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उदयपुर कांड: ...जाने किसके धरम का भला हो गया!
कोई पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या करके ख़ुश है, कोई ग़रीब मज़दूर अफ़राज़ुल का क़त्ल करके और कोई ग़रीब दर्जी कन्हैया लाल का गला काट के। हर हत्यारे को यह वहम है कि वह अपने धर्म की भलाई कर रहा है।
मुकुल सरल
29 Jun 2022
उदयपुर कांड: ...जाने किसके धरम का भला हो गया!
मक़्तूल कन्हैया लाल की प्रतीकात्मक तस्वीर। सोशल मीडिया से साभार

एक धमाका हुआ, तन के चिथड़े उड़े

जाने किसके धरम का भला हो गया !

मैंने यह शेर 90’ के दशक में कहा था, और आज भी हालात नहीं बदले। आज भी हर कोई हिंसा के माध्यम से अपने धर्म का भला करने निकला है। कोई पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या करके ख़ुश है, कोई ग़रीब मज़दूर अफ़राज़ुल का क़त्ल करके और कोई ग़रीब दर्जी कन्हैया लाल का गला काट के। हर हत्यारे को यह वहम है कि वह अपने धर्म की भलाई कर रहा है, लेकिन वह नहीं जानता कि वह अपने देश, अपने समाज का कितना बड़ा दुश्मन है।

उदयपुर की घटना भी यही बताती है कि धर्मांधता किसी भी आदमी को कैसा वहशी दरिंदा बना सकती है। लेकिन यहां एक फ़र्क़ और अच्छी बात है कि किसी भी भारतीय ने इस घटना का समर्थन या ख़ुशी नहीं जताई है। जिस पैग़ंबर मोहम्मद के अपमान के नाम पर यह नृशंस हत्याकांड किया गया है, उसी पैग़ंबर के शैदाई, उन्हें मानने वालों ने आगे बढ़कर इस घटना की निंदा की है और हत्यारों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की मांग की है। जैसे पिछले कुछ समय में चलन देखने को मिला है कि हिन्दुत्ववादी ऐसी ही घटनाओं पर ख़ुशी मनाते, जुलूस निकालते पाए गए हैं।

उदयपुर की घटना पर अजमेर दरगाह दीवान जैनुल आबेदीन अली ख़ान ने कहा है कि भारत के मुसलमान देश में कभी भी तालिबानी मानसिकता को स्वीकार नहीं करेंगे। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना हकीमुद्दीन कासमी ने कहा कि यह देश के कानून और हमारे धर्म के ख़िलाफ़ है। हमारे देश में क़ानून की व्यवस्था है, किसी को भी क़ानून अपने हाथ में लेने का अधिकार नहीं है।

लेकिन इसके उलट तर्कवादी नरेंद्र दाभोलकर और एमएम कलबुर्गी की हत्या को जायज ठहराने वाले लोग भी आपने देखे होंगे। पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या पर तो ख़ुशी जताते हुए लोगों ने खुलेआम ट्विटर पर लिखा और उनके ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं हुई। यही नहीं गौरी लंकेश को गाली देने वाले शख़्स के फॉलोअर हमारे प्रधानसेवक तक निकले।

इतना ही नहीं हमने तो कठुआ की एक मासूम बच्ची से बलात्कार को भी धर्म रक्षा का कार्य कहा जाते देखा और बलात्कारियों के समर्थन में तिरंगा यात्राएं निकलते देखीं। इसलिए किसी भी घटना को अकेले यानी आइसोलेशन (isolation ) में देखने पर पूरी पिक्चर साफ़ नहीं होती, आप भावुक तो हो सकते हैं लेकिन सही समझ पैदा नहीं होती। और अक्सर आप धर्म और सियासत की बिसात पर केवल एक प्यादे भर रह जाते हैं। जिसका वे चुनावों में बख़ूबी इस्तेमाल करना जानते हैं।  

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हमें समझना ही होगा कि ये नफ़रत की फ़सल, ये विष बेल इस क़दर इस तेज़ी से कैसे फैल रही है। बहुत पीछे न भी जाएं और पिछले चार-पांच सालों की घटनाओं को ही देखें तो हक़ीक़त का एहसास हो जाएगा। कोरोना बम और कोरोना जेहादी कहके मुसलमानों को टार्गेट करने से लेकर मस्जिदों पर भगवा फहराने, बिना सुनवाई, बिना सुबूत बुलडोज़र चलाने से लेकर कितनी ही बाते हैं कि अगर उन्हें विस्तार में बताया जाए तो कई लेख लिखने होंगे।

बहुत दिन पुरानी बातें नहीं हैं, जब हमने चुनावों में 80-20 के नारे सुने, बिजली-पानी को भी हिंदू-मुसलमान होते देखा। श्मशान-कब्रिस्तान की बातें सुनीं। और ये बातें किसी फ्रिंज एलिमेंट ने नहीं कहीं बल्कि हमारे माननीय नेताओं प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री ने कहीं।

