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तमिलनाडु परिवहन श्रमिकों की हड़ताल फ़िलहाल के लिए ख़त्म

मद्रास उच्च न्यायालय ने गुरुवार को राज्य और परिवहन कर्मचारियों के बीच मध्यस्तता के लिए एक पूर्व जज न्युक्त किया, जिसके बाद हड़ताल वापस ले ली गयी I
tamil nadu

देश भर में सार्वजनिक परिवहन क्षेत्रों में अनिश्चितता के चलते तमिलनाडु स्टेट ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन (टी.एन.एस.टी.सी.) द्वारा मजदूरी संशोधन की मांग को लेकर 11 जनवरी, 2018 गुरुवार से हड़ताल आठवें दिन में प्रवेश कर गयीI गुरुवार 12 जनवरी को मद्रास उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार और परिवहन कर्मचारियों के बीच मध्यस्तता के लिए पूर्व जज ई. पद्मनाभन की नियुक्ति की जिसके बाद हड़ताल फिलहाल के लिए वापस ले ली गयी I

सीटू के प्रदेश अध्यक्ष ए. सौन्द्राराजन ने चेन्नई में पत्रकारों से बातचीत के दौरान बताया कि 14 जनवरी को पोंगल है और त्यौहार के मद्देनज़र ही यह हड़ताल अभी के लिए वापस ले ली गयी है और सरकार द्वारा प्रस्तावित 2.44 गुना वृद्धि को फिलहाल के लिए मान लिया है I

गौरतलब है कि यूनियन ने 2.57 गुना बढ़ोतरी, मजदूरों को 19,500 रूपए का न्यूनतम मजदूरी, और अन्य मांगों को लेकर 8 दिनों तक अपनी हड़ताल जारी रखी। जबकि मुख्यमंत्री ई. पालनीस्वामी ने राज्य विधानसभा में कहा कि सरकार 2.44 गुना की मजदूरी में वृद्धि करने के लिए तैयार है I यूनियन ने बुधवार को पूरे राज्य में परिवहन निगम के क्षेत्रीय कार्यालयों के बाहर बच्चों सहित परिवार के सदस्यों के साथ धरनों का आयोजन किया।

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के सदस्यों ने भी तमिलनाडु के विभिन्न क्षेत्रों में परिवहन कर्मचारियों के चल रहे संघर्ष के साथ एकजुटता जताते हुए प्रदर्शन किया।

सरकार एक तरफ जहाँ परिवहन श्रमिकों की मांगों को पूरा करने में संकोच कर रही है वहीं दूसरी ओर उसने विधायकों के वेतन में लगभग 100 प्रतिशत की वृद्धि करने के लिए विधानसभा में एक बिल पेश किया है।

टी.एन.एस.टी.सी. श्रमिकों की समस्याएँ सिर्फ तमिलनाडु का ही मामला नहीं है। पूरे देश में चल रहे सार्वजनिक परिवहन क्षेत्र में विरोध के एक बड़े संघर्ष का हिस्सा है। अक्टूबर 2017 के तीसरे हफ्ते के दौरान महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम कार्यकर्ता ने 7वें वेतन आयोग के पैमाने के अनुसार न्यूनतम मज़दूरी की माँग के लिए विरोध प्रदर्शन किया था।

दिसंबर 2017 के तीसरे हफ्ते में, राजस्थान राज्य रोडवेज ट्रांसपोर्टेशन कॉरपोरेशन के कर्मचारियों ने वित्तीय वर्ष 2016-17 के लिए बोनस और पूर्व अनुदान राशि कि लंबित मांगों के भुगतान की माँग के लिए राज्य भर में दो दिवसीय धरने का आयोजन किया था।

यहाँ तक ​​कि जब इस क्षेत्र में संकट का बादल मंडरा रहा है तो भाजपा की अगवायी वाली एनडीए सरकार मोटर वाहन (संशोधन) बिल 2016 को लागू करने के लिए तैयार है जो वर्तमान में राज्यसभा की चयन समिति के विचाराधीन है। हालांकि सरकार बिल को पेश करना चाहती है लेकिन सड़क परिवहन श्रमिकों और यूनियनों ने माँग की है कि बिल को बदला जाना चाहिए क्योंकि यह निजीकरण के लिए मार्ग प्रशस्त करता है।

प्रस्तावित विधेयक 1991 के मोटर वाहन अधिनियम में संशोधन करते हुए तीसरे पक्ष के बीमा, टैक्सी एग्रीगेटर का नियमन और सड़क सुरक्षा पर केन्द्रित है।

निजी कम्पनिओं के माध्यम से सार्वजनिक क्षेत्र के परिवहन के निगमकरण के कदम से, ऑल इंडिया रोड ट्रांसपोर्ट वर्कर्स फेडरेशन (ए.आई.आर.टी.डब्ल्यू.एफ.) के महासचिव के के देवरामन ने कहा: "पहले कदम के रूप में, टैक्सी में उबर और ओला के नाम पर एक व्यापक संगठन बनाया था हालांकि यह मोटर वाहन अधिनियम के अनुसार गैरकानूनी है, सरकार ने उन्हें अनुमति दी जिससे इस क्षेत्र में लाखों लोगों के कामकाज में कमी आई।"

इस तरह एग्रीगेटर माल परिवहन जैसे क्षेत्रों में भी फैल रहे हैं, दिवाकरन ने बताया।इस तरह एग्रीगेटरों को कानूनी दर्ज़ा देने से राज्य परिवहन निगमों पर इसका नकारात्मक असर पड़ेगा जो प्रभावी ढंग से काम कर रहे लाखों श्रमिक को बेरोज़गार बना देगा दिवाकरन ने बतायाI

"वर्तमान में परिवहन वाहनों का लगभग 20% राज्य परिवहन उपक्रमों द्वारा चलाए जाता हैं सरकार इन सभी रूटों का अराष्ट्रीयकरण करना चाहती है और इन्हें पूंजीपतियों (निगमों) के हाथों हाथ में देना चाहती है। तर्कसंगतता के नाम पर, वे इस क्षेत्र में निजीकरण की शुरुआत कर रहे हैं," दिवाकरण ने न्यूजक्लिक से बात करते हुए कहा।

हालांकि, केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने घोषणा की कि सरकार ने परमिट राज को खत्म करने का फैसला किया है, अंतत वह निजी कंपनियों को मदद कर रही है, दिवाकरन ने कहा।

"परमिट रद्द करने के नाम पर, वे लाइसेंस की शुरूवात कर रहे हैं, यदि हां, तो कई तरह के ऑपरेटर आएंगे और कॉरपोरेट भी इसमें प्रवेश करेंगे, जो अंततः राज्य परिवहन उपक्रमों को बंद कर देगा। "

यह लाइसेंस देश भर में निजी ऑपरेटरों को किसी भी मार्ग पर अंतरराज्यीय बस सेवा संचालित करने की अनुमति देता है, जो निजी क्षेत्र के लिए लाभदायक हैं। मौजूदा नियमों के मुताबिक, निजी बस ऑपरेटरों को हर रूट के लिए राज्य सरकार से परमिट की आवश्यकता होती है, जो वे काम करना चाहते हैं "वह सार्वजनिक परिवहन क्षेत्र के विनाश की ओर जाता है", एआईआरटीडब्ल्यूएफ के महासचिव ने कहा।

केंद्र की ये सभी नीतियां राज्य सड़क परिवहन उपक्रमों के लिए एक कठिन चुनौती है जो अब भरी संकट में हैं।

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