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चुनाव 2022 : UP में भाजपा के विरुद्ध निर्णायक जनादेश की शर्तें

उत्तर प्रदेश में निर्णायक जनादेश के लिए जनता को चाहिए कृषि के चौतरफा विकास, युद्धस्तर पर रोजगार सृजन, हाशिये के तबकों के लिए न्याय का ठोस आश्वासन
चुनाव 2022 : UP में भाजपा के विरुद्ध निर्णायक जनादेश की शर्तें

कहते हैं राजनीति में 1 सप्ताह का समय बहुत लंबा होता है। चुनावों की घोषणा के बाद उत्तर प्रदेश में पिछले सप्ताह पिछड़े समुदाय के 3 कद्दावर मंत्रियों ने भाजपा का दामन छोड़ दिया और सपा का साथ पकड़ लिया, इसी बीच यह घोषणा हो गयी कि योगी जी को अयोध्या से चुनाव में उतारने की रणनीतिक योजना से पीछे हटते हुए अब उन्हें गोरखपुर भेज दिया गया है। इन नाटकीय घटनाओं के बाद पहली बार जनता के बीच परसेप्शन के लेवल पर विपक्षी गठबंधन ने  बढ़त ले ली है और यह चर्चा चल पड़ी है कि योगी सरकार जाने वाली है। 

यह जो राजनीतिक उठा-पटक और हलचल दिख रही है इसके मूल में जनता के वास्तविक जीवन में  मची हलचल और रोजी-रोटी की तबाही से पैदा बेचैनी है। इस कारण चुनाव में न ध्रुवीकरण का कार्ड चल पा रहा है, न भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग पहले जैसी अभेद्य बची है।

योगी को अयोध्या से लड़ाने की योजना के पीछे उद्देश्य था कि बनारस से मोदी के चुनाव की तर्ज़ पर ' धर्मनगरी ' अयोध्या से योगी के लड़ने से अवध में तो माहौल बनेगा ही, राममंदिर को hype देते हुए पूरे प्रदेश में हिंदुत्व की लहर चलेगी। इस रणनीतिक योजना से पीछे हटना संघ-भाजपा द्वारा इस सच की स्वीकारोक्ति है कि ध्रुवीकरण का एजेंडा काम नहीं कर रहा है। जाहिर है, योगी जिन्हें हिंदुत्व का पोस्टर-ब्वाय बनाया गया है, उनके अयोध्या से हारने का risk संघ नहीं ले सकता था, इसका सन्देश हिंदुत्व के एजेंडा के लिए दूरगामी दृष्टि से बेहद demoralising और घातक होता।

दरअसल, सामाजिक अन्याय, जाति-समुदाय के आधार पर भेदभाव और उत्पीड़न, संवैधानिक अधिकारों का अपहरण तो भाजपा के योगीराज में चरम पर पहुंच ही गया है, योगी सरकार ने प्रदेश की अर्थव्यवस्था को भी पूरी तरह तबाह कर दिया है।

अर्थव्यवस्था की तबाही इतनी सर्वांगीण है कि अर्थशास्त्री स्तम्भकार स्वामीनाथन अय्यर अगर आज भी अपने विकास दर के मॉडल के आधार पर चुनाव नतीजों की भविष्यवाणी कर रहे होते, तो वे बहुत पहले ही योगी सरकार की विदाई की घोषणा कर चुके होते। ( हाल के चुनावों में किसी कारणवश, जिसे वे ही बेहतर जानते होंगे, उन्होंने यह बंद कर दिया है। )

योगी सरकार द्वारा सरकारी खजाने से करोड़ों रुपए विज्ञापनों पर बर्बाद करके प्रदेश के विकास की गुलाबी छवि पेश की जा रही है। पिछले दिनों योगी जी ने एक interview में यहां तक दावा कर दिया कि हमने अपने कार्यकाल में प्रदेश में प्रति व्यक्ति आय को दो गुना कर दिया है, " आज़ादी के समय उत्तर प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत के आसपास थी, लेकिन 70 साल में वह तिहाई रह गयी थी, अब हमने उसको दो गुना कर दिया है। " 

इस बड़बोले झूठ की पोल खोलते हुए EPW में अजित कुमार सिंह ने एक अध्ययन में दिखाया है कि यह सफेद झूठ है, सच्चाई यह है कि per capita income 100% बढ़ने के दावे के विपरीत यह योगी जी के 4 साल के कार्यकाल में मात्र 0.43% बढ़ी !

दरअसल, योगी के इस दावे के सच होने का मतलब यह होता कि इस दौरान प्रदेश में  20% वार्षिक की दर से विकास हो रहा था ! यह चमत्कार आज तक न दुनिया के किसी देश में हुआ, न भारत के किसी राज्य में।

EPW के उस लेख में दिखाया गया है कि दरअसल योगी ने यह दावा manipulated budget figures के आधार पर किया है, जिनके झूठे होने का प्रमाण स्वयं सरकारी संस्था DES (Division of Economics & Statistics, State Planning Institute, UP) के आंकड़े हैं। इन आंकड़ों के हिसाब से राज्य का सकल घरेलू उत्पाद (GSDP) दो गुना होने के दावे के विपरीत मात्र 1.95% की दर से बढ़ा है जो पिछली सरकार के कार्यकाल के 6.92% से भी काफी कम है।

