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संयुक्त राष्ट्र और अफ़्रीकी संघ ने किया सूडान में तख़्तापलट से बनी सरकार का समर्थन, लेकिन सड़कों पर लोगों का संघर्ष जारी

प्रदर्शनकारी इस बात से सहमत नहीं हैं कि सैनिक तानाशाही की कठपुतली सरकार की समर्थन देकर "वास्तविक लोकतंत्र" लाया जा सकता है। जबकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने, "सैन्य नागरिक शासन" के प्रतीक के तौर पर, मुखौटे वाली तकनिकविदों की कैबिनेट की परेड करवाई गई।
sudan

सूडान में तख़्तापलट के बाद आई सरकार को संयुक्त राष्ट्रसंघ और अफ्रीकी संघ (एयू) से मान्यता मिल चुकी है, इसके बावजूद सेना का विरोध कम होने का नाम नहीं ले रहा है और एक बार फिर 6 दिसंबर को सड़कों पर विरोध प्रदर्शन हुआ।

प्रदर्शनकारियों पर हमला करने के लिए आंसू गैस, जिंदा कारतूस और भाड़े के हमलावरों का सहारा लिया गया। इसमें कई प्रदर्शनकारी घायल हुए। इसकी चिंता भी जताई जा रही है कि गिरफ्तार किए गए दर्जनों प्रदर्शनकारियों को अज्ञात जगह पर हिरासत में रखा गया है और वहां उन्हें प्रताड़ित किया जाएगा।

पूरे सूडान के कस्बों में "सेना के साथ कोई साझेदारी नहीं, कोई बातचीत नहीं, कोई मोलभाव नहीं" का नारा लगाया गया और प्रधानमंत्री के 21 नवंबर को सेना कि शर्तों पर की गई तैनाती को चुनौती दी गई।

इन शर्तों के मुताबिक, एक नई कैबिनेट का गठन किया गया, जिसमें किसी भी राजनीतिक दल का प्रतिनिधित्व नहीं है। यह शर्तें तख्तापलट के नेता लेफ्टिनेंट जनरल अब्देल फतेह अल बुरहान ने तय की हैं, जिनपर हमदोक ने सहमति जताई है।

लेकिन सूत्रों और पर्यवेक्षकों का मानना है कि वृहद समाज, राजनीतिक दलों और नागरिक समाज द्वारा इस राजनीतिक गठबंधन को खारिज किए जाने के चलते सेना जल्द ही हमदोक के बिना खुद ही सरकार बना सकती है। इस तरह के कदम से आगे लोकतंत्र समर्थक आंदोलन के साथ सेना का टकराव और बढ़ेगा। पहले ही यह आंदोलन काफी मजबूत होता जा रहा है।

6 दिसंबर को राजधानी खार्तूम में प्रेसिडेंशियल पैलेस के पास सैनिकों ने प्रदर्शनकारियों पर आंसू गैस के गोले चलाए। यह वह जगह थी जहां पर शहर के अलग अलग हिस्सों से आई रैलियां मिल रही थीं। धारदार हथियारों के साथ गुंडों को बसों में भरकर लाया गया। उन्होंने 6 सड़कों पर प्रदर्शनकारियों पर हमला किया। यहां प्रदर्शनकारी सुरक्षा बैरिकेड तोड़कर पहुंचे थे।

पड़ोसी शहर ओमदुर्मां में सुरक्षाबलों ने घरों में घुसकर आंसू गैस के गोले दागे। रेडियो  दबंगा ने बताया,  कुछ लोगों को शहर के पुलिस स्टेशन के बाहर से हिरासत में ले लिया गया। प्रतिरोध समिति ने एक वक्तव्य जारी कर बताया, "उत्तरी खार्तूम में एक नियोजित ढंग से सुरक्षाबलों को हटाया गया, जिसके बाद गुंडों ने अल सफिया पुलिस स्टेशन में आग लगा दी, ताकि प्रदर्शनकारियों के खिलाफ हिंसा के लिए सुरक्षाबलों को जमीन दी जा सके।"

तख़्तापलट के बाद से अबतक 700 प्रदर्शनकारियों  को सुरक्षाबल घायल कर चुके हैं।

ओमेगा रिसर्च फाउंडेशन द्वारा "सेंट्रल कमेटी ऑफ सुडानीज डॉक्टर्स" की फील्ड रिपोर्टों के अध्ययन से पता चला है कि दिसंबर की शुरुआत तक, जब 25 अक्टूबर को हुए तख़्तापलट को डेढ़ महीने हो चुके थे, तबतक 700 प्रदर्शनकारियों को गंभीर चोट आई थीं।

