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सनातन संस्था बेनक़ाब, साधकों के ख़तरनाक मनसूबे कैमरे में क़ैद

सनातन संस्था के साधकों ने संगठन के संरक्षण में आतंकी गतिविधियों में शामिल होने की बात कबूल की है। इंडिया टुडे द्वारा प्रसारित एक वीडियो में इसे दिखाया गया है।
sanatan sanstha

गोवा के पोंडा में सनातन संस्था का मुख्यालय सभी आतंकवादी गतिविधियों का केंद्र है। ये खुलासा इंडिया टुडे की एक जांच में हुआ है। इंडिया टुडे की जांच दल ने सनातन संस्था के दोनों साधक मंगेश दिनकर निकम और हरिभाऊ कृष्णा दिवेकर से हुई बातचीत को ख़फिया कैमरे में कैद कर किया हदोनों को दस साल पहले वाशी और थाणे में बम विस्फोट के मामलों में अदालत ने बरी कर दिया था। दोनो ने कैमरा के सामने कथित घटना में बम प्लांट करने में सीधे तौर पर शामिल होने की बात स्वीकार की। निकम ने स्वीकार किया कि उसने मराठी नाटक 'आमही पचपुते’ देखने के लिए आए लोगों को डराने के लिए वाशी में विस्फोटक रखा था। सनातन संस्था के अनुसार इसमें गलत तरीक़े से हिंदू देवी-देवताओं को दर्शाया गया थािकर ने विस्फोटकरखने की बात बूल क

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थाणेपनवेल और वाशी में साल 2008 के बम हमलों के सिलसिले में निकम को सात साल पहले सुनवाई के दौरान अदालत ने बरी कर दिया था। इंडिया टुडे टीम के साथ बातचीत करते हुए निकम ने वाशी में बम रखे जाने को बूल किया और कहा, "मैं वाशी में था। मैंने इसे (आईईडी) रखा और बाहर आया। यह मेरी भूमिका थी।" 45 वर्षीय निकम ने यह भी कहा कि वह साल 2000 से एक संस्था साधक रह है और उसने स्वीकार किया कि हमले की योजना महाराष्ट्र के पनवेल के संस्था में तैयार की गई थी। दिवेकर भी संस्था का साधक है और सबूत की कमी के कारण उसे बरी कर दिया गया था। उसने इंडिया टुडे टीवी की जांच टीम से स्वीकार किया कि उसके पास विस्फोटक थेऐसा हीकुछ जो कि आतंकवाद विरोधी दल (एटीएसने अपनी चार्जशीट में दर्ज नहीं किया था।

सनातन संस्थान की आतंकी गतिविधियां

एक हिंदू राष्ट्र बनाने को लेकर धार्मिक युद्ध के लिए लाख कार्यकर्ताओं की सेना बनाने का दावा करने वाला ये आतंक संगठन आतंकवादी गतिविधियों के कई मामलों में आरोपी रहा है। साल 1999 में हाइपोथेरेपिस्ट प्रशिक्षित जयंत बालाजी अले द्वारा इस संस्था को स्थापित किया गयाउसने इसे "आध्यात्मिकसंगठन का नाम दियासाल 2009 में आध्यात्मिकता के इस मुखौटा का उस समय पर्दाफाश हो गया जब संगठन का नाम साल 2009 के मडगांव विस्फोट में सामने आया थातब से इससंगठन का नाम बम विस्फोटों और हत्याओं से जुड़े कई अन्य मामलों में सामने आया है। नरेंद्र दाभोलकरगोविंद पंसारेएमएम कलबर्गि और गौरी लंकेश की राजनीतिक हत्याओं के मामले में सीबीआईसीआईडी और कर्नाटक तथा महाराष्ट्र के एसआईटी की चल रही जांच ने फिर से संस्थान को सुर्खियों में ला दिया है।

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राजनीतिक संरक्षण पर सवाल

इसका नाम फिर से सामने आने के बादसनातन संस्था पर प्रतिबंध लगाने की मांग तेज़ हो गई है। सवाल यह है कि संगठन पर प्रतिबंध लगाना क्यासमाधान है। हालांकिअभी तक कई सवाल क़ायम है कि संगठन के संस्थापक और पदाधिकारी की जांच क्यों नहीं की गई हैगोवा पुलिस के एसएचओ सीएल पाटिलऔर एटीएस इंस्पेक्टर सलीम शेख ने इंडिया टुडे की जांच टीम के साथ बोलते हुए कैमरे के सामने कहा है कि संस्था को कुछ राजनेता सेराजनीतिक संरक्षण प्राप्त हैनेताओं की पत्नी संस्था की साधक है और इस तरह जांच एजेंसियों पर दबाव बनता है।

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संस्था ने फिर नफरत पैदा करने वाले प्रचार शुरू किया

इस बीचजब रिकॉर्ड किए गए वीडियो को इंडिया टुडे द्वारा प्रसारित किया गयातो इस सनातन संस्था ने जांच दल के पत्रकारों की तस्वीरें प्रकाशित करके अपनी शैली में घृणित प्रचार शुरू किया।

आतंकी गतिविधियों को उजागर करने वाले पत्रकारों के ख़िलाफ़ सनातन संस्था का नफरत भरा प्रचार शुरू।

नफरत भरे पोस्ट को अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित कर दिया है जिसमें दावा किया गया है कि सनातन संस्थान के वकील संजीव पुनालेकर ने 27 सितंबर, 2018 को महाराष्ट्र सरकार को एक पत्र भेजा था। इस पत्र में पुनालेकर ने कहा, "थाणेवाशी और मर्गाओ बम विस्फोट के मामलों में बरी हुए कुछ लोगों से दो व्यक्तियों ने हाल ही में मुलाकात की और जानकारी इकट्ठा करने की कोशिश की। कथित 'हिंदू आतंकवादके कई मामलों में आरोपी को बरी कर दिया गया है लेकिन मामले का समाधान करना अभी बाकी है। इसलिए सवाल उठता है कि इन मामलों के असली मास्टरमाइंड ने इन लोगों को जानकारी इकट्ठा करने के लिए भेजा है। इन व्यक्तियों के पास उक्त लोगों के पते और वर्तमान नंबर भी था। हिंदुओं के कपड़े पहने ये लोग पाकिस्तानी या आईएसआईएस आतंकवादी भी हो सकते हैं।"

यह पहली बार नहीं है जब इस संस्था ने उन लोगों के ख़िलाफ़ ऐसे घृणित प्रचार का सहारा लिया है जिन्होंने उन्हें बेनक़ाब करने की कोशिश की है। यह संस्था द्वारा झूठी कहानी बनाने और अपने अनुयायियों को उत्तेजित करने का एक प्रयास है जो अपने गुरू जयंत बालाजी अठवाले के निर्देशों पर काम करते हैं। अब सवाल यह है कि क्या जांच एजेंसियां और महाराष्ट्रगोवा तथा कर्नाटक की सरकारें और केंद्र सरकार भी इस जांच को एक सबूत के रूप में मानेगी?

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