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योगी सरकार का काम सांप्रदायिकता का ज़हर फैलाना है या नौजवानों को बेरोज़गार रखना?

उत्तर प्रदेश का चुनावी माहौल हिंदू-मुस्लिम धार पर बर्बाद करने की कोशिश की जा रही है। तो आइए इस नफ़रत के माहौल को काटते हुए उत्तर प्रदेश की बेरोज़गारी पर बात करते हैं।
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साभार: द क्विंट

इस समय उत्तर प्रदेश चुनाव से पहले सारा जोर हिंदू मुसलमान की नफ़रती रेखा को तीखा करने में लगाया जा रहा है। हरिद्वार में धर्म संसद के नाम पर हिंदुत्व का आतंक संसद हुआ। खुलेआम नरसंहार की ललकार की गई। नरसंहार की ललकार इतनी साफ थी कि बचाव करने की कोई जगह नहीं थी तो इसकी चौतरफा आलोचना हुई। हिंदुत्व सांप्रदायिक मशीनरी के घाघ कुतर्की बौद्धिक समर्थक के सामने सांप्रदायिकता के जहर की इतनी साफ तस्वीर थी कि कुछ बोलने की बजाय उन्होंने खुद को चुप रखा।

उनकी चुप्पी को तोड़ने के लिए हिंदुत्व के गिरोह ने असदुद्दीन ओवैसी की 45 मिनट की वीडियो को एडिट करके 1 मिनट मे बदल दिया। अब इस वीडियो के सहारे हिंदुत्व के घाघ बौद्धिक समर्थक अपनी चुप्पी तोड़कर बाहर निकल आए हैं। कह रहे हैं कि अविश्वसनीय है कि कोई ऐसा कह सकता है। असदुद्दीन ओवैसी का कहना है कि अगर उन्होंने कुछ गलत बोला है तो उन्हें गिरफ्तार किया जाना चाहिए। इस तरह से हिंदू मुस्लिम डिबेट एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप के शक्ल में सतह पर आ चुकी है।

यही भाजपा के प्रशासन का हर जगह का मॉडल रहा है। यहां रोज़गार पर बात नहीं होती। गरीबी पर चर्चा नहीं की जाती। आर्थिक असमानता पर बात नहीं होती। बेतहाशा तंगहाली और बदहाली पर बात नहीं होती।यहां हर सवाल का जवाब यह है कि किसी भी तरह से चर्चा का केंद्र हिंदू - मुस्लिम विवाद बना दिया जाए। उत्तर प्रदेश चुनाव के पहले तो यह जमकर हो रहा है। अगर सांप्रदायिकता का जहर ना हो तो उत्तर प्रदेश के पिछले 5 साल के कामकाज की पोल खुल जाए। उदाहरण के तौर पर बेरोजगारी को ही लीजिए।

सबके हाथ में काम हो। काम का वाजिब दाम हो। यह राज्य की सबसे बुनियादी जिम्मेदारी है। लोगों के झुंड ने आपस में मिलकर के राज्य जैसी व्यवस्था इसीलिए बनाई है ताकि वह बेरोजगारी जैसी मूलभूत परेशानियों का निदान बन सके। लेकिन सरकारों ने सत्ता की लालच में खुद को इतना बेतरतीब बना दिया है कि वह राज्य की मूलभूत जिम्मेदारियां ही पूरा नहीं करती हैं।

उत्तर प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने साल 2017 में चुनाव से पहले कहा था कि चुनाव जीत के आने के बाद सरकार में खाली पड़े पदों को 90 दिनों के भीतर भर देंगे। लेकिन इसकी हकीकत यह है कि कई ऐसी परीक्षाएं हैं जिनका फॉर्म 2017 से पहले भरा गया लेकिन अभी तक प्राथमिक चरण जी परीक्षा नहीं ली गई है।

युवा हल्ला बोल के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुपम का कहना है कि बिहार के बाद शिक्षकों के सबसे अधिक पद यूपी में खाली हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक यूपी में केवल शिक्षकों के तकरीबन 2 लाख 17 हजार पद खाली हैं। बाकी यूपी की सरकारी भर्ती की परीक्षाओं का यह हाल है कि परीक्षाओं का फॉर्म नहीं निकलता है। अगर परीक्षाओं का फॉर्म निकलता है और अभ्यर्थी परीक्षा फॉर्म भरते हैं। तो उसके बाद रिजल्ट नहीं आता। बल्कि या तो परीक्षा रद्द हो जाती है या पेपर लीक हो जाता है। यूपी में ढेर सारी सरकारी नौकरी की परीक्षाएं इसी रवैए में लटकी हुई हैं।

