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पाकिस्तान में राजनीतिक अशांति की आर्थिक जड़ों को समझना ज़रूरी है

सत्ता के गलियारों में अंतर-अभिजात वर्ग का आपसी संघर्ष जारी है जिसका आम मेहनतकश जनता से कोई लेना-देना नहीं है, क्योंकि आईएमएफ़ का क़र्ज़ बेइंतहा बढ़ गया है, अर्थव्यवस्था डूब रही है और लोग निजीकरण के ख़िलाफ़ संघर्ष कर रहे हैं।
Imran Khan

15 जून 2021 को, पाकिस्तान की संसद का लोकतांत्रिक लिबास तब फट गया था जब सत्ता पक्ष और विपक्ष के सांसदों ने एक-दूसरे को जमकर गालियाँ दीं और आधिकारिक बजट दस्तावेजों की प्रतियां एक-दूसरे पर फेंक दीं थी। संसद के निचले सदन, यानि नेशनल असेंबली का सेशन 2021 के बजट पर चर्चा करने के लिए बुलाया गया था, जिसे वित्त मंत्री शौकत तरीन ने पेश किया था। जब विपक्ष के नेता शाहबाज शरीफ ने बजट पर चर्चा शुरू करने के लिए अपना परंपरागत भाषण देने की कोशिश की तो सत्ता पक्ष ने शोर-शराबा शुरू कर दिया।

कुछ ही समय में, सदन एक युद्ध के मैदान में तब्दील हो गया - प्रधानमंत्री इमरान खान के विशेष सहायक अली नवाज अवान ने अश्लील गालियों की बोछार लगा दी जिससे कि उनकी पसंद की गालियों को हवा दी जा सके और वे ऐसे गालियां बक़ रहे थे जैसे कि वे किसी सड़क की लड़ाई लड़ रहे हो। नेशनल असेंबली के अध्यक्ष, असद क़ैसर, वापस बैठ गए थे और हालत को बदतर होने दिया जिससे यह स्पष्ट हो गया था कि सत्ता पक्ष ने ऐसे हालात पैदा करने की योजना बनाई थी। उन्होंने विपक्ष के चार और सत्ता पक्ष से केवल तीन सांसदों को प्रतिबंधित किया जबकि सत्ता पक्ष के कई ऐसे सांसद थे जिन्होने निंदनीय भाषा का इस्तेमाल किया था और उनकी पहचान भी आसानी से हो गई थी।

संसद में इतना बड़ा उपद्रव इमरान खान की सरकार के भीतर अव्यवस्था की शर्मनाक स्थिति का प्रतीक है। जब इमरान खान ने देश में 2018 में पारंपरिक पार्टियों के खिलाफ अपना अभियान शुरू किया था, तो उन्होंने हजारों युवाओं, मध्यम वर्ग के पेशेवरों और छात्रों के दिलों को जीत लिया था, जिन्हें उम्मीद थी कि भुट्टो परिवार की जागीर- यानि पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी), शरीफ बंधुओं की पाकिस्तान मुस्लिम लीग (पीएमएल-एन) और जमात-उलेमा-इस्लाम (जेयूआई), जो पहले मौलाना मुफ्ती महमूद के नेतृत्व में और अब उनके बेटे मौलाना फजल-उर-रहमान के नेतृत्व में काम करती है- को दरकिनार या पराजित किया जा सकता है। 

कभी सबसे अधिक शक्तिशाली रहने वाली पीपीपी भ्रष्टाचार लिप्त होने की कीमत चुका रही है: इसकी ताक़त या आभा अब सिंध प्रांत में जरदारी-भुट्टो के गढ़ तक सीमित है। नेशनल असेंबली की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी पीएमएल-एन को पिछले चुनाव में 84 सीटों का नुकसान हुआ था। अब, यह इमरान खान की पार्टी-पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) है-जो कई मोर्चों पर विस्फोटक संकटों से जूझते हुए चुनावी रूप से व्यवहार्य बने रहने की कोशिश कर रही है। आर्थिक परिदृश्य पूरी तरह से उथल-पुथल हो चुका है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के प्रति पीटीआई सरकार की बुजदिली ने इमरान खान के "इस्लामिक कल्याणकारी राज्य" के महत्वाकांक्षी वादे पर विराम लगा दिया है।

अम्मार अली जान के अनुसार, तीन वर्षों में आईएमएफ के 6 अरब डॉलर के कर्ज़ ने पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था पर कहर बरपा दिया है। सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर -0.4 प्रतिशत तक गिर गई है, सात दशकों में पहली बार यह नकारात्मक से नीचे चली गई है। पाकिस्तानी मुद्रा के अवमूल्यन ने बड़े पैमाने पर मुद्रास्फीति को पैदा किया है, जो 2018 में 3.93 प्रतिशत से बढ़कर 2020 तक 10.74 प्रतिशत हो गई है। पीटीआई के पदाधिकारियों ने क्रूर-ओसट्रीटी उपायों यानि सार्वजनिक खर्च को कम करना – जैसे कि उच्च शिक्षा के बजट में 40 प्रतिशत की कटौती – को बेरहमी से लागू किया है। स्वास्थ्य सेवा का निजीकरण 2020 में शुरू किया गया था – यूटिलिटी पर सब्सिडी में कमी के साथ-साथ सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों के वार्षिक वेतन में वृद्धि को रद्द कर दिया गया। 

सरकार द्वारा आर्थिक सुधार के एजेंडे पर बात न करने से विपक्ष की इमरान खान सरकार की निरंतर आलोचना को काफी हद तक वैधता मिली है। सितंबर 2020 में, विपक्षी दलों ने पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (पीडीएम) का गठन किया था – जोकि रूढ़िवादी, उदारवादी, जातीय-राष्ट्रवादी और इस्लामी राजनीतिक दलों का एक गठबंधन है – जिसने दावा किया कि वे देश की राजनीति से सेना को बाहर कर एक "सच्चे लोकतंत्र को बहाल करना" चाहते हैं। उनका मक़सद इमरान खान के जन समर्थन को कम करना और अंततः नागरिकों के वर्चस्व को बढ़ाने के लिए दबाव डालना था। वैसे तो पाकिस्तानी सेना राजनीति में दखल से इनकार करती है, लेकिन चार सेना जनरलों ने देश के लगभग आधे इतिहास में 220 मिलियन से अधिक लोगों के देश पर शासन किया है।

पीडीएम इमरान खान की तहरीक़ ए इंसाफ पार्टी के शासन को प्रमुख चुनौती देने में नाकामयाब रहा है। उनके भीतर की आंतरिक कमजोरियां या फूट भी सामने आई हैं क्योंकि गठबंधन के मुख्य दलों ने संसद से सामूहिक इस्तीफे देने और इमरान खान को इस्तीफा देने पर मजबूर करने के लिए इस्लामाबाद की सड़कों पर बड़ा जन-आंदोलन छेड़ने की बहुप्रचारित योजना को छोड़ दिया है। इन खुले आंदोलनों या हमलों के बजाय, कुछ विपक्षी दलों ने देश की चार प्रांतीय विधानसभाओं और निचले सदन द्वारा चुने जाने वाले संसद के ऊपरी सदन के सदस्य के लिए चुनाव लड़ने की योजना बनाई है। इसके बाद जल्द ही, पीपीपी और अवामी नेशनल पार्टी (एएनपी) ने पीडीएम छोड़ दिया, जिससे गठबंधन की प्रभावशीलता में काफी कमी आ गई है।

बढ़ते बिखराव ने पीडीएम के मूलभूत दोष को बढ़ा दिया है: यह स्थिति मौजूदा वास्तविकता के प्रति सार्थक विकल्प को पेश नहीं करती है। अपनी तमाम जोरदार बयानबाजी के बावजूद, पीडीएम खुद सैन्य तंत्र से जुड़ा हुआ है। उदाहरण के लिए, शाहबाज सत्ता से मुकाबला नहीं करने के इच्छुक रहे हैं। पिछले चुनाव में खान को समर्थन देने का फैसला करने के बाद भी उनकी रणनीति सेना के साथ काम करने की रही है। शाहबाज के लिए पीएमएल-एन को पंजाब में वापस लाना प्राथमिकता है. इस्लामाबाद इंतजार कर सकता है; लेकिन लाहौर इंतज़ार नहीं कर सकता है।

संख्या और सेना के आशीर्वाद को देखते हुए शाहबाज पंजाब की तरफ रुख कर सकते हैं. जहांगीर तरीन के प्रति वफादार लोगों के नेतृत्व में पीटीआई के भीतर एक आगे बढ़े समूह के साथ, शाहबाज पंजाब में नए गठबंधन को बुन सकते हैं। कभी इमरान खान के करीबी दोस्त और पीटीआई के एक महत्वपूर्ण सदस्य तारीन ने पीटीआई के भीतर पंजाब विधानसभा और नेशनल असेंबली से संबंधित समान विचारधारा वाले सांसदों का एक समूह बनाया है।

"जेकेटी समूह" में 30 से अधिक सदस्य हैं, जो पीटीआई सरकार के लिए इसे सही तरफ रखना महत्वपूर्ण बनाता है; अन्यथा सरकार का ज़िंदा रहना आसान नहीं होगा। तरीन, एक बिजनेस टाइकून है, पर उन पर एक बड़े चीनी घोटाले का आरोप है जो चीनी कार्टेल द्वारा चीनी की कीमतें तय करने के साथ-साथ मनी लॉन्ड्रिंग से संबंधित है। यह दबाव समूह खान और पंजाब के मुख्यमंत्री उस्मान बुजदार के साथ बैठक करने में सफल रहा है। यह आश्वासन दिया गया है कि उनके मुद्दों को संबोधित किया जाएगा। लेकिन सरकार ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि तरीन को अनुचित लाभ नहीं दिया जाएगा।

