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#श्रमिकहड़ताल : दिल्ली की स्टील रोलिंग इकाइयों में औद्योगिक श्रमिकों का जीवन

बहुत कम लोग को न्यूनतम मजदूरी या अन्य लाभ मिलते हैं, और अगर वे बेहतर मजदूरी की चाहत रखते हैं तो उन्हें काम से बर्खास्त किया जा सकता है।
Steel Rolling Unit

[ 8-9 जनवरी को दस ट्रेड यूनियनों द्वारा आहूत की ग ऐतिहासिक अखिल भारतीय औद्योगिक हड़ताल के लिए लाखों कार्यकर्ता तैयार हो रहे हैं न्यूज़क्लिक आपके लिए देश के विभिन्न हिस्सों में औद्योगिक श्रमिकों के जीवन की झलक को पेश करेगा। ]

राजेंद्र सिंह यादव, उत्तरी-पश्चिमी दिल्ली के वज़ीरपुर औद्योगिक क्षेत्र में पाँच वर्षों से काम कर रहे हैं। वह एक स्टील पॉलिशिंग कारखाने में काम करते हैं और ठेकेदारों के माध्यम से उन्हें अपने काम का अधिकांश हिस्सा मिलता है सके लिए उन्हें ठेकेदार को अपने वेतन का एक हिस्सा देना होता है। उनके लिए एक अजीब सी वेतन व्यवस्था है - उनका दैनिक वेतन आधिकारिक रूप से लगभग 500 रुपये है  लेकिन उन्हें मालिक को 100 रुपये (कच्चे माल के लिए) और 200 रुपये ठेकेदार को काम तय करने के लिए देने पड़ते हैं। उन्हें जो मिलता है वह 12 घंटे के काम के लिए प्रति दिन मात्र 200 रुपये, जो वैधानिक न्यूनतम वेतन से काफी नीचे है।

वज़ीरपुर औद्योगिक क्षेत्र में यह और इसी प्रकार की ठेकेदारी प्रथाएँ आम नियम हैं। यह बर्तन, पाइप, ग्रिल (लोहे की रैलिंग) जैसे इस्पात उत्पादों का निर्माण करने वाले करीब 300 से अधिक कारखानों का बड़ा केंद्र है। मज़दूर स्टील की गर्म-रोलिंग, पॉलिशिंग, लोडिंग-अनलोडिंग और अन्य कामों के साथ एसिड से उत्पाद को धोने के काम में भी शामिल हैं, यह काम एक खतरनाक वातावरण में किया जाता है। भारी मशीनरी जैसे पावर प्रेस का उपयोग कई इकाइयों में किया जाता है और ये एसिड के उपयोग के साथ अक्सर दुर्घटनाओं का कारण बनती हैं, जो अक्सर कई श्रमिकों को अपंग बना देती हैं।

हॉट-रोलिंग स्टील प्लांट में, मज़दूर दो के समूहों में काम करते हैं। हेड राजमिस्त्री के सहायकों को हर आधे घंटे के काम के बाद आधे घंटे के आराम की आवश्यकता होती है, यह सर्दी में होता है। इस प्रकार, मज़दूर हर आधे घंटे में काम का स्थान बदलते हैं। गर्मी में असहनीय गर्मी के कारण हर 15 मिनट में काम का परिवर्तन होता है।

2002 में, नए हॉट-रोलिंग प्लांट शुरू किए गए थे और वह भी सस्ते प्रवासी मज़दूरों की वृद्धि के साथ, मालिकों ने साप्ताहिक अवकाश रद्द कर दिए और 12-घंटे का काम कर दिया, क्योंकि प्लांट की भट्टियों में आग लगाने में घंटों लग जाते हैं। दस वर्षों तक संघर्ष करने के बाद, मज़दूरों ने अंततः कारखाने के कुछ मालिकों को अपनी मांग मानने के लिए मज़बुर कर दिया और उन्हें कर्मचारी राज्य बीमा (ईएसआई) कार्ड मिला और प्रति सप्ताह (बुधवार) एक छुट्टी फरवरी, 2012 में मिलनी शुरू हुई।

काम अपने आप में खतरनाक है, लेकिन मज़दूरों के पास अवैध इकाइयों के खराब वेंटिलेशन, भयानक गर्मी में काम करने के अलावा, मालिक-पुलिस की सांठगांठ की वजह से और उनके लिए सुरक्षात्मक उपायों की अनुपस्थिति से निपटने के लिए कोई विकल्प नहीं है। वजीरपुर एक प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र रहा है और इसके मज़दूर अपने अधिकारों और बकाये के लिए कई संघर्षों और विरोधों से गुजरे हैं।

