Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

आख़िर पुल गिरा ही क्यों?

सारी गलती ना लोगों की ही है। लोग उस पुल पर चढ़े और बहुत सारे लोग चढ़े। उन्होंने उस पुल का फिटनेस सर्टिफिकेट खुद चेक नहीं किया और उस पर चढ़ गए। बस टिकट लिया और चढ़ गए। अरे भले मानुषों, चढ़ने से पहले जरा फिटनेस सर्टिफिकेट चेक कर लेते। हम लोगों की आदत ही खराब है। सोचते हैं यह सब काम सरकार का है।
morbi

मोरबी में ना, एक बड़ी ही दुखद घटना हुई। मच्छू नदी पर बना पुल टूट गया। उस पुल की अभी अभी ही मरम्मत हुई थी। मतलब मरम्मत होने के बाद फिटनेस भी नहीं जारी हुई थी कि पुल खुल गया और टूट गया।

सारी गलती ना लोगों की ही है। लोग उस पुल पर चढ़े और बहुत सारे लोग चढ़े। उन्होंने उस पुल का फिटनेस सर्टिफिकेट खुद चेक नहीं किया और उस पर चढ़ गए। बस टिकट लिया और चढ़ गए। अरे भले मानुषों, चढ़ने से पहले जरा फिटनेस सर्टिफिकेट चेक कर लेते। हम लोगों की आदत ही खराब है। सोचते हैं यह सब काम सरकार का है। कुछ भी चेक किए बिना ही चढ़ जाते हैं। रेल गाड़ी में, बस में, सब में ऐसा ही करते हैं। बस टिकट कटाते हैं और जगह हो या न हो, चढ़ जाते हैं। मतलब भीड़ भाड़ हमें पसंद है।

हमें, आम जनता को ही नहीं, सरकार जी को भी भीड़ पसंद है। भीड़ देख कर उनकी तो बाछें ही खिल जाती हैं। भीड़ का वे बहुत सम्मान भी करते हैं। सरकार जी को तो भीड़ उस समय भी पसंद थी जब पूरा विश्व भीड़ न लगाने की गुहार लगा रहा था। सरकार जी भी खुद भीड़ न लगाने की बात कर रहे थे परन्तु फिर भी भीड़ लगा रहे थे। बसों में लदवा कर भीड़ इकट्ठा कर रहे थे। चुनावी रैलियां कर रहे थे। भीड़ उन्हें उस समय भी पसंद थी, भीड़ उन्हें आज भी पसंद है।

उस पुल पर चढ़ने का टिकट था। बड़ों का टिकट सतरह रुपए का था और बच्चों का बारह रुपए। उसमें जीएसटी भी जरूर ही शामिल रहा होगा। बिना जीएसटी के तो आजकल कुछ भी नहीं मिलता है, टिकट कहां से मिलेगा। तो लगता है जीएसटी कलेक्शन बढ़ाने के चक्कर में ही पुल को बिना फिटनेस के ही खोल दिया गया होगा। हर माह जीएसटी कलेक्शन का पुराना रिकॉर्ड जो तोड़ना होता है।

मुझे तो लगता है कि पुल पर से उतरने का भी टिकट लगता रहा होगा। इसीलिए जो पुल पर चढ़ गया, उतरा नहीं। इसी वजह से पुल पर भीड़ बढ़ गई। और पुल, जिसकी अभी हाल फिलहाल में ही मरम्मत हुई थी, टूट गया। लोग बाग बताते हैं कि अभी तक पुल पर लगा हुआ पेंट सूखा भी नहीं था और मरम्मत इतनी शानदार हुई थी कि पेंट के नीचे गार्डरों और सरियों पर लगा जंग तक दिख रहा था। मतलब पुराने सामान पर ही रंग रोगन कर उसे नया बना दिया गया था।

रंग रोगन से ध्यान आया कि रंगाई-पुताई तो मोरबी के अस्पताल की भी कर दी गई। रातों रात कर दी गई। सरकार जी के दौरे से पहली रात को कर दी गई। ऊपर से चकाचक दिखाने के लिए रंग रोगन कर दिया गया। अंदर से चाहे जैसा भी हो, ऊपरी चकाचक सरकार जी को पसंद है। भर्ती हुए घायल और अन्य मरीज बताते हैं कि रात भर नींद नहीं आई। खटपट जो होती रही। चालीस के करीब तो रंगाई-पुताई वाले ही लगे रहे रात भर। हो सकता है ज्यादा भी रहे हों। तब जाकर सरकार जी के दौरे लायक बना अस्पताल।