प्रोग्राम संबंधी दृष्टि के संदर्भ में पीडीएम की रिक्तता को जेयूआई के फजल-गठबंधन के प्रमुख के रूप में दर्शाया गया है। परंपरागत रूप से, जेयूआई खुद को साम्राज्यवाद विरोधी मानता था और महमूद के नेतृत्व में सत्तर के दशक के दौरान कट्टरपंथी धर्मनिरपेक्ष दलों के साथ गठबंधन सरकारों में शामिल था। इसने अयूब और जिया दोनों की सैन्य तानाशाही का विरोध किया था; महमूद ने मास्को और बीजिंग दोनों में शांति सम्मेलनों में भाग लिया था। उनकी मृत्यु के बाद, उनके बेटे को पार्टी विरासत में मिली और उन्होंने अपने पिता की नीतियों को जारी रखा, 90 के दशक के मध्य में उन्होने बेनजीर भुट्टो की सरकार के साथ मिलकर काम किया था।

हालांकि, नए समय के अनुसार फजल बदल गए हैं। बेनज़ीर को अपने सक्रिय समर्थन के बदले में, वे एक आकर्षक डीजल फ़्रैंचाइज़ी हासिल करने में सफल रहे थे, जिसने देश के बड़े हिस्से को कवर किया था- और, पाक-तालिबान की जीत के बाद, अफगानिस्तान के अधिकांश हिस्से में भी उन्हे ये हक़ मिल गए थे; इस सौदे उन्हें मौलाना डीजल का नाम दिया था। दाढ़ी वाला डीजल जल्द ही मुल्ला-सैन्य गठजोड़ का लिंचपिन बन गया। बेनज़ीर के गृहमंत्री जनरल नसीरुल्लाह बाबर के करीबी सहयोगी-जो काबुल में तालिबान की जीत के वास्तुकार थे – ने तालिबान नेतृत्व के साथ फ़ज़ल के बने मजबूत संबंधों ने, उन्हें हमेशा स्थानीय जमात-ए-इस्लामी (जेआई) प्रतिद्वंद्वियों को हराने की मदद दी थी, जिनके मोहरे गुलबुद्दीन हेकमतयार को काबुल में नए छात्र मौलवियों द्वारा दरकिनार कर दिया गया था।

अफगानिस्तान पर अमेरिकी हमले के बाद, तालिबान के बड़े हिस्से ने पाकिस्तानी सीमा से सटी पहाड़ियों में शरण ली थी। वहाँ से लौटने वालों में से कई लोग जेयूआई और अन्य इस्लामी दलों में शामिल हो गए थे, और जेयूआई ने "विदेशी कब्जाधारियों" के खिलाफ बड़े पैमाने पर रैलियां आयोजित करने का बीड़ा उठाया था। फ़ज़ल ने विभिन्न इस्लामी दलों को चुनावी रूप से एकजुट करने का बीड़ा उठाया, इस प्रकार मुत्ताहिदा मजलिस-ए-अमल (MMA) का निर्माण किया गया था। कई रिपोर्टों में दावा किया गया कि मुशर्रफ ने पाकिस्तान में एक लोकतांत्रिक व्यवस्था को फिर से स्थापित करने पर अंतरराष्ट्रीय दबाव को दूर करने के लिए चुनावों में धांधली करके इस्लामवादी गठबंधन को 2002 के चुनाव में 50 से अधिक नेशनल असेंबली सीटें जीतने में मदद की थी।

2018 में, एमएमए-वर्षों तक निष्क्रिय रहने के बाद-शरिया को लागू करने और धर्मनिरपेक्षता की हार पर ध्यान केन्द्रित करने लगा, और अच्छे उपाय के बदले भ्रष्टाचार के उन्मूलन के नारे के साथ अपने ज़िंदा होने की घोषणा कर दी थी। फजल ने कहा है कि "धार्मिक ताकतों का शिकार किया जा रहा है" और इसका एकमात्र समाधान पाकिस्तान का "सच्चा इस्लामीकरण" है। डीजल की आडंबरपूर्ण कहानी से पता चलता है कि कैसे पीडीएम-पाकिस्तान के लिए लोकतंत्र और आर्थिक सुरक्षा के एक नए युग की शुरुआत करने से बहुत दूर चली गई और कट्टरपंथी, इस्लामवाद, भ्रष्टाचार और सैन्य शासन जैसी धारणा के अवसरवादी मिशन का प्रतिनिधित्व करने लगी है। पाकिस्तान की गरीब जनता के लिए कुछ भी फायदेमंद नज़र नहीं आ रहा है क्योंकि सत्ता के गलियारों में अंतर-कुलीन लोगों का सत्ता का आपसी संघर्ष जारी है जिसका पाकिस्तान के मेहनतकश आवाम से कुछ लेना-देना नहीं है।

लेखक अलीगढ़ स्थित एक स्वतंत्र शोधकर्ता हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Understanding the Economic Roots of Political Turbulence in Pakistan

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