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यूक्रेन: सुलगने लगा है ठंडा पड़ा विवाद

इस समय बड़ी अनिश्चितता उत्पन्न हो गई है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय वातावरण जटिल हो गया है। एक तरफ रूस है, तो फ्रांस, जर्मनी, और अमेरिका एकदम दूसरी तरफ खड़े हैं। उनमें परस्पर मेल बैठाना लगभग असंभव हो गया है।
काला सागर की तरफ जाता हुआ अमेरिकी नौसेना निर्देशित विध्वंसक यूएसएस पोर्टर, 28 जनवरी, 2021 को इस्ताम्बुल के बोस्फोरस में।
काला सागर की तरफ जाता हुआ अमेरिकी नौसेना निर्देशित विध्वंसक यूएसएस पोर्टर, 28 जनवरी, 2021 को इस्ताम्बुल के बोस्फोरस में।

ठंडे पड़े झगड़े की भयानक खूबसूरती यह होती है कि इसको फिर से लहकाने और उसे बढ़ा कर हिंसक गर्माहट में बदल देने में बहुत मामूली मेहनत लगती है। लेकिन बाद में, इसकी रुकावट का बटन दबाने में आम राय बनाने की जरूरत पड़ती है, जो इतनी आसान भी नहीं होती है। यूक्रेन के डोनबास में शांत पड़ा सिरकुटौव्वल इस चक्र से हो कर काफी बार गुजरा है और अब यह दूसरी तरफ बढ़ रहा है।

हालांकि, इस समय, बड़ी अनिश्चितता उत्पन्न हो रही है। जैसा कि अंतरराष्ट्रीय वातावरण जटिल हो गया है। एक तरफ रूस को लेकर अब आम राय विकसित हो रही है तो फ्रांस, जर्मनी, और 

अमेरिका एकदम दूसरी तरफ खड़े हैं, उनमें परस्पर तादात्म्य लगभग असंभव हो गया है। रूस का यूरोप के साथ संबंध ऊहापोह में है और उसका मास्को के प्रति अपनी शत्रुता का भाव को छोड़ देने की यूरोप की इच्छा अमेरिकी राष्ट्रपति जोए बाइडेन प्रशासन को फूटी आंखें भी नहीं सुहा सकता है। 

डोनबास में युद्धविराम के उल्लंघन के अलावा, कीव ने कीव ने रूस के प्रति अपने मन में एक दुश्मनी गांठ ली है। यूक्रेन ने इसी साल फरवरी में सोवियत संघ के विघटन के बाद दिसम्बर 1991 में को नागरिक उड्डयन तथा स्वतंत्र देशों के राष्ट्रमंडल के ढांचे के तहत नागरिक उड्डयन तथा एयर स्पेस को ले कर किये गये समझौते से पीछे हट गया है। कीव ने रूस के साथ अपने व्यापार में तेजी से कटौती की है और उसे एक अत्यधिक न्यून स्तर पर ला दिया है। 

पिछले महीने क्रेमलिन ने 26 फरवरी को इस बात पर दुख जताया था कि यूक्रेन के नेतृत्व ने “रूस के साथ सभी रिश्ते को वास्तव में खारिज कर दिया  है और उसने एक अ-मित्र होना पसंद किया है, और प्राय: उसने एक दुश्मनी का रास्ता अख्तियार कर लिया है।” अब इसे संयोग कहें या न कहें, जोखिम का यह परिपथ बाइडेन प्रशासन के रूस के प्रति वाक् युद्ध के समानांतर है और जो रूस की पश्चिमी सीमा, खास कर काला सागर के इर्द-गिर्द नाटो की निरंतर तैनाती कर रहा है।

