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उत्तरकाशी : 133 गांवों में सिर्फ़ बेटों का जन्म संयोग या भ्रूण हत्या का परिणाम?

उत्तराखंड में उत्तरकाशी के गांवों में बेटियों के जन्म न लेने की रिपोर्ट की जांच करायी जा रही है। एक हफ्ते में ये रिपोर्ट हमारे सामने होगी। इस दौरान स्वास्थ्य विभाग ने भी कुछ आंकड़े जारी किए हैं।
उत्तरकाशी  में सिर्फ़ बेटों का जन्म संयोग या भ्रूण हत्या का परिणाम?
प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो : वर्षा सिंह

गंगोत्री और यमुनोत्री...यानी गंगा और यमुना का मायका उत्तरकाशी। इन दोनों नदियों के नाम पर इनके धाम बने हैं। इनकी पूजा के लिए हर वर्ष बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं। गंगा-यमुना के मायके के गांवों में बेटियों का जन्म न लेना, बेटियों को जन्म से रोकना और कन्या भ्रूण हत्या की आशंका ही सिहरन पैदा करती है।

उत्तरकाशी के गांवों में बेटियों के जन्म न लेने की रिपोर्ट की जांच करायी जा रही है। एक हफ्ते में ये रिपोर्ट हमारे सामने होगी। इस दौरान स्वास्थ्य विभाग ने भी कुछ आंकड़े जारी किए हैं।

आशा कार्यकर्ताओं द्वारा तैयार पहली रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तरकाशी के 133 गांवों में तीन महीने के अंतराल में 216 बच्चों ने जन्म लिया लेकिन इनमें एक भी लड़की पैदा नहीं हुई। इस रिपोर्ट के बनने के बाद उत्तरकाशी से देहरादून तक सनसनी फैल गई। क्या यह महज़ संयोग है? क्या ऐसा प्राकृतिक तौर पर संभव है? प्रकृति ऐसा असंतुलन कर सकती है! या फिर लिंग जांच और कन्या भ्रूण हत्या बड़े पैमाने पर की जा रही है? ये रिपोर्ट रोंगटे खड़े करने वाली थी।

रिपोर्ट सामने आऩे के बाद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस मामले की जांच के आदेश दिये। उत्तरकाशी के ज़िलाधिकारी डॉ.आशीष चौहान हरकत में आ गए। उन्होंने इस रिपोर्ट के सत्यापन के लिए कमेटी गठित की। स्वास्थ्य सचिव नितेश कुमार झा ने कहा कि उत्तरकाशी में जन्मदर के आंकड़ों का दोबरा विश्लेषण किया जा रहा है। लिंग जांच और भ्रूण हत्या की बात सामने आने पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। यहां ये बता दें कि राज्य में स्वास्थ्य महकमा मुख्यमंत्री के पास है।

स्वास्थ्य विभाग की ओर से जारी जन्मदर के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2019-20 में अप्रैल से जून महीने तक संस्थागत और घरेलू प्रसव में 133 गांवों में 216 लड़के जन्मे। वहीं भटवाड़ी, पुरोला, मोरी, चिन्याली, नौगांव, डूंडा ब्लॉक के 129 गांवों में इसी अवधि के दौरान 180 लड़कियों ने जन्म लिया। इन गांवों में एक भी लड़के का जन्म नहीं हुआ है। इसके साथ ही 163 गांव ऐसे हैं जहां लड़के और लड़कियों दोनों का जन्म हुआ है। इसमें 280 लड़के और 259 लड़कियां शामिल हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2018-19 में उत्तरकाशी में कुल 4166 प्रसव हुए। इनमे 2210 लड़के और 1956 लड़कियों ने जन्म लिया।

