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जी-7 रियलिटी चेक

जून की शुरुआत में, दुनिया के सात सबसे अमीर देशों के नेताओं ने वैश्विक स्वास्थ्य, जलवायु और टैक्स के मुद्दों पर चर्चा करने के लिए इंग्लैंड में शिखर वार्ता की। हालाँकि दुनिया अभी भी भयंकर महामारी की चपेट में है, लेकिन उनके उठाए कदमों से दुनिया में बेहतरी या बदलाव की कोई गुंजाइश नज़र नहीं आती है।
जी-7 रियलिटी चेक
कोर्नवाल में जी-7 बैठक

इस साल जून की शुरुआत में आयोजित होने वाली जी-7 की बैठकों से काफी सचेत सी उम्मीदें थीं, जहां कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका के नेता – जो आर्थिक रूप से दुनिया के सबसे धनी सात देश हैं – वे वैश्विक मसलों पर खास वार्ता के लिए एक साथ इकट्ठा हुए। हालांकि, हमेशा से ऐसे मंचों की प्रकृति नव-औपनिवेशिक अवशेष के रूप में रही है, वे एक ऐसे मंच का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसके निर्णय पूरी दुनिया पर प्रभाव डालते हैं।

जी-7 वार्ता से दो उल्लेखनीय नतीजे सामने आए हैं जो विश्व के स्वास्थ्य-निज़ाम से संबंधित हैं: पहली - कार्बिस बे हेल्थ डिक्लेरेशन है जिसका मुख्य मक़सद भविष्य में फिर से कोविड-19 जैसी महामारी को रोकने के प्रयास करने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दोहराती है; और दूसरा यह भी प्रण लिया गया है कि अगले वर्ष के दौरान निम्न और निम्न-मध्यम आय वाले देशों को कोविड-19 की एक अरब से अधिक वैक्सीन की खुराक मुफ्त दी जाएगी।

कार्बिस बे स्वास्थ्य घोषणा: बिना किसी शर्त के

कार्बिस बे स्वास्थ्य घोषणा का मक़सद "रोग के कारणों का पता लगाने और उसकी वृद्धि को रोकने के लिए एक लचीली, एकीकृत और समावेशी वैश्विक स्वास्थ्य प्रणाली बनाने के मार्ग को प्रसस्त करना है ताकि स्वास्थ्य के उभरते खतरों का जल्द से जल्द पता लगाया जा सके।"

 इस घोषणा को चार क्षेत्रों में विभाजित किया गया है; महामारी को रोकना, उसका पता लगाना, उस पर तुरंत कार्यवाई करना, और बीमारी से स्वास्थ्य होना। इस घोषणा के प्रत्येक खंड के भीतर, सात देशों ने "वैश्विक स्वास्थ्य और स्वास्थ्य सुरक्षा प्रणाली को मजबूत करने" के लिए ढीले शब्दों में प्रतिबद्धताएं दोहराई हैं। क्योंकि इसमें किसी भी किस्म की ठोस कार्रवाई का संदर्भ नहीं है, इस बात की बहुत कम उम्मीद है कि इस घोषणा के आधार पर कोई कदम उठाया जाएगा, और क्या नेताओं की उनके द्वारा की गई प्रतिबद्धताओं की कोई जवाबदेही होगी? इस घोषणा से ऐसा कुछ नज़र नहीं आता है।

उदाहरण के लिए, घोषणा, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की महत्वपूर्ण भूमिका को समझती है और उसे मजबूत करने के महत्व को भी पहचानती है। विशेष रूप से, घोषणा में डब्ल्यूएचओ को बेहतर वित्तीय सहायता देने का आह्वान किया गया है - फिर भी यह घोषणा यह बताने में विफल हो जाती है कि क्या जी-7 देश डब्ल्यूएचओ के लिए अपना वित्तीय योगदान बढ़ाएंगे? ऐसा न कर पाना मतलब केवल शाब्दिक समर्थन जिसका कोई वजन नहीं होता है।

बौद्धिक संपदा अधिकार: जारी रहेगा

घोषणा इस बात का भी जिक्र करती है कि "आपूर्ति श्रृंखला खुली, विविध, सुरक्षित और लचीली होनी चाहिए। इसलिए यह घोषणा वैश्विक पहुंच को बढ़ाने और उसके दीर्घकालिक समाधान निकालने के लिए विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के साथ साझेदारी के साथ-साथ टीकों और अन्य स्वास्थ्य उत्पादों के व्यापार और निर्यात का समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध है। इस संदेश के तहत कोई भी आशावादी दृष्टिकोण इसकी इस तरह से व्याख्या करेगा कि जी-7 देश इस तथ्य को पहचानते है कि टीकों और अन्य चिकित्सा उत्पादों के संबंध में व्यापार और बौद्धिक संपदा पहुंच में गंभीर बाधाएं हैं, और स्थानीय उत्पादन बढ़ाने और पेटेंट की छूट देने, और तकनीकी जानकारी और डेटा साझा करने के प्रयासों का समर्थन करने के लिए तैयार है। लेकिन फिर, एक अधिक यथार्थवादी व्याख्या यह कहती है कि विविध आपूर्ति श्रृंखलाओं के बारे में जताई गई चिंता, केवल बौद्धिक संपदा के किसी भी वास्तविक संदर्भ के मामले में स्पष्ट चूक से, यूरोप में एस्ट्राजेनेका वैक्सीन के वितरण को लेकर चल रहे विवादों से हल्की हो जाती है।