पुल इसलिए भी टूटा कि मरम्मत के बाद उसका उद्घाटन सरकार जी ने नहीं किया था। छह महीने से पुल मरम्मत के लिए बंद था। उसका उद्घाटन तो होना ही चाहिए था। और सरकार जी द्वारा ही होना चाहिए था। वैसे भी सरकार जी ऐसे सभी कार्यों के लिए उपलब्ध रहते ही हैं। और राज्य में चुनाव भी हैं। तो सरकार जी द्वारा उद्घाटन के बिना पुल खोल दिया गया तो यह तो होना ही था। पुल तो गिरना ही था।

इस पुल की मरम्मत का ठेका एक ऐसी कंपनी को दिया गया था जिसका अनुभव घड़ी बनाने में है। यह एक प्रयोग था। ‌जरा सोचिए, यदि यह प्रयोग सफल हो जाता, यदि पुल कुछ महीने या कुछ साल चल जाता तो कितनी बड़ी क्रांति आ जाती। सरकार जी का यह प्रयोग सफल हो जाता कि घड़ी बनाने वाली कंपनी भी पुल ठीक कर सकती है। सरकार जी इस प्रयोग में लगे हैं कि उनके राज में कोई भी कुछ भी करने में सक्षम हो। वे पुल बनाने का ठेका घड़ी बनाने वाले को और हवाई जहाज बनाने का काम बिजली बनाने वाली कंपनी को दे सकें। सरकार जी पहले भी ऐसा कर चुके हैं। बिना कौशल, बिना किसी अनुभव के एक डूबती हुई कम्पनी को राफेल विमान की रख रखाव का तीस हजार करोड़ का ठेका दे दिया था। वह तो लोगों को पता चल गया और रद्द करना पड़ा।

यह पुल जो गिरा है ना, यूं ही नहीं गिरा है, गिराया गया है। साज़िशन गिराया गया है। इस पुल के गिराने में अंतरराष्ट्रीय शक्तियां शामिल हैं। बहुत सारी शक्तियां हैं जो नहीं चाहती हैं कि भारत विश्व गुरु बने। वे सरकार जी के पीछे पड़ी हैं। ये बाइडेन, ये पुतिन, ये जिनपिंग, ये सारे विश्व भर के नेता वैसे तो किसी भी मीटिंग में हमारे सरकार जी के आगे पीछे घूमते रहते हैं परन्तु पीठ पीछे जलते हैं। जलते हैं कि यह भारत को विश्व गुरु बना रहा है। हो सकता है उन्होंने ही साज़िश कर, सरकार जी को बदनाम करने के लिए इस पुल को गिराया हो।

वैसे तो पुल गिरने की एफआईआर दर्ज हो गई है। नौ लोगों को गिरफ्तार भी कर लिया गया है। उनमें तीन चौकीदार (सिक्योरिटी गार्ड) भी शामिल है। अरे भई, देश का चौकीदार नहीं, पुल का चौकीदार। और लोग जो गिरफ्तार हुए हैं उनमें टिकट बेचने वाले दो क्लर्क भी है। वही क्लर्क जो अधिक से अधिक टिकट बेच कर देश का राजस्व बढ़ा रहे थे। जीएसटी कलेक्शन कर रहे थे।

सरकार जी को और हमें भी इस पुल गिरने की घटना को हल्के में नहीं लेना चाहिए। इसकी सारी साज़िश बेनकाब होनी चाहिए। एक तो सारे विरोधियों के पीछे और दूसरे, विश्व के इन सारे नेताओं के पीछे भारत की सीबीआई, आई बी, ई डी, इनकम टैक्स आदि को लगा देना चाहिए। तभी पुल के गिरने का असली भेद खुलेगा।

असलियत में तो पुल तो इसीलिए गिरा क्योंकि वहां पुल था।

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest