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घोर ग़रीबी के चलते ज़मानत नहीं करा पाने के कारण कश्मीरी छात्र आगरा जेल में रहने के लिए मजबूर

विश्वास की कमी और वित्तीय दबाव उन परिवारों के रास्ते में आड़े आ रहे हैं, जिनके बच्चों को क्रिकेट विश्व कप में पाकिस्तान के हाथों भारत की शिकस्त के बाद जेल में डाल दिया गया था, हालांकि उन्हें ज़मानत दिये जाने का आदेश दिया जा चुका है।
kashmiri student
फ़ोटो साभार: कश्मीर डिजिट्स

आगरा के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ रहे तीन कश्मीरी छात्रों-अरशद यूसुफ़,इनायत अल्ताफ़ शेख़ और शौकत अहमद गनी पर पिछले अक्टूबर में विश्वकप में पाकिस्तान के हाथों भारत की शिकस्त पर जश्न मनाने को लेकर राष्ट्रद्रोह का इल्ज़ाम लगाया गया था। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उन्हें ज़मानत तो दे दी है, लेकिन वे अभी तक जेल में ही हैं, क्योंकि उनके परिवारों के पास उनकी ज़मानत बॉन्ड भरने के लिए पैसे नहीं हैं।

शौकत के पिता शबन अहमद गनी कहते हैं, "हमारे पास ज़मीन के एक छोटे टुकड़े को छोड़कर कुछ भी नहीं बचा है। हमने अपने बेटे से मिलने के लिए आगरा जाने और क़ानूनी ख़र्चों के लिए पैसे उधार लिए। पैसे जुटाने के लिए हमने अपनी गाय तक बेच डाली, हमारे हाथ में अब कुछ बचा नहीं है।" परिवार उत्तरी कश्मीर के बांदीपोरा ज़िले में टूटी हुई खिड़कियों और ज़ंग खाये छत वाले टूटे-बिखरे एक मंज़ीले घर में रहता है। गनी अफ़सोस जताते हुए कहते हैं,"शौकत बचपन से ही एक तेज़ दिमाग़ वाला छात्र था। वह बुद्धिमान था और अपना ज़्यादतर वक़्त पढ़ाई करते हुए ही बिताता था।"

आगरा के आरबीएस कॉलेज के इन तीन छात्रों को कभी इस बात का अंदाज़ा भी नहीं रहा होगा कि उनकी बधाई वाले व्हाट्सएप स्टेटस उन्हें इतनी ज़्यादा परेशानी में डाल देंगे कि उनके परिवारों को जेल से बाहर निकलने के लिए अपनी संपत्ति तक बेच देनी पड़ेगी। अरशद सिविल इंजीनियरिंग विभाग में तीसरे वर्ष के छात्र हैं, जबकि इनायत और शौकत अपने चौथे साल में हैं।

अरशद के चाचा बिलाल अहमद दार कहते हैं, "हम ऐसे छह लोगों को खोजने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जिनमें से हर एक के बैंक खाते में 1 लाख रुपये हों,ताकि सुरक्षित रिहाई के लिए ज़मानत दिलायी जा सके।" इनायत और अरशद मध्य कश्मीर के चडूर और बडगाम के रहने वाले हैं। अगर कोई अभियुक्त अदालत के सामने पेश नहीं होता है या ज़मानत की शर्त को तोड़ता है,तो गारंटी प्रणाली के तहत गारंटी देने वालों को अदालत की ओर से बॉन्ड में तय की गयी राशि का भुगतान करने के लिए सहमत होना होता है

अपना नाम प्रकाशित नहीं करने का इरादा जताते हुए उन छात्रों में से एक के रिश्तेदार का कहना है, "हम अपने बच्चों से मिलने के लिए कश्मीर से आगरा तक के सफ़र का जोखिम नहीं उठा सकते, न ही हम कोई वकील कर सकते। हमें तो रोज़-ब-रोज़ के ख़र्चों को पूरा कर पाना भी मुश्किल लगता है। अरशद एक ऐसा अनाथ बच्चा है, जो सिर्फ़ इसलिए पढ़ाई कर सका है, क्योंकि उसे सरकारी वज़ीफ़ा मिला हुआ है।"