मॉस्को ने पिछले हफ्ते इसका खुलासा किया कि 2021 के पहले तीन महीने में रूस की सीमा के आसपास नाटो के खुफिया विमानों की उड़ानें 30 फीसदी तक बढ़ गई हैं। रूस के रडार ने केवल पिछले हफ्ते में ही अपनी सीमा के करीब के वायुक्षेत्र में 50 से अधिक विदेशी टोही विमानों की उड़ानें पकड़ी हैं। 

निश्चित रूप से रूस को जो बात सर्वाधिक रूप से चिंतित करेगी, वह यह कि अमेरिकी नौसेना ने, नाटो के अपने सहयोगियों के साथ, “काला सागर में अपनी नौसैनिक मौजूदगी नाटकीय रूप से बढ़ा दी है। इस रणनीति पर जोर देने के लिए कि क्रीमिया प्रायद्वीप (काला सागर और अजोव के सागर के बीच) पर  2014 में कब्जा करने के बाद रूस ने यूरोप और एशिया के बीच से समुद्र का जो सैन्यीकरण किया है, वह निर्विरोध नहीं रहेगा। उसे चुनौती दी जाएगी,” जैसा कि वॉयस ऑफ अमेरिका ने जोए बाइडेन के राष्ट्रपति का पद संभालने से मात्र एक पखवाड़े ही पहले यह टिप्पणी की थी। 

विशेष रुप से वॉयस ऑफ अमेरिका की यह टिप्पणी “काला सागर में 2017 से अमेरिकी नौसैनिकों की भारी तैनाती को प्रतिबिंबित कर रही थी”- यूएसएस पोर्टर जो एक  निर्देशित मिसाइल विध्वंसक है, काला सागर में प्रवेश कर गया है। यहां उसने पहले से निगरानी के लिए तैनात यूएसएस डोनाल्ड कुक और एक इंधन वाहक जहाज तथा यूएसएनएस लारमी के साथ जा मिला है और जिन्होंने नाटो और यूक्रेन के युद्धक-जलपोतों के साथ मिलकर फरवरी में संयुक्त अभ्यास किया था। 

वॉयस ऑफ अमेरिका की उस टिप्पणी में नाटो के एक प्रवक्ता को यह कहते हुए उद्धृत किया गया था कि “रूस द्वारा  गैर कानूनी और अवैध तरीके से क्रीमिया प्रायद्वीप के यूक्रेन से छीन लिए जाने  और इस क्षेत्र का सैन्यीकरण जारी रखने की प्रतिक्रिया” में पश्चिमी गठबंधन  ने काला सागर में अपनी सैन्य मौजूदगी बढ़ा दी है। दिलचस्प है कि काला सागर में अमेरिकी नौसैनिक तैनाती के ठीक पहले, जोए बाइडेन ने स्वयं मास्को को उसके अतिक्रमण के लिए “कड़ी कार्रवाई” करने की चेतावनी दी थी। 

आश्चर्यजनक रूप से,  रूस ने  फरवरी की शुरुआत में पश्चिमी देशों के इस अभ्यास पर अपनी प्रतिक्रिया दी थी। उसने बैशन मिसाइल रक्षा प्रणाली से लैस एक जलपोत को क्रीमिया के लिए रवाना कर दिया था और काला सागर में एडमिरल मकरोव जलपोत की तैनात कर दिया है। वास्तव में,  वॉयस ऑफ अमेरिका की वह टिप्पणी काला सागर में अमेरिका के नेतृत्व में नाटो की कार्रवाइयों की बढ़त के बारे में विशेष  टिप्पणी थी। 

“क्रेमलिन काला सागर को “नाटो की झील” बनने से रोकना चाहता है, लेकिन उसका मकसद पूरब-पश्चिम के बीच बनने वाले किसी भी नये ऊर्जा गलियारे को रोकना है, जो रूस की हैसियत को नजरअंदाज करे या तेल और गैस की निर्यात पर उसकी दखल को कमजोर करे। रूस की सेना ने सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद तथा लीबिया में युद्ध-स्वामी जनरल खलीफा हफ्ता के समर्थन में पूर्वी भूमध्य सागर में अपने नौसैनिक अभ्यास के लिए भी काला सागर का इस्तेमाल किया है।”