इनमे से 186 लोग जिंदा कारतूस से घायल हुए हैं, 197 लोग आंसू गैस को लेने के चलते दम घुटने से घायल हुए। जबकि 133 लोग सीधे आंसू गैस की गोलियां लगने से घायल हुए।

रिपोर्ट के मुताबिक, "आंसू गैस के गोलों को किसी व्यक्ति को सीधे मारे जाने के लिए नहीं बनाया जाता। इस तरह का इस्तेमाल जरूरत से ज्यादा ताकत के उपयोग की श्रेणी में आता है और यह गैर कानूनी हो सकता है। लोगों को सीधे यह गोले मारने से वे घायल हो सकते हैं और उनकी मौत तक हो सकती है। खासकर तब जब इन्हें पास से किसी संवेदनशील अंग पर मारा गया हो।

तख़्तापलट के बाद से कम से कम 44 प्रदर्शनकारियों की मौत होने की पुष्टि हो चुकी है, हालांकि जान गंवाने वालों का आंकड़ा अब भी साफ नहीं है।

जिंदगी और शारीरिक अंगों को तमाम खतरों के बावजूद सूडान के लोग, ना केवल खार्तूम राज्य के तीन शहरों में लगातार सड़कों पर आ रहे हैं, बल्कि दारफुर जैसे युद्ध ग्रस्त क्षेत्र में भी निकल रहे हैं।

न्याला, जलिंगेई और अल दाएंन शहरों में मौजूदा अंतर- जनजातीय हिंसा के बावजूद  बड़े प्रदर्शन हुए।  यह हिंसा राज्य समर्थित मिलिशिया द्वारा दूसरे समुदायों पर हमले के चलते हो रही है। जूबा शांति समझौते में सत्ता में भागीदारी हासिल होने के बाद पुराने सशस्त्र समूहों ने राज्य समर्थित मिलिशिया (नागरिक सेना) में साथ हाथ मिला लिया है।

संयुक्त राष्ट्र और अफ्रीकी संघ ने तख़्तापलट से सत्ता में आई सरकार का समर्थन किया है, जबकि इन घातक स्थितियों में भी बिना हथियारों के नागरिक अवज्ञा के जरिए लोगों ने विरोध जारी रखा है। संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस और अफ्रीकी संघ प्रमुख मूसा अल फकी ने इस सरकार के लिए वैधानिकता हासिल करने की कोशिश की है।

एक साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में दोनों ने एक दिसंबर को कहा, "सूडान में कई दशकों में पहली बार राजनीतिक दल, सशस्त्र समूह साथ में आए हैं और हमें विश्वास है कि तमाम गतिरोधों के बावजूद यह गति रुकनी नहीं चाहिए।

गुटेरेस ने चेतावनी देते हुए कहा कि हमदोक ने बुरहान के साथ जो समझौता किया है, उसे खारिज करने से देश में खतरनाक "अस्थिरता" आ जाएगी। गुटेरेस ने लोगों से प्रधानमंत्री हमदोक का समर्थन करने की अपील की, ताकि देश को वास्तविक लोकतंत्र में बदला जा सके।

"हम तख़्तापलट के नेताओं के साथ किसी भी तरह के समझौते से इंकार करते हैं।"

लेकिन प्रदर्शनकारी इस बात से सहमत नहीं हैं कि सैनिक तानाशाही की कठपुतली सरकार के समर्थन से "वास्तविक लोकतंत्र" लाया जा सकता है। जबकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने मुखौटे के तौर पर सैन्य नागरिक शासन के प्रतीक के तौर पर तकनिकविदों की कैबिनेट की परेड करवाई गई।

खार्तूम राज्य प्रतिरोध समिति ने 5 दिसंबर को एक वक्तव्य में कहा कि UNITAMS (यूनाइटेड नेशन्स इंटेग्रेटेड ट्रांजिशन असिस्टेंस मिशन इन सूडान) के साथ बातचीत को बुलाए गए उसके प्रतिनिधि दोहराएंगे कि "सशस्त्र सैन्य बलों और कई युद्ध अपराधों, मानव जाति के खिलाफ अपराधों में शामिल रही नागरिक सेनाओं के जनरलों द्वारा किए गए तख़्तापलट के बाद अब सूडान पूरी तरह सैन्य शासन की गिरफ्त में है।"

संयुक्त राष्ट्र और अफ्रीकी संघ द्वारा समर्थित स्थिति को पूरी तरह नकारते हुए वक्तव्य में कहा गया, "हम तख़्तापलट के नेताओं के साथ किसी भी तरह की बातचीत या समझौते को खारिज करते हैं और इस तख़्तापलट के खिलाफ अपना प्रतिरोध जारी रखेंगे और अपराधियों को न्याय के समक्ष प्रस्तुत  करेंगे।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।

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