महिला एवं बाल विकास के उत्तरकाशी में जिला कार्यक्रम अधिकारी विक्रम सिंह कहते हैं कि इस पूरे मामले की जांच जारी है। लेकिन प्रारंभिक जानकारी के मुताबिक 133 गांवों में से 78 गांव ऐसे हैं, जहां पिछले तीन महीने में सिर्फ एक ही बच्चा पैदा हुआ है,जो लड़का है। 37 गांव ऐसे है जहां 2 बच्चे पैदा हुए हैं, दोनों लड़के पैदा हुए। उनके मुताबिक स्वास्थ्य विभाग भी ये मान रहा है कि ऐसा प्राकृतिक तौर पर हुआ है। इसमें कुछ भी अप्राकृतिक नहीं है। जबकि 17 गांव ऐसे हैं जहां तीन, चार या अधिकतम पांच बच्चे पैदा हुए हैं, ये सभी लड़के हैं। विक्रम सिंह कहते हैं कि इन गांवों में जांच करायी जा रही है कि ऐसा क्यों हुआ। यहां स्वास्थ्य विभाग की टीमें जा रही हैं। घर-घर जाकर गर्भवती महिलाओं से बात की जा रही है। इस सबके लिए जिलाधिकारी ने अधिकारियों को नियुक्त कर दिया है। 

कार्यक्रम अधिकारी विक्रम सिंह के मुताबिक यदि 6-7 महीने की अवधि में ये हुआ होता तो हम शक करते, लेकिन तीन महीने का सैंपल साइज इस बात को तय करने के लिए सही नहीं है कि सिर्फ लड़के ही पैदा हुए, या लड़कियां ही पैदा हुईं। वे कहते हैं कि 129 गांवों में सिर्फ लड़कियां पैदा होने का संदेश नहीं गया और 133 गांवों में सिर्फ बेटे के जन्म का संदेश चला गया। 

दरअसल ये रिपोर्ट आशा कार्यकर्ताओं ने हर तीन महीने पर होने वाली समीक्षा बैठक के लिए तैयार की थी। जिलाधिकारी बच्चों के जन्म पर हर तीन महीने पर समीक्षा बैठक करते हैं। जिसमें ये आंकड़े उजागर हुए।

उत्तरकाशी की पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष जशोदा राणा कहती हैं कि आज भी लोगों के मन में ये बात है कि बेटा ही वारिस होता है। फिर जब से दो बच्चों का चलन शुरू हुआ है, लोग चाहते हैं कि एक संतान बेटा अवश्य हो। हालांकि लोग बेटियों को पढ़ा लिखा रहे हैं। समाज में बदलाव आए हैं। लेकिन लड़कियों के साथ जो आपराधिक घटनाएं हो रही हैं उसकी वजह से भी लोग लड़की को जन्म देना नहीं चाहते।

उत्तरकाशी में अल्ट्रासाउंड  सेंटर्स के बारे में पूछने पर जशोदा राणा कहती हैं कि सिर्फ यहां ही नहीं लिंग जांच के लिए लोग देहरादून और विकासनगर तक जाते हैं। यही नहीं स्वास्थ्य जांच के नाम पर जो शिविर लगते हैं, वे बाहरी दिखावे के तौर पर शिविर होते हैं लेकिन उनके अंदर बड़ा गिरोह सक्रिय रहता है, जो इस तरह के कार्यों को अंजाम दे रहा है। जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुकी जशोदा राणा कहती हैं कि अधिकारियों के संज्ञान में सब बातें रहती हैं लेकिन वे इसकी अनदेखी करते हैं।

उत्तरकाशी के मौजूदा जिला पंचायत अध्यक्ष प्रकाश चंद रमोला इस मुद्दे पर कुछ भी स्पष्ट तौर पर नहीं कहते। वे स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही करार देते हैं कि भ्रूण हत्या करने वालों को दंडित नहीं किया जाता बल्कि सहयोग किया जाता है। उनके मुताबिक वे इसके लिए गांवों में जागरुकता अभियान चलाएंगे।

ऋषिकेश की सामाजिक कार्यकर्ता और कई कमेटियों में शामिल हेमलता बहन कहती हैं कि कई बार आशा कार्यकर्ता भी लड़के की चाह रखने वाले परिवार से सहानुभूति रखती हैं। उन पर ही गर्भवती महिलाओं को सरकारी डॉक्टरों  तक ले जाने का ज़िम्मा होता है। उनके मुताबिक 133 गांवों में तीन महीने में एक भी बेटी पैदा न हो, ये बात साफतौर पर भ्रूण हत्या की ओर इशारा करती है।