सबसे बड़ी तबाही तो उत्पादक रोजगार की दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण manufacturing सेक्टर में हुई है। दावा किया गया था कि क्योंकि ease of doing business में UP नंबर 2 पर पहुँच गया है, माफिया-अपराधी-extortion सब खत्म हो गया है, प्रदेश में सुरक्षा का माहौल है, इसलिए बड़े पैमाने पर निवेश आ रहा है।

लेकिन सच्चाई इसके एकदम विपरीत और बेहद भयावह निकली- कोविड के साल को छोड़ भी दिया जाय, तब भी योगी जी के राज में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में विकास दर नकारात्मक रही ( -3.34% ), यह पिछली सरकार के 14.64% से भी बेहद कम है। ट्रांसपोर्ट, संचार, फाइनेंसियल सेवाओं में भी भारी गिरावट हुई है।

यह अनायास नहीं है कि योगीराज में  कुल रोजगार पाए लोगों की संख्या 5 साल पहले के absolute number से भी 16 लाख घट गई है। रोजगार दर पिछली सरकार के समय के 38.5% से भी घटकर 32.8% रह गयी है अर्थात प्रदेश में हर 3 में 2 लोग बेरोजगार हैं। प्रदेश विकास में फिसड्डी हो गया और गरीबी में अव्वल। आत्महत्या के कगार पर ठेल दिए गए प्रदेश के छात्र-युवा सड़क पर उतरने और लाठी खाने के लिए मज़बूर कर दिए गए।

जाहिर है कारपोरेट घरानों तथा वैश्विक पूँजी के हितों से निर्देशित एयरपोर्ट-एक्सप्रेसवे मार्का विकास मॉडल और निजीकरण जैसी नीतियों का यह स्वाभाविक परिणाम है, रही सही कसर मोदी की नोटबन्दी, GST और योगी की आवारा जानवरों, बूचड़खानों आदि पर साम्प्रदायिक नीतियों ने पूरा कर दिया। पूरी अर्थव्यवस्था बैठ गयी।

इसने पूरे समाज को तबाह किया है और सभी तबकों में बेचैनी है। समाज के कमजोर तबके, हाशिये के समुदाय सबसे बदतरीन शिकार हुए हैं। इन तबकों के लिए मार दुहरी है, सामाजिक अन्याय और आर्थिक तबाही दोनों। इसीलिए मौजूदा निजाम से इनका अलगाव अधिक गहरा है। इसे ही sense कर पिछड़े समुदाय के power-groups का एक हिस्सा जो सत्ता में मनोनुकूल हिस्सा न मिलने से असंतुष्ट  था, भाजपा से अलग हुए है, जाहिर है इन नेताओं के अलग होने से जनता का वह अलगाव और बढ़ेगा तथा उसे एक राजनीतिक दिशा मिलेगी।

इधर किसानों ने भी मोदी-योगी सरकार की वायदा-खिलाफी के विरुद्ध 31 जनवरी को संयुक्त किसान मोर्चा की तरफ से देशव्यापी "विश्वासघात दिवस" मनाने तथा इनकी राजनीति के विरुद्ध मिशन UP को आगे बढ़ाने का एलान किया है। साथ ही लखीमपुर खीरी हत्याकांड में बीजेपी की बेशर्मी और संवेदनहीनता के विरुद्ध वहां  पक्का मोर्चा लगाने का एलान किया  है। इतना ही नहीं 23-24 फरवरी को मजदूरों की राष्ट्रव्यापी हड़ताल का पुरजोर समर्थन करते हुए किसानों ने ग्रामीण हड़ताल का एलान किया है।

जाहिर है किसानों के फिर आंदोलन के mode में आने से एक बार फिर भाजपा के किसान-विरोधी कारनामे, उनकी तबाही का दंश गाँवों में चर्चा के केंद्र में आयेगा, किसानों की गाड़ी से रौंदकर निर्मम हत्या के सूत्रधार गृहराज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी को मोदी-शाह के संरक्षण का मामला फिर गरमाएगा। प्रदेश में, विशेषकर पश्चिम उत्तरप्रदेश और तराई में इसका असर पड़ना तय है। 

जाति और धर्म के आधार पर  ध्रुवीकरण  तथा चुनावी सौगात बांट कर गांवों में वोट झटकने की भाजपा की कोशिशों के खिलाफ किसानों के मिशन UP की यह नई मुहिम antidote का काम करेगी।  

देखने की बात होगी कि विपक्ष भाजपा से किसानों, छात्र-नौजवानों तथा हाशिये में तबकों की गहरी नाराजगी और अलगाव को वोट में कितना तब्दील कर पाता है।

इसके लिए  विपक्ष को कृषि के चौतरफा विकास, युद्धस्तर पर रोजगार सृजन, ग्रामीण व शहरी गरीबों की बेहतरी का ठोस कार्यक्रम पेश करना होगा।

आम जनता के जीवन मे खुशहाली तो तभी आएगी जब कारपोरेट-हिंदुत्व के फासीवादी राज का अंत हो तथा सत्ता-संरचना एवं नीतिगत ढाँचे में बदलाव हो। इसके लिए जरूरी है कि प्रदेश का आर्थिक पुनरोद्धार हो, ठोंको राज की जगह कानून के राज और राजनीतिक लोकतन्त्र की पुनर्बहाली हो तथा तथा हर तरह के सामाजिक-धार्मिक उत्पीड़न और अन्याय का अंत हो। 

विपक्ष की ओर से इसका विश्वसनीय आश्वासन ही प्रदेश की जनता को भाजपा के ख़िलाफ़ निर्णायक जनादेश के लिए प्रेरित कर सकता है।

(लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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