तिरछी नज़र: प्यार, जंग और चुनाव में सब जायज़ है

गुप्ता जी मिल गए। घूमते हुए, वॉक करते हुए मिल गए। बोले, "आज किस बात पर लिख रहे हो। आज किस पर व्यंग कस रहे हो। अब तो दिल्ली में भी 'तुम्हारे' ‘सरकार-जी’ की सरकार आ गई है"।
"हाँ, हाँ, बिलकुल। वैसे सरकार जी ने निश्चय किया हुआ है कि 'नथिंग इज अनफेयर इन लव, वार एंड इलेक्शन'। हर चुनाव में जी जान लगा देनी है। चुनाव से पहले इतने वोट बढ़ जाते हैं जितने से सरकार जी चुनाव जीतते हैं। बताया जा रहा है महाराष्ट्र में तो इतने वोटर थे जितनी कि वहाँ की अठारह वर्ष से अधिक की जनसंख्या नहीं है। दिल्ली वालों को भी अब डबल इंजन की सरकार का फल मिलेगा"।
पिछले कुछ दिनों में इतना कुछ घटित हो चुका है कि समझ नहीं आता है कि क्या लिखा जाये और क्या छोड़ा जाये। पहले तो बजट आया। अब बजट पर लिखने की सोची तो देखा कि बजट समझ ही नहीं आ रहा है। बजट पर लिखना आसान काम नहीं है। लिखने से पहले समझना पड़ता है और बजट समझना आसान है भी नहीं। मुझे तो लगता है, बजट बनाने वालों, बजट प्रस्तुत करने वालों और बजट समाझने वालों, किसी को भी बजट समझ नहीं आता है। बस बजट बना दिया जाता है। फिर सब उसकी गुत्थी सुलझाने में लग जाते हैं।
अभी हाल ही में सरकार जी भी कुम्भ नहा आए। पहले अर्ध कुम्भ भी नहाये थे। बीच में भी दो तीन बार गंगा जी में नहा आए हैं। मुझे तो एक बात समझ नहीं आती है। यह महामानव इतने ‘पाप’ करता ही क्यों है कि बार बार गंगा जी में नहाने जाना पड़े। पुराने पाप धो कर आओ फिर थोड़े ही दिन में इतने पाप और कर लो कि फिर से गंगा स्नान के लिए जाना पड़े।
सुना था, सरकार जी ने वीआईपी कल्चर खत्म कर दिया है। दस साल पहले किया था। देश में बस एक वीआईपी। सरकार जी स्वयं। कोई और वीआईपी नहीं। पर कुम्भ ने वीआईपी कल्चर फिर से शुरू कर दिया है। रोजाना सैकड़ों, हज़ारों वीआईपी स्नान कर रहे हैं। अपने पाप धो रहे हैं। वीआईपी लोगों को पाप धोने की जरूरत ज्यादा ही होती है। उन्हें पाप करने की सहूलियत भी ज्यादा जो होती है।
इन्हीं दिनों 'माय फ्रेंड ट्रम्प' ने भारतीयों को वापस भी भेजा। वे बिना कागजों के अमरीका में घूमने आए थे। ट्रम्प ने उन्हें वापस भेज दिया। जाओ भारत घूमो। अमरीका पहले भी ऐसा करता रहता है। पर सरकार जी हैं, दोनों ओर सरकार जी हैं, यहाँ मोदी है तो वहाँ ट्रम्प हैं तो कुछ ना कुछ नया तो होना ही था। तो हथकड़ी पहली बार लगी। हाथों में हथकड़ी और पैरों में बेड़ियां। सैन्य जहाज से भी पहली बार भेजा गया। मोदी है तो मुमकिन है। सबकुछ मुमकिन है। कोई और होता तो यह मुमकिन ही नहीं होता। यही मोदी की गारंटी है। वैसे भी मुझे लगता है, अब विश्व गुरु बनने की असली लड़ाई शुरू हो गई है। अब मजा आएगा, गुरु।
ये जो लोग अमरीका गए, गैर कानूनी तरीके से गए, उन पर तरस आता है। बेचारे! जरा सा सब्र नहीं होता था। 2047 तक इंतजार नहीं कर सकते थे क्या? बस बाइस साल ही तो बचे हैं 2047 आने में। फिर, फिर यहाँ सब कुछ होगा। अमरीका से ज्यादा होगा। अमरीकी लाइन लगा के खड़े होंगे भारत की एम्बेसी के सामने। वर्क वीसा के लिए। और ये बाइस साल तो चुटकी बजाते ही कट जाते। तब तक के लिए रोजगार दिया तो हुआ है सरकार जी ने। हिन्दू मुसलमान करो, मंदिर मस्जिद करो, राम मंदिर जाओ, कुम्भ-अर्ध कुम्भ नहाओ। और जुलाई अगस्त में कांवड लेने चले जाओ। ये बीस बाइस साल तो बस पल भर में गुजर जायेंगे।
जो 104 लोग अमरीका से वापस भेजे गए हैं उनमें से अनेक गुजरात से हैं। मतलब गुजरात भी अमरीका नहीं बन पाया। वहाँ से भी लोग अमरीका जा रहे हैं। गैर कानूनी तरीके से जा रहे हैं। हमनेऔर पूरे देश ने तो गुजरात मॉडल पर रीझ कर ही सरकार जी को सरकार जी बनाया है। अब ये गुजराती अवैध तरीके से अमरीका में घुस कर गुजरात को, गुजरात मॉडल को बदनाम कर रहे हैं। गुजराती हो कर गुजरात की पोल खोलना। यह नहीं चलेगा भाई।
तो सरकार जी अब अमरीका जा रहे हैं। वे 'माय फ्रेंड ट्रम्प' से एक रिक्वेस्ट तो कर ही सकते हैं। अपने दोस्त को बचाने की रिक्वेस्ट तो करेंगे ही, एक रिक्वेस्ट देश के नागरिकों के लिए भी कर सकते हैं। रिक्वेस्ट कर सकते हैं कि आगे से जितने भी भारतीयों को डिपोर्ट करें, हथकड़ी और बेड़ियां लगा कर न करें। सरकार जी, प्लीज, इतना तो कर ही देना।
(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)
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