यह कहना पर्याप्त है कि रूस के खिलाफ यूक्रेन एक मुख्य भूराजनीतिक उपकरण बन गया है। निश्चित रूप से यह वाशिंगटन और कीव के लिए फायदे की स्थिति है। राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की जो डोनबास का समाधान निकालने और समुद्री विवाद को शांत करने के लिए रूस के साथ नौवहन समझौते करने के नारे पर सवार होकर 2019 में सत्ता में आए थे, वह पूरब में एक गतिरोध बना हुआ देख रहे हैं और क्रेमलिन के साथ संबंधों में तेजी से गिरावट देख रहे हैं। उनके लिए सबसे बुरी बात यह है कि यूरोप ने उनमें अपना चाव खो दिया है और इसके पहले, डोनाल्ड ट्रंप ने भी उन्हें नजरअंदाज कर दिया था। 

आज पूर्व कॉमेडियन जेलेंस्की के पास रूस पर अपनी मध्यमा उंगली उठाने के सिवा खोने के लिए कुछ नहीं है। वह अपने घरेलू दर्शकों के लिए भटक रहे होंगे, जो उनके पद पर रहते उनके प्रदर्शन से निराश हैं और स्वयं को वाशिंगटन में बाइडन की टीम के लिए यूरोप-एशिया में एक विश्वस्त समानवाहक नौकर के रूप में उपलब्ध करा रहे हैं और शायद इस एवज में उन्हें अमेरिका से राजनीतिक, वित्तीय और सैन्य के रूप में कुछ सहायता भी हासिल हो जाए। 

पिछले हफ्ते यूक्रेन की सीमा पर मास्को द्वारा सेना तैनात किये जाने की खबर मिली थी।  समझा जाता है कि मास्को ने यह कदम ऐहतियातन उठाया है ताकि जेलेंस्की ने अपने अनियमित व्यवहार में कुछ वैसा ही किया है, जैसा जॉर्जिया के मिखाइल साकाशविली ने 2008 में हिलेरी क्लिंटन के उकसावे पर किया था, जिससे रूस के साथ एक गंदा विवाद शुरू हो गया था और जो कालांतर में, जार्जिया के विघटन का कारण बना था। दरअसल, रूस के विदेश मंत्री सरगेई लावरोव ने बृहस्पतिवार को खुली चेतावनी दी है कि यदि यूक्रेन के युद्धग्रस्त पूरब में पश्चिमी देशों के नेतृत्व में कोई नया सैन्य बखेड़ा शुरू करने का प्रयास किया गया तो वह अंततोगत्वा यूक्रेन के विघटन का ही कारण बनेगा। 

लावरोव ने कहा, “ऐसा लगता है कि यूक्रेन की अधिकतर सेना डोनबास में “उग्र संघर्ष” के खतरे को लेकर समझदार है। (इसलिए) मुझे पूरी उम्मीद है कि वह राजनीतिकों के उकसावे में नहीं आएगी, जो अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देशों द्वारा उकसाये जा रहे हैं। ज्यादा दिन नहीं हुए जब रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने कहा था, कि जो कोई भी डोनबास में नई जंग छेड़ने की कोशिश करेगा, वह यूक्रेन को बर्बाद करेगा। उनकी यह बात आज भी प्रासंगिक है।” 

क्रेमलिन आने वाले संसदीय चुनाव को देखते हुए और कुछ नहीं कर सकता, लेकिन वह निगरानी रख सकता है। किंतु जेलेंस्की की अनियमित व्यवहार को लेकर वाशिंगटन स्थित इंस्टीट्यूट फॉर द स्टडी ऑफ द वार के एक आकलन में कहा गया है, “रूस इस समय या तो बड़ी लड़ाई या स्थानिक आक्रमण के लिए अपने को तैयार कर रहा है।”  वाशिंगटन पोस्ट में डेविड इग्नाटियस ने पेंटागन अधिकारियों के हवाले से कि यह मतलब निकाला है, जो “रूसी सेना (लगभग 4,000 सैनिक) की तैनाती को प्रशिक्षण अभियान से अधिक आक्रमण की तैयारी की गवाही” मानते हैं। 

