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सनातन संस्था पर कोई कार्यवाही नहीं

अब यह बात सबके सामने है कि यह संगठन चार राजनीतिक हत्याओं के पीछे था , लेकिन फिर भी न तो इसके मुखिया अठावले और न ही इसके दूसरे नेताओं पर कोई कार्यवाही की गयी है।
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गोवा स्थित हिंदू आतंकवादी संगठन सनातन संस्था और इसके संस्थापक को महाराष्ट्र आतंकवाद विरोधी दल (एटीएस), पुलिस, महाराष्ट्र और गोवा की राज्य सरकारें और केंद्र सरकार द्वारा अभी भी कोई कार्रवाई नहीं की गई है। इस सनातन संस्था का नाम विशेष जांच दल (एसआईटी) ने ही रखा है जो पत्रकार व कार्यकर्ता गौरी लंकेश की हत्या की जांच कर रही है। इसका नाम न केवल गौरी लंकेश की हत्या में सामने आया है बल्कि डॉ नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पांसारे और एमएम कलबूर्गी की हत्याओं में भी सामने आ चुका है। एसआईटी ने सनातन संस्था और उसके सहयोगियों की बड़े षड्यंत्र को भी सामने लाया है।

10 अगस्त, 2018 को सनातन संस्था के समर्थक और हिंदू गोवंश रक्षा समिति के सदस्य वैभव राउत को एटीएस ने गिरफ्तार कर लिया था। एटीएस ने उसके घर पर छापा माराऔर कम से कम आठ देसी बम और अन्य विस्फोटक सामग्रियों सहित सनातन संस्था का साहित्य बरामद किया। राउत के बयान पर एटीएस ने शरद कालस्कर और सुधनवा गोंढ़लेकर को ट्रैक किया जो विस्फोटक और विभिन्न हथियारों को ज़खीरा जमा कर रहे थे और महाराष्ट्र के विभिन्न हिस्सों में इन विस्फोटकों को लगाने की योजना बनाई थी। एटीएस ने माना कि तीनों सनातन संस्था के सदस्य थे।

एटीएस की गिरफ्तारी और एसआईटी खुलासे के बाद महाराष्ट्र, कर्नाटक और गोवा के नागरिक समाज इस आतंकवादी संगठन पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे हैं। हमारे सामने दो महत्वपूर्ण प्रश्न हैं: पहला यह कि, सनातन संस्था पर प्रतिबंध लगाना क्या समाधान है? अगर जवाब हां है, तो प्रतिबंध किस उद्देश्य पर होगा? और यदि उत्तर नहीं है,तो उभरते दृढ़ साक्ष्य इस संगठन को एक आतंकवादी संगठन के रूप में स्थापित करते हैं, ऐसे में इसके साथ क्या किया जाना चाहिए? और दूसरा प्रश्न यह कि, क्या मौजूदा सरकार एक हिंदू राष्ट्र की विचारधारा के प्रति निष्ठा के साथ, सनातन संस्था पर कार्रवाई करेगी, एक संगठन जिसमें से सत्तारूढ़ दल बीजेपी और इसकी जन्मदाता आरएसएस दोनों खुद को दूर कर रहे हैं? सनातन संस्था की संरचना, विचारधारा और कार्यप्रणाली पर नज़र डालने पर हमें इन दोनों सवालों के जवाब मिल जाएंगे।

ये संगठन "धर्म की सुरक्षा" और हिंदू राष्ट्र की स्थापना के लिए एक उपकरण के रूप में हिंसा का समर्थन और वकालत करता है। अतीत में कई बम विस्फोट के मामलों में इस संगठन के कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया है। सनातन संस्था को भी दोषी पाया गया था और उसके दो समर्थकों को 4 जून, 2008 को ठाणे में गडकरी रंगयातन ऑडिटोरियम में बम विस्फोटों के मामले में 10 साल जेल की सजा दी गई थी। यह एक फिल्म अम्ही पाचपूते के ख़िलाफ़ विरोध में किया गया था, उनका दावा था कि इसमें हिंदू देवताओं को नज़रअंदाज़ किया गया था। गिरफ्तार किए गए लोग वर्तमान में ज़मानत पर बाहर हैं।