इन श्रमिकों को सबसे अधिक परेशानी किनसे होती है। हालांकि कानून उद्योगों/कारखानों के मालिकों को ओवरटाइम काम के लिए दोगुनी दर का भुगतान करने के लिए बाध्य करता है, लेकिन शायद ही कभी ऐसा हुआ हो। मज़दूर से उत्पादकता में वृद्धि सुचारू रूप से चलने वाले काम और गर्माती  मशीनों के जरिये मिलती है, इसलिए मालिक उसी मज़दूरी पर अधिक लाभ कमाता है।

तीन बच्चों के पिता, जिनके सभी बच्चे स्कूलों में पढ़ते हैं, यादव यहां 1980 के दशक से काम कर रहे हैं और कई शहरों में काम कर चुके हैं। न्यूज़क्लिक से बात करते हुए उन्होंने कहा, “काम ढूंढना वैसे भी कठिन है और हाल ही में कारखानों की सीलिंग ने सामान्य कामकाज को बाधित किया है। यहां बैठे हम सभी को पिछले चार दिनों में कोई काम नहीं मिला है।”

यही कारण है कि 12 सूत्रीय मांगों को पूरा करने की मांग को लेकर 8-9 जनवरी को दस केंद्रीय ट्रेड यूनियनों द्वारा बुलाई गई देशव्यापी औद्योगिक हड़ताल का समर्थन कर रहे हैं। इनमें न्यूनतम वेतन 18,000 रुपये, केन्द्रीय/राज्य सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में विनिवेश को रोकना, ठेकेदारी प्रथा को बंद करना, सभी श्रमिकों के लिए सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा कवर आदि शामिल हैं। हड़ताल हर जगह मज़दूरों का प्रतिध्वनित करती है, क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय श्रम की एक रिपोर्ट के रूप में ऐसा कहा गया है। अंतरराष्ट्रीय श्रमिक संगठन (ILO) ने बताया, "2019 तक 77 प्रतिशत भारतीय कामगार असुरक्षित रोजगार में शामिल हो जाएंगे।" कमजोर रोजगार का मतलब न्यूनतम मजदूरी से नीचे की  मजदूरी, खतरनाक काम करने की स्थिति, सुरक्षात्मक उपायों की अनुपलब्धता और श्रम कानूनों का खुला उल्लंघन शामिल है।

रोज़गार का नुकसान

जूही, जहाँगीरपुरी मेट्रो स्टेशन के सामने एक छोटे पैमाने के औद्योगिक कारखाने में काम करती थी और कारखाने में 'कटर' पर बैठती थी। वह 2009 से 17 मई, 2018 तक काम कर चुकी हैं, यह वह  दिन है जब उन्हें बर्खास्त कर दिया गया था। इस वर्ष वेतन में वार्षिक वृद्धि कम कर दी गई थी, और जब उन्होंने इसके बारे में मालिक से पूछताछ की, तो उन्हें "चुपचाप काम करने या छोड़ने" के लिए कहा गया। एक सप्ताह के समय के बाद, उनसे कहा गया कि वह अपना बकाया ले जाए और काम छोड़ दे।

जब वह दस साल की अपनी 'सेवा' के लिए भुगतान प्राप्त करने के लिए कारखाने में वापस गई, तो उन्हें बताया गया कि उनका कोई बकाया नहीं है। 'सेवा' के प्रत्येक वर्ष के लिए 15-दिवसीय वेतन का भुगतान करना होता है, जिसे काम छोड़ने के समय भुगतान किया जाता है। जूही के मामले में, यह पाँच महीने के वेतन की राशि होगी, उके लिए एक बहुमूल्य राशि जिसे उन्होंने खो दिया है। जब प्रबंधन ने मना कर दिया, तो जूही को सीटू के केंद्र से संबद्ध स्थानीय संघ से संपर्क करना पड़ा और एक अगस्त को मामला दर्ज किया गया।

उन्होंने पुरुषों और महिलाओं को मिलने वाले वेतन के बीच की विसंगति के बारे में भी बात की। “मुझे 12 घंटे की शिफ्ट के लिए 6,200 रुपये मिलते है और समान काम करने वाले एक आदमी को उससे अधिक मिलता है।” हालांकि, एक अर्ध-कुशल मजदूर के रूप में, उन्हें 8 घंटे के लिए 9,500-11,000, और ओवरटाइम घंटे के लिए दोगुनी दर मिलनी चाहिए थी। फिलहाल, जूही बेरोजगार हैं क्योंकि अधिकांश कारखाने काम पर रखने वाले वे कर्मचारी हैं जो 12 घंटे की शिफ्ट के लिए काम कर सकते हैं।

