जारी रखता है। सलीम भाई ने यह भी पाया कि नर बया सिर्फ एक पत्नी से संतुष्ट नहीं है। जैसे ही एक घोंसले पर पत्नी का क़ब्ज़ा हो जाता है, वह आगे बढ़ता है और दूसरा घोंसला बनाना शुरू कर देता है। वह चार या पांच परिवारों के साथ समाप्त होता है। यह पहली बार था कि बया के प्रजनन जीव विज्ञान को ठीक से देखा और समझा गया।

यह एक अग्रणी अध्ययन था और इस पर उन्होंने जो वैज्ञानिक पेपर लिखा वह एक क्लासिक बन गया है। बया अध्ययन से यह भी पता चलता है कि एक अच्छे पर्यवेक्षक के हाथ में सिर्फ एक नोटबुक और पेंसिल कितनी शक्तिशाली हो सकती है।

इसलिए 1930 का 'बेरोज़गारी का वर्ष' उनके लिए बहुत फलदायी साबित हुआ। तभी, किहिम की शांति में, उन्होंने 'द बुक ऑफ़ इंडियन बर्ड्स' पर काम करना शुरू किया। यह पुस्‍तक हर भारतीय पक्षी प्रेमी की दोस्‍त बन गई।

बुनकर पक्षियों को कड़ी मेहनत करते देखते हुए, सलीम भाई भविष्य के लिए अपनी छोटी-छोटी योजनाएं बुन रहे थे। 'नौकरी की तलाश बहुत हो गई,' उन्‍होंने फैसला किया कि 'मैं बस अपना खुद का आविष्कार करूंगा' और उन्‍होंने ऐसा ही किया।

यह ज़ै व्हिटेकर की पुस्‍तक 'सलीम अली फॉर चिल्ड्रन: द बर्ड मैन ऑफ इंडिया' का एक अंश है, जिसे हैशेट इंडिया द्वारा 2023 में प्रकाशित किया गया। लेखक की अनुमति से इसे यहां पुनः प्रकाशित किया गया है।

ज़ै व्हिटेकर मुंबई में प्रकृतिवादियों के परिवार में पलीं-बढ़ीं। वह अब चेन्नई के पास मद्रास क्रोकोडाइल बैंक में रहती हैं और काम करती हैं, जिसे उन्होंने 40 साल से भी पहले स्थापित करने में मदद की थी। वह पुरस्कार विजेता 'सलीम मामू एंड मी' समेत कई पुस्तकों की लेखिका हैं।

साभार: इंडियन कल्‍चर फोरम

अंग्रेज़ी में प्रकाशित इस लेख का पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

Sálim Ali for Children

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