ग़ौरतलब है कि अरशद के पिता एक मज़दूर थे और कई साल पहले सड़क दुर्घटना में उनकी मौत हो गयी थी। अरशाद के चाचा बिलाल अहमद दार कहते हैं,"कॉलेज के अफ़सरों ने सीसीटीवी फुटेज की जांच की थी और पाया था कि उसने पाकिस्तान समर्थक या आपत्तिजनक नारे नहीं लगाये थे।"

पिछले हफ़्ते जब जस्टिस अनिल भनोट ने इन छात्रों की ज़मानत की सुनवाई की ,तो उन्होंने कहा था कि भारत की एकता "बांस की खपच्चियों से बनी हुई नहीं है कि महज़ नारों की गुज़रती हवाओं से मुड़-तुड़ जाये।" उन्होंने कहा कि लोगों को अपने राज्य में एक सक्षम माहौल बनाने वाले अतिथि विद्वानों को उपलब्ध कराना होगा। उन्होंने यह भी कहा कि छात्रों चाहे जहां भी जायें,उन्हें अपने संवैधानिक मूल्यों को आत्मसात करना चाहिए। लेकिन,ऐसा लगता है कि ये बुद्धिमानी भरे शब्द बहरे के कानों पर कोई असल नहीं डाल पाये हैं, क्योंकि उत्तर प्रदेश के निवासी इन तीन छात्रों के ज़मानत बांड पर हस्ताक्षर करने के लिए आगे नहीं आ रहे हैं।

उनकी आसानी से तत्काल रिहाई के लिए या तो परिवारों को नक़द ज़मानत राशि जमा करानी होगी, या फिर उत्तर प्रदेश के किसी निवासी से उनकी ज़मानत के बॉंड पर हस्ताक्षर कराने होंगे। इन तीनों छात्रों की नुमाइंदगी कर रहे वकील मधुवन दत्त चतुर्वेदी कहते हैं, "समस्या यही है कि इन तीनों के परिवार वाले बहुत ग़रीब हैं, वे तीन लाख रुपये जमा करा पाने की स्थिति में नहीं हैं।"

अरशद के क़रीबी रिश्तेदार यासीर पॉल कहते हैं, "हमें छह ज़मानत का इंतज़ाम करने के लिए कहा गया है, ताकि हमारे बच्चे ज़मानत पाने से रह नहीं जायें। आख़िरी फ़ैसले तक इन छह लोगों के खातों में पैसे रखने होंगे। लेकिन,ऐसे छह लोगों को ढूंढ पाना वास्तव में मुश्किल है।"

26 अक्टूबर, 2021 को भारत-पाकिस्तान टी 20 विश्व कप मैच के बाद अपने कॉलेज से अरशद, इनायत और शौकत को निलंबित कर दिया गया था। आगरा पुलिस ने उन्हें बीजेपी युवा नेता की ओर  से पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाने की शिकायत के आधार पर गिरफ़्तार कर लिया था, हालांकि हॉस्टल के वार्डन और कॉलेज के अधिकारियों ने इस दावे का विरोध किया था। शुरुआत में उन पर समुदायों के बीच शत्रुता पैदा करने जैसे दूसरे आरोप लगाये गये थे, लेकिन बाद में उन आरोपों में राजद्रोह को भी जोड़ दिया गया था।

शौकत की मां हफ़ीज़ा बेगम कहती हैं कि उन्होंने अपने बेटे की तालीम के लिए सबकुछ त्याग दिया। उन्होंने उसे शिक्षित करने के अपने सपने को पूरा करने की ख़ातिर अपनी ज़मीन तक बेच डाली, लेकिन उसकी गिरफ़्तारी ने उस सपने को चकनाचूर कर दिया है। वह कहती हैं,"हमारे पास सिक्योरिटी बॉन्ड और आगे के क़ानूनी ख़र्चों के लिए पैसे नहीं है।"  ये ज़मानत इन परिवारों के लिए एक बड़ी राहत होगी, लेकिन छात्र अभी भी वित्तीय संकट के चलते सलाखों के पीछे हैं। तीनों को अलग-अलग कमरे में बाक़ी क़ैदियों से दूर रखा गया है। उन्हें अलग-अलग रखने के पीछे की दलील यह दी गयी है कि पिछले साल अदालत परिसर में उन्हें धमकियां मिली थीं।

