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राजनीति
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सूडान और इथियोपिया का सीमा संघर्ष
दोनों देशों के अधिकारियों के बीच भूमि सीमा के सीमांकन के मुद्दे पर बैठक 15 दिसंबर को इथियोपियाई बलों द्वारा सूडानी सेना के गश्ती दल पर हमले के एक हफ्ते बाद हुई थी। वार्ता के विफल होने की सूरत में झड़पों के और तेज होने की आशंका है।
पवन कुलकर्णी
26 Dec 2020
सूडान
(छवि: स्ट्रिंगर/अनादोलू एजेंसी)

सूडान और इथियोपिया के अधिकारियों के बीच अपनी 1,600 किलोमीटर-लंबी सीमा के सीमांकन को लेकर चल रही वार्ता बुधवार, 23 दिसंबर को बिना किसी नतीजे के समाप्त हो गई है। यह वार्ता सीमा पर हुई हालिया झड़पों की पृष्ठभूमि में हुई थी। 

इथियोपिया जो कि सूडान और इरीट्रिया की सीमा से सटे अपने उत्तरी राज्य टिग्रे में भी एक शसस्त्र संघर्ष में फँसा हुआ है, ने अंग्रेजों द्वारा 1903 में तय की गई सीमा परिसीमन पर सहमत होने से इंकार कर दिया है।

दो दिनों तक चली यह बैठक सूडानी राजधानी खार्तूम में आयोजित की गई थी और इथियोपिया के विदेश मंत्री एवं उप-प्रधानमंत्री डेमेके मेकोंनेन ने सूडानी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे कैबिनेट के मंत्री प्रभारी ओमर मानिस से मुलाकात की।

इथियोपियाई सेना द्वारा एक सूडानी गश्ती दल पर 15 सितम्बर को कथित हमले की घटना के मद्देनजर एक हफ्ते बाद ही इस बैठक ने विशेष तात्कालिकता ग्रहण कर ली थी। विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार इसमें एक अधिकारी और तीन सैनिक मारे गए थे और 20 अन्य घायल हुए थे।

एक अज्ञात सैनिक के हवाले से सूडान ट्रिब्यून ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि गश्ती दल “इथियोपियाई सैनिकों की ओर से की जा रही तोपखाने की गोलबारी के जद में आ गए थे, जो सूडानी क्षेत्र में अल-तेय्यौर क्षेत्र में 7 किमी अंदर तक घुस आये थे। हमले की रणनीति इस तथ्य की ओर इशारा करती है कि यह काम किसी मिलिशिया का नहीं वरन संगठित सैन्य बलों का था।”

जबकि इथियोपिया का कहना है कि इस हमले को अमहारा जातीय मिलिशिया द्वारा जारी किया गया था, जिसे अमहारा क्षेत्रीय राज्य द्वारा नियंत्रित किया जाता है। इथियोपिया के राज्य जातीय आधार पर विभाजित हैं, जिसमें प्रत्येक राज्य सरकार अपने स्वयं के मिलिशियाओं की कमान संभाल रही हैं।

अमहारा अपने दक्षिण में टिग्रे राज्य से घिरा हुआ है और अमहारा मिलिशिया, विद्रोही टिग्रे पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट (टीपीएलएफ) के खिलाफ अपने इस युद्ध में इथियोपियाई संघीय सैन्य बलों का समर्थन कर रहे हैं। 

अबिय अहमद के नेतृत्व वाली इथियोपियाई सरकार ने दावा किया है कि इसने 28 नवंबर को क्षेत्रीय राजधानी शहर, मेकेले पर कब्ज़ा करने के बाद टिग्रे क्षेत्रीय राज्य सरकार से टीपीएलएफ को खदेड़ दिया था।

यह मेकेले में था जिसपर तिग्रीन बलों ने हमला बोला था, और 4 नवंबर को संघीय राज्य के एक सैन्य अड्डे पर अपना कब्ज़ा जमा लिया था, जिसके चलते संघीय एवं क्षेत्रीय बलों के बीच शसस्त्र संघर्ष भड़क उठा था। इसके चलते टिग्रे से लगभग 55,000 शरणार्थियों का पड़ोसी सूडान में पलायन हो चुका है।

इथियोपियाई संघीय सरकार के मेकेले पर नियंत्रण के बाद जीत के दावे के बावजूद ऐसा लगता नहीं है कि लड़ाई खत्म हो चुकी है। रिपोर्टों से इस बात के संकेत मिलते हैं कि टीपीएलएफ नेतृत्व अभी भी पूरी तरह से बरकरार बना हुआ है और इसके सैन्य बलों ने पहाड़ों में शरण ले रखी है, जहाँ से वे निरंतर हमले को जारी रखे हुए हैं। इसके साथ ही टिग्रे के विभिन हिस्सों में संघीय सैन्य बलों एवं अमहारी मिलिशिया के बीच झड़पें जारी हैं।