उन्होंने कहा, ''हम जितनी भी छुट्टियां लेते हैं, वे उन्हें बढ़ा कर पेश करते हैं। अगर मैंने एक छुट्टी ली, तो वे इसे तीन छुट्टियों के रूप में लिखेंगे और पांच दिनों के लिए वेतन में कटौती करेंगे। इसलिए मैं अपने पति से अपने खाते की एक फोटोकॉपी रखने के लिए कहती हूं

28 सितंबर, 2018 को आयोजित नेशनल कन्वेंशन ऑफ वर्कर्स द्वारा घोषणा में, जहां 8-9 जनवरी के लिए हड़ताल की घोषणा की गई थी, विभिन्न सर्वेक्षणों के माध्यम से पता चला कि 2.34 लाख लघु कारखाने/इकाइयों के बंद होने से 70 लाख नौकरियों का नुकसान हुआ है। नोटबंदी/विमुद्रीकरण के होने के कुछ महीने बाद यह हुआ। अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में अन्य 6 करोड़ लोगों की आजीविका की हानि और संगठित क्षेत्र में लगभग 17 लाख नौकरियों की हानि की गंभीर वास्तविकता के बारे में यह सर्वेक्षण बताते हैं

सत्यप्रकाश जिन्होंने 7 साल तक पार्वती स्टील प्राइवेट लिमिटेड में काम किया है। यह एक लोकप्रिय कारखाना है जो 50 श्रमिकों तक को काम देता है, ने न्यूज़क्लिक को बताया, “मैं चम्मच बनाने का काम करता हूँ और 12 घंटे की शिफ्ट के लिए 340 रुपये मिलते हैं। क्योंकि मेरा कोई परिवार नहीं है, इसलिए मैं गुजर बसर कर लेता हूं। ”

न्यूनतम मज़दूरी लागू करना

मई 2017 में, दिल्ली राज्य सरकार ने बोर्ड की सिफारिश के बाद न्यूनतम मजदूरी में 37 प्रतिशत की बढ़ोतरी की घोषणा की थी। हालाँकि, दिल्ली उच्च न्यायालय ने आम आदमी पार्टी सरकार की अधिसूचना को "पूरी तरह से त्रुटिपूर्ण" और "जल्दबाज़ी में लिया गया निर्णय" बताते हुए खारिज़ कर दिया था, दिल्ली सरकार ने शीर्ष अदालत के फैसले को चुनौती दी और 37 प्रतिशत बढ़ोतरी के फैसले को बहाल करवा लिया। जो तीन महीने की अवधि के लिए, नवंबर 2018 से शुरू हुआ

सभी श्रमिकों के लिए न्यूनतम वेतन सुनिश्चित करने के लिए, दिल्ली सरकार ने 4 दिसंबर को-ऑपरेशन मिनिमम वेज ’नामक एक 10-दिवसीय अभियान शुरू किया था।

द टाइम्स ऑफ़ इण्डिया की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली के श्रम मंत्री गोपाल राय ने कहा, "इस अभियान के तहत, प्रत्येक पांच अधिकारियों की 10 टीमें बनाई गई हैं, जो शहर भर में विभिन्न स्थानों पर छापे मारेगी और मजदूरों को दिए जाने वाले वेतन पर अपनी निगरानी रखेगी।"

हालांकि, श्रमिकों और ट्रेड यूनियनों के लिए राहत अस्थायी है क्योंकि दिल्ली सरकार को न्यूनतम मजदूरी बोर्ड को पुनर्गठित करना होगा और नई दरों पर राय बनाने के लिए मजदूरी तय करने के अपने तरीके को संशोधित करना होगा। इसके अलावा, न्यूनतम मजदूरी को लागू करने का कोर्स एक लंबी अवधि की प्रक्रिया है और इसे केवल कुछ कारखानों में ही साकार किया गया है।

सीटू के दिल्ली स्टेट कमेटी सदस्य विपिन ने न्यूज़क्लिक के साथ बात करते हुए कहा, "हमने सामूहिक प्रतिरोध के साथ सरकार का सामना करने का संकल्प लिया है।" दो दिन की आम हड़ताल का उद्देश्य मोदी सरकार के श्रम कानूनों को कमजोर करने के प्रयासों को चुनौती देना है।

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