ठंडे पड़े झगड़े जो भूराजनीतिक होते हैं, उन के साथ एक दिक्कत यह है कि अगर वे एक बार सुलग गए तो फिर उन्हें शांत करने के लिए अपनी ही गत्यात्मकता की आवश्यकता होती है। वास्तव में, बाइडेन प्रशासन के एक बड़े अधिकारी के हवाले से डेविड ने उद्धृत किया है: “हम रूस के साथ अपने रिश्ते को न तो फिर से बनाना चाहते हैं और न ही उसे आगे बढ़ाना चाहते हैं। हमारा लक्ष्य उन कार्रवाइयों की कीमत वसूलना है, जिसे हम स्वीकार्य नहीं मानते हैं, जबकि हम स्थिरता, पूर्वानुमेयता (predictability), विवाद को शांत करने की मांग करते हैं। अगर वे विवाद का तापमान बढ़ाना चाहते हैं तो हम उसके लिए भी तैयार हैं।” डेविड ने नोट किया कि अमेरिकी विकल्पों में “यूक्रेन को सहायता को बढ़ाना और प्रतिबंध (रूस पर)” भी शामिल है।

यूक्रेन में नाटो की तैनाती के लिए जेलेंस्की का हाल में किये गये फोन कॉल के मायने उससे कहीं ज्यादा है जितना सतह से दिखाई देता है। विगत दो-तीन दिनों में वाशिंगटन से कीव के बीच-विदेश मंत्री से लेकर रक्षामंत्री और स्वयं राष्ट्रपति जोए बाइडेन तक-बार-बार किये गये फोन कॉल्स का मतलब मॉस्को को यूक्रेन की हिफाजत के वादे से वाकिफ कराना है, जिसने बारहां यूक्रेन के नाटो के सदस्य के रूप में उल्लेख किया है और सेना की तैनाती को खतरे की लाइन माना है। 

महत्वपूर्ण रूप से क्रेमलिन-वित्तपोषित आरटी ने अपनी एक टिप्पणी में गौर किया है कि, “स्थिति 1962 के क्यूबा मिसाइल संकट की प्रतिध्वनि है, जिसने दो महाशक्तियों को परमाणु युद्ध के करीब ला दिया था।” क्रेमलिन 1962 की तरह एक समाधान की मांग करता प्रतीत हो रहा है। लेकिन उस समय के केनेडी के विपरीत वर्तमान में राष्ट्रपति बाइडेन क्या वास्तव में एक निदान चाहते हैं, जब खेल का नाम भालू को भाला मारना हो?

यहां क्रेमलिन के लिए “भालू जाल” बिछाने के बाइडेन की आबाध संभावनाओं पर विचार करें। रूस के समक्ष एक लंबा गतिरोध बना हुआ है और वहां यह महत्वपूर्ण चुनावी वर्ष होने के कारण पुतिन उसमें व्यस्त हैं। जबकि वाशिंगटन को मास्को के विरुद्ध कीव को लड़ाने के लिए खुली छूठ मिली हुई है,  उसके साथ अमेरिका के पास  नाटो सहयोगियों को एकजुट करने और यूरोप में अपने ट्रांस-अटलांटिक नेतृत्व को मजबूत करने का अवसर है।  कुल मिलाकर,  बाइडेन को “पॉज” बटन दबाने  और यूक्रेन के झगड़े को ठंडा रखने की कोई हड़बड़ी नहीं है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें।

Ukraine: Frozen Conflict is Heating up

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