वहीँ अल तेय्यौर क्षेत्र में, जहाँ सूडानी सैनिकों पर 15 दिसंबर को हमला किया गया था, जिसने समूचे अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं पर संघर्ष में खतरनाक विस्तार का काम किया था, वह भूभाग टिग्रे की पश्चिमी सीमा के पार पूर्वी सूडानी राज्य एल गेदरेफ़ में विवादित अल फशागा क्षेत्र के भीतर स्थित है। 

अल फशागा क्षेत्र, जो कि अंदाजन 600 वर्ग किलोमीटर के आसपास है, वह सूडानी सीमा वाले क्षेत्र में सबसे उर्वर भूमि में से एक है, जिसे 1903 में इसके तत्कालीन उपनिवेशवादी ब्रिटेन द्वारा मानचित्र पर स्थापित किया गया था। हालाँकि ये दोनों ही देश कभी भी स्पष्ट तौर पर इस भूमि के सीमांकन के मुद्दे को सफलतापूर्वक संपन्न नहीं कर सके थे। 

सूडानी भूमि पर इथियोपियाई किसान 

जहाँ एक तरफ इथियोपियाई संघीय सरकार ने कभी भी इस दावे को चुनौती नहीं दी कि अल फशाका का भूभाग सूडानी सीमा के इलाके में पड़ता है, वहीँ मुख्य रूप से अमहारी जातीयता से सम्बद्ध भारी संख्या में इथियोपियाई किसान इस क्षेत्र में बसे हुए हैं।

1990 के दशक के उत्तरार्ध में अब बेदखल किये जा चुके सूडान के तानाशाह उमर अल-बशीर ने, जो उस दौरान इरीट्रिया के साथ युद्धरत थे, ने इथियोपिया के साथ सामंजस्य बिठा लिया था। उन्होंने तब नीतिगत तौर पर इस भूमि पर इथियोपियाई लोगों के बसाए जाने को अनदेखा कर दिया था। इन वर्षों के दौरान इथियोपियाई मिलिशिया ने अल फशाक पर अपने वास्तविक नियंत्रण को स्थापित कर लिया था।

कुछ विश्लेषकों ने इस तथ्य की ओर इशारा किया है कि पिछले साल लोकतंत्र-समर्थक विरोध आंदोलनों के जरिये बशीर को सत्ता से बेदखल किये जाने के बाद से सूडानी सेना, जो कि संक्रमणकालीन सरकार में अपनी ताकत को लगातार प्रदर्शित करने में लगी हुई थी, तबसे वह लोकप्रिय विरोध प्रदर्शनों के निशाने पर है। सेना द्वारा राज्य-सत्ता पर अपने अधिकार को वैध ठहराने के उद्येश्य से इस भूमि पर अपने नियंत्रण को स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है।

टिग्रे में सशस्त्र संघर्ष शुरू होने से पहले ही इस साल की शुरुआत में इस क्षेत्र में कई झड़पें हो चुकी थीं। इनमें से ज्यादातर हमले इथियोपियाई क्षेत्रीय मिलिशिया द्वारा सूडानी सैन्य गश्ती दलों पर हुए हमले के परिणामस्वरूप भड़क उठी थीं, जिसमें कथित तौर पर संघीय सैन्य बलों का समर्थन हासिल था।

टिग्रे में हुए संघर्ष की शुरुआत में, जिसने इथियोपियाई सेना के साथ-साथ अमहारी मिलिशिया को भी इस संघर्ष में शामिल कर दिया है, ने सूडानी सशस्त्र बलों को इस क्षेत्र में एक बार फिर से अपने नियंत्रण में लेने का एक सुअवसर प्रदान कर दिया है।

वहीँ दूसरी ओर जहाँ अमहारी राष्ट्रवादी भावनाएं अपने उफान पर हैं, उनमें से कुछ वर्गों द्वारा भी इथियोपियाई संघीय सरकार पर इस क्षेत्र में यथास्थिति बरकरार रखने को लेकर दबाव डाला जा रहा है। इथियोपिया के उच्च जनसंख्या घनत्व ने, जो कि सूडान के चार गुने से अधिक है, ने खेती योग्य भूमि एवं जल संसाधनों पर नियंत्रण के दावे के पीछे महत्वपूर्ण संसाधन का काम किया है।

इस स्थिति को और जटिल बनाने का काम इथियोपियाई संसदीय समिति द्वारा लगाये जा रहे आरोपों के द्वारा किया जा रहा है जिसे टिग्रे में घोषित आपातकाल की स्थिति की देखरेख के लिए नियुक्त किया गया है। इसका आरोप है कि सूडान टीपीएलएफ का समर्थन कर रहा है। सूडान ने इन आरोपों से इंकार किया है।