गोवा पुलिस ने अक्टूबर 2009 में गोवा के मडगांव में हुए बम विस्फोट में शामिल छह सनातन संस्था के सदस्यों को गिरफ्तार किया था। पुलिस के मुताबिक़ सनातन संस्था के दो समर्थक मलगोंडा पाटिल और योगेश नायक कथित रूप से मडगांव में नरकसुर प्रतिमा प्रतियोगिता के पास बम रखने के लिए अपने स्कूटर में बम ले जा रहे थे। दोनों की मौत समय से पहले बम विस्फोट के चलते हो गई थी।

राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने मामले की जांच शुरू की। जांचकर्ताओं ने आरोप लगाया कि एक सनातन संस्था का एक सदस्य जो एक इंजीनियरिंग छात्र था उसने इम्प्रोविज्ड विस्फोटक उपकरण (आईईडी) तैयार करने और विस्फोट के लिए डिटोनेटर्स और टाइमर उपकरणों को ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। हालांकि, सभी छः सदस्यों को बरी कर दिया गया वहीं कुछ सनातन संस्था के सदस्य अभी भी फरार हैं।

संगठन को प्रतिबंधित करने की पहली मांग साल 2011 में एटीएस द्वारा की गई थी, और फिर 2015 में की गई थी। साल 2011 में प्रतिबंध का अनुरोध करते हुए एटीएस रिपोर्टने कहा था,

"वासी , पनवेल , थाणे और गोवा की घटनाओं को देखते हुए यह ज़ाहिर होता है कि जिन्हे गिरफ्तार किया गया ,जिनकी तलाश है और जो आरोपी हैं उन्होंने एक गैर कानूनी संगठन बनाया जिससे आतंकी घटनाओं को बढ़ावा दिया जाए और अंजाम तक पहुँचाया जाए और विभिन्न धर्मों के लोगों के बीच दुश्मनी पैदा की जाए। साथ ही राज्य की स्वायत्ता को चुनौती दी जाए या युवाओं को भड़काया जाए कि वह उन आईडीज़ के ज़रिये आतंकी गतिविधियां करें  जिनका खरीदा जाना , बेचा जाना और रखा जाना राज्य के कानून के खिलाफ है और इस तरह इन्होने भारत सरकार के खिलाफ जंग छेड़ने की कोशिश की है। "

केंद्र सरकार को विश्वास नहीं था कि सनातन संस्था एक आतंकवादी संगठन था। साल 2015 में, दाभोलकर, पांसारे और कालबूर्गि के मामलों की जांच में एटीएस ने एक बार फिर प्रतिबंध की मांग की एक रिपोर्ट प्रस्तुत की। हालांकि, अब लगता है कि एटीएस ने अपनी स्थिति को बदल दिया है कि संगठन पर प्रतिबंध लगाने से कोई उद्देश्य प्राप्त नहीं होगा क्योंकि सनातन संस्था कोई 'एक संस्था' नहीं है।