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राजस्थान में जिस जगह दुकानदार कन्हैया लाल के हत्यारे पकड़े गए हैं राजसमंद, यह वही जगह है जहां 2017 में शंभूलाल रैगर ने भी बिल्कुल इसी तरह के हत्याकांड को अंजाम दिया था। उसने भी धर्म रक्षा और इस्लामी जेहादियों के सफाये के नाम पर बंगाल के एक ग़रीब मज़दूर अफ़राज़ुल की इसी बेरहमी से हत्या कर दी थी और वीडियो भी बनाया था और फिर उसे इन्हीं की तरह सोशल मीडिया पर पोस्ट किया था।

इस हत्याकांड की भी देशभर में निंदा हुई थी, लेकिन बहुत लोग इस वहशी हत्यारे के समर्थन में भी आए थे और जुलूस निकाले थे। यही नहीं एक धार्मिक यात्रा में इस हत्यारे की झांकी भी लगाई थी। यानी उसे अपने हीरो, अपने नायक की तरह पेश किया था।

तभी मैं या हम जैसे लोग बार बार कहते हैं कि ऐसी किसी भी घटना का समर्थन मत कीजिए... चाहे वो राजसमंद का शंभूलाल रेगर का मामला हो, चाहे हरियाणा के नूंह का पहलू हत्याकांड हो या फिर यूपी के दादरी का अख़लाक़ हत्याकांड। हमें एक आवाज़ में इस सबकी निंदा करनी चाहिए। पुरज़ोर निंदा करनी चाहिए। 

लेकिन ऐसा होता नहीं। हर कोई अपनी सुविधा से अपना पक्ष चुन लेता है। और दिलचस्प यह कि इसके लिए वह सेकुलर प्रगतिशील लोगों को कोसने लगता है। जी हां, ऐसे हर मामले में सबसे ज़्यादा गालियां धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी, प्रगतिशील लोगों को ही सिकुलर, वामी-कामी कहकर मिलती हैं, जबकि यही वे प्रगतिशील लोग हैं जो हर ऐसी घटना की निंदा करते हैं। आपके-हमारे लोकतांत्रिक अधिकारों और इंसाफ़ की बात करते हैं, आगे बढ़कर लड़ाई लड़ते हैं। लेकिन नहीं, अपनी अपनी धर्मांधता में डूबे लोग दूसरों की तरफ़ उंगली उठाकर पूछते हैं कि- देखा आपने, देखा आपने, बोलिए अब इस पर क्या कहेंगे? अरे वही कहेंगे जो पहले से कहते आ रहे हैं कि हमें यह नहीं करना है...हर तरह की धर्मांधता से बचना है, क्योंकि ये धर्मांधता, यह कट्टरता हम सबको बर्बाद कर देगी। चुनिंदा सरमायेदारों और राजनीतिज्ञों के अलावा ये किसी के काम की नहीं। यह ग़रीबों की दुश्मन है, मानवता की दुश्मन है।

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कुछ और बातें

यह हत्याकांड धर्मांधता की ही नतीजा है, इस बात को लेकर शायद ही किसी को शक हो लेकिन उदयपुर की इस घटना के पीछे किसी बड़ी साज़िश से भी इंकार नहीं किया जा सकता। इसके बाद इसकी प्रतिक्रिया के नाम पर होने वाले उत्पात और हिंसा से भी डर लगता है। हालांकि यह अच्छा हुआ कि हत्या आरोपियों को कुछ ही घंटों में गिरफ़्तार कर लिया गया है। फिर भी सभी लोगों से शांति बनाए रखने के लिए बड़े स्तर पर अपील की जानी चाहिए, की जा रही है।

उदयपुर का चयन बेहद खटकता है। जैसे इससे पहले करौली की हिंसा खटकी थी। हालांकि इसे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का ही फेल्यर माना जाना चाहिए। ऐसी हर घटना के लिए उस राज्य के मुखिया की सीधी ज़िम्मेदारी और जवाबदेही बनती है।

हालांकि अभी हमारे पक्ष-विपक्ष के बड़े नेता और ज़िम्मेदार महाराष्ट्र की राजनीति में उलझे हैं, लेकिन हम जानते हैं कि महाराष्ट्र के बाद राजस्थान का ही नंबर है। इसलिए राजस्थान में शांति व्यवस्था और स्थिरता पर बेहद ध्यान दिए जाने और इस मामले की गहराई से जांच किए जाने की ज़रूरत है।

(यह लेखक के निजी विचार हैं।)

इसे भी पढ़ें: उदयपुर हत्याकांड : हर किसी ने की निंदा, दोनों आरोपी गिरफ़्तार, शांति बनाए रखने की अपील

 

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