यही वह सन्दर्भ था जिसके तहत सूडानी सेना के चार जवान 15 दिसंबर को एक घात में मार गिराए गए थे।

इथियोपियाई विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता दिना मुफ़्ती ने 17 दिसंबर को बीबीसी अमहारिक से हुई बातचीत में बताया था कि यह हमला “एक एहतियाती कदम के तौर पर उठाया गया था, जब कुछ सूडानी आतंकी सीमा पार करने और किसानों की संपत्ति को जब्त करने कोशिश कर रहे थे।”

एएफपी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता के अनुसार, इथियोपियाई सुरक्षा बलों ने “निचली रैंक के अधिकारियों और किसानों के एक समूह को हटा दिया है, जिन्होंने इथियोपियाई क्षेत्र में अतिक्रमण किया था।” 

यह देखते हुए कि इथियोपिया ने कभी भी अल फशागा क्षेत्र पर आधिकारिक तौर पर अपनी क्षेत्रीयता का दावा नहीं किया था, ये बयान भूमि के सीमांकन को लेकर होने वाली चर्चा के लिए बैठक से पहले अपने दावों को पेश करने के उद्देश्य से प्रेरित लगते हैं।

इस तरह की बैठक पर सहमति तब बनी थी, जब सूडानी प्रधान मंत्री अबदल्ला हमदोक ने 12 दिसंबर को इथियोपिया के प्रधानमंत्री के साथ इथियोपियाई राजधानी अदीस अबाबा की एक छोटी यात्रा के दौरान, अल फशागा की घटना से सिर्फ तीन दिन पहले ही मुलाक़ात की थी। 

इस घात लगाकर किये गए हमले के बाद सूडान ने पर्याप्त संख्या में अपने सैन्य बलों को अपने राज्य-नियंत्रित मिलिशिया, रैपिड सपोर्ट फ़ोर्स के साथ इन क्षेत्रों को पुनः कब्जे में लेने के लिए तैनात कर दिया है। सूडान ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार ये झड़पें 19 और 21 दिसंबर को भी हुए थे।

हालाँकि इस विवाद में वृद्धि के बीच में भी हमदोक और अहमद एक बार फिर से 20 दिसंबर के दिन आठ अफ़्रीकी देशों के व्यापार समूह इंटरगवर्नमेंटल अथॉरिटी ऑन डेवलपमेंट (आईजीएडी) की बैठक के मौके पर जिबूती में मिले थे।

दोनों ने 22 दिसंबर को शुरू होने जा रहे दो दिवसीय खार्तूम बैठक के साथ आगे बढ़ने को लेकर अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया कि कैसे भूमि सीमांकन के मुद्दे पर एक समझौते को आगे बढ़ाया जाए।

इस बैठक में इथियोपियाई प्रतिनिधिमंडल के नेता मेकोनेन ने शिकायत की कि अल फशागा पर दोबारा कब्जा जमाने के लिए चलाया गया सूडानी सैन्य अभियान, किसानों की मौतों का कारण बन रहा है।

पहले दिन की वार्ता के बाद प्रेस के साथ अपनी बातचीत के दौरान सूडानी सरकार के प्रवक्ता फैसल मोहम्मद सालेह ने कहा “जब सीमाओं का सीमांकन हो रखा है, तो ऐसे में हम सूडानी इलाके में इथियोपियाई किसानों के मुद्दों सहित किसी भी मुद्दे पर बातचीत के लिए तैयार हैं। यह सूडानी सरकार की आधिकारिक स्थिति है।”

वहीँ इथियोपिया द्वारा 1903 के आधार पर भूमि के सीमांकन पर सहमति से इंकार करने के साथ, 23 दिसंबर को यह वार्ता एक गतिरोध के साथ समाप्त हो चुकी है। रेडियो दबंगा की रिपोर्ट के मुताबिक इस संबंध में आदिस अबाबा में एक बार फिर से बैठक का आयोजन किया जाएगा। इस बैठक के लिए अभी कोई तारीख निश्चित नहीं हुई है।

इस बीच सूडानी सेना ने जिसने एल गेदरेफ़ में सलाम बीर और महाज क्षेत्रों पर एक बार फिर से नियंत्रण स्थापित कर लेने का दावा किया है, का कहना है कि जब तक वह 1903 के आधार पर सूडानी पक्ष के सभी क्षेत्रों, जो कि वर्तमान में इथियोपियाई मिलिशिया और सेना के नियंत्रण में हैं, को हस्तगत नहीं कर लेता, तब तक उसका यह अभियान नहीं रुकने वाला है।  

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

Sudan and Ethiopia Fail to Reach an Agreement on Border Demarcation

Sudan
Ethiopia
Ethiopian farmers

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