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उत्तर प्रदेश में दरवाज़े पर पुलिस की दस्तक ही बन गया है जीवन

उत्तर प्रदेश में पुलिस को छूट देना अल्पसंख्यकों और वंचितों पर ज़ुल्म ढा कर उन्हें हाशिए पर डालने और डराने की रणनीति है, ताकि उन्हें राज्य में राजनीतिक रूप से बेमानी बना दिया जाए।
उत्तर प्रदेश में दरवाज़े पर पुलिस की दस्तक ही बन गया है जीवन

मान लीजिए कि आप एक सामान्य नागरिक हैं और अपना जीवन जी रहे है। एक बारगी राज्य के सर्वव्यापी प्रतीकों के बारे में जानने और उनके खतरनाक खतरे की हवा को नोटिस करने के लिए आपको क्षमा किया जा सकता है। इन प्रतीकों में पुलिस संभवतः सबसे शक्तिशाली संस्था है।

पूरे भारत में पुलिस बल भरोसेमंद होने के बजाय भयभीत करने वाली और घृणास्पद संस्था बन गई हैं क्योंकि वे बिना किसी डर के व्यवस्था का आनंद उठा रहे हैं। वे खुद एक कानून बन गए हैं। और उत्तर प्रदेश की तुलना में तो कहीं अधिक सत्य है, जहां मुख्यमंत्री आदित्यनाथ लगभग राज्य पुलिस बलों को अपनी निजी मिलिशिया के रूप में इस्तेमाल करते हैं- उनके अलावा पुलिस पर किसी का न तो नियंत्रण नहीं, न ही कोई निगरानी है। 

सत्ता में आने के तुरंत बाद, आदित्यनाथ ने कुख्यात "एंटी-रोमियो स्क्वॉड" बनाया था। "सार्वजनिक-निजी भागीदारी" की भावना के साथ बना यह एक ऐसा दल था जिसमें सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और उसके संगठनों के गुंडे शामिल है और जिन्हे पुलिस ने तैयार किया और वे सार्वजनिक स्थानों/पार्कों में बैठे युवा जोड़ों को परेशान करते हैं। 

जैसा कि हमें अब पता चला है, यह आदित्यनाथ सरकार के अल्पसंख्यक-विरोधी और वास्तव में मुस्लिम-विरोधी-संदर्भ का सिर्फ एक पहलू भर है। इसलिए कहा जा सकता है की रोमियो विरोधी दस्ता मात्र एक "योजना" थी जिसके जरिए संघ परिवार के सदस्य "लव जिहाद" रोकने के लिए इसका राजनीतिक इस्तेमाल कर रहे हैं। उनके नज़रों में, लव-जिहाद के माध्यम से मुस्लिम पुरुष हिंदू महिलाओं से शादी कर भारत के जनसांख्यिकीय प्रोफाइल को बदलना चाहते हाइओन और यह सब एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तैयार की गई साजिश जय जिसे बड़े पैमाने पर वित्तपोषित किया जा रहा है।

इससे भी बुरा यह हुआ कि आदित्यनाथ सरकार ने पुलिस राज्य बनाने के लिए अनिवार्य रूप से इस रास्ते को चुना। इसे जाँचने में कोई गलती न हो; बस यही एक सत्य है।

आइए देखें कि उत्तर प्रदेश में कानून और व्यवस्था को बनाए रखने के विशाल काम को कैसे किया जाता है और इसमें पुलिस की भूमिका क्या होती है? 13 अगस्त को, इंडियन एक्सप्रेस ने बताया कि उत्तर प्रदेश पुलिस में 8,472 "मुठभेड़" हुई हैं - आमतौर पर कानून तोड़ने वाले लोगों के खिलाफ़ इस तरह का न्याय से परे का रास्ता अपनाया जाता है – इसकी शुरुवात 19 मार्च 2017 से हुईथी, जब आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने थे। साथ ही इन न्याय से परे के अभियानों में 3,302 लोग घायल हुए हैं, जबकि 146 लोगों की जाने गई। 

रिपोर्ट का दुखद हिस्सा यह है कि इनमें से कोई भी मामला नया नहीं था। आदित्यनाथ सरकार द्वारा अपराध से निपटने के लिए एनकाउंटर का सहारा लेने की खबरें कम से कम दो साल से चल रही हैं। पिछले साल, एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने मीडिया के सामने 'स्थायी प्रस्तुतिकरण' की नीति का बचाव किया था। इस नीति के प्रति उनका औचित्य अवास्तविक, बेहूदा और सत्तावादी था।

रिपोर्ट के बारे में नई बातें सार्वजनिक डोमेन में पहले से मौजूद तथ्यों से भी डरावनी थी। उत्तर प्रदेश पुलिस लंबे समय से हालांकि अनौपचारिक रूप से, एक कार्यक्रम चला रही है: जिसे 'ऑपरेशन लंगड़ा' कहा जाता है। इस ऑपरेशन के तहत पुलिस पीछा करते हुए लोगों की टांगों में गोली मार रही है। 

