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त्रिपुरा में भाजपा का शासन: विपक्ष पर हमलों, झूठे वादों, और यू-टर्न का एक साल

'आओ बदलाव करें' के नारे पर जीतने के बाद, बीजेपी-आईपीएफ़टी सरकार ने लोकतंत्र, संवैधानिक सिद्धांतों और क़ानून के शासन का अपमान किया है।
त्रिपुरा में भाजपा का शासन: विपक्ष पर हमलों, झूठे वादों, और यू-टर्न का एक साल
तस्वीर सौजन्य: टाइम8

मार्च 2019 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) -इंडिजिनियस पीपल्स फ़्रंट ऑफ़ त्रिपुरा (आईपीएफ़टी) ने त्रिपुरा में एक वर्ष का कार्यकाल पुरा कर लिया है। फ़रवरी 2018 के विधानसभा चुनाव में आईपीएफ़टी के साथ गठबंधन और "चलो पलटाई" (लेट्स चेंज) का नारा देते हुए, भाजपा ने 1993 के बाद से राज्य में शासन कर रही वाम मोर्चा सरकार को सत्ता से बेदख़ल कर दिया था।
हालांकि, त्रिपुरा में भाजपा-आईपीएफ़टी शासन के एक वर्ष में विपक्ष, विशेष रूप से भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और उसके नेताओं पर अभूतपूर्व शारीरिक हमले हुए हैं, जो लोकतंत्र, संवैधानिक सिद्धांतों और क़ानून के शासन के लिए अपमानजनक है। इस अवधि के दौरान, भाजपा सरकार चुनावों से पहले किए गए वादों को निभाने में विफ़ल रही और उन पर भी पलट गई।

सी.पी.आई.(एम) कार्यकर्ताओं और समर्थकों पर शारीरिक हमले 

3 मार्च, 2018 को जब चुनाव परिणाम घोषित हुए, उसके बाद से त्रिपुरा में भाजपा-आईपीएफ़टी गठबंधन द्वारा विशेषकर सीपीआई (एम) पर हमलों की लहर देखी गई है। इनमें सीपीआई (एम) कार्यकर्ताओं के घरों पर हमले, पार्टी कार्यालयों को जलाने, लूटने और बलपूर्वक क़ब्ज़ा करने और पार्टी कार्यकर्ताओं की कथित हत्याएँ शामिल हैं, जिनके परिवारों को भी इन हमलों का निशाना बनाया गया है।

इन हमलों के ज़रिये सीपीआई (एम) के कार्यकर्ताओं और समर्थकों की आजीविका को भी नष्ट करने का प्रयास किया गया ताकि उन्हें किसी भी राजनीतिक गतिविधि में भाग लेने से रोका जा सके। इनमें उनकी दुकानों पर हमले और उनके स्वामित्व वाले कृषि क्षेत्र, तालाबों और रबड़ के पेड़ों को नष्ट करना शामिल है। वामपंथ से जुड़े प्रतीकों को भी भाजपा ने निशाना बनाया है। वास्तव में, विधानसभा चुनाव के दो दिनों के भीतर, "भारत माता की जय" के नारों के बीच बेलोनिया में भाजपा समर्थकों ने लेनिन की एक मूर्ति को गिरा दिया था। यह सब राज्य प्रशासन और क़ानून व्यवस्था के संरक्षण में घटित हुआ। यह भी बताया गया कि कई मामलों में पुलिस ने अपराधियों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज किए जाने के बावजूद हिंसा फैलाने वालों पर कोई कार्रवाई नहीं की है। वास्तव में, कई मामलों में हमलावरों द्वारा पीड़ितों पर जवाबी कार्यवाही की गई है।