पिछले नवंबर में जब उन्हें आगरे की अदालत में पेश किया जा रहा था, तो दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं ने उन पर हमले कर दिये थे और पुलिस की मौजूदगी के बावजूद उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया था। आगरा के वकीलों के असोसिएशन ने उनके बचाव करने से इनकार कर दिया था और एक प्रस्ताव पारित करके उन्हें किसी भी तरह की क़ानूनी सहायता से वंचित कर दिया गया था। वे 27 अक्टूबर से जेल में रह रहे हैं। सूबे के पूर्व छात्रों का एक नेटवर्क (जिसमें यह लेखक प्रवक्ता है) जम्मू-कश्मीर स्टूडेंट असोसिएशन ने उन्हें बचाने के लिए एडवोकेट मधुवन दत्त चतुर्वेदी की सेवायें ली थीं। असोसिएशन ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से इन छात्रों को राजद्रोह के आरोप और निलंबित किये जाने को रद्द करने का आग्रह किया है।

2018 में बारहवी पास करने के बाद अरशद और इनायत ने प्रधान मंत्री की विशेष छात्रवृत्ति योजना के तहत आगरा के इस कॉलेज में दाखिला लिया था।यह योजना (जिसे सही मायने में विश्वास-निर्माण उपाय कहा जाता है) को प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने जम्मू-कश्मीर के छात्रों के लिए 2011 में लॉन्च किया था ।

दार कहते हैं,"हमने उन्हें सियासत में शामिल होने या किसी भी तरह के हिंसा में शामिल होने के बजाय इंजीनियर बनने के लिए आगरा भेजा था...हमने सोचा था कि अपनी पढ़ाई के बाद अरशद अपने परिवार की देखभाल करेगा और ख़ुद की ज़िंदगी अच्छे ढंग से बितायेगा। हालांकि, इस घटना ने हमें ज़ख़्मी कर दिया है।"

तीन बार इनसे जेल में मिलने गये इनायत के एक चचेरे भाई कहते हैं ,"जेल में होने से ये तीनों पर बड़ा असर पड़ा है...वे जिस्मानी और जज़्बाती तौर पर कमज़ोर हो गये हैं। वे परेशान होकर रोते हैं। वे उदास और चिंतित हैं और पूछते हैं कि वे और कितने समय तक यहां रहेंगे।" वह कहते हैं, "अदालत से उन्हें ज़मानत मिले हुए आठ दिन बीत चुके हैं, लेकिन उनकी रिहाई अब भी दूर की कौड़ी बनी हुई है। हम इन्हें बचाने के लिए लोगों को मनाने की ख़ातिर ख़ून-पसीना एक कर चुके हैं, लेकिन तमाम कोशिशें बेकार रही हैं।"

जे एंड के स्टूडेंट असोसिएशऩ के अध्यक्ष मुश्ताक़ अहमद कहते हैं,"राष्ट्रद्रोह के इन आरोपों से आरोपियों के करियर और इनके परिवारों के सीमित संसाधन दांव पर हैं।" एसोसिएशन ने मानवीय आधार का हवाला देते हुए राज्य प्रशासन से मदद मांगी है और छात्रों की तरफ़ से राज्यसभा सांसदों और कई अन्य लोगों के भी दरवाज़े खटखटाये हैं।

सैद्धांतिक तौर पर किसी भी ख़ास टीम का समर्थन करने को राजनीति या विचारधारा में नहीं जोड़ना चाहिए। क्रिकेट को आख़िरकार एक जेंटलमैन गेम माना जाता है। सच है कि खेल अब सियासत या विचारधारा से अलग शगल नहीं रहा, लेकिन इन छात्रों को क़ैदी बनाये रखने के लिए जिस हमलावर बुनियाद की तलाश की जा रही है, वह नाइंसाफ़ी है। यह स्थिति राष्ट्र निर्माण में कश्मीर के नौजवान छात्रों की महत्वाकांक्षाओं के योगदान को लेकर भी एक सवालिया निशान लगाती है। आख़िरकार, कोई कार्रवाई कुछ को भले ही ठीक लगे, लेकिन यह इसे वैध तो नहीं बना  देता। राष्ट्र द्रोही कहा जाने वाला यह ज़ख़्म उन लोगों के साथ चिपका रहेगा, जो मनमाने ढंग से हिरासत में ले लिए गये हैं। उम्मीद की इकलौती किरण यही है कि न्यायपालिका ने इस पूरे घटनाक्रम में कुछ आशा का संकेत ज़रूर दिया है।

लेखक जे एंड के स्टूडेंट असोसिएशन के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं। इनके विचार निजी हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Too Poor to Afford Bail, Kashmiri Students Languish in Agra Jail

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