सभी वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने अपंग बनाने वाली किसी भी ठोस रणनीति से इनकार किया हैं। लंबे समय से चल रहे इस अभियान में कितने लोग विकलांग हुए हैं, इसके आंकड़े भी वे नहीं रखते हैं। उत्तर प्रदेश पुलिस के एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर) प्रशांत कुमार इसे दूसरे तरीके से घुमाते हैं। पुलिस मुठभेड़ों में घायलों की अधिक संख्या इस बात का प्रमाण है कि अपराधियों को मारना पुलिस का प्राथमिक उद्देश्य नहीं है। उन्होंने कहा कि प्राथमिक उद्देश्य गिरफ्तारी करना है।

ऐसा नहीं है कि पुलिस को दी गई इस बेंतहा शक्ति पर ध्यान नहीं दिया गया है। जनवरी 2019 में, सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रथा और इसके पैमाने का चिंताजनक संज्ञान लिया था। लेकिन  गिरफ्तारी करने पर बहुत कुछ ध्यान नहीं दिया गया है। हमें यह समझना चाहिए कि 'एनकाउंटर' करना पुलिसिंग का कोई स्वरूप नहीं है। यह व्यवस्था में सशस्त्र ठगों की एक और सेना को छुट देने के बराबर है, जिसे सरकारी समर्थन प्राप्त है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति ए एन मुल्ला द्वारा एक बार की गई वह टिप्पणी दिमाग में आती है:"... पूरे देश में कानूनी की नज़रों में जघन्य जुर्म करने वाला एक भी ऐसा समूह नहीं है, जिसका अपराध उस संगठित इकाई के रिकॉर्ड के आस-पास आता है, जिसे भारतीय पुलिस के नाम से जाना जाता है।

उत्तर प्रदेश में यही हुआ है। एक ऐसे राज्य में पुलिस बल बंदूक और सरकारी समर्थन के माध्यम से कानून व्यवस्था को धता बताने वाले लोगों का एक और समूह के रूप में बनकर उभरा है जहां कानून और व्यवस्था या नागरिक संस्थानों की सभी आवश्यक विशेषताएं पूरी तरह से ध्वस्त हो गई हैं। दुर्भाग्य से, एनकाउंटर पुलिसिंग कभी भी अपराध से लड़ने और उत्तर प्रदेश को अपराध के धब्बे को मिटाने के लिए नहीं बनी थी। इसके उद्देश्य बहुत अधिक भयावह थे। बिना किसी जिम्मेदारी के पुलिस को उनके कार्यों से जोड़ने का प्राथमिक उद्देश्य रणनीतिक है। इसका उद्देश्य राज्य में अल्पसंख्यकों और सभी असंतुष्टों के अस्तित्व को राजनीतिक रूप से निरर्थक बनाने के लिए उन पर हमला करना और उन्हे हाशिए पर डालना और डराना था।  दिल्ली पुलिस के रिकॉर्ड और राजधानी में उसकी भूमिका को भी इसके लिए जाना जाता है। दूसरा उद्देश्य बचकाना है; आदित्यनाथ को ऐसे व्यक्ति के रूप में पेश करना जो व्यक्ति काम करवाना जानता है-चाहे टीकाकरण, ऑक्सीजन हो या सड़कों से अपराध को दूर रखना हो।

दुर्भाग्य से, महामारी से बेपरवाह ढंग से निपटने और उत्तर प्रदेश में बढ़ते अपराध के ग्राफ को देखते हुए, महिलाओं के खिलाफ अपराधों में वृद्धि के साथ, आदित्यनाथ खुद को मानव जाति के सामने उपहार के रूप में पेश करने का प्रयास करते हैं। आदित्यनाथ को ज्यादातर लोग जानते हैं कि वे क्या हैं।

हालांकि, यह संभव है कि उत्तर प्रदेश परियोजना आदित्यनाथ की खुद की एकमात्र परियोजना न हो। परियोजना का स्वामित्व शायद सामूहिक है, जिसमें आदित्यनाथ सीईओ की भूमिका निभा रहे हैं। इस परियोजना का उद्देश्य केवल तात्कालिक लक्ष्यों को पाना नहीं है बल्कि शासन की कई शैलियों की एक जगह बनाना है। दूसरे शब्दों में, उत्तर प्रदेश शासन का एक नया मॉडल बनाया जा रहा है जो गुजरात मॉडल अनुसरण करता है।

वर्तमान प्रधानमंत्री ने गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए अपने राज्य में अल्पसंख्यक विरोधी दंगों को भड़काने के लिए एक त्रासदी का इस्तेमाल किया था। इस रणनीति ने अच्छी तरह से काम किया, क्योंकि 25 साल तक भाजपा राज्य में लगभग अजेय रही है। उत्तर प्रदेश का प्रयोग बड़े पैमाने का है, क्योंकि यह आकार में तीन गुना है और सामाजिक तानेबाने और राजनीतिक जुड़ाव के मामले में बहुत अधिक जटिल है।

यदि भाजपा उत्तर प्रदेश और केंद्र में एक बार ओर चुनाव जीत जाती है, तो वह हर स्तर पर उत्पीड़न जारी रखेगी। और जब अल्पसंख्यक और असंतुष्ट बाहर निकलने कि कोशिश करेंगे तो जैकबूट उनके दरवाजे पर होंगे: सुबह के शुरुआती घंटों में, जब वे न तो सो रहे होंगे और न ही पूरी तरह से जागे होंगे। लोकतंत्र के सारे तामझाम को तोड़ते हुए आखिरकार पुलिस राज्य बन ही जाएगा।

लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार और शोधकर्ता हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

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