सनातन संस्थान और इसके अवतार

सनातन संस्था की स्थापना और पंजीकरण एक हाईपोथेरेपिस्ट डॉक्टर जयंत बालाजी अठवाले ने किया था महाराष्ट्र के गृह विभाग के मुताबिक़, सनातन संस्था में बीस अन्य पंजीकृत संगठन हैं और इन सभी संगठनों में अलग-अलग इकाइयां हैं, और इन इकाइयों को स्वतंत्र रूप से पंजीकृत किया गया है। यह संगठन जो एक संस्था के रूप में पंजीकृत नहीं है बल्कि हर ज़िले और शहर में अलग इकाइयों के रूप में है, विभिन्न नामों के साथ केवल गोवा में विभिन्न आश्रम भी हैं। इसका मतलब यह है कि सनातन संस्था चारों तरफ फैली हुआ है। हिंदू जनजागृति समिति या हिंदू युवा सेना की तरह सनातन संस्था विभिन्न संगठनों के माध्यम से संचालित होता है। सनातन संस्था के इन असंख्य सहयोगी- जो एक संगठन के रूप में हिंदू धर्म को प्रचारित करने और 'हिंदू राष्ट्र' के लिए लड़ने का वचन देते हैं, पूरे ज़िला और शहर में हिंदू महोत्सव मनाते, या हिंदू राष्ट्र पर कार्यशालाओं का आयोजन करते हैं।

उदाहरण के लिए, सनातन संस्था ने हाल ही में नांदेड ज़िले के जालकोट में एक कार्यक्रम आयोजित किया था। वेबसाइट ने लिखा, "मार्गदर्शन के लिए सनातन संस्था के शुभचिंतकों और उसके विज्ञापन दाताओं और जलकोत पंचायत समिति के निर्माणाअध्यक्ष रमाकांत रायवार द्वारा सनातन संस्थान की अनीता बूंगे को भागवत सप्तह में आमंत्रित किया गया था। 'हिंदू धर्म, हिंदू राष्ट्र, धर्म शिक्षण' पर मार्गदर्शन से 500 भक्तों को लाभ हुआ।" वेबसाइट ने यह भी लिखा कि आरएसएस के स्वयंसेवक भी इस कार्यक्रम का हिस्सा थे।

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कोल्हापुर में जहां कॉमरेड गोविंद पांसारे की हत्या कर दी गई थी, सनातन संस्था और उसके सहयोगियों (अनामित) ने एक आयोजन कर के अपने संस्थापक अठवाले के जन्मदिन का जश्न मनाया था।

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एक अन्य रिपोर्ट में लिखा है कि उन्होंने "हिन्दू धर्म जागृति सभा" के संगठन में शामिल "भक्त हिंदुओं" के लिए अलीबाग में एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया।

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यदि सनातन संस्था पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है, तो यह शायद ही कोई फर्क पड़ता है और इसकी आतंकवादी गतिविधियों को भी खत्म नहीं करेगा, क्योंकि इसके सहयोगी अभी भी अपनी चरमपंथी विचारधारा का प्रचार

यदि सनातन संस्था  पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है, तो इससे शायद ही कोई फर्क पड़ेगा और यह इसकी आतंकवादी गतिविधियों को भी खत्म नहीं कर पाएगा, क्योंकि इसके सहयोगी अभी भी अपनी चरमपंथी विचारधारा का प्रचार जारी रखे हुए हैं और हिंसक गतिविधियों को बदस्तूर जारी रखे हुए हें। देश में तर्कवादियों और पत्रकारों की हत्या सिर्फ हत्याएं नहीं हैं बल्कि वे राजनीतिक हत्याएं हैं, और विचारधारा पर हमला है। सनातन संस्था विचारधारा की मूल विचारधारा हिंदू राष्ट्र है और संगठन उन सभी को मारने के लिए दृढ़ संकल्पित है जो इसका विरोध करते हैं। हालांकि यह अब स्थापित किया जा चुका है कि सनातन संस्था सभी चार राजनीतिक हत्याओं के पीछे थी और देश में बड़े षड्यंत्र में भी शामिल है, न तो अठावले, ओर  न ही संगठन के पदाधिकारियों से पूछताछ की गई है। जब एटीएस पहले से ही कह चुका है कि सनातन संस्था  पर प्रतिबंध लगाने से कोई उद्देश्य प्राप्त होगा, तो वे संगठन से पूछताछ करने में अनिच्छुक क्यों हैं? एटीएस, महाराष्ट्र की गोवा राज्य सरकार, पुलिस और केंद्र सरकार को इस सवाल का जवाब देना है।

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