कोविड-19 महामारी से बहुत पहले, बौद्धिक संपदा चिकित्सा प्रौद्योगिकी की समान पहुंच, लंबे समय से और अच्छी तरह से पहचानने वाली बाधा रही है। यही कारण है कि डब्ल्यूएचओ ने कोस्टा रिका के साथ मिलकर पिछले साल मई में कोविड-19 टेक्नोलॉजी एक्सेस पूल (C-TAP) लॉन्च किया था, जिसका उद्देश्य पेटेंट, तकनीकी जानकारी और डेटा को आपसी पूलिंग द्वारा कोविड-19 स्वास्थ्य उत्पादों के उत्पादन को बढ़ाना था। और यही कारण है कि दक्षिण अफ्रीका और भारत ने विश्व व्यापार संगठन में कोविड-19 चिकित्सा उत्पादों से जुड़ी बौद्धिक संपदा प्रतिबंधों को निलंबित करने का प्रस्ताव रखा था। इस प्रस्ताव के आसपास चर्चा अंतरराष्ट्रीय ज़ोर पकड़ रही है। फिर भी, अमेरिका द्वारा (सीमित) समर्थन की चौंकाने वाली घोषणा के बावजूद, अमीर देशों ने इसे बड़े पैमाने पर अवरुद्ध कर दिया है। घोषणा में बौद्धिक संपदा के बारे में कोई भी उल्लेख नहीं जो एक स्पष्ट कमी की तरफ इशारा करती है - ये शक्तिशाली देश अभी भी बौद्धिक संपदा संरक्षण के निहितार्थ और आज के वैक्सीन रंगभेद के मामले में उनके द्वारा उठाए गए कदमों से पैदा हुए हालात को पहचानने से इनकार कर रहे हैं।

कोविड-19 वैक्सीन वितरण के लिए चैरिटी यानि दान का दृष्टिकोण

ये सातों देश 'कोविड के बाद' के जीवन की आशंकाओं के मद्देनजर अपनी पूरी आबादी का टीकाकरण करने में काफी व्यस्त हैं। उनकी यह कहानी, कोविड-19 टीकों की असमान पहुंच के कारण वैश्विक वैक्सीन रंगभेद के बिल्कुल विपरीत की कहानी है। जबकि विकासशील देशों को एक अरब से अधिक खुराक देने की जी-7 की प्रतिज्ञा प्रभावशाली लग सकती है, लेकिन दुनिया की 70 प्रतिशत आबादी का टीकाकरण करने के लिए जरूरी संख्या यानि 11 बिलियन खुराक से काफी कम है। इसके अलावा, यह संख्या सात देशों द्वारा वैश्विक टीकाकरण प्रयासों के लिए पहले से ही प्रतिबद्ध खुराक और संसाधनों को ध्यान में रखते हुए काफी कम है। और फिर, इनमें से 870 मिलियन खुराक अतिरिक्त आपूर्ति से आ रही हैं, जो अतिरिक्त खुराक उनकी अपनी आबादी का टीकाकरण करने के बाद की शेष खुराक है। प्रभावी रूप से, कॉर्नवाल में की गई प्रतिबद्धता को दान के एक दयनीय कार्य के रूप में वर्णित किया जा सकता है, जिसमें धनी देशों ने अपनी अतिरिक्त वैक्सीन को दान करने के लिए यह धारणा बना दी कि वे वैश्विक एकजुटता के लिए समर्पित हैं, जबकि वास्तव में वे सत्ता की अपनी ऐतिहासिक समझ की रक्षा कर रहे हैं और शेष दुनिया के वास्तविक परिवर्तन के प्रयासों को अवरुद्ध कर रहे हैं।

घोषणा के निराशाजनक स्वरूप के कारण, जी-7 के वार्ता के परिणाम शायद ही आश्चर्यजनक हों। और जबकि इस तरह के मंचों की घोषणाएं कितनी भी उम्मीदों से भरी हो या तुलना में लुभावनी लग सकती है, लेकिन यकीनन वे सबसे अधिक हानिकारक हैं। वे एक ऐसी हक़ीक़त का प्रतिनिधित्व करती हैं जिसमें स्व-नियुक्त वैश्विक नेता दुनिया में अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए एक साथ आए हैं और वे उम्मीद करते हैं कि बाकी दुनिया उनके तथाकथित ‘प्रयासों’ की आभारी रहे।
 
नटाली र्होडेस वैश्विक स्वास्थ्य निज़ाम, दवाओं तक पहुंच और स्वास्थ्य न्याय के मुद्दों पर काम करती हैं। वे पीपुल्स हेल्थ मूवमेंट के साथ सक्रिय है और उन्होने यूके सर्कल के समन्वयक सदस्य होने के साथ-साथ डब्ल्यूएचओ वॉच प्रोजेक्ट पर भी काम किया है।

सौजन्य: Peoples Dispatch

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें। 

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