यह हाल उस उत्तर प्रदेश का है, जिसकी आबादी तकरीबन 20 करोड़ है। जिस राज्य की प्रति व्यक्ति आय, भारत के प्रति व्यक्ति आय की आधी है। भारत की प्रति व्यक्ति आय तकरीबन ₹86 हजार है तो उत्तर प्रदेश के प्रति व्यक्ति आय तकरीबन ₹41 हजार है। प्रति व्यक्ति आय के लिहाज से देखा जाए तो उत्तर प्रदेश भारत के 36 (राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों) में 32 में नंबर पर आता है। यानी उत्तर प्रदेश की बदहाली में बेरोजगारी से छुटकारा पाना बहुत जरूरी है।बेकारी और बेरोजगारी उत्तर प्रदेश को पहले से भी अधिक बदहाल बनाते हैं। वहां पर सरकारी नौकरियों के पद जल्द से जल्द भरे जाने चाहिए। लेकिन ये भरने की बजाय सालों साल से खाली रहते आ रहे हैं।

यह तो सरकारी नौकरी की बात हुई। इस तस्वीर को देखने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कोई समर्थक यह कह सकता है कि उत्तर प्रदेश के रोजगार का हाल इतना बुरा नहीं है, जितना बुरा दिखाया जा रहा है। योगी आदित्यनाथ ने 17 सितंबर के अपने भाषण में खुद कहा था कि साल 2016 में उत्तर प्रदेश प्रदेश में बेरोजगारी दर 17% थी। अब यह घटकर 4 से 5% पर पहुंच गई है। यह योगी आदित्यनाथ का ही कमाल है जिसकी वजह से बेरोजगारी दर में इतनी कमी आई है।

जो लोग केवल कहीं कहाई और सुनी सुनाई बातों पर यकीन करते हैं, उन्हें यह बात सही लग सकती है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक वाकई यह बात सही है। लेकिन यह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कमाल नहीं है। बल्कि सरकार का जनता को सच से दूर रखने की कलाबाजी और सरकार की बेईमानी का कमाल है।

अगर यह बात सच नहीं है तो सच क्या है? सच यह है कि साल 2016 में उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की सरकार थी। योगी आदित्यनाथ की सरकार साल 2017 में आई। साल 2017 में उत्तर प्रदेश के आने के वक्त यूपी में बेरोजगारी दर तकरीबन 3% थी। अगर यहां से भी देखा जाए तो बेरोजगारी दर हाल-फिलहाल 5 साल में कम होने की बजाय बढ़ी हुई है।

लेकिन असली सवाल तो यह है कि ऐसा क्या हुआ कि केवल 1 साल में यानी साल 2016 से लेकर 2017 तक में उत्तर प्रदेश की बेरोजगारी दर 17% से बेरोजगारी दर घटकर सीधे 4% पर आ गई? इस सवाल का जवाब इंडियन एक्सप्रेस के आर्थिक पत्रकार उदित मिश्रा ने किया है।

उदित मिश्रा लिखते हैं कि उत्तर प्रदेश की बेरोजगारी में आई इस बहुत बड़ी कमी को समझने के लिए सबसे पहले लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट समझना पड़ेगा। लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट में 15 साल से ऊपर उम्र के दो तरह के लोग शामिल होती हैं। पहला उनकी संख्या जो किसी ना किसी रोजगार में लगे हुए हैं। दूसरा उनकी संख्या जो बेरोजगार होते हैं और इस कोशिश में लगे होते हैं कि उन्हें रोजगार मिल जाए। इन दोनों को मिलाकर लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट बनता है।

मोटे तौर पर कहा जाए तो लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट 15 साल से ऊपर उम्र के उन लोगों की संख्या है जिनके पास या तो रोजगार है या जो रोजगार की तलाश में भटक रहे हैं लेकिन उनके पास रोजगार नहीं है। इसी को आधार बनाकर के बेरोजगारी दर निकाली जाती है। इसमें शामिल उन लोगों की संख्या जिन्हें रोजगार की तलाश होने के बावजूद भी रोजगार नहीं मिलता है की संख्या से बेरोजगारी दर निकाली जाती है।