देहरादून में महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास विभाग की डिप्टी डायरेक्टर सुजाता सिंह कहती हैं कि आशाओं के सर्वे से मिले डाटा का दोबारा विश्लेषण किया जा रहा है। उन्होंने इन आंकड़ों पर ही शक जताया। उनके मुताबिक एक बार डाटा वेरिफाई करके फाइनल रिपोर्ट आ जाए, फिर इस पर जरूरी कार्रवाई की जा सकेगी। इसके साथ ही आंगनबाड़ी केंद्रों से मिले आंकड़ों से भी इसका मिलान किया जा रहा है। सुजाता कहती हैं कि आशाओं के पास आमतौर पर सरकारी अस्पतालों में हुए प्रसव के आंकड़े होते हैं। जबकि यदि किसी परिवार को ये पता चल जाए कि गर्भ में लड़का है तो वे सुरक्षित प्रसव के लिए निजी अस्पतालों में जाते हैं। यानी सरकारी अस्पतालों में सिर्फ बेटियां पैदा होती हैं। उनकी बातों में ही विरोधाभास है। आशा कार्यकर्ताओं द्वारा बेटे पैदा होने के आंकड़े तो सरकारी अस्पतालों के ही हैं। फिर जब ये पता चल जाए कि गर्भ में पल रहा शिशु लड़का है तो गर्भ में पल रहे शिशु की लिंग जांच करायी गई है! महिला सशक्तिकरण और बाल विकास विभाग ही राज्य में बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान संचालित करता है।

उधर पीटीआई के मुताबिक  जिलाधिकारी आशीष चौहान ने कहा कि 133 गांवों का सर्वेंक्षण करने के लिए जिलास्तरीय अधिकारियों की एक टीम गठित की गयी है जो ये पता लगाएगी कि क्या क्षेत्र में चल रहे चिकित्सकीय सेंटरों में गोपनीय तरीके से भ्रूण लिंग की पहचान के लिए परीक्षण किए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि इसके अलावा चिकित्सा विभाग को भी ये पता लगाने को कहा गया है कि गर्भवती महिलाओं ने किस माह रिप्रोडक्टिव एंड चाइल्ड हेल्थ पोर्टल पर अपना पंजीकरण कराया। उन्होंने कहा कि इसके आधार पर विभाग संदिग्ध परिवारों के प्रोफाइल चेक करेगा। आशीष चौहान ने बताया कि टीमों को एक सप्ताह के भीतर अपनी रिपोर्ट जमा करने को कहा गया है।  इसके साथ ही उन्होंने कहा कि अगर समग्र रूप से देखें तो जिले में कन्या शिशु अनुपात बेहतर हुआ है और कुल 935 डिलीवरी में से 439 लड़कियां पैदा हुई हैं। 

इसके साथ ही जन्मदर के आंकड़ों की पड़ताल की ही व्यवस्था सही नहीं है। ये कार्य जिलों में आशा कार्यकर्ताओं और आंगनबाड़ी केंद्रों के ज़रिये होता है। वर्ष 2017 तक संविदा पर डाटा संसाधन सहायकों की सेवा ले जाती थी। आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की कितने घरों तक पहुंच है, वे सिर्फ सरकारी अस्पतालों में हो रहे प्रसव की जानकारी रखती हैं, निजी अस्पतालों में पैदा हो रहे बच्चों की रिपोर्टिंग किस तरह की जाती है, इसके अलावा घर में भी प्रसव होते हैं। जाहिर है इस व्यवस्था को भी दुरुस्त करने की जरूरत है।

इस समय हमें भी उत्तरकाशी की नई वेरीफाइड (सत्यापित) रिपोर्ट का इंतज़ार है, जिसकी मियाद शनिवार तय की गई है।

 

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