दोनों ग़ैर-आदिवासी (बंगाली) और आदिवासी जो सीपीआई (एम) के क़रीब रहे हैं इन हमलों का शिकार बने। भाजपा गठबंधन के सहयोगी, आईपीएफ़टी, जो आदिवासी लोगों के अधिकारों की रक्षा करने की बात करता है, न केवल इन हमलों में एक मूक दर्शक बना रहा, बल्कि कथित तौर पर वामपंथी कैडरों, विशेष रूप से आदिवासियों पर इन हमलों में से कुछ में शामिल भी रहा है। उदाहरण के लिए, दक्षिण त्रिपुरा ज़िले के सबरूम डिवीज़न से सीपीआई (एम) के एक मतगणना एजेंट भाग्य जॉय त्रिपुरा, बीजेपी-आईपीएफ़टी के हमले के पहले लक्ष्यों में से एक थे, जैसा कि गोमती ज़िला के अमरपुर से एक आदिवासी युवा फ़ेडरेशन के अध्यक्ष अजेंद्र रियांग को बदमाशों ने बेरहमी से मार दिया था, हमलावर कथित रूप से सत्ताधारी गठबंधन के क़रीब थे।
त्रिपुरा में इस हिंसा का एक महत्वपूर्ण प्रतिबिंब सितंबर 2018 के पंचायत उपचुनावों में देखा जा सकता है जहाँ 96 प्रतिशत सीटें बीजेपी ने निर्विरोध जीती थीं, क्योंकि विपक्षी उम्मीदवारों को अपना नामांकन दाख़िल ही नहीं करने दिया गया था। आगामी लोकसभा चुनाव के अभियान के दौरान भी हमले जारी रहे हैं, जिसमें कई जगहों पर माकपा के दो उम्मीदवारों को प्रचार के दौरान निशाना बनाया गया है।

रोज़गार पर झूठे वादे और यु-टर्न 

त्रिपुरा में भाजपा सरकार चुनाव के दौरान किए गए अपने वादों को निभाने में विफ़ल रही है। यह नौकरियों और रोज़गार सृजन तथा सामाजिक सुरक्षा के संबंध में ख़ासतौर पर सच है।

2018 विधानसभा चुनाव से पहले जारी भाजपा के "त्रिपुरा 2018 के लिए विज़न डॉक्यूमेंट" ने "हर घर में एक रोज़गार का अवसर" देने का वादा किया था। हालांकि, चुनाव परिणाम के एक महीने के भीतर, मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब ने यू-टर्न लिया और अगरतला में एक सार्वजनिक सभा में दावा किया कि भाजपा ने राज्य के सभी बेरोज़गार युवाओं को सरकारी नौकरी देने का कभी वादा नहीं किया था! वास्तव में, 30 अप्रैल 2018 को, उन्होंने बेरोज़गार युवाओं को सलाह दी कि वे सरकारी नौकरियों के पीछे भागने के बजाय पान की दुकानें खोलें और गायों को पालने के माध्यम से स्वरोज़गार के लिए पहल करें।
फ़रवरी 2018 में विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान, त्रिपुरा बीजेपी पर्यवेक्षक और राष्ट्रीय सचिव सुनील देवधर ने एक रैली को संबोधित करते हुए, भीड़ से एक विशेष नंबर पर मिस्ड कॉल देने के लिए कहा और कहा कि बीजेपी के सत्ता में आने पर उन्हें नौकरी दी जाएगी। नौकरियों देना तो दूर की बात है, अब वो फ़ोन नंबर कहता है कि यह उप्लब्ध नहीं है!

