अपने प्रधानमंत्री के बयान को , भारतीय रिज़र्व बैंक की अधिसूचनाओं और सभी प्रकार के सबूतों के को नकारते हुए , वित्त मंत्री जेटली ने आश्चर्यजनक दावा किया है कि 8 नवंबर , 2016 की नोटबंदी का असली मकसद नकदी को जब्त करना नहीं था , बल्कि अर्थव्यवस्था का ' औपचारिकरण / व्यवस्थित ' करना था।
भारतीय रिजर्व बैंक की अधिसूचना जिसे 8 नवंबर , 2016 को जारी किया गया था , में कहा गया था कि देश में भारतीय बैंक नोटों में व्याप्त ज़ाली नकदी और काले धन को प्रभावी ढंग से खत्म करने और ज़ाली नोटों से आतंकवाद के वित्त पोषण को रोकने के लिए यह उपाय " जरूरी था। " संयोग से , सरकार की अधिसूचना ( #2652) वित्त मंत्रालय की वेबसाइट पर तारीख के साथ अब उपलब्ध नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का देश में वह प्रसिद्ध भाषण अभी भी उपलब्ध है ( पूरा वीडियो देखें ) जिसमें वह इस बात पर जोर देते हैं कि यह काले धन का पता लगाएगा , भ्रष्टाचार को रोक देगा और बढ़ते आतंकवाद के कदम को रोकेगा।
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फिर भी जेटली साहब एक नई कहानी का जाल बुन रहे हैं।
वित्त मंत्री का कहना है कि नोटबंदी ने अर्थव्यवस्था के औपचारिकरण को जन्म दिया है। उदाहरण के तौर पर , उनका कहना है कि एन . डी . ए . के पिछले चार साल के शासन में मई 2014 में टैक्स भरने वाले की संख्या " 3.8 करोड़ से बढ़कर 6.88 करोड़ हो गयी है। " यह झूठ ही नहीं बल्कि धोखा देने का मूर्खतापूर्ण प्रयास है। केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड द्वारा दिए गए आंकड़ों से निकाले गए ग्राफ के अनुसार , वैसे भी हर मामले में करदाताओं की संख्या में वृद्धि हो रही है। भारतीय जनता पार्टी ( बीजेपी ) सरकार के सत्ता में आने से पहले यह उसी दर से बढ़ रही थी। नोटबंदी ने इन संख्याओं को बढ़ाने में कोई योगदान नहीं किया है। संयोग से , जेटली द्वारा उद्धृत संख्याएं बढ़ा चढ़ा कर पेश की गयी हैं क्योंकि उनमें सभी लोग शामिल हैं जो टैक्स भरते हैं। इस संख्या में दो करोड़ से ज्यादा ऐसे लोग शामिल थे जिनके पास कोई कर योग्य आय ही नहीं थी , हालांकि उन्होंने रिटर्न दाखिल किया था। यह एक ऐसी घटना है जो हर साल होती है।
अब नोटबंदी के बारे में अक्सर उस दावे को देखें जिसे अक्सर किया जाता है : इसने अर्थव्यवस्था को और अधिक डिजिटल लेनदेन की ओर धकेल दिया है। जैसा कि नीचे दिए गए ग्राफ में दिखाया गया है , आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार , 28 अक्टूबर , 2016 में 17.5 अरब रुपये की मुद्रा चलन में थी , जो विनाशकारी नोटबंदी से एक हफ्ते पहले की स्थिति थी। इसे नोटबंदी के तहत तबाह कर दिया गया था और धीरे - धीरे लेकिन लगातार वह 12 अक्टूबर 2018 तक यह वापस 19.39 अरब पर आ गई थी। नकदी लेन - देन की मुख्य वस्तु अभी बनी हुई थी , हालांकि , मोदी की घोषणा के तुरंत बाद के सप्ताह में यह बर्बाद हो गयी थी। इससे लाभ उठाने वाली एकमात्र डिजिटल भुगतान कंपनियां थी , जो इस बोनान्ज़ा के लिए मोदी का आभार मानती हैं , भले ही यह कुछ महीनों तक ही चली।
तो , काले धन के बारे में क्या ? जेटली आसानी से मोदी और सभी बीजेपी नेताओं के उन दावों को भूल गए जिनमें उन्होंने कहा था कि नोटबंदी से हजारों करोड़ के काले धन का पता लगाया जाएगा। वे ऐसा इसलिए भूल गए क्योंकि , पिछ्ले दो साल की गिनती के बाद लौटाए गए 1,000 और 500 रुपये के नोट जिसमें आरबीआई को अंततः यह स्वीकार करना पड़ा कि इनमें से 99 प्रतिशत नोट बैंक में वापस आ गए हैं। ब्लैक मनी का पता लगाने तो बहुत दूर की बात है , बल्कि इस प्रक्रिया के तहत विभिन्न माध्यमों के जरिये कई हज़ार करोड़ रुपये का काला धन सफेद हो गया।
इस प्रक्रिया में जाली मुद्रा की केवल एक मामूली राशि का पता लगाया गया था। वास्तव में , नए 2,000 रुपये के नोट जारी किए जाने के कुछ ही हफ्तों बाद , जम्मू - कश्मीर में आतंकवादियों के पास जाली नोट पाए गए।
जेटली अनिच्छुक है - या शायद असमर्थ है - यह मानने के लिए कि नोटबंदी का कदम भारत की सबसे बड़े आर्थिक आपदाओं में से एक था। इस कदम से पूरी दुनिया में मोदी सरकार एक मज़ाक का स्रोत बन गयी , जिस कदम से अधिकांश भारतीयों पर अनजान आर्थिक विनाश और परेशानी थोप दी गयी थी , और इसने देश को गहरे संकट की तरफ धकेल दिया।
एक मूर्खतापूर्ण कार्रवाई , जिसकी वजह से सरकार दो साल तक झूठ बोलती रही। यह इस तरह की सरकार है जिसके प्रमुख स्पिन - मास्टर अरुण जेटली हैं।