साल 2016 में नोटबंदी की मार पड़ी। अनौपचारिक क्षेत्र पूरी तरह से टूट गया। इसी वजह से उत्तर प्रदेश का लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट 2016 के दिसंबर में 46% था, वह अप्रैल 2017 में घटकर करीबन 38% हो गया। मतलब 8% लोग लेबर फोर्स से बाहर चले गए। उस कैटेगरी से ही बाहर हो गए जिसका इस्तेमाल बेरोजगारी दर निकालने के लिए किया जाता है। इन 8% लोगों ने काम की तलाश करनी ही बंद कर दी। इसी वजह से अप्रैल 2017 में उत्तर प्रदेश की बेरोजगारी दर 17% से घटकर सीधे  तकरीबन 3 से 4% के बीच चली गई।

अगर योगी आदित्यनाथ ईमानदारी के साथ जनता के सामने सच प्रस्तुत करते तो साल 2016 के 17% को आधार बनाने की बजाय साल 2017 को आधार बनाते, जब उन्होंने उत्तर प्रदेश का कार्यभार संभाला था। जब नोटबंदी की वजह से बेरोजगारी दर मापने का पैमाना प्रभावित हुआ और बेरोजगारी दर तकरीबन 3 से 4% पर पहुंच गई थी। लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया। उन्होंने ऐसा पासा फेंका जो आंकड़े में तो ठीक लगे भले सच्चाई सामने आए या ना आए।

योगी आदित्यनाथ ने अगर रोजगार के क्षेत्र में कामकाज किया होता तो उत्तर प्रदेश का लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट बढ़ा होता।  नोटबंदी की वजह से जो लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट 46% से कम होकर के अप्रैल 2017 में 38% पर पहुंच गया। इस आंकड़े में इजाफा हुआ होता।

योगी सरकार ने अगर वाकई काम किया होता तो लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट 38% से अधिक बढ़ा होता। लेकिन सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनामी के आंकड़े बताते हैं कि मई अगस्त 2021 में उत्तर प्रदेश का लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट 34% है। यानी उत्तर प्रदेश में अब भी बहुत बड़ी आबादी बेरोजगारी से हार कर घर पर बैठी हुई है। काम का तलाश करना ही बंद कर दिया है।

यही हाल रोजगार दर का भी है। समाजवादी पार्टी की सरकार में उत्तर प्रदेश में 38% का रोजगार दर था। यह घटकर योगी आदित्यनाथ के दौर में साल 2021 में 33% पर पहुंच गया है। यानी साल 2016 के बाद भारत की आबादी बढ़ी होगी। रोजगार के चाह रखने वाले लोगों में इजाफा हुआ होगा। लेकिन रोजगार करने वालों की संख्या में 5% की कमी आई है।

मानव संसाधन विकास कामकाज से जुड़े अर्थशास्त्री संतोष मेहरोत्रा का आकलन बताता है कि साल 2012 के मुकाबले साल 2019 में उत्तर प्रदेश की कुल बेरोजगारी में ढाई गुना का इजाफा हुआ है और 15 से 29 साल के बेरोजगारों में 5 गुने का इजाफा हुआ है। साल 2012 में जिनके पास ग्रेजुएट की डिग्री होती थी वह रोजगार की तलाश में निकलते थे तो उनमें से 21% बेरोजगार  रह जाते थे। साल 2019 में यह आंकड़ा पहुंचकर 51% का हो गया है। इसी तरह से जिनके पास किसी तरह की टेक्निकल सर्टिफिकेट की डिग्री होती थी या कोई डिप्लोमा होते थे तो उनमें से साल 2012 में तकरीबन 13% को रोजगार नहीं मिल पाता था। साल 2019 में यह आंकड़ा बढ़कर 66 प्रतिशत का हो गया है।

सच को पेश करने की जद्दोजहद में लगे यह आंकड़े बता रहे हैं कि योगी आदित्यनाथ की सरकार ने मानव संसाधन विकास के सबसे बुनियादी विषय रोजगार पर कोई काम नहीं किया है। इस मामले में वह बहुत अधिक फिसड्डी रही है। मीडिया के सहारे हिंदू मुस्लिम की बातचीत में योगी आदित्यनाथ के कामकाज की सच्चाई छिपा दी जा रही है। नहीं तो बेरोजगारी के नाम पर योगी आदित्यनाथ की सरकार की इतनी बदनामी होती कि योगी आदित्यनाथ कि सरकार द्वारा फैलाया जा रहा सांप्रदायिकता का जहर भी उसे काट नहीं पाता।

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