भाजपा के विज़न डॉक्यूमेंट के तहत राज्य सरकार में एक साल के भीतर 50,000 रिक्त पदों को भरने का वादा किया था। हालांकि, इस दिशा में कोई प्रयास नहीं किया गया है। वास्तव में, दिसंबर 2018 में पूर्ण यू-टर्न लेते हुए, राज्य सरकार ने नई सरकारी नौकरियाँ बनाने पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसने उन रिक्त पदों को समाप्त करने की भी सलाह दी जो अब नए रोज़गार पैदा करने के लिए ज़रूरी नहीं हैं।
भाजपा ने यह भी कहा था कि वह राज्य के सरकारी विभागों में कार्यरत सभी संविदा कर्मचारियों को नियमित करेगी। हालांकि, पार्टी अब इस मुद्दे पर चुप है और अनुबंध के काम और आउटसोर्सिंग को प्रोत्साहित कर रही है। इसने लोगों को बेरोज़गार भी किया है। उदाहरण के लिए, अप्रैल 2018 में, त्रिपुरा में जापान इंटरनेशनल को-ऑपरेशन एजेंसी द्वारा चलाए जा रहे सभी जापान-सहायता प्राप्त प्रोजेक्ट्स को त्रिपुरा सरकार द्वारा बंद कर दिया गया था, जिसमें 600 से अधिक कर्मचारी बेरोज़गार हो गए थे।

न्युनतम वेतन में कोई बढ़ोतरी नहीं, मनरेगा को किया बेअसर

सत्ता में आने से पहले, भाजपा ने न्यूनतम मज़दूरी को बढ़ाकर 340 रुपये प्रतिदिन करने का वादा किया था। एक साल बाद, ऐसा करने के लिए किसी भी योजना का कोई संकेत नहीं है। ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना, मनरेगा को भी बेअसर किया जा रहा है। वाम मोर्चे की सरकार के तहत, त्रिपुरा ने 2011 से 2014 तक प्रति व्यक्ति मनरेगा के काम के अधिकतम दिन प्रदान करने में टॉप किया था - 80 दिनों से अधिक का काम दिया था। आज, बीजेपी के तहत यह आधे से भी कम यानी केवल 42 दिनों तक कम हो गया है।

सातवें वेतन आयोग की सिफ़ारिशों पर जुमला 

सातवें केंद्रीय वेतन आयोग (सीपीसी) के लाभों को सभी कर्मचारियों तक पहुँचाना भाजपा के प्रमुख वादों में से एक था, जिसने कहा था कि वह पहली कैबिनेट बैठक में ही ऐसा करेगा। लेकिन लगभग सात महीनों के बाद, कर्मचारियों और शिक्षकों को "त्रिपुरा वेतन मैट्रिक्स 2018" मिला है। वाम मोर्चा सरकार ने पहले ही जो घोषणा की थी, उसकी तुलना में सरकार ने जो काम किया है, वह फ़िटमेंट फ़ैक्टर में केवल 32 अंकों की बढ़ोतरी है।
राज्य सरकार के कर्मचारियों को सातवें सीपीसी की सिफ़ारिशों के अनुसार केंद्र सरकार के कर्मचारियों को बराबर भत्ते और अन्य लाभ नहीं दिए गए हैं। और यह बढ़ा हुआ वेतन भी केवल राज्य सरकार के कर्मचारियों को ही दिया गया है, न कि त्रिपुरा ट्राइबल एरिया ऑटोनोमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल, अगरतला नगर निगम या अन्य स्थानीय निकायों, राज्य सार्वजनिक उपक्रमों आदि के कर्मचारियों को, कर्मचारियों को 12 प्रतिशत महँगाई भत्ता मिलना अभी बाक़ी है। क्योंकि पिछले एक साल में इस बाबत कुछ भी जारी नहीं किया गया है।
इसके अलावा, बीजेपी की अगुवाई वाली सरकार ने 1 जुलाई, 2018 से जॉइन करने वाले कर्मचारियों के लिए एक नई अंशदायी पेंशन योजना शुरू की है, जबकि केंद्र सरकार के विरोध के बावजूद वाम मोर्चा सरकार ने सार्वभौमिक सेवानिवृत्ति पेंशन योजना को बनाए रखना तय किया था जिसे 2004 में लागू किया गया था।

लेखक मुंबई के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज़ में पीएचडी के छात्र हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।

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