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त्रिपुराः जीत के बाद BJP के सहयोगी दल IPFT ने अलग 'त्वीपरालैंड' राज्य की मांग दोहराई

त्रिपुरा विधानसभा चुनाव जीतने के लिए बीजेपी ने अलगाववादी पार्टी से किया गठबंधन
bjp vs left

त्रिपुरा विधानसभा चुनाव के नतीजे की घोषणा को बस दो-तीन दिन ही हुए है। इस चुनाव में बीजेपी-आईपीएफटी गठबंधन ने जीत हासिल की। गठबंधन की ये जीत ख़तरनाक साबित हो सकती है क्योंकि बीजेपी की सहयोगी पार्टी आईपीएफटी के प्रमुख नरेश चंद्र देबबर्मा ने त्रिपुरा राज्य से अलग एक आदिवासी राज्य 'त्वीपरालैंड'की मांग फिर से दोहराई है। नरेश ने इस विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के अगले दिन अगरतल्ला में प्रेस कांफ्रेंस की और मांग करते हुए कहा कि राज्य का नया मुख्यमंत्री आदिवासी होना चाहिए।

आईपीएफटी वर्षों से त्रिपुरा से कुछ क्षेत्र अलग कर एक आदिवासी राज्य बनाने को लेकर लड़ाई लड़ रही है। इसने अक्सर हिंसक आंदोलनों का सहारा लिया और बंगालियों के ख़िलाफ़ बयानबाजी की। इसका संपर्क सीमा पार से संचालित सशस्त्र अलगाववादियों से भी है। फिर भीइस विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने खुलेआम समर्थन मांगा और इसके साथ गठबंधन किया।

पिछले साल जुलाई में इसने अलग राज्य की मांग को लेकर राज्य के एकमात्र राष्ट्रीय राजमार्ग की नाकेबंदी कर दी। त्रिप्रुरा का यह अकेला राजमार्ग है जो देश के अन्य हिस्सों से राज्य को जोड़ता है। इसके बाद आईपीएफटी के नेताओं को दिल्ली बुलाया गया यहां वे वरिष्ठ सरकारी पदाधिकारियों से मिले और इन पदाधिकारियों से आश्वासन मिलने के बाद देबबर्मा ने नाकेबंदी ख़त्म की।

इससे साबित होता है कि राष्ट्रवाद और देशभक्ति का कसम खाने वाली बीजेपी का तालमेल वैसे संगठन से है जो न सिर्फ अलग राज्य की मांग कर रहा है बल्कि उसके तार राष्ट्र-विरोधी ताक़तों से जुड़े हैं। पिछले वर्ष के अंत तक दोनों पार्टियों के बीच मामला क़रीब-क़रीब तय हो गया था।

बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने आईपीएफटी को आश्वासन दिया था कि वह आदिवासियों के मुद्दों पर विचार करने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति का गठन करेगी। त्रिपुरा चुनावों के लिए इसे बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में भी शामिल किया था। आईपीएफटी ने आश्वासन के बाद अपनी तरफ से इसलिए बातचीत कि की चुनाव के बाद मांग पर विचार किया जाएगा।

इसी मुद्दे पर आईपीएफटी ने अपना पूरा चुनाव अभियान चलाया।

मार्च को चुनाव के नतीजे की घोषणा के तुरंत बाद देबबर्मा ने द इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा कि "हमारे पास प्रचार का एकमात्र एजेंडा था एक अलग राज्य की मांग। यहां तक कि सरकार का हिस्सा होते हुए हम इस मांग को जारी रखेंगे। जहां तक वास्तविकता हैहम इस मांग को और तेज़ करेंगे।"

दूसरी तरफ बीजेपी ने अपने प्रचार में अपने सहयोगी दल के इस मुद्दे को अनदेखा कर दिया। पूरी तरह जानते हुए कि उसकी सहयोगी पार्टी राज्य विभाजन के मुद्दे पर वोट मांग रही थी फिर भी बीजेपी ने कहा कि वह राज्य के विभाजन के पक्ष में नहीं था।

अब जबकि चुनाव ख़त्म हो गया है और गठबंधन की जीत हो गई है तो ऐसे में क़र्ज़ लौटाने का समय आ गया है। अलग त्वीपरालैंड के लिए लड़ाई को लेकर ही आईपीएफटी का अस्तित्व बचा हुआ है। यह विभिन्न अलगाववादी सशस्त्र समूहों को सक्रिय होने के लिए एक नया अवसर भी देगा। सत्ता में होने के कारण विरोध करने वालों के ख़िलाफ़ अलगाववादियों को हिंसात्मक होने के लिए प्रेरित किया जाएगा ख़ासकर वाम के ख़िलाफ़। पहले से ही वाम श्रमिकों पर हमले की ख़बरें आ चुकी है।

इस तरहयह फिर अराजकता और हिंसा के अंधेरे दौर में वापस आ गया है।

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